गहलोत, बघेल और कमलनाथ का क्या होगा ?

गहलोत, बघेल और कमलनाथ का क्या होगा ….
हारे दिग्गजों का क्या करती है कांग्रेस …

चाइनीज लेखक सून त्जू ‘आर्ट ऑफ वॉर’ में लिखते हैं यदि कोई युद्ध करने में सक्षम है तो उसे दोबारा मौका देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो इससे राजा का ही नुकसान होगा।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर जीतू पटवारी को कमान सौंपी है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को नेशनल अलायंस कमेटी में शामिल किया है। ये फैसले क्या इशारा कर रहे हैं?

कमलनाथ, गहलोत और भूपेश का आगे क्या होगा? हारे हुए बड़े नेताओं के साथ कांग्रेस क्या सलूक करती है?

तीन राज्यों के 4 केस, जहां जीतने और हारने वाले नेताओं के साथ कांग्रेस ने चौंकाने वाले फैसले लिए…

केस-1: मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह को CM की जगह राज्यपाल बना दिया

1985 की बात है। जब अर्जुन सिंह के CM रहते कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की थी। अर्जुन सिंह ने मंत्रिमंडल की लिस्ट बना ली थी और उसे दिखाने के लिए प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास गए थे। राजीव ने उन्हें CM बनाने की बजाय पंजाब का राज्यपाल बना दिया था।

ये वो समय था जब मप्र में अुर्जन सिंह की ताकत गांधी-नेहरू परिवार से ज्यादा हो चली थी। अर्जुन सिंह की ताकत कम करने के लिए उन्हें राज्यपाल बनाया गया था। 13 मार्च 1985 को अर्जुन सिंह ने पंजाब के राज्यपाल की शपथ ली। नवंबर 1985 में राजीव गांधी ने उन्हें केंद्र में वाणिज्य मंत्री बना दिया था। आठ महीने बाद ही अर्जुन सिंह ने वापसी की थी।

अर्जुन सिंह को गांधी परिवार का वफादार माना जाता था। यही कारण था कि जब उन्हें पंजाब का राज्यपाल बनाया गया तो उन्होंने बिना सवाल किए हां कह दिया था। अर्जुन सिंह की जगह मोतीलाल वोरा को MP का CM बनाया गया था। (फोटो साभार: प्रवीण जैन)
अर्जुन सिंह को गांधी परिवार का वफादार माना जाता था। यही कारण था कि जब उन्हें पंजाब का राज्यपाल बनाया गया तो उन्होंने बिना सवाल किए हां कह दिया था। अर्जुन सिंह की जगह मोतीलाल वोरा को MP का CM बनाया गया था। (फोटो साभार: प्रवीण जैन)

केस-2: दिग्विजय सिंह बुरी तरह हारे, लेकिन महासचिव बना दिया

2003 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस राज का खत्म हो चुका था। दस साल तक CM रहने वाले दिग्विजय सिंह ने अगले दस साल तक चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था। चार महीने बाद 2004 में लोकसभा चुनाव होने थे। दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था और वे राजगढ़ से भाजपा उम्मीदवार थे।

दिग्विजय ने कहा कि ये धर्म युद्ध है और वे अपने सगे भाई के खिलाफ प्रचार करेंगे। चुनाव खत्म होते-होते मई में ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें महासचिव बना दिया था। वे 2014 तक कांग्रेस महासचिव रहे। इस दौरान वे राहुल गांधी के अघोषित सलाहकार भी रहे।

केस-3: शीला दीक्षित को राज्यपाल बनाया, फिर प्रदेश अध्यक्ष पद दिया

2013 दिल्ली में शीला दीक्षित पंद्रह साल तक CM रहने के बाद सत्ता गंवा चुकी थीं। 28 दिसंबर तक वे CM थीं। दो महीने बाद मार्च 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया। केंद्र में UPA सरकार जा चुकी थी और मोदी सरकार आ चुकी थी। UPA सरकार के समय नियुक्त हुए राज्यपाल इस्तीफा दे रहे थे। शीला ने भी पांच महीने बाद बिना शोर-शराबे के शांति से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्हें 2019 की शुरुआत में दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।

