अटकलों की अरगनी पर लटकी राजनीति !
अटकलों की अरगनी पर लटकी राजनीति
पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिए हुए चुनावों के नतीजे जो भी आएं ,लेकिन उनके आने तक इन पांच राज्यों के साथ ही देश की राजनीति को भारतीय मीडिया ने ‘ अटकलों की अरगनी ‘ पर टांग दिया है। विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा खुद किये गए और निजी संस्थाओं से कराये गए ‘ एक्जिट पोल ‘ के आधार पर इन पांच राज्यों में सरकारें बनाईं और बिगाड़ी जा रहीं हैं। ‘ जनादेश ‘ को भांपने की ये कवायद बड़ी रोचक है। इन ‘ एक्जिट पोल ‘ को ‘ एक्जेक्ट पोल समझने वालों और ख़ारिज करने वालों की भी कमी नहीं है।
भारत में एक्जिट पोल का इतिहास नया नहीं है । 1971 के आम चुनावों के समय जब मशीनें नहीं थीं,तकनीक नहीं थी,आज जैसा मीडिया नहीं था,उस समय भी ‘ अटकलों की अरगनी ‘ मौजूद थी ,लेकिन उस समय की अटकलें आज की तरह एकदम असल परिणामों के नजदीक भी नहीं पहुँच पातीं थीं। आजकल तो मीडिया घरानों और राजनीतिक दलों में एक्जिट पोल करने की होड़ सी लगी हुई है । इस अटकलबाजी के जरिये देश में बाकायदा सट्टा कारोबार चलता है। इसलिए इस तरह के एक्जिट पोल ज्यादा भरोसेमंद न होते हुए भी सरस् तो होते है। इनमें चाट-पकौड़ी जैसा चटपटापन तो होता ही है और ये एक्जिट पोल मीडिया की टीआरपी बढ़ाने का काम भी करते ही हैं।
एक संसथान का एक्जिट पोल यदि किसी राज्य में कांग्रेस की सरकार बना रहा है तो दूसरे संस्थान का एक्जिट पोल उसी राज्य में भाजपा की सरकार बनाने की भविष्यवाणी कर रहा है। लेकिन तमाम एक्जिट पोल मध्यप्रदेश में भाजपा की मौजूदा सरकार को सत्ता से एक्जिट करते हुए कांग्रेस को सत्ता में एंट्री दिलाते हुए दिख रहे हैं। यही हाल राजस्थान और छत्तीसगढ़ के एक्जिट पोल्स का है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें दोबारा से सत्ता में आती दिखाई गयीं हैं । तेलंगाना में सत्तारूढ़ वीआरएस की विदाई और कांग्रेस के सत्तारूढ़ होने की अटकलों का बाजार गर्म है । सबसे छोटे राज्य मिजोरम में भी कमोवेश इसी तरह की अटकलें हैं
एक्जिट ओपल असली चुनाव नतीजों के कितने करीब हैं या नहीं इसका पता तो 03 दिसंबर 2023 को ही पता चलेगा किन्तु इन नतीजों के आधार पर ही चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों ने आने वाले दिनों की तैयारियां कर ली है। देश के सभी प्रमुख टीवी चैनल और यूट्यब चैनल एक्जिट पोल दिखने के लिए जैसे उपवास किये बैठे थे । चुनाव आयोग ने एक्जिट पोल दिखने के लिए 30 नबंवर को शाम 05 बजे का समय तय किया था । घड़ी की सुई जैसे ही पांच पर पहुंची टीवी चैनलों ने अपने एक्जिट पोल दिखाना शुरू कर दिए। सबके सब चैनल अचानक भविष्यवक्ता बन गए। ज्योतिषियों का धंधा इन सभी ने जैसे छीन लिया। हम जैसे गाल बजाने वाले विश्लेषक भी इन एक्जिट पोल्स पर अपना ज्ञान बघारने के लिए उपलब्ध हो गए। जनता भी चाहे-अनचाहे इन टीवी चैनलों से चिपक ही गयी।
किसी भी चुनाव में जनादेश आने से पहले उसके बारे में अटकलबाजियां यानि एक्जिट पोल दिखाना नैतिक है या नहीं अब इस पर कोई बहस नहीं होती। नैतिकता का लोप चूंकि राजनीति से बहुत पहले हो चुका है इसलिए एक्जिट पोल दिखने वालों पर भी इसका कोई दबाब नहीं है । एक्जिट पोल में मतदाता ने कितना सच बोला और कितना झूठ इसका अनुमान लगना बेहद कठिन काम है । सच और झूठ का पता तो मतदाता को ‘ लाइ-डिटेक्टर ‘ पर बैठकर ही लगाया जा सकता है ,फिर भी चैनल और सर्वेक्षण एजेंसियां मतदाता पर भरोसा करतीं हैं। कभी-कभी तीर में तुक्का लग भी जाता है और कभी-कभी तमाम एक्जिट पोल औंधे मुंह भी गिरते हैं। चैनल वाले ये जोखिम उठाते हैं ,उन्हें ये जोखिम उठाना पड़ता है।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पर इन एक्जिट पोल का कोई असर शायद नहीं होता इसलिए वे निश्चिन्त भाव से विश्व पर्यावरण से में शामिल होने दुबई के लिए उड़ गए। मोदी जी को पता है कि उनके देश में रहने या रहने से अब चुनाव नतीजे बदलने वाले नहीं है। होगा वो ही जो राम जी के भक्तों ने रच कर रख दिया है। यदि 03 दिसंबर को पाँचों राज्यों में मोदी जी का कमल खिला तो उनका चेहरा भी कमल की तरह खिल जाएगा और नहीं खिला तो उनका चेहरा निर्विकार रहने वाला तो है ही। वे स्वभाव से विनम्र हैं ,सिर झुककर जनादेश को शिरोधार्य कर 2024 के आम चुनाव की तैयारी में लग जायेंगे। 03 दिसंबर की दोपहर तक ही देश की राजनीति को ‘अटकलों की अरगनी ‘ पर लटकाये रखा जा सकता है।