दरी बिछाने से वनवास तक शिवराज ?

दरी बिछाने से वनवास तक शिवराज के 7 बयान:हाईकमान को क्या संदेश देना चाहते हैं पूर्व सीएम; अब तक तय नहीं भूमिका

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के एक बयान की इस समय राजनीतिक गलियारों में बेहद चर्चा है। 2 जनवरी को अपने विधानसभा क्षेत्र बुधनी में शिवराज ने कहा- मुख्यमंत्री के पद तो आ-जा सकते हैं, लेकिन मामा और भाई का पद कभी कोई नहीं छीन सकता। शिवराज ने कहा, कहीं न कहीं कोई बड़ा उद्देश्य होगा यार.. कई बार राजतिलक होते-होते वनवास भी हो जाता है, लेकिन जरूर किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है।

शिवराज ने बयान देकर क्या ये जताने की कोशिश की है कि अब वह मौजूदा परिस्थितियों से समझौता कर चुके हैं? या फिर बयान में केंद्रीय नेतृत्व और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए कोई संदेश छुपा हुआ है। हालांकि, शिवराज ने पहली बार ऐसा बयान नहीं दिया है। चुनाव नतीजे आने के बाद उनसे दिल्ली जाने का सवाल पूछा था, तब उन्होंने कहा था कि अपने लिए मांगने से बेहतर मैं मरना पसंद करूंगा।

अब शिवराज ने ताजा बयान के साथ पिछले जितने भी बयान दिए, वे किन राजनीतिक परिस्थितियों में दिए और इनके क्या मायने हैं ?

………..ने राजनीति के जानकारों से बात कर शिवराज के ऐसे 7 बयानों के मायने समझने की कोशिश की।

शिवराज के सभी बयान ध्यान खींचने के लिए
बुधनी विधानसभा क्षेत्र के शाहगंज में एक कार्यक्रम के दौरान दिए शिवराज के इस ताजा बयान पर वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह कहते हैं कि शिवराज के जितने भी बयान हैं वे पार्टी लीडरशिप और भाजपा के कैडर का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए हैं।

नए बयान के जरिए वे यह बताना चाहते हैं कि राजतिलक (मुख्यमंत्री की कुर्सी) के वे अधिकारी थे। जिस तरह से भगवान राम राजतिलक के अधिकारी थे, लेकिन कैकेई के कहने पर उन्हें वनवास हुआ था। चुनाव परिणाम के बाद यह साफ हो चुका था कि शिवराज को इस बार मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा। क्योंकि इस चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत हुई है।

दिल्ली में जेपी नड्डा से मिले, लेकिन नई भूमिका तय नहीं
जानकार कहते हैं कि शिवराज के बयानों की वजह उनकी नई भूमिका तय नहीं होना भी है। जबकि नई सरकार के गठन के बाद एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा कह चुके हैं कि शिवराज सिंह चौहान को कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। हालांकि, नड्‌डा से मुलाकात के बाद शिवराज ने संकेत दिया था कि उन्हें दक्षिण के किसी राज्य की जिम्मेदारी मिलेगी।

इधर, भाजपा सूत्रों का कहना है कि शिवराज को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है, लेकिन चर्चा ये भी है कि शिवराज को केंद्रीय कृषि मंत्री बनाया जा सकता है। उनके नेतृत्व में मध्य प्रदेश ने कृषि में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। इसके अलावा पूर्व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अब मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य बन चुके हैं।

शिवराज के वे बयान जिनके निकाले गए मायने…

पहला बयान- जब मंत्रिमंडल का पहला विस्तार किया गया था

सिंधिया समर्थकों को मंत्रिमंडल में शामिल करने के बाद छलका था दर्द
कमलनाथ सरकार गिरने के बाद शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने थे। उनके साथ पांच मंत्रियों ने शपथ ली थी, लेकिन दूसरे विस्तार में उन्हें सिंधिया समर्थकों को मंत्रिमंडल में शामिल करना था। इसके लिए उन पर केंद्रीय नेतृत्व के अलावा सिंधिया का भी दबाव था। उन्होंने 21 विधायकों को मंत्री बनाया था। इसमें से 12 सिंधिया समर्थक थे।

मायने- मंत्रिमंडल के इस विस्तार में शिवराज के करीबी राजेंद्र शुक्ल और संजय पाठक को एडजस्ट करना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। मीडिया से बात करते हुए शिवराज ने खुद की तुलना शिव से की और मंत्रिमंडल विस्तार में आ रही दिक्कतों की तुलना खुद के विष पीने से कर गए थे।

