भारत में मुसलमानों की आबादी करीब 14 प्रतिशत है …केंद्र समेत 15 राज्यों में पहली बार मुस्लिम मंत्री नहीं
सत्ता की भागीदारी से मुसलमान आउट: केंद्र समेत 15 राज्यों में पहली बार मुस्लिम मंत्री नहीं, इनमें 2 कांग्रेस शासित
बीजेपी शासित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी मुसलमानों के मंत्री बनने की संभावना शून्य है. क्योंकि, तीनों ही राज्यों में बीजेपी के सिंबल पर एक भी मुस्लिम विधायक जीतकर सदन नहीं पहुंचे हैं.
देश में मुसलमानों की आबादी करीब 14 प्रतिशत है, जो हिंदू के बाद सबसे ज्यादा है. …
हालिया 5 राज्यों के चुनाव के बाद जो सरकार गठन की प्रक्रिया चल रही है, उसमें भी मुस्लिम हिस्सेदारी सुनिश्चित होता नहीं दिख रहा है. कांग्रेस शासित तेलंगाना में कैबिनेट विस्तार हो चुका है. तेलंगाना में पार्टी ने सारे समीकरण साधे, लेकिन एक भी मुसलमान को मंत्री नहीं बनाया.
बीजेपी शासित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी मुसलमानों के मंत्री बनने की संभावना शून्य है. क्योंकि, तीनों ही राज्यों में बीजेपी के सिंबल पर एक भी मुस्लिम विधायक जीतकर सदन नहीं पहुंचे हैं.
भारत में मुसलमानों की आबादी करीब 14 प्रतिशत है …
सत्ता की भागीदारी में मुसलमान कहां, बात पहले केंद्र से
केंद्र सरकार में पहली बार एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है. अल्पसंख्यक मंत्रालय की कमान स्मृति ईरानी के पास है, जो हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नजमा हेपतुल्लाह और मुख्तार नकवी जैसे मुस्लिम नेताओं को मंत्री बनाया गया था.
दूसरे कार्यकाल में भी मुख्तार को मंत्री बनाया गया था, लेकिन 2021 के कैबिनेट विस्तार में उन्हें हटा दिया गया. बीजेपी के अटल बिहारी ससरकार में उमर अब्दुल्ला और सैय्यद शहनवाज हुसैन मंत्री थे.
दिलचस्प बात है कि केंद्र के 7 बड़े पदों पर भी एक भी मुसलमान नहीं है. इनमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, स्पीकर, मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, मुख्य चुनाव आयुक्त और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद हैं.
वर्तमान में देश में 28 राज्यपाल नियुक्त हैं, इनमें से सिर्फ 2 मुसलमान (अब्दुल नजीर, आंध्रप्रदेश और केरल आरिफ खान) हैं. सुप्रीम कोर्ट में कुल 34 जज अभी हैं, जिसमें से एक जज मुस्लिम समुदाय से हैं.
आधे राज्यों में मुस्लिम मंत्री नहीं, मुख्यमंत्री तो दूर की कौड़ी
देश में कुल 29 राज्य है, जिसमें से 15 राज्यों में पहली बार एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं होंगे. गुजरात, असम, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल, तेलंगाना और नॉर्थ ईस्ट के 6 राज्यों में तो तस्वीर भी पूरी तरह साफ हो गई है.
इन राज्यों में एक भी मुस्लिम मुख्यमंत्री नहीं है. असम में 1 करोड़ से ज्यादा मुसलमान हैं, जबकि तेलंगाना में मुसलमानों की आबादी 45 लाख के करीब है.
(सोर्स- जनगणना 2011)
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का कैबिनेट विस्तार होल्ड पर है. हालांकि, इन राज्यों में किसी मुस्लिम के मंत्री बनने की संभावना शून्य है. इसकी 2 मुख्य वजहें हैं-
– मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी के पास एक भी मुस्लिम विधायक नहीं हैं. पार्टी ने यहां के चुनावों में एक भी मुसलमानों को टिकट नहीं दिया था.