ये फोटो 2018 की है। इस फोटो को देखकर समझा जा सकता है कि शीला दीक्षित गांधी परिवार की कितनी खास थीं।
ये फोटो 2018 की है। इस फोटो को देखकर समझा जा सकता है कि शीला दीक्षित गांधी परिवार की कितनी खास थीं।

केस-4: गुजरात में ठाकोर को हटाया नहीं, बल्कि प्रमोशन देकर केंद्र में बुलाया

2022 में गुजरात विधानसभा का चुनाव कांग्रेस ने जगदीश ठाकोर की लीडरशिप में लड़ा। ठाकोर गुजरात के कांग्रेस अध्यक्ष थे। बुरी तरह से हारने के बाद ठाकोर ने हार का नैतिक दायित्व लिया और इस्तीफा देने की पेशकश की, जिसे स्वीकार नहीं किया गया। 9 जून 2023 तक ठाकोर गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य के रूप में प्रमोशन दिया।

इन 4 केस से समझ सकते हैं कि जिन राज्यों में कांग्रेस हार जाती है, तो वहां के दिग्गजों के साथ 3 तरह का सलूक होता रहा है…

  1. उन्हें पद पर बनाए रखा जाता है।
  2. संगठन में दूसरे राज्यों के काम में लगाया जाता है।
  3. दो-तीन महीने के रेस्ट के बाद केंद्र की राजनीति में लाया जाता है।

अब जानते हैं कि कमलनाथ, गहलोत और बघेल का क्या हो सकता है…

कमलनाथ पहले ही बोल चुके हैं मैं रिटायर होने वाला नहीं, मतलब दिल्ली जा सकते हैं

विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस आलाकमान ने 77 साल के कमलनाथ की जगह 50 साल के जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। कमलनाथ के पास फिलहाल विधायक के अलावा और कोई पद नही है।

दैनिक भास्कर डिजिटल के स्टेट एडिटर राजेश माली के मुताबिक प्रदेश में काम करने के लिए अब कमलनाथ के पास कोई स्कोप भी नहीं है। संभावना यही है कि वे विधायक रहते हुए छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ें। यदि वे जीत जाते हैं तो उनकी विधानसभा सीट से उनके सांसद पुत्र नुकुल नाथ लड़ेंगे।

रिजल्ट के बाद अपने विधानसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा पहुंचकर उन्होंने कहा था, ‘मैं रिटायर नहीं होने वाला। आखिरी सांस तक आपके साथ रहूंगा। आने वाले समय में हमारी असली अग्नि परीक्षा है।’ इस बयान के मायने हैं कि कमलनाथ छिंदवाड़ा से जुड़े रहकर अपनी भूमिका केंद्रीय राजनीति में देख रहे हैं।

कांग्रेस और राजनीति पर कई किताबें लिखने वाले पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि उन्हें चाहकर भी दरकिनार नहीं किया जा सकता। लोकसभा चुनाव में केवल छह महीने से भी कम समय बचा है। अभी जो सिनेरियो है उसमें मध्यप्रदेश कांग्रेस का कोई नेता ये दावा नहीं कर सकता कि मैं लोकसभा चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा, लेकिन कमलनाथ ये दावा कर सकते हैं।

कांग्रेस उन्हें केंद्र की राजनीति में ले जा सकती है। जिस तरह से कमलनाथ का अंदाज और स्वभाव है, उन्हें I N D I A अलायंस में सक्रिय किया जाएगा। अगर कांग्रेस हारती है तो कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष के बड़े दावेदार होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि वे पहले 9 लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। संसदीय कार्यमंत्री रह चुके हैं। जब कमलनाथ केंद्र में मंत्री थे तो उनकी सभी दलों में पैठ थी।

जन आक्रोश रैली के दौरान राहुल गांधी के साथ कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ। नकुल अभी छिंदवाड़ा से सांसद हैं। इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छिंदवाड़ा जिले की सारी सीटें जीती हैं।
जन आक्रोश रैली के दौरान राहुल गांधी के साथ कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ। नकुल अभी छिंदवाड़ा से सांसद हैं। इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छिंदवाड़ा जिले की सारी सीटें जीती हैं।

