नोएडा : पॉलिसी बनी लेकिन इमारतों का स्ट्रक्चरल ऑडिट नहीं
पॉलिसी बनी लेकिन इमारतों का स्ट्रक्चरल ऑडिट नहीं
सिसमिक जोन-4 के लिहाज से ऑडिट जरूरी, 6 महीने पहले हुई थी लागू, 7 एजेंसियों से है करार
ये है प्रोसेस स्क्ट्रचरल ऑडिट कराने का
प्राधिकरण के अधिकारी ने बताया सबसे पहले सोसाइटी वाले बिल्डर या एओए को स्ट्रक्चर ऑडिट के लिए बोलेंगे। इसके बाद एक प्रतिनिधि 25 प्रतिशत निवासियों की सहमति के साथ प्राधिकरण में आवेदन करेगा। प्राधिकरण की एक टीम सर्वे करने सोसाइटी जाएगी। वहां सर्वे की रिपोर्ट को प्राधिकरण की समिति के समक्ष रखा जाएगा। यहां से पास होने के बाद बिल्डर या एओए को बोला जाएगा कि प्राधिकरण के पैनल में सात एजेंसियां है। जिनमें से आप एक का चुनाव कर सकते है। उन्होंने बताया कि अब तक 6 सोसाइटी के एओए की ओर से स्ट्रक्चरल ऑडिट कराने के लिए आवेदन आए है।
नोएडा में करीब 100 सोसायटी है। जिनमें 400 हाइराइज इमारत है। सवाल ये है कि इन इमारतों की मजबूती कितनी है। इनमें से अधिकांश इमारतों को बने हुए पांच साल से ज्यादा हो गए। प्राधिकरण का दावा है यहां बनी इमारत रैक्टर स्केल 7 और 8 तक का झटका झेल सकती है। हालांकि इनके लिए प्राधिकरण ने ऑप्शन दिए है। जिन इमारतों की लाइफ पांच साल हो चुकी है।
आरडब्ल्यूए या एओए भी इन एजेंसियों से स्ट्रक्चर ऑडिट करवा सकती है। इसका खर्चा उन्हें खुद देना होगा। वहीं प्राधिकरण ने बताया कि पॉलिसी लागू होने से पहले बिल्डर खुद ऑडिट कराता था। इसकी रिपोर्ट आईआईटी से संबंधित कोई प्रोफेसर एप्रूव कर सकता था। इस रिपोर्ट को प्राधिकरण मान्य मानता था। जिसके बाद बिल्डर को ओसी और सीसी जारी कर सकता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
सिस्मिक जोन में चार में आता है नोएडा
नोएडा सिस्मिक जोन-4 में आता है। यानी ये एरिया भूकम्प के लिहाज से बेहद संवेदनशील माना जाता है। इसको लेकर नोएडा में बनाए जा रहे प्रोजेक्ट , सड़क और इमारते सिसमिक जोन-5 के हिसाब से बनाई जा रही है। हालांकि नोएडा के बायर्स की ओर हमेशा स्ट्रक्चर को लेकर शिकायत की जाती रही है। इसके लिए प्राधिकरण ने एक कमेटी का गठन किया है। जो स्ट्रक्चरल ऑडिट के दौरान ये तय करेगी कि इमारत में माइनर इफेक्ट है या मेजर इसकी के बाद ऑडिट होगा और मरम्मत होगी।
प्राधिकरण के पैनल में शामिल एजेंसिया
- आईआईटी कानपुर
- एमएनआईटी प्रयागराज
- बिट्स पिलानी
- एनआईटी जयपुर
- सीबीआरआई रुड़की
अब डालते पॉलिसी पर एक नजर और ये होगा फायदा
- ये पॉलिसी तीन मेजर डिफेक्ट पर आधारित है। पहली इमारत के फाउंडेशन में क्रैक और डै-मेज, दूसरी फ्लोर व कॉमन एरिया में क्रैक और डैमेज और तीसरा दीवारों में क्रैक और डेमेज।
- प्राधिकरण ओसी जारी करने से पहले बिल्डर अपने खर्चे पर स्ट्रक्चर ऑडिट कराएगा। ये आडिट उसे प्राधिकरण की ओर से इम्पैनल्ड किए गए पैनल से ही कराना होगा।
- यदि स्ट्रक्चरल ऑडिट के बाद 25 प्रतिशत फ्लैट बायर्स की ओर से स्ट्रक्चर डिफेक्ट की शिकायत की जाती है तो प्राधिकरण की ओर से गठित समिति द्वारा निर्णय लिया जाएगा कि डिफेक्ट मेजर है या माइनर। इसके बाद अपार्टमैंट ऑनर एसोसिएशन एक्ट में स्ट्रक्चर डिफेक्ट को दूर किए जाने की जिम्मेदारी दो साल तक बिल्डर की होगी।
- रेरा अधिनियम के तहत पांच साल तक स्ट्रक्चर डिफेक्ट को दूर करने की जिम्मेदारी बिल्डर की और पांच साल बाद एओए की होगी। इस अवधि की गणना अधिभोग प्रमाण पत्र जारी होने के बाद की जाएगी।
- यदि स्ट्रक्चर ऑडिट की रिपोर्ट नेगेटिव आती है तो पांच साल के अंदर स्ट्रक्चर डिफेक्ट को बिल्डर की ओर से दूर किया जाएगा। दो से पांच साल की अवधि के प्रकरण में प्राधिकरण एजेंसी से ऑडिट करवाकर कमियों को दूर -करने के लिए रेरा प्राधिकरण को कहेगा। इसके अलावा पांच साल से अधिक होने पर ये जिम्मेदारी एओए की होगी।
अब जानते है चार साल पहले हुए सर्वे में 1757 इमारत थी जर्जर अब सिर्फ कागजी खानापूर्ति
नोएडा प्राधिकरण ने शहर में 4 श्रेणियों में जर्जर इमारतों का सर्वे कराया था। इसमें कुल 1,757 इमारतों को चिह्नित किया गया था। इसमें 114 इमारतों ऐसी थीं, जिनको ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन अब तक किसी भी इमारत को ध्वस्त नहीं किया गया। इसमें पहला असुरक्षित और जर्जर दूसरा अधिसूचित व अर्जित भवन पर अवैध कब्जा, तीसरा अधिसूचित व अनर्जित पर बनी इमारत व चौथा ग्राम की मूल आबादी में बनी बहुमंजिला इमारतों को शामिल किया गया था। सर्वे के परिणाम चौंकाने वाले थे। पहली श्रेणी में कुल 56 जर्जर व असुरक्षित इमारत थी। कुल मिलाकर 1,757 इमारतों की एक सूची बनाई गई। ध्वस्तीकरण अब तक नहीं किया जा सका।