– इन राज्यों में विधानपरिषद् की भी व्यवस्था नहीं है. ऐसे में उत्तर प्रदेश की तरह यहां किसी मुस्लिम को मंत्री बनाना आसान नहीं है. उत्तर प्रदेश में मुस्लिम विधायक न होने के बाद भी बीजेपी ने दानिश आजाद अंसारी को मंत्री बनाया था. उन्हें परिषद कोटे से सदन भेजा गया था.
बात मुख्यमंत्री की करें तो वर्तमान में देश के किसी भी राज्य में एक भी मुस्लिम मुख्यमंत्री नहीं है. आंकड़ों की बात की जाए तो देश में अभी 28 राज्य और 2 केंद्रशासित प्रदेश में निर्वाचित मुख्यमंत्री हैं.
इनमें से 25 मुख्यमंत्री हिंदू, 2 ईसाई और एक-एक बौद्ध एवं सिख समुदाय से हैं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन खुद को किसी धर्म के नहीं मानते हैं. एक बयान में उन्होंने खुद को नास्तिक बताया था. हालांकि, स्टालिन जिस समुदाय से आते हैं, उसे भारत में हिंदू धर्म की श्रेणी में रखा गया है.
जम्मू-कश्मीर में पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री बनते थे, लेकिन 2019 के बाद से वहां चुनाव ही नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2024 तक चुनाव कराने के निर्देश दिए हैं. वहीं जानकारों का कहना है कि जिस तरह से नए परिसीमन हुआ है, उससे अब वहां भी मुस्लिम मुख्यमंत्री बनने की संभावना बहुत कम हो गई है.
कांग्रेस शासित 2 राज्यों में भी मुस्लिम मंत्री नहीं
कांग्रेस के पास वर्तमान में 3 राज्य है. कर्नाटक को छोड़कर कांग्रेस ने हिमाचल और तेलंगाना में किसी भी मुस्लिम को मंत्री नहीं बनाया है. पार्टी के एक बड़े नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इन राज्यों से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं चुने गए हैं, इसलिए मुस्लिम चेहरे को टिकट नहीं दिया गया.
कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के सूत्रों के मुताबिक 5 राज्यों के चुनाव से पहले मुसलमानों के टिकट के मसले पर आंतरिक बैठक में खूब बहस हुई. मुस्लिम नेताओं ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में ज्यादा टिकट नहीं दिए जाने का काफी विरोध भी किया था.
हालांकि, हाईकमान के दखल के बाद अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन ने विभाग के नेताओं को सब्र करने की सलाह दी.
क्यों जरूरी है सत्ता में मुसलमानों की भागीदारी?
1. स्पैनजा यूनिवर्सिटी रोम के एक शोध के मुताबिक सरकार में सभी वर्गों की भागीदारी से उसकी गुणवत्ता सुधरती है. साथ ही लोकतांत्रिक सरकार पर लोगों का भरोसा बढ़ता है. सरकारी निर्णयों में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित होती है.
2. हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध के मुताबिक राजनीतिक समानता सरकार की वैधता और संबंधित समुदाय के आर्थिक समानता को मजबूत करती है. इससे शिक्षा की गुणवत्ता में भी तेजी से सुधार आता है.
3. भारत के संविधान के प्रस्तावना में राजनैतिक न्याय का जिक्र किया गया है. यहां राजनीतिक न्याय का मतलब है- राज्य के अंतर्गत समस्त नागरिकों को समान रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो. लोगों की बात आसानी से नीति नियंता तक पहुंचे.
हिस्सेदारी को लेकर हाशिए पर क्यों जा रहे मुसलमान?
