क्या है मदरसे का इतिहास ? भारत में 1191 में पहला मदरसा खुला था ….

क्या है अनुच्छेद 25, 29 और 30, असम में चल रहे मदरसों के विवाद के बीच चर्चा में क्यों?
असम में सरकार द्वारा संचालित सभी मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदलने का निर्देश दे दिया गया है. इस मामले में सरकार का तर्क है कि सरकारी पैसों से धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती.
असम में 2022 से सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसों को बंद करने की बात चल रही थी, जिसे असम की सरकार ने अब लागू कर दिया है और 1281 मदरसों के नाम बदलकर मध्य अंग्रेजी स्कूल रख दिया गया है. हालांकि असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा लंबे समय से मदरसोंं को लेकर सख्त रुख अख्तियार करने की बात कर रहे हैं. 

हेमंत बिस्वा सरमा ने 2020 के मार्च महीने में कर्नाटक के बेलगावी में बीजेपी की विजय संकल्प यात्रा को संबोधित करते हुए कहा था कि मैंने 600 मदरसों को बंद कर दिया है, लेकिन मेरा इरादा सभी मदरसों को बंद करने का है. क्योंकि हमें मदरसोंं की जरूरत नहीं है. हमें डॉक्टर इंजीनियर बनाने के लिए स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की जरूरत है.

अब असम के प्रारंभिक शिक्षा कार्यालय ने बुधवार को एक आदेश जारी किया. जिसमें सभी सरकार द्वारा संचालित और सरकारी सहायता प्राप्त मिडिल स्कूल मदरसोंं को तत्काल प्रभाव से सामान्य स्कूलों में बदलने का निर्देश दिया गया है.
दरअसल पिछले कुछ समय से असम सहित देश के कई राज्यों में मदरसोंं को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं तो वहीं कई जगहों पर इन्हें लेकर बहस जारी है. हालांकि भारत के संविधान का अनुच्छेद 25, 29 और 30 इन मदरसोंं को संचालित किए जाने की अनुमति देता है.

क्या है विवाद?
असम में पिछले साल यानी 2022 में चार मदरसोंं को राष्ट्र विरोधी और जिहादी गतिविधियों में कथित संलिप्तता के आरोप में तोड़ दिया गया था. वहीं इस साल शुरुआत यानी फरवरी में असम पुलिस महानिदेशक ने प्राइवेट मदरसे चलाने वाले लोगों के साथ बैठक की थी. जिसमें मदरसोंं के लिए कुछ नियम तय किए गए थे.

इसके तहत तय किया गया था कि 5 किलोमीटर के दायरे में सिर्फ एक ही मदरसा होगा. वहीं जिन मदरसोंं में 50 से कम छात्र हैं वो उनके पास के किसी बड़े मदरसे में खुद को शामिल कर लेंगे.
इसके अलावा एक नियम ये भी तय किया गया कि मदरसोंं को वहां पढ़ने वाले छात्रों, उनके अभिभावकों, हेड मास्टर समेत सभी शिक्षकों की पूरी जानकारी समय-समय पर सरकार को देनी होगी.
मदरसों में होने वाली पढ़ाई को लेकर पहले भी कुछ विवाद भी सामने आते रहे हैं. कट्टरपंथी हिंदू संगठन ये आरोप लगाते आए हैं कि दूरदराज के इलाकों में नियमित स्कूल नहीं है वहां के कुछ मदरसों में कट्टरपंथी इस्लाम की पढ़ाई होती है.
अब असम में मदरसे के इतिहास पर नजर डालें तो यहां दो तरह के मदरसे चलाए जा रहे थे पहले सरकारी मान्यता प्राप्त जिन्हें सरकार द्वारा दिए जा रहे पैसों से संचालित किया जा रहा था और दूसरे खैराती यानी जिन्हें निजी संगठनों द्वारा चलाया जा रहा था.

