मध्य प्रदेश में पोस्टल बैलेट पर बवाल मचा है ?

मध्य प्रदेश चुनाव: ईवीएम के दौर में कांग्रेस के लिए कितना अहम है पोस्टल बैलेट के वोट?
चुनाव आयोग के अधिकारियों के मुताबिक अक्सर पोस्टल बैलेट की गिनती ईवीएम के वोटों की गिनती से पहले होती है. चुनाव के नतीजे पोस्टल बैलेट और ईवीएम के मतों को गिनने के बाद जारी किया जाता है.
मध्य प्रदेश चुनाव में मतगणना से पहले कांग्रेस ने बालाघाट के जिला कलेक्टर गिरीश मिश्रा पर पोस्टल बैलेट में हेराफेरी का आरोप लगाया है. पार्टी ने दिल्ली में मुख्य निर्वाचन आयुक्त से इस मामले में शिकायत की है. मध्य प्रदेश कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से डाक मत पत्र पेटी खोलने का एक वीडियो भी शेयर किया गया है. 

पार्टी का कहना है कि बालाघाट कलेक्टर ने बीजेपी के दबाव में हेरफेर की कोशिश की, लेकिन सजगता की वजह से मामला सामने आ गया. मामला तूल पकड़ने के बाद जबलपुर कमिश्नर ने एसडीएम और तहसीलदार को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया है. 

पोस्टल बैलेट मतदान करने का एक जरिया है, जो ईवीएम के दौर में भी प्रचलित है. भारत में पोस्टल बैलेट से वोट करने का अधिकार वरिष्ठ नागरिकों, नजरबंद मतदाता, चुनावी ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों और सैन्य और विदेश सेवा में तैनात सरकारी अधिकारियों के पास है. 

चुनाव आयोग के अधिकारियों के मुताबिक अक्सर पोस्टल बैलेट की गिनती ईवीएम के वोटों की गिनती से पहले होती है. चुनाव के नतीजे पोस्टल बैलेट और ईवीएम के मतों को गिनने के बाद जारी किया जाता है.

पोस्टल बैलेट की शुरुआत कब हुई थी?
डाक मत पत्र से वोटिंग की अवधारणा काफी पुरानी है. हर नागरिक को वोट देने के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए भारत में आखिरी बार  21 अक्तूबर, 2016 को निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 के नियम 23 में संशोधन किया गया था. इसी संशोधन के बाद पोस्टल बैलेट की शुरुआत हुई थी. 

पोस्टल बैलेट 1980 के दशक में चलने वाला पेपर्स बैलेट की तरह होता है. पोस्टल बैलेट में 2 भाग होते हैं, जिसके पहले भाग में मतदाताओं को अपनी जानकारी भरनी होती है. इस जानकारी को आयोग अपने पास रख लेती है. दूसरे भाग में प्रत्याशियों के नाम के साथ चुनाव चिन्ह रहते हैं.

इसमें वोटर्स जिस उम्मीदवार को वोट देना चाहता है, उसके नाम के आगे उसे टिक लगाना होता है. काउंटिंग के वक्त इसे ही गिना जाता है. 

हाल ही में पोस्टल बैलेट से मतदान के लिए चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था भी शुरू की है. इसमें पोस्टल बैलेट को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से मतदाताओं तक पहुंचाया जाता है और फिर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ही आयोग वापस लेता है.

पोस्टल बैलेट से मतदान की प्रक्रिया जानिए
चिन्हित वोटरों को चुनाव आयोग पोस्टल बैलेट भेजती है. पोस्टल बैलेट के साथ लिस्ट ऑफ कंटेंट पेज, फॉर्म 13-ए, फॉर्म 13-बी, फॉर्म 13-सी और फॉर्म 13-डी भेजा जाता है. फॉर्म 13-डी में क्या करें और क्या नहीं करें के बारे में बताया जाता है. 

मतदाताओं को स्पष्ट निर्देश रहता है कि वोट साफ-साफ डालें, जिससे गिनती के वक्त कोई कन्फ्यूजन न रहे. अगर गिनती के वक्त कन्फ्यूजन रहता है, तो मत को अवैध करार दिया जाता है.

पोस्टल बैलेट पर वोट डालने के बाद कंटेंट पेज को छोड़कर मतदाता सभी चीज सक्षम अधिकारी को वापस कर देता है. इसके बाद आयोग इन सभी पोस्टल बैलेट को स्थानीय रिटर्निंग अधिकारियों के पास भेजता है. 

