एग्जिट पोल कैसे पता लगाते हैं किसकी सरकार बनेगी ?
एमपी-छत्तीसगढ़ में कांग्रेस, राजस्थान में बीजेपी …एग्जिट पोल कैसे अनुमान लगाते हैं किसकी सरकार बनेगी
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और राजस्थान में बीजेपी की सरकार बन सकती है। अलग-अलग एग्जिट पोल के आंकड़े इस तरफ इशारा कर रहे हैं। चुनावी नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे।
एग्जिट पोल कैसे पता लगाते हैं किसकी सरकार बनेगी, कब से हुई शुरुआत और कितने सटीक होते हैं आंकड़े; इलेक्शन एजुकेशन सीरीज के इस एपिसोड में ऐसे ही 12 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…
सवाल-1: एग्जिट पोल क्या होते हैं?
जवाब: जैसा की नाम से जाहिर है। एग्जिट पोल यानी पोलिंग बूथ से निकलने वाले वोटर्स से बातचीत के आधार पर तैयार पोल। ये एक तरह का चुनावी सर्वे होता है। मतदान वाले दिन जब मतदाता वोट देकर पोलिंग बूथ से बाहर निकलता है तो उससे वोटिंग को लेकर सवाल पूछे जाते हैं। इसमें उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसको वोट दिया है?
हजारों मतदाताओं के जवाब जुटाने के बाद एजेंसियां उसका एनालिसिस करती हैं। जिससे अंदाजा लग जाता है कि हवा किसकी तरफ है। गणना से ये भी बताया जाता है कि किसको कितने सीटें मिल सकती हैं। साथ ही उन मुद्दों, नेताओं और घोषणाओं के बारे में भी पता चलता है, जिन्होंने मतदाताओं को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है।
सवाल-2: एग्जिट पोल की शुरुआत कब और कैसे हुई?
जवाब: चुनावी सर्वे की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका में हुई। जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन ने अमेरिकी सरकार के कामकाज पर लोगों की राय जानने के लिए ये सर्वे किया था। उसके बाद ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और डेनमार्क में भी चुनाव से पहले सर्वे हुए। ये 1930 और 1940 का दशक था।
एग्जिट पोल की शुरुआत काफी बाद में हुई। टाइम मैगजीन के मुताबिक 1967 में पहली बार दुनिया में बड़े स्तर पर कोई एग्जिट पोल किया गया था…
1. अमेरिका के पॉलिटिकल रिसर्चर वॉरेन मिटोफस्की ने केंटुकी राज्य में होने वाले गवर्नर चुनाव के दौरान पहली बार एग्जिट पोल किया था।
2. डच समाजशास्त्री मार्सेल वैन डैम ने इसी साल 15 फरवरी को नीदरलैंड्स के आम चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को लेकर एक सर्वे किया था।
दोनों ही जगहों पर एक्सपर्ट ये जानने की कोशिश कर रहे थे कि लोग आखिर किसे और क्यों वोट कर रहे हैं? इसके बाद वॉरेन और मार्सेल का ये तरीका मीडिया कंपनियां इस्तेमाल करने लगीं।
दुनिया में पहली बार किस मीडिया कंपनी ने ये तरीका अपनाया, इसकी सटीक जानकारी नहीं है। हालांकि, मीडिया कंपनियों की वजह से 1970 के दशक में अमेरिका और पश्चिमी देशों में तेजी से एग्जिट पोल का कल्चर बढ़ने लगा। मतदान से नतीजों के बीच लोगों की उत्सुकता को कैटर करने के लिए मीडिया एग्जिट पोल का सहारा लेता था।
सवाल-3: एग्जिट पोल चुनाव खत्म होने के बाद ही क्यों जारी होते हैं?
जवाबः 1980 में एग्जिट पोल पहली बार विवादों में आए। इस साल अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहे थे। मीडिया कंपनी NBC ने मतदान खत्म होने से 3 घंटे पहले ही एग्जिट पोल जारी कर दिए। इस पोल में बताया गया कि जिमी कार्टर को हराकर रोनाल्ड रीगन चुनाव जीत रहे हैं। इसको लेकर जिमी के समर्थकों ने जोरदार विरोध किया।
बाद में ये मामला अमेरिकी संसद में उठा। इस सर्वे ने मतदाताओं को कितना प्रभावित किया है, ये पता लगाने के लिए जांच कराई गई। इसके बाद मतदान खत्म होने से अब तक एग्जिट पोल जारी होने पर अमेरिका में पाबंदी लगा दी गई। बाद में यही लर्निंग दुनिया के दूसरे देशों ने भी अपनाई।
सवाल-4: भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत कब हुई?