असम के शिक्षा पाठ्यक्रम में मदरसा की शिक्षा को 1934 में शामिल किया गया था और उसी साल राज्य मदरसा बोर्ड का भी गठन हुआ था.
राज्य में मदरसों का सरकारीकरण साल 1995 में हुआ था. इन सरकारी अनुदान वाले मदरसों को प्री-सीनियर, सीनियर और टाइटल मदरसे में बांटा गया था. जिसके तहत प्री-सीनियर मदरसों में छठी से आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई करवाई जाती थी.

सीनियर मदरसों में कक्षा आठवीं से बारहवीं तक की पढ़ाई करवाई जाती थी और टाईटल मदरसोंं में स्नातक से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई होती थी. इनके अलावा असम में चार अरबी कॉलेज भी थे जिनमें कक्षा 6 से स्नाकोत्तर तक की पढ़ाई हो रही थी.
लेकिन असम सरकार ने साल 2020 में निरस्तीकरण अधिनियम लागू कर दिया, जिससे सभी मदरसों और अरबी कॉलेज प्रभावित हुए. इसके बाद 12 फरवरी 2021 में एक अधिसूचना जारी कर राज्य मदरसा बोर्ड को भंग कर दिया गया.

गौरतलब है कि हर साल सरकार द्वारा इन मदरसों पर लगभग तीन से चार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे थे. हालांकि ये कदम सरकारी मदरसोंं पर उठाया गया है वहीं प्राइवेट मदरसे अब भी चलते रहेंगे.
राज्य में सरकारी मदरसोंं को बंद करने को लेकर असम प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रमोद स्वामी का कहना है कि मजहबी शिक्षा सरकारी अनुदान से नहीं दी जा सकती. इसीलिए सरकारी मदरसोंं को असम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत स्कूल में तब्दील कर दिया गया है.

उनका कहना है कि हमारा मकसद मुसलमान बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा उपलब्ध कराना है. ताकिआगे चलकर उनका भविष्य दूसरे बच्चों की तरह डॉक्टर, इंजीनियर बनकर देश की सेवा करेना हो. सरकार ने यह फैसला अल्पसंख्यक बच्चों के हित में लिया है.

असम के शिक्षा मंत्री रनोज पेगु ने इस आदेश के जारी होने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, “सभी सरकारी और प्रांतीय मदरसोंं को असम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत सामान्य स्कूलों में परिवर्तित करने के परिणामस्वरूप आज एक अधिसूचना के जरिए 1,281 एमई मदरसोंं के नाम बदलकर एमई स्कूल कर दिए गए हैं.”

मदरसों पर क्या कहता है कानून?
असम में सरकारी मदरसों को बंद करने को लेकर राज्य के विधायी और कार्यकारी निर्णयों को चुनौती दी गई और हाईकोर्ट में इसके खिलाफ एक रिट याचिका दायर की गई थी. लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर सुनवाई के बाद 4 फरवरी 2022 को रिट याचिका को ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि असम सरकार द्वारा बनाया गया असम निरसन अधिनियम 2020 वैध है. जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
गुवाहाटी हाई कोर्ट में रिट याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी करने वाले वकील एआर भुइयां ने बीबीसी को बताया कि जिन मदरसोंं को स्कूल में बदला गया है वो पूरी तरह से मदरसे नहीं थे. इन मदरसोंं में अरबी पाठ्यक्रम के साथ हाई स्कूल में पाए जाने वाले सभी विषयों की पढ़ाई होती है. लेकिन सरकार का कहना है कि सरकारी पैसे से धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती. इसी वजह से इन मदरसोंं को सामान्य स्कूलों में तब्दील कर दिया गया.
उन्होंने आगे कहा, लेकिन भारत के संविधान ने खासतौर पर अनुच्छेद 25, 29 और 30 के तहत जो अधिकार दिए गए हैं सरकार उसका हनन कर रही है. मदरसोंं में क्या पढ़ाया जाएगा उसको सरकार नियंत्रित नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट में यह मामला दाखिल हो गया है और अब हम सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं.

