सुप्रीम कोर्ट में मामले की लिस्टिंग को लेकर भारत के चीफ जस्टिस की क्या भूमिका होती है,

सुप्रीम कोर्ट में मामले की लिस्टिंग को लेकर भारत के चीफ जस्टिस की क्या भूमिका होती है,

हाल ही में वकील दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण द्वारा लिखे गए दो अलग पत्रों में भारत के चीफ जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ को सीधे संबोधित किया गया है। इन पत्रों में चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा सूचीबद्ध (लिस्टिंग ) मामलों में “अनियमितताओं” की शिकायत करते हुए इसकी तीखी आलोचना की गई है।

चीफ जस्टिस को लिखे ये दो पत्र क्या कहते हैं?

दवे ने चीफ जस्टिस को लिखे अपने पत्र में कहा कि ऐसे मामले, जिनमें से कुछ मानवाधिकार (ह्यूमन राइट्स) और वैधानिक(स्टटूटोरी) और संवैधानिक संस्थानों (कॉन्स्टीट्यूशनल इंस्टीट्यूट) के कामकाज शामिल थे, लेकिन अचानक उनकी सुनवाई करने वाली बेंच से ये अधिकार ‘छीन’ लिए गए और अन्य बेंच के सामने लिस्ट कर दिए गए।

उन्होंने कहा कि बेंच के मौजूदा जज, जिन्होंने पहले नोटिस (पहला कोरम) जारी किया और अब उसे लेकर जूनियर जज (दूसरा कोरम) और बेंच बनने पर दे दिया गया है।

ऐसा करना नियमों, प्रक्रियाओं और स्थापित परम्पराओं के अनुरूप नहीं है। सीनियर वकील ने कहा कि चीफ जस्टिस को ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ होने के नाते इस मुद्दे को देखना चाहिए।

29 नवंबर को तमिलनाडु डायरेक्टरेट ऑफ विजिलेंस एंड एंटी-करप्शन द्वारा पूर्व प्रमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के संबंध में दायर एक याचिका में जज बेला त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने पेश होने के कुछ दिनों बाद ही दवे ने यह पत्र लिखा था।

8 दिसंबर को जस्टिस त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली बेंच, जो पहले जस्टिस बोस की बेंच में जूनियर जज थी, उसने इस मामले को खारिज कर दिया। यह पत्र तब के मुख्यमंत्री एडप्पादी पलानीस्वामी के खिलाफ स्टेट हाईवे टेंडर स्कैम के संदर्भ में अनिरुद्ध बोस की अध्यक्षता वाली बेंच से वापस लेने के फैसले पर लिखा गया था।

भूषण ने उसी दिन सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार (लिस्टिंग) को पत्र लिखा। उन्होंने अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट ( UAPA) के तहत आरोपित वकीलों और पत्रकारों द्वारा लिखे पिटीशन के एक बेंच पर ध्यान केंद्रित किया।

इन लोगों ने अक्टूबर 2021 में त्रिपुरा में सरकार की भूमिका की आलोचना की थी। ये पिटीशन पहले ऐसी बेंच को दिए गए थे, जिनकी अध्यक्षता जस्टिस चंद्रचूड़ कर रहे थे, जिन्होंने महत्वपूर्ण आदेश दे करके पिटीशन करने वालों को सरकार की सजा देने की कार्रवाई से सुरक्षा दी थी।

अक्टूबर 2023 में यह मामला जस्टिस अनिरुद्ध बोस और त्रिवेदी की बेंच के सामने आ गया, जिन्होंने इसे उचित बेंच को भेजने का निर्देश दिया। हालांकि, इस मामले को दोबारा जस्टिस चंद्रचूड़ को भेजने की बजाय, इसे जस्टिस त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने भेज दिया गया।

जब प्रशांत भूषण ने जस्टिस त्रिवेदी को ध्यान दिलाया कि यह मामला सामान्य लिस्टिंग से भटक चुका है, तो जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि मामला पिछले आदेशों के अनुसार लिस्ट किया गया है और पिटीशन करने वाले करवाई के लिए आजाद हैं।

नियम क्या कहते हैं?

इन पत्रों में दो समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। पहला, उन मामलों की आवाजाही को लेकर है, जिनकी लिस्टिंग हो चुकी है और जिनमें एक बेंच ने दूसरे बेंच को नोटिस जारी किया है।

दूसरा, यदि किसी मामले की सुनवाई सीनियर जज द्वारा की गई है, तो सीनियर जज के रहते क्या जूनियर जज को मामला सौंपा जा सकता है। दोनों वकीलों का मानना है कि चूंकि रोस्टर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के अधीन है, तो उन्हें मामलों के बांटे जाने पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए।

2013 के सुप्रीम कोर्ट के नियम रोस्टर बनाने वाले की सीमाओं, बेंच और मामलों के आवंटन पर स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहते हैं।

हालांकि, 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा छापे हैंडबुक ऑन प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर ऑफ कोर्ट और ऑफिस प्रोसीजर ने साफ तौर पर कहा है कि रजिस्ट्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के आम और खास निर्देश का पालन करता है। यह निर्देश बेंच को दिए जाने वाले मामले और किसी बेंच की उपलब्धता न होने पर अन्य बेंच को मामला सौंपने के लिए दिए जा सकते हैं।

दवे ने ’केसेस, कोरम एंड लिस्टिंग ’ के हिस्से पर ध्यान आकर्षित किया और कहा कि एक बार किसी मामले के लिस्ट होने या उस पर नोटिस जारी होने या खारिज होने या निपटने या किसी बेंच के सामने पहली सुनवाई शुरू होने के बाद पहले बेंच के सामने ही प्रस्तुत किया जा सकता है, न की किसी और बेंच के सामने।

भूषण ने अपने मौके पर क्लॉज 15 का संदर्भ देते हुए कहा कि भारत के चीफ जस्टिस के आदेशों के अनुसार, यदि कोर्ट किसी अन्य कोर्ट में चल रहे मामले के साथ लिस्टिंग या टैगिंग का निर्देश देता है, और उसी तरह से लिस्टिंग हुई है, तो मुख्य मामले का कोरम, जिसके साथ मामले को लिस्ट /टैग करने का निर्देश दिया गया है, वही मान्य होगा। उन्होंने दावा किया कि क्लॉज 15 और हैंडबुक में लिखी प्रक्रिया, दोनों का उल्लंघन हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से कोई बयान जारी किया गया है?

सुप्रीम कोर्ट ने आधिकारिक तौर पर पत्रों का जवाब नहीं दिया है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष, सीनियर वकील आदिश सी. अग्रवाल ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर दवे के पत्र के बारे में “आश्चर्य” जताया है। उन्होंने कहा कि मामलों के आवंटन (असाइनमेंट) पर न्यायिक (जुडिशल) या प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) पक्ष पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि चीफ जस्टिस ने ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ (मुख्य न्यायाधीश का विशेषाधिकार) के रूप में एक पद संभाला है जो कि सामान्य बात है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने वाली संस्था के रूप में स्थापित करने के लिए चीफ जस्टिस को संस्था का प्रमुख माना गया है, और उन्हें तमाम कार्यवाहियों की जिम्मेदारी दी गई है। इस संस्था के कार्य करने के लिए यह आवश्यक है।

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