जवाब: भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन (आईआईपीयू) के तत्कालीन प्रमुख एरिक डी कोस्टा ने की थी। 1980 के दशक में भारत में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर एग्जिट पोल को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रणय रॉय और यूके के पॉलिटिकल एक्सपर्ट डेविट बटलर ने मिलकर काम किया। उनके रिसर्च को अशोक लाहिड़ी ने अपनी किताब ‘द कम्पेंडियम ऑफ इंडियन इलेक्शन’ में पब्लिश किया है।
1996 में सरकारी चैनल दूरदर्शन ने CSDS के साथ मिलकर पहली बार एग्जिट पोल जारी किए। इसके बाद सभी सैटेलाइट चैनलों ने एग्जिट पोल जारी करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद एग्जिट पोल मतदान के बाद होने वाला सबसे लोकप्रिय टीवी शो बन गया।
सवाल-5: भारत में कौन-सी एजेंसियां एग्जिट पोल करवाती हैं?
जवाब: देश में कोई भी सरकारी संस्था एग्जिट पोल नहीं करवाती है। करीब 15 प्राइवेट एजेंसियां अलग-अलग मीडिया कंपनियों के साथ मिलकर एग्जिट पोल जारी करती हैं। इनमें से कुछ संस्थाओं के नाम- चाणक्य, सी वोटर, माय एक्सिस, जन की बात, नील्सन आदि हैं। ये संस्थाएं इंडिया टुडे, रिपब्लिक भारत, टाइम्स नाऊ, इंडिया टीवी, एनडीटीवी, न्यूज नेशन जैसी मीडिया कंपनी के साथ मिलकर सर्वे रिपोर्ट को एग्जिट पोल के जरिए जारी करती हैं।
सवाल-6: कौन-से फैक्टर्स तय करते हैं कि एग्जिट पोल कितना सटीक होगा?
जवाब: एग्जिट पोल कितना एक्यूरेट है, ये 3 मुख्य फैक्टर पर निर्भर करता है…
1. सैंपल साइज: जिस एग्जिट पोल का सैंपल साइज जितना बड़ा होता है, उसे उतना ही ज्यादा एक्यूरेट माना जाता है। मतलब ये हुआ कि सर्वे में जितना ज्यादा से ज्यादा लोगों से संपर्क किया जाए, उतना ज्यादा अच्छा है।
2. सर्वे में पूछे जाने वाले सवाल: सैंपल सर्वे में पूछा गए सवाल जितना न्यूट्रल होगा, एग्जिट पोल का रिजल्ट भी उतना ही सटीक होगा।
3. सर्वे का रेंज: सर्वे का दायरा जितना बड़ा होगा, रिजल्ट एक्यूरेट होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी। मान लीजिए किसी विधानसभा में सिर्फ दो या तीन पोलिंग बूथ से सैंपल लिए जाते हैं, जहां किसी एक पार्टी के उम्मीदवार की पकड़ है। इससे एग्जिट पोल के रिजल्ट पर असर पड़ सकता है।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज यानी CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक बिना किसी दल की ओर झुकाव वाले चुनिंदा सवालों के जरिए ही एग्जिट पोल का सही रिजल्ट पता हो सकता है। सर्वे में पूछे गए सवाल, शब्द और समय भी इसके परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं।
सवाल-7: एग्जिट पोल में कैसे सवाल पूछे जाते हैं?
जवाब: CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार के मुताबिक एग्जिट पोल में डायरेक्ट और इन-डायरेक्ट दोनों तरह के सवाल पूछे जाते हैं। अगर सीधे जवाब नहीं मिलते हैं, तो बात को घुमाकर पूछा जाता है। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में एक्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल ने सर्वे कराए थे। इस सर्वे में वोट देकर निकलने वाले वोटर्स से ये 6 सवाल पूछे गए थे…
1. आपने किसे वोट दिया और क्यों?
2. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का जाति कार्ड कितना सफल है और क्यों?
3. क्या कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से महागठबंधन को नुकसान हुआ?
4. क्या नौकरी बड़ा इश्यू था और बेरोजगारों ने इस आधार पर वोट किया है?
5. क्या राहुल गांधी के राफेल पर सवाल खड़ा करना चुनाव में कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा रहा?
6. क्या लोग धर्म के आधार पर वोट कर रहे हैं?
सवाल-8: भारत में एग्जिट पोल को लेकर क्या कानून और नियम हैं?
