मोहन -राज को अपनी छाप की जरूरत !

मोहन -राज को अपनी छाप की जरूरत

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव के समाने मौजूद तमाम चुनौतियों में से सबसे बड़ी चुनौती निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रिय छवि से पार पाने की है । मुख्यमंत्री ने जिस तरह से पदग्रहण के बाद प्रशासकीय फैसले लिए हैं उन्हें देखकर लगता है कि वे पड़ौसी राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नकल कर रहे हैं। मोहन यादव को नकल की नहीं असल और मौलिक छवि बनाने की जरूरत है ,इसके बिना वे कामयाब नहीं हो सकते।

मध्यप्रदेश में मोहन सरकार ने सबसे पहले पूजाघरों पर लगे ध्वनि विस्तारक यंत्रों के खिलाफ कार्रवाई करने और खुले में मांस बेचने पर रोक लगाने के आदेश दिए है। सरकार ने भाजपा कार्यकर्ता का हाथ काटने वाले एक आरोपी के घर पर बुलडोजर भी चलाया है। इसमें नया कुछ भी नहीं है । ये सब यूपी में पहले से हो रहा है। ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर कार्रवाई अदालत के एक पुराने फैसले को आधार बनाकर की गयी है। लेकिन इस कार्रवई की जद में मैरिज हाउस को नहीं लिया गया है। शादी घरों में रात एक-दो बजे तक डीजे बजते रहते हैं ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर रोक सराहनीय कदम है । हम वर्षों से ध्वनि विस्तारकों के इस्तेमाल पर गवर्नर लगाने की मांग करते रहे हैं ,लेकिन कोई भी सरकार इस पर गौर नहीं करती । केवल प्रशासकीय आदेश जारी कर मुक्ति पा लेती है।

मैंने अमेरिका में देखा है कि पूजाघरों में ध्वनि विस्तारक यंत्रों के इस्तेमाल पर रोक नहीं है लेकिन उनकी ध्वनि सीमा तय है । यानि लाउड स्पीकर की आवाज मंदिर,मस्जिद या गुरुद्वारा परिसर के बाहर नहीं सुनाई देती । गिरजाघर का घंटा भी ध्वनि सीमा के हिसाब से ही बजता है। ऐसा ही हमारे यहां होना चाहिए,क्योंकि कानफोड़ू शोर स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक है। हमारे यहां तो पूजाघरों में ही नहीं बल्कि हर मांगलिक कार्य में अखंड रामायण पाठ हो या सुंदरकांड लाउड स्पीकर सबसे पहले चाहिए। ध्वनिविस्तारक यंत्रों पर रोक का कदम स्वागत योग्य है बाशर्त की उसमें पक्षपात न हो।

प्रदेश में खुले में मांस बेचने का निर्णय भी स्वागत योग्य है,लेकिन इस फैसले पर अमल से पहले यदि मांस विक्रेताओं को डीप फ्रीजर खरीदने के लिए वित्तपोषण किया जाये तो और बेहतर हो । खुले में मांस की बिक्री स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उचित नहीं है। मांस की बिक्री के लिए आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके इस्तेमाल किये जाना चाहिए लेकिन मांस विक्रेता इतने सम्पन्न नहीं हैं कि वे रातों रात मांस रखने के लिए डीप फ्रीजर खरीद सकें। मांस विक्रेता यदि ध्यान दें और सरकार का सहयोग करें तो मांस भी मिठाई की भांति साफ़-सुथरे तरीके से बेचा जा सकता है। लेकिन इस फैसले के पीछे सरकार का नजरिया लोक स्वास्थ्य ही हो ,धार्मिक नहीं। मांस विक्रेताओं को परेशान करने कि दृष्टि इसके पीछे नहीं होना चाहिए।
सरकार को ऐसे तमाम निर्णय लेते समय भारतीय बाजारों की संरचना का भी ख्याल रखना चाहिये । भारत में खास तौर पर मध्य्प्रदेश में मांस और अण्डों कि बिक्री का तरीका पारम्परिक है । पका-अधपका मांस भी प्रदर्शन करके ही बेचा जाता है। इसे बदलने की जरूरत है ,या तो सरकार मांस बिक्री के लिए अलग बाजार का इंतजाम करे या फिर नए तरीके आजमाए। ताजा मांस पैकेजिंग और फ्रीजिंग के जरिये ज्यादा बेहतर तरीके से बेचा जा सकता है ,इससे किसी को कोई समस्या नहीं हो सकती। इस मुद्दे पर भाजपा कि सभी राज्य सरकारों का रुख एक जैसा है ,यानि अल्पसंख्यक विरोधी। अल्पसंख्यकों को परेशान कर कोई भी सरकार कामयाब नहीं हो सकती। सबका विकास ,सबका साथ के रस्ते पर चलने के लिए अल्पसंख्यकों को भी साथ रखना ही होगा।