भूपेश OBC राजनीति के जानकार, लोकसभा चुनाव लड़ाएंगे या UP जा सकते हैं

दैनिक भास्कर (डिजिटल) छत्तीसगढ़ के स्टेट एडिटर यशवंत गोहिल बताते हैं कि भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का एकमात्र ऐसा चेहरा हैं, जो एग्रेशन के लिए जाना जाता है। इस समय प्रदेश की राजनीति में उसी एग्रेशन की जरूरत होगी। 2018 में जब वे सत्ता में आए थे, तो परिवर्तन यात्रा के दौरान उनका तीखा तेवर लोगों ने पसंद किया था। अपने पांच साल के कार्यकाल में वे देश में कांग्रेस के OBC चेहरे के रूप में अपनी जगह बना चुके हैं।

ऐसे में कांग्रेस लोकसभा चुनाव के बाद जिम्मेदारी से मुक्त रखना नहीं चाहेगी। वे कोशिश करेंगे कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिले, लेकिन OBC वर्ग से नेता प्रतिपक्ष बनाकर कांग्रेस ने इसका रास्ता कठिन कर दिया है। लिहाजा हो सकता है कि उन्हें लोकसभा लड़ाने पर भी विचार किया जाए।

छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार विशाल यादव कहते हैं कि भूपेश बघेल को भले ही अभी अलायंस से कोऑर्डिनेट करने के लिए बनाई समिति का सदस्य बना दिया हो, लेकिन उनकी जगह एक्टिवेट राजनीति में है। उन्हें कांग्रेस लोकसभा का चुनाव लड़ा सकती है या उत्तर भारत के किसी राज्य का प्रभारी बना सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि भूपेश पिछड़ा वर्ग से आते हैं और उत्तर भारत में पिछड़ों की खासी संख्या है। भूपेश प्रियंका गांधी की गुड लिस्ट में हैं और वे उत्तर प्रदेश की प्रभारी भी हैं।

भरोसा यात्रा के दौरान भूपेश बघेल। भूपेश को छत्तीसगढ़ का युवा वर्ग काका कहकर पुकारता है।
भरोसा यात्रा के दौरान भूपेश बघेल। भूपेश को छत्तीसगढ़ का युवा वर्ग काका कहकर पुकारता है।

गहलोत जोधपुर से लड़कर रोक सकते हैं भाजपा का विजयी रथ
दैनिक भास्कर (डिजिटल) राजस्थान के स्टेट एडिटर किरण राजपुरोहित कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सियासी भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। अशोक गहलोत के पास फिलहाल विधायक के अलावा और कोई पद नहीं है। इस बात की भी बेहद कम संभावना है कि वे राजस्थान में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का जिम्मा संभालें या नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभाएं।

एक संभावना ये भी है कि पार्टी उन्हें जोधपुर से लोकसभा चुनाव भी लड़ा सकती है, ताकि कम से कम भाजपा के पास पिछले दो चुनाव की तरह राजस्थान की 25 में से 25 सीटें जीतने का रिकॉर्ड न रहे। अगर गहलोत लोकसभा चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं तो उनकी विधानसभा सीट से उनके बेटे वैभव गहलोत लड़ सकते हैं। हालांकि, गहलोत कई मौकों पर कह चुके हैं कि वे राजस्थान नहीं छोड़ेंगे। पिछले साल कांग्रेस उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाहती है थी, लेकिन ऐन वक्त पर बड़ा सियासी ड्रामा हो गया। कांग्रेस हाईकमान ने इसे लेकर नाराजगी भी जताई थी।

वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राजन महान बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में जाे हालात राजस्थान में रहे हैं और जिस तरह से MP से संकेत दिख रहे हैं, उससे लगता है कि गहलोत को राजस्थान में शायद ही कोई पद मिले। इस कारण संभावना है कि उन्हें केंद्र की राजनीति में ले जाया जाएगा।

गहलोत कांग्रेस के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे से पहले उन्हें ही कांग्रेस अध्यक्ष पद का ऑफर दिया गया था। हाल ही में जिस तरह से ‘नेशनल अलायंस कमेटी’ में गहलोत को जगह मिली है, ये संकेत है कि कांग्रेस उनके अनुभव का उपयोग करना चाहती है, क्योंकि गहलोत जानते हैं कि दूसरे दलों से कैसे डील किया जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *