इन वजहों से भी छिन सकती है सांसदों की सदस्यता?

‘कैश ऑफ क्वैरी’ ही नहीं, इन वजहों से भी छिन सकती है सांसदों की सदस्यता?
सांसद महुआ मोइत्रा की संसद की सदस्यता को एथिक्स कमेटी ने रद्द कर दिया है. उन्हें रिश्वत लेकर गौतम अडानी के खिलाफ संसद में सवाल पूछने का दोषी पाया गया है.
लोकसभा की एथिक्स कमेटी की सिफारिश के बाद तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की संसद की सदस्यता रद्द कर दी गई है. दरअसल महुआ मोइत्रा पर आरोप था कि उन्होंने रिश्वत लेकर गौतम अडानी की कंपनियों को निशाना बनाते हुए उनके खिलाफ लगातार संसद में सवाल पूछे.

महुआ मोइत्रा पर ये आरोप बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लगाया था. जिनकी महुआ से तनातनी की खबरें पहले भी आती रही हैं. हालांकि महुआ ने इस आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि बिना किसी आधार के ही उनपर ये कार्रवाई हुई है. उन्होंने आगे कहा कि मैं अपनी लड़ाई जारी रखूंगी.

ये पहली बार नहीं है जब संसद में किसी सदस्यता रद्द की गई हो, इससे पहले भी अलग-अलग कारणों से संसद की सदस्यता रद्द की गई है. इन सब के बीच आज हम जानेंगे किन कारणों से किसी सांसद की सदस्यता छिन सकती है और क्या होते हैं संसद के नियम.

जब कोई सदस्य लोकसभा और राज्यसभा दोनों का सदस्य हो
संसद की सदस्यता उस वक्त भी छिन सकती है जब कोई सदस्य लोकसभा और राज्यसभा दोनों का सदस्य हो और तय समय में किसी एक से इस्तीफा नहीं देता. दरअसल यदि कोई सदस्य लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में चुन लिया जाता है तो उसे किसी एक सदन से इस्तीफा देना पड़ता है. 

यदि वो सदस्य ऐसा नहीं करता है उस स्थिति में उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 101 में इस बात का जिक्र है कि कोई भी व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य न हो, यदि ऐसा होता है तो किसी एक से उसे इस्तीफा देना होता है. इसके अलावा इस अनुच्छेद में इस बात का भी जिक्र है कि कोई भी सदस्य संसद और विधानसभा का भी एकसाथ सदस्य नहीं हो सकता. ऐसी स्थिति में यदि कोई तय समय में किसी एक की सदस्यता से इस्तीफा नहीं देता और उसकी संसद सदस्यता रद्द कर दी जाती है.

सांसद कोई भी सरकारी लाभ के पद पर नहीं रह सकता
संविधान के अनुच्छेद 102(1)(a) के तहत सांसदों और अनुच्छेद 191(1)(a) के तहत विधानसभा सदस्यों को किसी इस तरह के पद पर रहने की मनाही है जहां वेतन भत्ता या दूसरे किसी भी प्रकार के सरकारी लाभ मिलते हों.

आसान भाषा में समझें तो संविधान के अनुच्छेद 102 के अनुसार कोई भी संसद सदस्य किसी ऐसे अन्य पद पर रहता है जहां उसे सरकारी लाभ मिल रहा हो तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है. ऐसे में सिर्फ उसी पद पर उसीक सदस्यता रद्द नहीं होती है जिस पर रहना कानून के तहत उन्हें अयोग्य घोषित नहीं करता.

इसी कानून के तहत जनवरी 2018 में चुनाव आयोग की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था.

सदस्य बिना बताए सदन में उपस्थित न हो
यदि संसद का कोई भी सदस्य इजाजत लिए बिना सभी बैठकों से 60 दिन तक उपस्थित नहीं होता है तो उसकी सीट खाली घोषित कर दी जाती है. साफतौर पर समझें तो ऐसे में उसकी संसद की सदस्यता रद्द कर दी जाती है. 
 
