करोड़ों खर्च कर खराब प्लानिंग से बनाई संपत्तियां !
नगरनिगम द्वारा बनाया गया हुजरात मार्केट का भवन यहां दुकानें अब तक न बिक सकी दुकानें।
- पैसा ना होने के कारण जनता की मूलभूत सुविधाओं के काम अटके
- वर्तमान में नगर निगम फंड की कमी से जूझ रहा है, नहीं बिक रही संपत्तियां
- नगरनिगम की दुकानों सहित अन्य संपत्तियों को नहीं मिल रहे खरीदार
जनता को सड़क, सीवर सफाई जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने के लिए नगर निगम फंड की कमी से जूझ रहा है। निगम के खजाने को भरने के लिए करोड़ों रुपये की राशि खर्च कर इतना ही लाभ कमाने की कागजों में अधिकारियों ने प्लानिंग भी की, लेकिन इसका अमल ठीक से नहीं हुआ। इसका नतीजा यह है कि नगर निगम की कई संपत्तियां अब सफेद हाथी बन चुकी हैं।
निगम के अधिकारियों ने आनन-फानन में कहीं मार्केट, तो कहीं पजल व मल्टीलेवल पार्किंग शुरू करा दीं। अब मार्केट की दुकानों के लिए खरीदार भी नहीं मिल रहे हैं। ताजा मामला नवनिर्मित हुजरात मार्केट से जुड़ा हुआ है, जहां 100 में से 51 अतिरिक्त दुकानें खाली पड़ी हुई हैं। इन्हें बेचने के लिए अब बाकायदा टिपर वाहनों से मुनादी करानी पड़ रही है।
निगम को इन दुकानों से लगभग साढ़े छह करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद है, जिससे जनता की सुविधा के लिए काम कराए जा सकें। तीन बार इन दुकानों को बेचने के प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में अब चौथी बार प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए आनलाइन टेंडर और बिडिंग प्रक्रिया तो की ही जा रही है।
साथ ही मार्केट के बाहर सुबह व शाम के समय टिपर वाहन खड़ा करवाकर पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम के जरिए यह मुनादी कराई जा रही है कि निगम 30 साल के लिए दुकानों को लीज पर दे रहा है। इसके वीडियो तैयार कर बाकायदा इंटरनेट मीडिया पर वायरल भी किए जा रहे हैं। इसके बावजूद लोग इन दुकानों को खरीदने में रुचि नहीं ले रहे हैं। क्योंकि स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन ने जब ये मार्केट तैयार कराया, उस समय दुकानों के साइज पर ध्यान ही नहीं दिया।
ये आ रही हैं संपत्तियों में समस्याएं1- हुजरात मार्केट
लागत- साढ़े आठ करोड़ रुपये
स्थिति- स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन ने साढ़े आठ करोड़ रुपये की लागत से नया मार्केट तैयार कराया है। पूर्व में मौजूद मार्केट की तर्ज पर ही यहां सब्जी विक्रेताओं के लिए 62 चबूतरों के अलावा 100 अतिरिक्त दुकानें बनाई गई हैं। यहां से कुछ ही कदमों की दूरी पर दवाओं का थोक मार्केट है। दुकानदारों को गोदाम सहित बड़ी दुकानों की जरूरत है। दवा कंपनियों के नियम के हिसाब से कम से कम 110 से 150 वर्गफीट की दुकान होनी चाहिए, लेकिन यहां दुकानों का आकार 80 वर्गफीट है। जिस समय निर्माण का प्लान तैयार किया गया, उस समय यह ध्यान नहीं दिया गया कि भविष्य में इन दुकानों को कौन खरीद सकता है।
2- राजपायगा मल्टी लेवल पार्किंग
लागत-ढाई करोड़ रुपये
स्थिति- इस पार्किंग को शुरूआत में दोपहिया और चार पहिया वाहनों के हिसाब से तैयार कराया गया। कागजों में डिजाइन सही बना, लेकिन निर्माण के समय स्लोप संकरा रह गया और वाहनों को मोड़ने के लिए जगह नहीं बची। वर्ष 2016 में इस पार्किंग का लोकार्पण कर दिया गया और इसे दोपहिया पार्किंग घोषित किया गया। अब स्थिति यह है कि दोपहिया वाहनों को भी खड़े स्लोप पर चढ़ने और मुड़ने में दिक्कत होती है। निगमायुक्त अमन वैष्णव ने स्लोप ठीक कराने के निर्देश दिए हैं, लेकिन ऐसा पहले भी कई अधिकारियों ने कहा है। आठ साल में यह तकनीकी खामी दूर नहीं हो सकी है। 10 साल में 84 में से 14 दुकानें ही बिकीं।
3- खुर्जेवाला मोहल्ला मार्केट
लागत- ढाई करोड़ रुपये
स्थिति- तत्कालीन महापौर समीक्षा गुप्ता के कार्यकाल में खुर्जेवाला मोहल्ला की तंग गलियों में 84 दुकानों वाला तीन मंजिला मार्केट तैयार करा दिया गया। वर्ष 2014 में ये मार्केट बनकर तैयार हो गया था। उस समय दावा किया गया कि इस मार्केट की दुकानें बिकने पर निगम को करोड़ों रुपये का राजस्व मिलेगा, लेकिन 10 साल में कई बार प्रयास करने के बाद भी यहां 84 में से सिर्फ 14 दुकानें ही बिक पाईं। 70 दुकानें अब भी खाली पड़ी हुई हैं। इसके अलावा दुकानों के पास ही कचरा ठिया होने और मार्केट के फ्रंट का विवाद होने के कारण अब व्यापारी भी यहां दुकानें खरीदने में रुचि नहीं ले रहे हैं।
(नोट: इसके अलावा साढ़े तीन करोड़ रुपये की लागत से तैयार मैकेनाइज्ड पजल पार्किंग का भी संचालन नहीं हो पा रहा है।)
दुकानें बेचने का प्रयास है
हुजरात मार्केट की दुकानें बेचने के लिए फिर आफर मंगाए गए हैं। इसका प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं, ताकि निगम को राजस्व मिल सके। राजपायगा पार्किंग को सुधारने के निर्देश दिए हैं, ताकि यह जनता के काम आ सके और निगम को भी पार्किंग शुल्क प्राप्त हो सके।
अमन वैष्णव, आयुक्त नगर निगम