बेरोजगार भटक रहे हैं, बात हो रही है जिला डबरा बनाने की …
बेरोजगार भटक रहे हैं, बात हो रही है जिला बनाने की
Gwalior News: डबरा विधानसभा की पहचान गन्ने की मिठास और शुगर मिल से थी। शुगर मिल में ताले लगे वर्षों हो गए हैं, इसके बाद क्षेत्र में रोजगार देने वाला कोई उद्योग नहीं आया। हालात यह हो गए हैं कि गन्ने की पैदावार करने से तौबा कर लिया गया है।
- किसानों ने गन्ने की पैदावार से तौबा की
- ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव
ग्वालियर. डबरा विधानसभा की पहचान गन्ने की मिठास और शुगर मिल से थी। शुगर मिल में ताले लगे वर्षों हो गए हैं, इसके बाद क्षेत्र में रोजगार देने वाला कोई उद्योग नहीं आया। हालात यह हो गए हैं कि गन्ने की पैदावार करने से तौबा कर लिया गया है। धान की पैदावार की भी अच्छी संभावनाएं हैं। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। पेजयल, सीवर और बिजली की समस्या पहले से हैं। इसपर कोई दल बात करने को तैयार नहीं है। दोनों मतदाताओं के वोट हासिल करने के लिए डबरा को जिला बनाने के वादे जोर-शोर से किये गये और शीर्ष नेतृत्व से भी कराये। डबरा विधानसभा शुगर मिल किसानों की आय का मुख्य आधार के साथ स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार का मुख्य स्रोत थी।
शुगर मिल बंद होने के बाद से स्थानीय नेताओं ने कोई नया उद्योग लगाने का कोई प्रयास नहीं किए। हालांकि भाजपा व कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में डबरा बनाने को जिला बनाने का मुद्दा प्रमुखता से उठाया। किंतु अब भी डबरा किसी बड़े कस्बे की तरह हैं। ट्रैक्टर ट्रालियों के कारण यातायात व्यवस्था चरमाई हुई है। चूकि ग्रामीण क्षेत्र है, इसलिए पेयजल, सीवर व बिजली की समस्या तो सनातन हैं, इसके साथ ही लंबे समय से अजा सीट होने के कारण यहां के सामाजिक तानाबाना बिखरता नजर आ रहा है। स्वार्थ सिद्धी और जमीनों पर कब्जा करने की नीयत से संविधान निर्माता डा. आंबेडकर की प्रतिमाएं लगाने का प्रचलन भी बढ़ा है। जो कि कई बार जातीय संघर्ष का कारण बन जाता है।
शुगर मिल का अब तक नहीं तलाशा गया विकल्प
डबरा की मुख्य पैदावार गन्ना और धान थी। गन्ने की पैदावार के लिए उपयुक्त जमीन व वातावरण भी है, इसलिए गन्ने ने क्षेत्र को समृद्धि प्रदान की थी। किंतु गन्ने की खपत नहीं होने के कारण क्षेत्र के किसान अब इसकी खेती को प्राथमिकता नहीं देते हैं। केंद्रीय मंत्री माधव राव सिंधिया के प्रयास से डबरा शुगर मिल शुरु हुई थी। अब शुगर मिल ताले लगे हुए हैं। इस क्षेत्र से कई दिग्गज नेताओं का नाम जुड़ा हुआ है। किसी ने भी शुगर मिल का विकल्प तलाशने का कोई प्रयास नही किया है।
ट्रैफिक मूल समस्या
ग्वालियर-झांसी हाइवे के मध्य में बसा डबरा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। डबरा स्टेशन भी है। डबरा के आसपास ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण लोग ग्रामीण खरीदारी करने के लिए ट्रैक्टर-ट्राली से आते हैं, जिसके कारण स्थानीय नागरिकों के लिए ट्रैफिक बड़ी समस्या बन गई है। बिजली, पानी व सड़क जैसी
सुविधाओं का अभाव
डबरा में बिजली, पानी व सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं भी क्षेत्र के लोगों को उपलब्ध नहीं है, जबकि डबरा का निरंतर विस्तार हो रहा है। पेयजल, सीवर और सड़क की मूल समस्या है।
भाजपा प्रत्याशी इमरती देवी ने जिला बनाने का मुद्दा
उठाया भाजपा प्रत्याशी इमरती देवी को परिसीमन के बाद से निरतंर इस क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। केवल उपचुनाव में पराजित हुईं। यानि परिसीमन के बाद इस क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ माने जाने लगा। इमरती देवी ने इस बार के विधानसभा चुनाव में डबरा को जिले का बनाने का मुद्दा जोर शोर से उठाया। मुख्यमंत्री ने भी वादा किया कि भाजपा की जीत पर डबरा को जिले का दर्ज दिया जाएगा। इसके अलावा मूलभूत सुविधाओं को लेकर सतही तौर पर उठाया गया।
रोजगार के साधन पर कांग्रेस प्रत्याशी भी मौन
उपचुनाव में पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे सुरेश राजे को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है। राजे भी डबरा को जिले बनाने की बात कर रहे हैं। किंतु रोजगार के साधन उपलब्ध कराने पर पर कांग्रेस भी खामोश रही। उनके पास भी स्थानीय संसाधनों के आधार पर उद्योग-धंधे विकसित करने नहीं बोले।
जिला बनने के साथ मेडिकल सुविधाओं का विस्तार हो
पहली प्राथमिकता तो डबरा का जिला बनना जरूरी है। डबरा में बड़ा उद्योग खुलना चाहिए, साथ ही शहर में मेडिकल सुविधा उच्च स्तर की होनी चाहिए। डबरा में सुंदर पर्यटन स्थल भी होना चाहिए, इन सबके साथ-साथ गाड़ियों की पार्किंग व्यवस्था भी होनी चाहिए, शहर में ट्रालियों पर प्रतिबंध होना चाहिए। जिससे जाम से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि जिले का दर्ज मिलने के साथ जन सुविधाओं का विस्तार भी होगा।
श्याम श्रीवास्तव “सनम”, साहित्यकार, समाजसेवी