संविधान के अनुच्छेद 101 के अनुसार, इन 60 दिनों में उन दिनों की गिनती नहीं होती है जिस दौरान सत्र 4 से ज्यादा दिनों तक स्थगित रहा हो या सत्र खत्म हो गया हो.

संसद सदस्य को जेल की सजा मिल जाए
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में इस बात का भी प्रावधान है कि यदि किसी संसद सदस्य को किसी कारणवश 2 या 2 से अधिक सालों के लिए जेल की सजा हो जाती है तब भी उसकी सजा रद्द हो जाती है. हालांकि ऐसे में ऊंची अदालत संसद सदस्य की जेल की सजा के फैसले पर रोक लगा देती है तब उसे अयोग्य घोषित करने का फैसला भी रोक दिया जाता है.

ऐसा ही मामला इसी साल देखने को मिला. जब राहुल गांधी की सदस्यता को फिर बहाल किया गया. दरअसल 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने ‘मोदी सरनेम’ वाले आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि को निलंबित कर दिया था. मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 7 अगस्त को लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना के जारी करते हुए राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता फिर बहाल कर दी थी.

सासंद दल बदली कर लेता है तब
संविधान के अनुच्छेद 102 के अनुसार, किसी सांसद की सदस्यता दसवीं अनुसूची के तहत भी रद्द की जा सकती है. इस कानून को दल-बदलरोधी कानून भी कहा जाता है. इसे साधारण भाषा में समझें तो यदि कोई सांसद उस पार्टी को छोड़ देता है जिससे उसने चुनाव लड़ा और जनता ने उसे चुन है तब उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी.

इस कानून में कुछ अपवाद भी जुड़े हैं. जैसे एक राजनीतिक दल किसी दूसरे दल में मिल सकता है पर इसमें शर्त ये होती है कि उसके कम से कम दो तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हो. ऐसी स्थिति होने पर दल बदलने वाले सदस्य की सदस्यता भी बनी रहती है.

कोई सांसद पार्टी के आदेश का उल्लंघन करता है तब
दसवीं अनुसूची में इस बात का भी प्रावधान है कि सांसद को अपनी पार्टी की ओर से जारी व्हिप का सम्मान करना होता है. यदि मतदान के दौरान कोई सांसद पार्टी के आदेश का पालन नहीं करता है या वोटिंग से गैर हाजिर तब भी उसकी संसद सदस्यता रद्द कर दी जाती है.

सांसद देश की नागरिकता छोड़ दे
अनुच्छेद 102 के अनुसार, यदि कोई सांसद किसी दूसरे देश की नागरिकता ले लेता है तब भी उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है. यदि कोई सांसद किसी दूसरे देश के प्रति भी अपनी निष्ठा जताता है तब भी उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है.

सांसद मानसिक रूप से अस्वस्थ हो या दिवालिया हो जाए
यदि किसी सांसद को किसी भी अदालत द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित कर दिया जाता है तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती है. इसी तरह यदि किसी सांसद को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है तब भी उसकी संसद की सदस्यता को खत्म कर दिया जाता है.

इन कारणों से भी जा सकती है संसद की सदस्यता
यदि किसी सांसद ने चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी दी होती है या लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन करता है तब भी उसकी संसद की सदस्यता रद्द की जा सकती है.

वहीं आरक्षित सीटों पर गलत प्रमाण पत्र के आधार पर चुनाव लड़ने, दो समूहों के बीच नफरत फैलाने का कार्य करने, चुनाव प्रभावित करने, घूस लेने, बलात्कार या महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराध करने, धार्मिक सौहार्द को खराब करने, छुआछूत करने, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात-निर्यात करने, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने पर या ड्रग्स प्रतिबंधित रसायनों की खरीद फरोख्त करने पर भी संसद की सदस्यता रद्द कर दी जाती है

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