क्या है अधिनियम 25, 29 और 30?
भारतीय अनुसंधान के अनुच्छेद 25 (1) के अनुसार, लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अपनी बुद्धि और विवेक के अनुसार स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा.
इसके अलावा अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की गारंटी देता है, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार शामिल है. वहीं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने के अधिकार की गारंटी देता है.

मदरसे का इतिहास
मदरसा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है पढ़ने की जगह. मूलरूप से ये हिब्रू भाषा से अरबी में आया था, जिसे हिब्रू में मिदरसा कहा जाता है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पहला मदरसा 1191 से 1192 के बीच अजमेर में खोला गया था. उस समय मोहम्मद गौरी का शासन हुआ करता था. हालांकि UNESCO की मानें तो भारत में मदरसों की शुरुआत 13वीं शताब्दी में हुई थी.
मदरसोंं में अकबर के समय में मदरसोंं का और विकास हुआ. इस समय में मदरसोंं में इस्लामिक शिक्षा के अलावा अन्य शिक्षा देना भी शुरू की गई. वहीं भारत में अंग्रेजों की सरकार में भी मदरसा खोले गए थे. अंग्रेजी सरकार का पहला मदरसा साल 1781 में वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता में खोला था. वहीं अब भारत में मदरसोंं की संख्या की बात की जाए तो अल्पसंख्यक मंत्रालय के मुताबिक 2019 तक भारत में कुल 24010 मदरसे थे, जिनमें से 4878 गैर मान्यता प्राप्त थे.


पहले भी विवादों में रहा
पिछले साल यानी 2022 में उत्तर प्रदेश सरकार ने मदरसों का सर्वे करवाया था. इस सर्वे में मदरसे में पढ़ाए जाने वाले सिलेबस से लेकर फंडिंग तक की जानकारी मांगी गई थी. जिसपर खासा विवाद खड़ा हो गया था.

विरोध करने वालो का कहना था कि मदरसोंं के सर्वे की क्या जरूरत है जबकि सारी जानकारी पहले से ही सरकार के पास है. इस दौरान AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का भी बयान सामने आया था. उन्होंने कहा था कि यूपी सरकार मुसलमानों को टारगेट कर रही है.
इसके अलावा साल 2019 में भी मदरसोंं पर विवाद उस समय खड़ा हो गया था जब लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के बीच लगातार तनातनी की स्थिति बनी हुई थी.

दोनों के बीच विवाद उस समय खड़ा हो गया था जब केंद्रीय गृह मंत्राय की ओर से ये दावा किया गया था कि पश्चिम बंगाल के मदरसोंं का आतंकी इस्तेमाल कर रहे हैं.

हालांकि राज्य सरकार ने इसपर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बंगाल सरकार को गृह मंत्रालय की ओर से इस संबंध में कोई खत नहीं मिला. राज्य सरकार ने कहा कि मंत्रालय राज्य को गलत तरीके से पेश कर रहा है.
वहीं इसी साल नवंबर में उत्तराखंड में मदरसे उस समय भी चर्चाओं में आ गए थे जब गैर मुस्लिम बच्चों की मदरसोंं में पढ़ाई की खबर सामने आई थी. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने उत्तराखंड शासन से सवाल किया था कि मदरसोंं में जा रहे गैर मुस्लिम बच्चों को स्कूलों में क्यों दाखिला नहीं दिलाया गया.

दरअसल राज्य के मदरसा शिक्षा परिषद में 415 मदरसे पंजीकृत हैं. जिनमें हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर और नैनीताल जिलों के 30 मदरसों में 749 गैर मुस्लिम बच्चों के पढ़ने का मामला सामने आया था. जिसके बाद इसपर विवाद गहरा गया था. इसी तरह देश के अन्य राज्यों में भी कई बार मदरसोंं को लेकर विवाद सामने आते रहे हैं.  

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