डर्टी पालटिक्स का एक और चेहरा !
डर्टी पालटिक्स का एक और चेहरा
खबर है तो बहुत छोटी लेकिन इस खबर से देश में चल रही डर्टी पलटिक्स का चेहरा एक बा फिर बेनकाब होता दिखाई देता है। खबर है की केंद्र सरकार ने २६ जनवरी को निकलने वाली गणतंत्र दिवस परेड में पंजाब की झांकी को शामिल करने की इजाजत नहीं दी है ,क्योंकि पंजाब सरकार झांकी में अपनी जिस योजना को प्रदर्शित करना चाहती है वो केंद्र की भाजपा सरकार को पसंद नहीं। आपको याद दिला दूँ की पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। आम आदमी पार्टी की वजह से ही भाजपा को पंजाब विधानसभा चुनाव में मुंह की खाना पड़ी थी।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अचानक प्रेस कांफ्रेंस बुलायी और केंद्र सरकार पर जमकर हमला किया और आरोप लगाया कि सरकार पंजाब से सौतेला व्यवहार कर रही है।मान के मुताबिक, इस बार केंद्र सरकार की चिट्ठी आने के बाद भगवंत मान सरकार ने पंजाब से 3 मॉडल भेजे थे जिनमें एक पंजाब के शहीदों को दूसरा पंजाब की नारी शक्ति और तीसरा पंजाब के ऐतिहासिक विरसे को दिखाता हुआ मॉडल था। मान ने आरोप लगाया कि कि केंद्र सरकार ने तीनों मॉडल को ठुकराते हुए पंजाब की झाकियां परेड में शामिल करने से मना कर दिया. केंद्र के इस कदम से मुख्यमंत्री भगवंत मान का पारा सातवें आसमान पर है। उन्होंने कहा केंद्र सरकार हमारे टैक्स के हिस्से का पैसा नहीं देती, हमारी धार्मिक यात्रा के लिए अनुबंध हो हो जाने के बावजूद ट्रेन देने से मना कर देते हैं। मान ने आशंका जताई कि कि केंद्र सरकार राष्ट्रगान से कहीं पंजाब का नाम भी ना निकाल दे।
केंद्र और राज्य कि बीच का ये पहला विवाद नहीं है । इससे पहले केंद्र गैर भाजपा शासित राज्यों को अपने तरीके से परेशान करती आयी ह। कभी किसी राज्य कि लिए चावल का कोटा जारी नहीं किया तो कभी किसी राज्य को मिलने वाली दीगर सहायता रोक दी। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा कि एक दशक कि कार्यकाल में केंद्र और राज्य समबन्धों पर बुरा असर पड़ा है। एक तरह से आप कह सकते हैं की देश का संघीय ढांचा चरमरा चुका है।पंजाब की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल न किये जाने पर केंद्र की और से कोई सफाई नहीं आयी लेकिन पंजाब भाजपा कि अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पंजाब की झांकियां शामिल न करने वजह बताई है। जाखड़ ने कहा है कि झांकी को खारिज करने का कारण ये है कि झांकियों के अंदर अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान की तस्वीरें हैं।
भाजपा की केंद्र सरकार और राज्यों कि बीच विवाद नए नहीं है। झांकियों के मामले में तो खासकर ऐसे विवाद हुए है। मध्यप्रदेश में ीक जमाने में जब डबल इंजिन की सरकार थी तब भी मध्यप्रदेश की झांकी अस्वीकार कर दी गयी थी। दिली में आम आदमी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच का विवाद तो जग जाहिर है। दिल्ली में उप राजयपाल के अधिकारों को लेकर विवाद तो सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचे है और ये अंतहीन विवाद हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र से चलाई जाने वाली योजनाओं का विरोध ही नहीं किया, बल्कि यह भी कहा कि राज्यों को अपनी योजना चलाने की आजादी होनी चाहिए। उनका आरोप है कि केंद्रीय योजनाओं में औसतन 40 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को व्यय करना पड़ता है, लेकिन श्रेय केंद्र सरकार को जाता है।आपको याद होगा की केरल के अलावा जब मध्य प्रदेश, राजस्थान में भी जब कांग्रेस की सरकारें थीं उस समय भी इसी तरह के विवाद खड़े हुए थे। कर्नाटक ने भी केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ऐसे समय में जब देशों की अर्थव्यवस्था दुनिया के साथ समेकित हो चुकी हो, जब किसानों की उपज का सही मूल्य दिलाने के लिए कृषि-बाजार को देशव्यापी बनाने की कवायद चल रही हो, जब केंद्र की नीतियों का राज्यों में व्यापक प्रभाव पड़ रहा हो तब यह तनाव विकास और जनकल्याण को बुरी तरह अवरुद्ध कर सकता है।
मुझे लगता है की भाजपा के विस्तार के कारण ही ममता- और नीतीश भी हमेशा उससे सशंकित रहते हैं, भले ही चुनाव के कारण उन्हें साथ आना पड़ता हो। ऐसे में क्या अब समय नहीं आ गया है जब संविधान में व्यक्त किए गए केंद्र-राज्य संबंधों को एक बार फिर से परिभाषित किया जाए, ताकि सार्थक क्षेत्रीय भावनाएं प्रतिक्रियात्मक बहुसंख्यकवाद की बाढ़ में बह न जाएं? कांग्रेस की प्रस्तावित न्याय यात्रा में केंद्र और संघ के दिनों दिन खराब हो रहे रिश्तों पर भी बात होना चाहिए। भाजपा के तेवर देखते हुए निकट भविष्य में केंद्र -राज्यों के रिश्तों में सुधार की संभावना बहूत कम है।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा गणतंत्र दिवस परेड के लिए राज्य की झांकी को अस्वीकार करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना करने के एक दिन बाद, अकाली दल प्रमुख सुखबीर बादल ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गौरवशाली, देशभक्त और वीरतापूर्ण पंजाब और पंजाबियों के खिलाफ भेदभाव के खिलाफ हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। आपको याद होगा की अकाली पहले भाजपा के साथ ही थे लेकिन किसान आंदोलन की वजह से दोनों के रिश्ते दरक गए थे। बादल ने कहा, ‘महान गुरु साहिबान, साहिबजादों और शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह, सरदार करतार सिंह सराभा, सरदार उधम सिंह जैसे स्वतंत्रता संग्राम के अनगिनत नायकों और शहीदों की विरासत को उजागर किए बिना किसी भी राष्ट्रीय कार्यक्रम को कैसे पूरा माना जा सकता है’ , बादल ने कहा है कि ‘लाला लाजपत राय और शहीदों की भूमि के साथ इस अन्याय के लिए जिम्मेदार व्यक्ति की पहचान की जानी चाहिए और उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.”