हाल ही में संसद में अल्पसंख्यकों को जुमे के दिन मिलने वाला नमाज का अवकाश रद्द कर दिया गया है। ये निर्णय क्यों लिया गया ,ये सरकार बेहतर जानती है लेकिन इस निर्णय का सन्देश अच्छा नहीं गया। वैसे भी सत्तारूढ़ दल कि और से किसी भी सदन में कोई नमाजी सांसद बचा नहीं है किन्तु दूसरे दलों के अल्पसंख्यक सांसद तो हैं जो इस सुविधा का लाभ लेना चाहते हैं। ये सुविधा पहले से है इसलिए इसे तुष्टिकरण से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन सरकार तो सरकार है ,वो जो चाहे सो कर सकती है।

भाजपा कि नव निर्वाचित सरकारें यूपी की तरह बुलडोजर संहिता पर काम करना चाहतीं है। भोपाल में एक पुराने अपराधी के घर चलाया गया बुलडोजर इसका उदाहरण है । विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस प्रदेश में भी गए वहाँ अपना बुलडोजर भी ले गए थे। ये समाज को आतंकित करने वाला तरीका है। अपराधी के खिलाफ विधिसम्मत कार्रवाई की जाना चाहिए न कि इसके लिए कोई तालिबानी तरीका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। बुलडोजर सांसजृति का उल्लेख या प्रावधान किसी भी संहिता में नहीं है । यदि सरकार को लगता है कि बुलडोजर ही अपराधियों को सबक सीखने का एकमात्र उपाय है तो सरकार को दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन कर बुलडोजर को उसमें शामिल कर लेना चाहिए ,ताकि बुलडोजर का इस्तेमाल वैध हो सके। वैसे सरकार बुलडोजर चलने के बजाय अपनी पुलिस का इकबाल बुलंद करे,पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त कर कार्रवाई करने की छूट दे तो स्थितियां और ज्यादा बेहतर तरीके से सुधर सकतीं है।नई सरकार को प्रदेश की क़ानून और व्यवस्था में सुधार के लिए प्रदेश के कुछ शहरों में लागू पुलिस कमिश्नर प्रणाली की समीक्षा भी करना होगी ।

नए मुख्यमंत्री मोहन यादव की चुनौती अपनी छवि बनाने कि है ,ये चुनौती बड़ी इसलिए भी है क्योंकि पुराने मुख्यमंत्री उसी विधानसभा में मौजूद हैं। वे जब तक सामने रहेंगे तब तक मोहन यादव की छवि कि तुलना चौहान की छवि से की जाएगी । चौहान तो 18 साल में सूबे के मामा और भाई बन चुके हैं। इसका मुजाहिरा वे विधानसभा चुनाव में कर भी चुके हैं ऐसे में यादव जी अपनी कौन सी छवि बनाएंगे ये वे खुद या उनकी पार्टी तय करेगी। नौकरशाही भी छवि निर्माण का एक महवत्वपूर्ण औजार है। बेहतर हो कि यादव न योगी बनने का प्रयास करने और न शिवराज बनने का प्रयास करें। वे मोहन के साथ ‘ मन-मोहन ‘ बनने की कोशिश करें। कोशिश करें कि सूबे में भाजपा का राज कायम हो न कि यादव राज। क्योंकि वैसे भी नए मुख्यमंत्री के साथ उनका अतीत भी अभी बाबस्ता है। उनकी छवि बनने से पहले बिगाड़ने का अभियान भी सोशल मीडिया पर शुरू हो चुका है। इसे रोकना आसान काम नहीं है। मोहन यादव को यदि नकल ही करना है तो उन्हें ओडिशा के मुख्यमंत्री की नकल करना चाहिए। जो बिना किसी बुलडोजर के ओडिशा में अखंड राज कर रहे है। उनके पास न कोई मोदी है और न कोई शाह।

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