इंसानों से ज्यादा टेक्नोलॉजी पर भरोसा मोसाद को पड़ा भारी ?

इंसानों से ज्यादा टेक्नोलॉजी पर भरोसा मोसाद को पड़ा भारी
दुनिया की सबसे कामयाब इजराइली एजेंसी, कैसे पड़ोस में ही मात खा गई

इजराइल के आर्मी चीफ ने माना है कि वो देश की सुरक्षा करने में नाकाम रहे।

आखिर 7 अक्टूबर 2023 की सुबह अपने देश पर होने वाले इतने बड़े हमले को कैसे नहीं भांप पाया? दुनिया की टॉप इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद से कहां और कैसे चूक हुई?

इजराइल के लिए इंटेलिजेंस जुटाना रोटी-कपड़ा जितना जरूरी
इजराइल सरकार के अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा- यह बहुत ही बड़ी चूक है। इसकी तह तक जाने में कुछ सालों का समय लग सकता है। इसकी जांच शुरू की जा चुकी है। इस साल के अंत तक इंटेलिजेंस फेलियर से जुड़ी कुछ जानकारी हाथ लग सकती है। फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।

वहीं, लंबे समय तक रॉ के साथ काम कर चुके अधिकारी ने बताया कि मोसाद, ज्यादा देशों के साथ मिलकर काम नहीं करती है, जबकि भारत की रॉ के साथ मिलकर कई दशकों से काम कर रही है। इजराइल चारों तरफ से उसे चुनौती देने वाले देशों से घिरा है। ये देश इजराइल के बनने के वक्त से ही उसे नुकसान पहुंचना चाहते हैं।

यही वजह है कि इजराइल में खुफिया तंत्र पर वहां की सरकार खूब पैसा खर्च करती है। इजराइल में इंटेलिजेंस इकट्ठा करना उतना ही जरूरी है जितना किसी और देश में रोटी, कपड़ा और मकान। 7 अक्टूबर का हमला बहुत बड़ी नाकामयाबी है, इजराइल की सरकार जितना भी इसके लिए दूसरे देश को जिम्मेदार माने, लेकिन सत्ता में बैठे लोग इस फैक्ट को नहीं नकार सकते कि वो अपने लोगों को सुरक्षा देने में नाकामयाब रहे।

जराइल पर कारगिल जैसा हमला हुआ
मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि इजराइल पर हमला किसी नए संगठन ने नहीं, बल्कि इजराइल के ही पुराने दुश्मन, हमास ने किया। यह ठीक वैसा ही है जैसे की हमने 1999 में कारगिल में देखा था। जब पाकिस्तान के सैनिक और आतंकवादी हमारे सीमा में घुस गए थे और हमें पता भी नहीं चला।

उन्होंने कहा- मुझे जानकारी मिली है कि हमला नहीं रोक पाने की वजह से मोसाद के काफी अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा। मामले पर नजर रख रहे एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि मोसाद , शिन बेट और अमन इस गलतफहमी के शिकार हो गए की हमास काफी कमजोर हो चुका है और ईरान , जो हमास का सबसे बड़ा समर्थक है, वो चुप बैठा है।

वहीं, एक डिप्लोमैट ने बताया कि 2020 में इजराइल और 2 अरब देशों के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत फिलिस्तीन के समर्थक रहे UAE और बहरीन ने इजराइल से संबंध सुधारने की शुरुआत की थी। इसके लिए अमेरिका ने मध्यस्थता कराई थी, जिसे अब्राहम एकॉर्ड के नाम से जानते हैं। तब ये माना गया था कि और भी अरब देश इस समझौते में शामिल होंगे।

इसका असर ये हुआ कि मोसाद और इजराइल के बाकी खुफिया संगठन ये मान बैठे की अब हमास के समर्थक घटने की वजह से उससे कम खतरा रहेगा। मोसाद ये भूल गया था कि डिप्लोमेसी और राजनीति अपना काम करती है और खुफिया संगठन अपना। हमास कम से कम 15 से 19 महीने से इस ऑपरेशन पर काम कर रहा था पर जिसकी भनक किसी को भी नहीं लगी।

तस्वीर 2020 के अब्राहम समझौते की है। उस समय डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति थे।
तस्वीर 2020 के अब्राहम समझौते की है। उस समय डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति थे।

ह्यूमन इंटेलिजेंस का कोई तोड़ नहीं…
हूवर इन्स्टिट्यूट और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सीनियर फेलो एमी जेगार्ट ने हमास के हमले पर लिखा की मोसाद टेक्नोलॉजी पर ज्यादा भरोसा करने लगा है। ह्यूमन इंटेलिजेंस से दूर हो गए हैं, उन्हें इसी बात का खामियाजा भुगतना पड़ा है।

पूर्व इजराइली प्रधानमंत्री एहुद बराक ने भी इजराइली खुफिया एजेंसियों की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि हमास का हमला खुफिया एजेंसियों और राजनीतिक नेतृत्व की बड़ी विफलता है।

एक रिटायर्ड रॉ के अधिकारी ने भास्कर को बताया “ह्यूमन इंटेलिजेंस, जासूसी की दुनिया में सबसे मेहनत का काम होता है। इसमें सबसे ज्यादा जोखिम भी होता है, पर जो रिजल्ट आपको ह्यूमन इंटेलिजेंस से मिल सकता है, वो कोई और नहीं दे सकता।

फर्ज कीजिए कि आपने एक दुश्मन देश में ऊंचे पद पर बैठे एक अफसर को अपने लिए काम करने के लिए तैयार कर लिया हो। उसके बाद आप सोचिए कि वो किस स्तर की खबर आपको देगा। उसके आगे बाकी सारी इंटेलिजेंस फेल है।

उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक मोसाद ने गाजा पट्टी में हमास के बीच में अपने लोगों को बैठाया था, पर पिछले 4-5 साल से मोसाद ने इस तरह की इंटेलिजेंस पर ध्यान देना कम कर दिया था।

पेगासस जैसे टूल्स पर मोसाद और बाकी इजराइली खुफिया संगठन ज्यादा भरोसा कर रहे हैं, जिसके कारण वो हमास के लोगों को गुप्त रूप से रिक्रूट करना या हमास के बीच में अपने लोगों को बिठाना कम कर दिया। ये एक काफी समय लेने वाली प्रक्रिया होती है।

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