आजादी के बाद केंद्रीय कैबिनेट में 3-4 मुस्लिम मंत्री थे, जिन्हें बड़े विभाग मिले थे. नेहरू के दौर में जाकिर हुस्सैन को उपराष्ट्रपति बनाया गया था. नेहरू के निधन के बाद हुस्सैन भारत के राष्ट्रपति भी बने.
इंदिरा के दौर में बरकतुल्लाह खान को राजस्थान और अब्दुल गफूर को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया था. बीजेपी की अटल बिहारी सरकार में भी मुसलमानों को हिस्सेदारी दी गई थी. अटल सरकार ने 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम आजाद को राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया था.
ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि अब ऐसा क्या हो गया है कि देश की सत्ता से लगातार मुसलमानों की हिस्सेदारी घटती जा रही है?
अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और बीजेपी नेता आतिफ रशीद कहते हैं- राजनीतिक भागीदारी वोट से मिलती है. सबका साथ-सबका विकास का जो नारा है, वो योजना के लिए है.
रशीद के मुताबिक योजना सरकार बनने के बाद लागू की जाती है. बीजेपी की किसी सरकार में कोई भी ऐसी योजना नहीं है, जिसका लाभ मुसलमानों को नहीं मिल रहा है. या किसी योजना के लाभ में मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जाता है.
आतिफ रशीद आगे कहते हैं- भागीदारी क्यों नहीं है, इसकी 2 मुख्य वजहें हैं…
- हमारे पास जो डेटा है, उसके मुताबिक बीजेपी को जो वोट करते हैं, उनमें 99.9 प्रतिशत हिंदू हैं. मुसलमानों का जो वोटिंग पैटर्न है, वो बीजेपी को हराने का है. यानी मुसलमान बीजेपी को हराने के लिए वोट करते हैं. ऐसे में बीजेपी मुसलमानों को मंत्री बनाकर हिंदुओं को नाराज करने का खतरा क्यों उठाएगी?
- 70 साल से मुसलमान इस मुगालते में है कि वही सरकार चुनते हैं, जबकि हकीकत कुछ और है. हमेशा से हिंदू-मुसलमान मिलकर सरकार बनाते रहे हैं और दोनों की हिस्सेदारी रही है. बीजेपी मुस्लिमों को टिकट देती है, तो मुस्लिम उम्मीदवार को सब मिलकर हरा देते हैं. इसलिए पार्टी ने टिकट देना भी बंद कर दिया.
3 और वजहें, जिसका जिक्र जरूरी..
1. जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में कानून विभाग के प्रोफेसर असद मलिक के मुताबिक मुसलमानों को सत्ता में हिस्सेदारी मिलनी चाहिए, इसको लेकर कोई कानून नहीं है.
पहले की सरकार में परंपरा के हिसाब से राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या कोई बड़ा पद मुस्लिम नेताओं को मिल जाता था, जिससे बड़े निर्णय में उनकी भागीदारी होती थी. अब की सरकार अगर परंपरा नहीं मानती है, तो उस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है.
2. विधानसभा और लोकसभा की सीटों का परिसीमन भी एक वजह है. जानकारों का कहना है कि परिसीमन की वजह से कई मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भी मुसलमान विधायक और सांसद नहीं बन पाते हैं, जिसकी वजह से सरकार की हिस्सेदारी में उसका गणित बिगड़ जाता है.
बिहार की गोपालगंज, यूपी की नगीना और बुलंदशहर, गुजरात की कच्छ और अहमदाबाद पश्चिम लोकसभा की ऐसी सीटें हैं, जहां मुसलमानों की आबादी दलित से ज्यादा है, लेकिन इन सीटों को 2009 में दलितों के लिए रिजर्व किया गया था.
3. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फैसल देवजी के मुताबिक 1990 का जो राजनीतिक घटनाक्रम रहा, उसने मुसलमानों की ताकत को कम किया. 1990 के बाद मुसलमानों का विघटन हुआ, जबकि हिंदू एक पक्ष में धीरे-धीरे एकजुट होते गए.