गरीबी उन्मूलन की उपलब्धि और यूएनडीपी की भारत की तारीफ का सबब ..!

गरीबी उन्मूलन की उपलब्धि और यूएनडीपी की भारत की तारीफ का सबब

यूएनडीपी की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच भारत में गरीबों की संख्या में 38 फीसदी की गिरावट आई। इस दौरान ऐसा क्या खास हुआ कि गरीबी कम करने में अभूतपूर्व तेजी आई, जिससे यूएनडीपी को भारत की तारीफ करनी पड़ी!

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित बहुआयामी गरीबी सूचकांक, 2023 रिपोर्ट में भारत की इस बात के लिए सराहना की गई है कि उसने गरीबी उन्मूलन में अन्य देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। वर्ष 2015 में सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से एसडीजी1 में उम्मीद की गई थी कि दुनिया में वर्ष 2030 तक सभी प्रकार की गरीबी समाप्त हो जाएगी। वर्ष 2023 की रिपोर्ट में इस बात पर संतोष व्यक्त किया गया कि वैश्विक स्तर पर इस लक्ष्य की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूएनडीपी गरीबी की एक परिभाषा का उपयोग करता है, जिसे बहुआयामी गरीबी कहा जाता है। यह परिभाषा सभी देशों के लिए समान है। विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा उपयोग की जाने वाली गरीबी की भिन्न-भिन्न परिभाषाओं के कारण गरीबी का एक समान आकलन संभव नहीं हो पाता है। इस कारण विश्व के विभिन्न देशों के बीच तुलना करना भी कठिन हो जाता है।

यूएनडीपी के बहुआयामी गरीबी माप में कई तत्व शामिल हैं, जो सभी देशों में समान हैं। इसमें पोषण, बाल मृत्यु दर, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, रसोई ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास और संपत्ति शामिल हैं। विभिन्न देशों में डाटा की उपलब्धता के आधार पर अलग-अलग वर्षों में बहुआयामी गरीबी का अनुमान लगाया गया है। अतः यूएनडीपी के आंकड़ों से किसी एक वर्ष में विभिन्न देशों में गरीबी का तुलनात्मक अध्ययन संभव नहीं। विभिन्न देशों के लिए यूएनडीपी के पास उपलब्ध प्रारंभिक डाटा 2005-06 से 2019-21 तक है। इसलिए, रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़ों से यह पता लगाना संभव नहीं कि एक निश्चित अवधि के दौरान दुनिया के सभी देशों में तुलनात्मक रूप से गरीबी कितनी और कब कम हुई है।

भारत के संदर्भ में, यूएनडीपी डाटा तीन वर्षों, 2005-06, 2015-16 और 2019-21 का विवरण देता है। इस डाटा के मुताबिक, भारत में वर्ष 2005-06 में 55.1 फीसदी आबादी यानी 64.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से पीड़ित थे। 10 साल बाद वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा 27.7 फीसदी यानी 37 करोड़ रह गया। इन 10 वर्षों के दौरान गरीबी के प्रतिशत में कमी की दर सालाना 6.6 प्रतिशत रही। लेकिन वर्ष 2015-16 से 2019-21 की अवधि में बहुआयामी गरीबी से पीड़ित गरीबों का अनुपात घटकर जनसंख्या का केवल 16.4 प्रतिशत रह गया; और गरीबों की संख्या घटकर 23 करोड़ रह गई। यानी सिर्फ पांच साल में 14 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ गए और गरीबी कम होने की रफ्तार बढ़कर सालाना 10 फीसदी से भी ज्यादा हो गई। यह बताना महत्वपूर्ण है कि 2015-16 और 2019-21 के बीच पांच वर्षों में गरीबों की संख्या में 38 फीसदी की गिरावट आई, जिसमें एक वर्ष से अधिक की सबसे खराब महामारी भी शामिल है। ऐसे में यह समझना जरूरी होगा कि इस दौरान ऐसा क्या खास हुआ कि गरीबी कम करने में अभूतपूर्व तेजी आई, जिससे यूएनडीपी को भारत की तारीफ करनी पड़ी!