गिनती के वक्त 500-500 पोस्टल को हर टेबल पर रखा जाता है और यहां आयोग के अधिकारियों के अलावा सभी पार्टियों के एजेंट मौजूद रहते हैं. पोस्टल गिनती के बाद ही ईवीएम को खोला जाता है. रिकाउंटिंग की अगर जरूरत पड़ती है, तो पहले पोस्टल की ही गिनती की जाती है.

विपक्ष के लिए क्यों अहम है पोस्टल बैलेट का वोट?
मध्य प्रदेश में पिछले चुनाव के दौरान करीब 2 लाख 88 हजार मत पड़े थे. पोस्टल बैलेट ने राज्य के 10 सीटों पर जीत-हार में अहम भूमिका निभाई थी. इनमें ग्वालियर दक्षिण, सुवासरा, बिना, कोलारस, जबलपुर उत्तर जैसी सीटें शामिल थी. 

पिछले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सिर्फ 5 सीटों का अंतर था. इस बार भी मुकाबला काफी क्लोज फाइट का माना जा रहा है. 

दूसरी बड़ी वजह पोस्टल बैलेट से मतदान करने वाले लोग हैं. इस प्रक्रिया से सबस ज्यादा वोट सरकारी कर्मचारी डालते हैं. ओल्ड पेंशन स्कीम मुद्दे की वजह से विपक्षी पार्टियों के वोट पोस्टल बैलेट से बढ़ा है. 

उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के 2022 चुनाव में 4.42 लाख पोस्टल बैलेट से वोट पड़े थे, जिसमें सपा गठबंधन को 2.45 लाख वोट मिले थे. गुजरात और हिमाचल के चुनाव में भी विपक्षी पार्टियों को बीजेपी से ज्यादा पोस्टल बैलेट के वोट मिले थे. 

गुजरात में बीजेपी को पोस्टल बैलेट के सिर्फ 38 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस और आप को संयुक्त रूप से 54 प्रतिशत वोट मिले थे. हिमाचल में बीजेपी को पोस्टल बैलेट के 41.1 तो कांग्रेस को 49.5 प्रतिशत वोट मिले थे. 

मध्य प्रदेश में भी ओल्ड पेंशन स्कीम एक बड़ा मुद्दा है और कांग्रेस सरकार में आने के बाद इसे लागू करने की बात कही है. 

जब पोस्टल बैलेट की वजह से हार गए कैंडिडेट, 4 किस्सा

1. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान हिलसा सीट पर आरजेडी के शक्ति सिंह यादव को पोस्टल बैलेट की वजह से हार का सामना करना पड़ा था. शक्ति को 61836  वोट तो जेडीयू के कृष्णमुरारी 61848 वोट मिले थे. शक्ति का आरोप था कि प्रशासन ने आरजेडी के मिलने वाले पोस्टल बैलेट को रद्द करवा दिया. यह मामला वर्तमान में हाईकोर्ट के पास है.

2. बिहार के ही चुनाव में रामगढ़ सीट पर आरजेडी के सुधाकर सिंह ईवीएम से पड़े वोट में बीएसपी के अम्बिका सिंह से हार गए, लेकिन पोस्टल बैलेट वोट की वजह से उन्हें जीत मिल गई. ईवीएम से अम्बिका को 57889 तो सुधाकर को 57284 वोट मिले थे. पोस्टल बैलेट में सुधाकर को 799 और अम्बिका को 305 वोट मिले थे. 

3. 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी के सुरेंद्र यादव पोस्टल वोट की वजह से हार गए. सुरेंद्र यादव को ईवीएम से 332116 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंदी चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को 333191 वोट प्राप्त हुआ. पोस्टल गिनती के बाद सुरेंद्र की हार का अंतर काफी ज्यादा बढ़ गया. यादव ने हार का ठीकरा पोस्टल बैलेट पर फोड़ा था. 

4. हाल ही में कर्नाटक चुनाव के दौरान जयनगर सीट पर कांग्रेस के सौम्या रेड्डी को पोस्टल बैलेट की वजह से ही हार का सामना करना पड़ा था. ईवीएम से सौम्या को 57591 वोट तो उनके प्रतिद्वंदी बीजेपी के सीके राममूर्ती को 57297 वोट मिले थे. पोस्टल बैलेट वोट में सौम्या काफी पीछे रह गई. उन्हें सिर्फ 190 वोट मिले, जबकि राममूर्ति को 500 वोट पोस्टल के मिले. आखिर में सौम्या 16 वोट से चुनाव हार गई.

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