सीएम मोहन यादव के लिए कहीं बड़ी चुनौती न बन जाएं? 

शिवराज सिंह चौहान की विरासत बीजेपी और नए सीएम मोहन यादव के लिए कहीं बड़ी चुनौती न बन जाएं? 
मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बुधवार को एक कार्यक्रम में सीएम पद की शपथ ले ली है. इस दौरान बीजेपी के वरिष्ठ नेता इस कार्यक्रम का हिस्सा बने.
मध्यप्रदेश के नए सीएम मोहन यादव के सीएम पद की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री को लेकर बना संशय खत्म हो चुका है. 163 सीटों की बड़ी जीत के बाद ये सवाल सभी के मन में था कि अब मध्यप्रदेश का नया सीएम कौन होगा.

हालांकि पिछली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे मोहन यादव के सीएम बनने की घोषणा ने आम से लेकर खास तक, हर व्यक्ति को चौंका दिया.

13 दिसंबर को मोहन यादव को राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने एक समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. इस शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसे बीजेपी के बड़े नेता शामिल हुए.

इसके अलावा पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और 18 साल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने भी इस शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शिरकत की थी.

इस कार्यक्रम में राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

हालांकि पिछली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे मोहन यादव अचानक मुख्यमंत्री मिलने से बेहद खुश नजर आ रहे हैं, लेकिन देश के हृदयस्थल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश को संभालना उनके लिए इतना भी आसान नहीं होने वाला है.

आने वाले समय में नए नवेले मुख्यमंत्री मोहन यादव को वित्तीय, राजनीतिक और प्रशासनिक जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

मध्यप्रदेश में मोहन यादव के सामने चुनौतियां
मोहन यादव के मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहली चुनौती मंत्रिमंडल का विस्तार करना होगा. जमीनी नेता माने जाने वाले शिवराज सिंह चौहान की जगह उज्जैन दक्षिण से दो बार विधायक रहे और तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीते मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया है, लेकिन अब मोहन यादव के शपथ लेने के बाद उनकी सबसे पहली प्राथमिकता कैबिनेट का गठन करना होगी.

साथ ही ये उनके लिए एक चुनौती भी होगी. जहां सभी को साधते हुए उन्हें कैबिनेट का विस्तार करना होगा. मंत्री पद का चयन बीजेपी के 163 विधायकों में से किया जाएगा, जिनमें से कई बहुत वरिष्ठ नेता हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो सांसद पद छोड़कर विधायक बने हैं.

वहीं कुछ केंद्रीय नेता भी हैं. जिनमें कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे बीजेपी दिग्गज शामिल हैं. ऐसे में किसी को नाराज किए बिना सभी को साधकर एक करना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है.

प्रदेश में मुख्य सचिव कि नियुक्ति
मध्यप्रदेश में प्रशासनिक मोर्चे पर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के जाने के बाद से ही कोई पूर्णकालिन मुख्य सचिव नहीं है. ऐसे में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी वीरा राणा अतिरिक्त रूप से इस पद की जिम्मेदारी संभाल रही हैं.

अब राज्य में निरंतरता के लिए स्थाई तौर पर मुख्य सचिव की नियुक्ति जरूरी है. जिसके लिए यादव को इसपर फोरी तौर पर निर्णय लेने की जरूरत है कि मुख्य पद पर राणा की नियुक्ति की जाए या नया मुख्य सचिव नियुक्त किया जाए.

चुनावी वादे बनेंगे परेशानी?
चुनाव अभियान के दौरान बीजेपी ने जनता से वित्तीय निहितार्थ वाले कई वादे तो कर दिए, लेकिन अब वो पार्टी के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आने वाले हैं. दरअसल कहा जा रहा है कि इस चुनाव में शिवराज सिंह चौहान द्वारा लाई गई लाडली बहना योजना ने पार्टी को भारी बहुमत दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया.

इस योजना के तहत प्रदेश की 1 करोड़ 3 लाख महिलाओं को हर महीने 1,250 रुपए उनके बैंक अकाउंट में दिए जा रहे हैं. पहले से ही लागू हो चुकी इस योजना के चलते राज्य के खर्चे में 11 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त प्रवाह भी शामिल हो गया है. 

इसके अलावा जैसा कि बीजेपी ने वादा किया था कि रसोई गैस सिलेंडर पर भी सब्सिडी दी जाएगी, जिसके चलते राज्य को अब एक हजार करोड़ रुपए की जरूरत होगी. ऐसे में लगातार कर्ज में डूबते हुए मध्यप्रदेश के लिए इन वादों को पूरा करना काफी मुश्किल साबित हो सकता है. 

वित्तीय समस्याओं का समाधान
मध्यप्रदेश पर लगभग 3.31 लाख करोड़ रुपए का संचित कर्ज है. जिसे प्रति व्यक्ति के रूप में देखा जाए तो ये 41 हजार रुपए होगा. वहीं वित्तीय वर्ष के अंत तक ये कर्ज और बढ़ने की उम्मीद है.

बीजेपी की मुश्किलें तब बढ़ेंगी जब वो बोनस के साथ एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर धान और गेहूं की खरीद शुरू करेगी. बीजेपी के घोषणापत्र में गेहूं की खरीद 2,700 रुपए प्रति क्विंटल और धान की खरीद 3,100 रुपए प्रति क्विंटल करने की घोषणा की गई थी.

हालांकि बीजेपी ने घोषणापत्र में ये वादा नहीं किया था कि ये दरें कब से लागू की जाएंगी. लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए यदि बीजेपी आने वाले सीजन में अपने वादे से मुकरती है तो उसे चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

वहीं घोषणापत्र का प्रचार ‘मोदी की गारंटी’ के रूप में किया गया था. ऐसे में वादे से मुकरना सीधे मोदी के नाम को नुकसान पहुंचा सकता है.

यदि बीजेपी 2,700 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद करती है तो आगामी सीजन में सरकार को 10 से 13 मिलियन मीट्रिक टन के बीच गेहूं की खरीद करनी होगी. ऐसे में एमएसपी के हिसाब से राज्य सरकार को 4,250 मीट्रिक टन बोनस के रूप में अधिक खर्च करना होगा. इसके अलावा लॉजिस्टिक पर भी अधिक खर्च होगा.

वहीं मध्यप्रदेश में 18 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की विरासत को संभालना मोहन यादव के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है क्योंकि दोनों की तुलना होना तो निश्चित है. साथ ही लोकसभा चुनाव को बमुश्किल 6 महीने का समय बचा है, ऐसे में नए मुख्यमंत्री की प्रशासनिक और राजनीतिक क्षमता की परीक्षा होनी तो तय ही है.

जब मोहन यादव से उनके शपथ ग्रहण के दिन ये सवाल किया गया कि क्या वो पहले से चली आ रही कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखेंगे? इसके जबाव में मोहन यादव ने कहा था कि मैं कार्यालय में आने के बाद सभी योजनाओं की जांच करूंगा. यदि कोई योजना अच्छी है तो उसे चालू रखना प्राथमिकता होगी

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