यह भारत के लिए तो अच्छी खबर है ही, दुनिया के लिए भी अहम खबर और सबक है। यूएनडीपी ने बहुआयामी गरीबी के जो प्रारंभिक आंकड़े प्रकाशित किए हैं, वे अलग-अलग वर्षों के हैं। यूएनडीपी द्वारा मूल्यांकन किए गए 81 देशों (जिनके बारे में एजेंसी ने डाटा प्रकाशित किया है) के 150.8 करोड़ गरीब लोगों में से 64.5 करोड़ लोग (2005-06 में) भारत से थे। यानी इन 81 देशों के 42.8 फीसदी से ज्यादा गरीब भारत में रहते थे। लेकिन यूएनडीपी के ताजा आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के इन 81 देशों में गरीबों की कुल संख्या अब घटकर 97.4 करोड़ रह गई है, लेकिन इसमें उल्लेखनीय और दिलचस्प तथ्य यह है कि इस संख्या में भारत का योगदान केवल 23 करोड़ ही है। यानी अब इन 81 देशों के केवल 23.7 प्रतिशत गरीब लोग ही भारत से आते हैं। इसका मतलब यह भी है कि बहुआयामी गरीबी के तहत लोगों की संख्या में कुछ अन्य देशों का योगदान पहले से भी ज्यादा बढ़ गया है। इतना ही नहीं, जहां 81 देशों का संयुक्त बहुआयामी गरीबी सूचकांक अब 0.275 से घटकर 0.203 पर आ गया है, वहीं भारत का सूचकांक 2005-06 के 0.283 से घटकर 2015-16 में 0.122 और 2019-21 में सिर्फ 0.069 पर आ गया है, जो कि एक बड़ी उपलब्धि है।

यह भारत के लिए गर्व की बात है। दुनिया को इससे सबक लेने की जरूरत है कि उसे भी भारत की तर्ज पर बहुआयामी गरीबी दूर करने के प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। नरेंद्र मोदी सरकार का बहुआयामी गरीबी के निर्धारकों पर विशेष ध्यान रहा। आज भारत में बाल मृत्यु दर घटकर मात्र 1.5 प्रतिशत रह गई है, जो 2015-16 में 2.2 प्रतिशत थी। पोषण और कुपोषित बच्चों के प्रतिशत में भी भारी सुधार हुआ है, जो 2005-06 में 44.3 प्रतिशत से घटकर 2015-16 में 21.1 प्रतिशत और 2019-21 में 11.8 फीसदी रह गया है।

आवास की बात करें, तो पिछले आठ वर्षों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरी और ग्रामीण दोनों मिलाकर लगभग तीन करोड़ घर बनाए गए हैं, जिस पर केंद्र द्वारा पांच लाख करोड़ रुपये (लगभग 60 अरब डॉलर) की सहायता दी गई है। कोरोना के कारण सबके लिए पक्के आवास का लक्ष्य समय पर पूरा नहीं हो सका, पर अब तक मुश्किल से कुछ लाख लोग ही बचे हैं, जिनके पास पक्का घर नहीं है। यूएनडीपी के अनुसार, वर्ष 2015-16 में कुल 23.5 प्रतिशत आबादी पक्के और आरामदायक घरों से वंचित थी और 2019-21 में केवल 13.6 प्रतिशत। मोदी सरकार की एक और महत्वाकांक्षी योजना ‘हर घर नल से जल’ पर भी तेजी से काम हुआ है, और यूएनडीपी के अनुसार, 2019-21 में केवल 2.7 फीसदी आबादी सुरक्षित पेयजल से वंचित थी। स्वच्छता की बात करें, तो पिछले आठ साल में 11 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है। ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ के तहत मार्च, 2023 तक गरीब महिलाओं को 9.59 करोड़ मुफ्त गैस कनेक्शन दिए गए, जबकि देश में कुल 31.26 करोड़ एलपीजी गैस कनेक्शन थे। हमारी आबादी का अब बहुत कम प्रतिशत बचा है, जिसकी एलपीजी गैस कनेक्शन के रूप में स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन तक पहुंच नहीं है। और सरकार का दावा है कि देश के 100 प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंच चुकी है। यह दुनिया के लिए एक सबक है। बहुआयामी गरीबी भी दूर की जा सकती है। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रयासों की जरूरत है।

लेखक स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक हैं। 

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