कोयला खदानों के बंद होने से 9.90 लाख मजदूर हो जाएंगे बेरोजगार ?

कोयला खदानों के बंद होने से 9.90 लाख मजदूर हो जाएंगे बेरोजगार, भारत पर क्या होगा असर?
आने वाले साल पर्यावरण के लिए तो अच्छे साबित होंगे लेकिन कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों के रोजगार पर संकट गहरा जाएगा.
काम की तलाश में कोयला खदानों तक पहुंचे मजदूर, जो अपने शरीर की परवाह किए बिना कोयले की कालिख से सने कपड़े पहने काम करते हैं. काम करते वक्त इनके पूरे शरीर पर कोयले की कालिख लग जाती है, लेकिन इन्हें ये काम करना जरूरी है इसलिए ये किसी चीज की परवाह नहीं करते.

लेकिन आने वाले कुछ सालों में हमारे और आपके लिए काम करने वाले इन मजदूरों की नौकरियां जाने वाली हैं. हाल ही में ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा जारी की गई रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार कोयला खदानों के बंद होने से 9,90,200 लोगों की नौकरियां जा सकती हैं.

रिपोर्ट की मानें तो लगभग 4,14,200 मजदूर तो फिलहाल उन खदानों में काम कर रहे हैं जो 2035 से पहले बंद हो सकती हैं.

भारत और चीन पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर
कोयले को खत्म करने के लिए बनाई गई जलवायु नीतियों के बिना भी 2050 तक कोयला उद्योगों के बंद होने से लगभग एक तिहाई यानी 37 प्रतिशत मजदूरों के सामने बेरोजगारी की समस्या पैदा हो सकती है.

इसका सबसे ज्यादा असर जिन देशों में देखने को मिलेगा उनमें भारत और चीन का नाम आता है. अनुमान के मुताबिक चीन के शांक्सी में इसका सबसे अधिक असर देखने को मिलेगा. जहां 2050 तक कोयला खनन से जुड़ी लगभग 2,41,900 नौकरियां खत्म कर दी जाएंगी.

दूसरी ओर भारत की बात करें तो देश में कुल 3,37,000 मजदूर कोयला खनन के काम से जुड़े हैं. ऐसे में इन मजदूरों की नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है. 
 
भारत में किसी एक कंपनी द्वारा की जा रही छंटनी की बात करें तो कोल इंडिया कंपनी का नाम इसमें सबसे आगे आता है. जो आने वाले पांच सालों में 73,800 छटनियां कर सकता है.

साल दर साल घटेंगी नौकरियां 
डीकार्बोनाइजेशन-जीवाश्म ईंधन जैसे मानव द्वारा जनित प्रदूषण के स्तर को कम करके जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में दुनिया आगे बढ़ रही है.

इसी ओर एक कदम आगे बढ़ाते हुए कोयले के उपयोग को बहुत कम करने की कोशिशें की जा रही हैं. जो धीरे-धीरे पूरी तरह खत्म करने की पहल भी है.

इसके इतर इस रिपोर्ट से ये साफ हो जाता है कि साल दर साल कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों की नौकरियों पर खतरा मंडराता जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि दुनियाभर में धीरे-धीरे ऊर्जा बाजार ज्यादा किफायती सौर पवन ऊर्जा की तरफ रुख कर रहा है.

ऐसे में वैश्विक स्तर पर 2030 तक कोयला उद्योग से जुड़े सात फीसदी यानी 1,95,200 मजदूर अपनी नौकरियां खो देंगे. वहीं 2035 तक ये आंकड़ा बढ़कर 15 फीसदी यानी 4,14,200 पर पहुंच जाएगा. 

इसके अलावा 2040 तक ये आंकड़ा 22 फीसदी यानी 5,81,800 हो जाएगा. जो कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए चिंता का विषय है. इसके इतर देखा जाए तो दूर-दराज के इलाकों में कोयला खनन से मिलने वाले रोजगार की बहुत बड़ी भूमिका होती है. जो न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार देती है साथ ही आर्थिक गतिविधियों में भी योगदान देती है.