दूसरा बयान – जब संसदीय बोर्ड से बाहर हुए

भाजपा के सबसे सीनियर सीएम होने के बाद भी हटाए गए थे शिवराज
उस समय शिवराज भाजपा के सबसे सीनियर मुख्यमंत्री थे और 9 साल से लगातार नीतिगत निर्णय लेने वाली भाजपा की इस सबसे पावरफुल बोर्ड के सदस्य रहे, इसलिए शिवराज को बाहर करना कोई मामूली राजनीतिक घटना नहीं थी।

मायने- भाजपा ने मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम आने के ठीक एक महीने (17 अगस्त 2022) बाद संसदीय बोर्ड में फेरबदल किया था। भाजपा 16 में से 7 नगर निगम में मेयर पद का चुनाव हार गई थी। इसके जरिए पार्टी ने उन्हें साइडलाइन करने का संकेत दिया था। शिवराज ये समझ गए थे। उन्होंने इसे जाहिर नहीं होने दिया।

तीसरा बयान- उम्मीदवार की दूसरी सूची में शिवराज का नाम नहीं था

शिवराज को टिकट न मिलने की आशंका थी
भाजपा ने उम्मीदवारों की पहली सूची 17 अगस्त को जारी की थी, जिसमें उन सीटों पर नाम घोषित हुए थे, जिन पर कांग्रेस का कब्जा था। दूसरी सूची 25 सितंबर को जारी हुई थी। इसमें तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसद और राष्ट्रीय महासचिव का नाम शामिल था, लेकिन शिवराज का नाम नहीं था।

मायने- भाजपा चुनाव को लेकर अप्रत्याशित फैसले ले रही थी। दूसरी सूची में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित 4 सांसदों के नाम थे। ऐसे में कयास लगाए जाने लगे कि शिवराज चुनाव लड़ेंगे या नहीं। हालांकि 9 अक्टूबर को जारी हुई चौथी सूची में उनका नाम था।

चौथा बयान – दिग्गजों के चुनावी मैदान में उतरने के बाद

बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने से सीएम पद को लेकर आशंका
शिवराज ने उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी होने से ठीक तीन दिन पहले यह बयान डिंडौरी में चरण पादुका वितरण कार्यक्रम में दिया था। भाजपा 230 में 219 उम्मीदवारों की सूची जारी कर चुकी थी और 11 सीटों पर ऐलान बाकी था।

मायने – शिवराज ने यह बयान भले ही चुनावी सभा में दिया, लेकिन उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को फिर एक संदेश देने की कोशिश की। जानकार कहते हैं कि शिवराज को जब भी मौका मिला, उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश की, लेकिन वे खुलकर सामने कभी नहीं आए।

पांचवां बयान – मुख्यमंत्री चुनने के लिए विधायक दल की बैठक से पहले

शिवराज को संकेत मिल गए थे कि वे सीएम नहीं बन रहे हैं
शिवराज सिंह चौहान का यह बयान विधायक दल की बैठक (11 दिसंबर) से चार-पांच दिन पहले आया था। उन्हें एक राष्ट्रीय पदाधिकारी ने संकेत दे दिया था कि मध्य प्रदेश में अब मुख्यमंत्री नया चेहरा होगा।

मायने – शिवराज ने यह बयान छिंदवाड़ा और श्योपुर दोनों जगहों पर दिया था। भाजपा छिंदवाड़ा की सातों व श्योपुर की दो सीटें हारी थी। शिवराज दिल्ली ना जाकर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इन दोनों जिलों में गए थे। ये बयान देकर उन्होंने बताने की कोशिश की कि पार्टी उन्हें सीएम बनाए या न बनाए, मगर जनता उनके साथ है।

छटवां बयान – डॉ. मोहन यादव सीएम घोषित हुए तब दिल्ली नहीं जाने पर सफाई दी

सीएम नहीं बनने के बाद राजनीतिक ताकत बनाने की कोशिश
डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के ऐलान के अगले दिन शिवराज ने राज्यपाल मंगुभाई पटेल से मुलाकात कर उन्हें पद से इस्तीफा सौंपा था। इसके बाद उन्होंने अपने निवास पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने सभी सवालों के जवाब दिए। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा ने उन्हें 18 साल तक मुख्यमंत्री बनाया। पार्टी ने उन्हें सब कुछ दिया है। अब पार्टी को लौटाने का वक्त है।

मायने – राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल के जवाब में शिवराज ने अपने उस बयान पर सफाई देने का सही समय माना। क्योंकि चुनाव का परिणाम आने के बाद कई बड़े नेता दिल्ली की दौड़ लगा रहे थे, लेकिन शिवराज नहीं गए। तब उन्होंने कहा कि मांगने के लिए दिल्ली नहीं जाऊंगा।

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