जवाब: एग्जिट पोल का मामला अलग-अलग वजहों से तीन बार सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है। रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट- 1951 के सेक्शन 126A के मुताबिक मतदान खत्म होने के आधे घंटे बाद ही एग्जिट पोल जारी किया जा सकता है। अगर कोई कंपनी या व्यक्ति मतदान खत्म होने से पहले एग्जिट पोल जारी करता है तो उसे संज्ञेय अपराध माना जाएगा। ऐसा करने वाले को दो साल तक की जेल और जुर्माना या दोनों हो सकता है।
सवाल-9: क्या इलेक्शन कमीशन ने भारत में कभी एग्जिट पोल पर बैन लगाया है?
जवाब: 1998 में पहली बार चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत न्यूज पेपर और टीवी चैनलों में एग्जिट पोल पब्लिश किए जाने पर रोक लगाई। इस साल 16 फरवरी से 7 मार्च के बीच लोकसभा चुनाव हो रहे थे। ऐसे में 7 मार्च को शाम 5 बजे तक किसी भी तरह के ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल को पब्लिश किए जाने पर रोक लगा दी गई।
साथ ही तय समय के बाद एग्जिट पोल जारी करने वाली मीडिया कंपनियों को निर्देश दिया गया कि सर्वे में शामिल मतदाताओं के सैंपल साइज, उनकी मैथेडोलॉजी बताना जरूरी है। संस्थाओं को ये भी बताना होगा कि सर्वे के रिजल्ट में क्या खामी और कमियां संभव है।
सवाल-10: एग्जिट पोल पर चुनाव आयोग की गाइडलाइन का मीडिया ने कैसे विरोध किया?
जवाब: भारत की सभी मीडिया संस्थाओं ने चुनाव आयोग के दिशानिर्देश का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने इसे फ्रीडम ऑफ स्पीच और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया था। मीडिया संस्थानों के दिशा निर्देश मानने से इनकार करने के बाद चुनाव आयोग कोर्ट पहुंच गया।
एक साथ ये मामला दिल्ली हाईकोर्ट, राजस्थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। अदालतों ने चुनाव आयोग के दिशा निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसकी वजह से 1998 लोकसभा चुनावों के दौरान एक महीने के लिए ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल दोनों पर रोक लगा दी गई।
सवाल-11: क्या दोबारा से चुनाव के दौरान एग्जिट पोल गाइडलाइन लागू कराने की कोशिश हुई?
जवाब: 1998 लोकसभा चुनाव में किसी दल को सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया। परिणाम ये हुआ कि अगले साल 1999 में दोबारा से लोकसभा चुनाव हुए। चुनाव आयोग ने एग्जिट पोल पर अपनी पिछली गाइडलाइन फिर जारी कर दी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने चुनाव आयोग की गाइडलाइन की संवैधानिक वैधता पर चिंता जाहिर की। इसके बाद चुनाव आयोग को अपनी गाइडलाइन वापस लेनी पड़ी।
2004 में चुनाव आयोग ने 6 राष्ट्रीय और 18 क्षेत्रीय दलों के समर्थन का दावा करते हुए केंद्रीय कानून मंत्रालय से जन-प्रतिनिधित्व कानून-1951 में संशोधन की मांग की। चुनाव खत्म होने तक ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल पर रोक लगाने की मांग की गई।
फरवरी 2010 में चुनाव आयोग की सिफारिश पर जन-प्रतिनिधित्व कानून-1951 में धारा 126 (A) जोड़ा गया। इसके जरिए किसी भी चुनाव के खत्म होने के आधे घंटे बाद तक एग्जिट पोल जारी होने पर कानूनी तौर पर रोक लगाई गई। ताकी लोगों के मत देने के फैसले पर असर न हो।
सवाल-12: एग्जिट पोल का अनुमान कितना सच साबित होता है?
जवाब: भारत जैसे देश में इलेक्शन रिजल्ट को लेकर भविष्यवाणी करना बेहद कठिन है। 1998 से 2019 तक कुल 6 लोकसभा चुनाव हुए। इनमें से 4 मौकों पर एग्जिट पोल के अनुमान कभी पूरी तरह गलत और कभी आंशिक गलत साबित हुए।
CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार बताते हैं कि 2004 में सभी एग्जिट पोल केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने की बात कह रहे थे। 2015 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव और 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की जीत का दावा किया गया था। ये एग्जिट पोल फेल हो गए। ज्यादातर एग्जिट पोल वहीं फेल हुए हैं, जिनमें बीजेपी की जीत का अनुमान लगाया गया है। इसके पीछे की वजह ये है कि पोलिंग बूथ पर सबसे ज्यादा मुखर बीजेपी के वोटर होते हैं।