वैश्विक आंकड़ों पर नजर डालें तो इस उद्योग से भारत सहित 70 देशों के 27 लाख मजदूरों को रोजगार प्राप्त हो रहा है. ये मजदूर 3,232 सक्रिय कोयला खदानों में काम कर रहे हैं जो पूरी दुनिया का 90 प्रतिशत कोयले का उत्पादन करते हैं. जिनमें से सबसे ज्यादा यानी 80 प्रतिशत मजदूर एशिया महाद्वीप में काम करते हैं.

चीन, भारत और इंडोनेशिया में काम करने वाले मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा है.

आंकड़ों के मुताबिक लगभग 22 लाख मजदूर एशिया में काम करते हैं. जिनमें से 15 लाख से ज्यादा मजदूर चीन में काम करते हैं. जो लगभग पूरी दुनिया के आधे कोयले का उत्पादन करते हैं. इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर भारत का नाम आता है. जो दूसरा सबसे बड़ा कोयले का उत्पादक है.

आधिकारिक तौर पर भारत की सक्रिय खदानों में लगभग 3,37,400 मजदूर काम कर रहे हैं. हालांकि कुछ रिसर्च में ये बात भी सामने आई है कि स्थानीय खनन क्षेत्र में एक औपचारिक मजदूर पर चार अनौपचारिक मजदूर भी काम करते हैं.

वहीं कोयला उत्पादन के मामले में इंडोनेशिया का नाम तीसरे स्थान पर आता है. जहां लगभग 1,59,900 श्रमिक कोयले का उत्पादन करते हैं.

2070 तक क्या है भारत का लक्ष्य?
भारत के पूर्वी क्षेत्र को कोयला बेल्ट के रूप में जाना जाता है. यहीं पर बिजली उत्पादन के लिए देश का अधिकांश कोयला पैदा होता है. वहीं ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और झारखंड में कोयला खनन से जुड़े रोजगार राज्य के श्रमबल का लगभग एक से दो प्रतिशत हिस्सा है.

हालांकि इसमें श्रमिकों के साथ बिजली संयंत्रों और भारी उद्योगों में कोयले से संबंधित कार्य शामिल नहीं है.

गौर करने वाली बात ये है कि भारत ने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने का वादा किया है. इसी को ध्यान में रखते हुए कोल इंडिया अक्षय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है.

ऐसे में 2025-26 तक अपने लक्ष्य शुद्ध शून्य उत्सर्जन को हासिल करने की दिशा में सरकार तीन गीगावाट सौर ऊर्जा सक्रिय रूप से क्रियान्वित कर रही है. जो स्पष्ट करता है कि भारत धीरे-धीरे कोयला आधारित ऊर्जा को किस तरह अक्षय ऊर्जा में बदलने के कार्य की ओर आगे बढ़ रहा है.

हालांकि कोयला खदानों में कम होती मजदूरी की खबरों के बीच एक खबर ये भी है कि 2022 तक भारत में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में लगभग 9.88 लाख लोगों को रोजगार के अवसर मिले हैं.

इसके अलावा इस क्षेत्र में लगातार रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं. जिसमें सिर्फ हाइड्रोपावर में 4.66 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है तो वहीं 2.82 लाख रोजगार के अवसर सोलर पीवी में मिले हैं.

कोयला मजदूरों के लिए क्या जरूरी?
जहां कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों का वैसे ही जीवन आसान नहीं है ऐसे में रोजगार जाने से उनकी जिंदगीयां और मुश्किल हो जाएंगी.

ऐसे में जरूरी ये है कि इन मजदूरों को पहले से ही दूसरे कामों को सिखाया जाए. जिससे वो अपनी नौकरी जाने से अन्य रोजगार करके अपनी रोजी रोटी चला सकें.

इसके लिए कोयला खदानों में काम करने वाले श्रमिकों को दूसरे रोजगारों और काम धंधों के लिए तैयार करना बहुत जरूरी है. जिसके लिए सरकारों को भी सक्रिय होने की जरूरत है.       

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