रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले बयानों पर बवाल ?
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले बयानों पर बवाल, क्या जनभावना को नहीं समझ पा रहा विपक्ष?
पूरे देश को 22 जनवरी का इंतजार है। इस दिन अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इससे पहले सियासी दलों की बयानबाजी जारी है। कोई खानपान पर टिप्पणी कर रहा है तो कोई कह रहा है कि राम को किसी मोदी की जरूरत नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राम की जरूरत है।
क्या 2024 का लोकसभा चुनाव राम के इर्द-गिर्द होता दिखाई दे रहा है? प्राण प्रतिष्ठा से पहले हो रही बयानबाजी के पीछे की सियासत क्या है? क्या विपक्ष जनभावना को नहीं समझ पा रहा है? इस हफ्ते के खबरों के खिलाड़ी में इसी मुद्दे पर चर्चा हुई। चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा त्रिपाठी, राहुल महाजन, अवधेश कुमार, विनोद अग्निहोत्री और बिलाल सब्जवारी मौजूद थे।
त्रिपाठी: राम मंदिर का मुद्दा अभी राजनीति के केंद्र में रहेगा। कई दलों को लगता है कि इससे लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा होगा। शायद यही वजह है कि कुछ नेता बौखलाहट में अशोभनीय टिप्पणियां कर रहे हैं। इस तरह का टिप्पणियां निंदनीय हैं। देश की सांस्कृतिक चेतना जागृत हुई है, लेकिन वह धार्मिक उन्माद में नहीं बदल जाए, हमें इसका ध्यान जरूर रखना चाहिए। काशी और मथुरा में जिस तरह से मामले चल रहे हैं, उस पर हमें ध्यान रखना होगा, वहां धार्मिक उन्माद हावी नहीं होने पाए।
महाजन: इसे सीधी तरह से राजनीतिक मुद्दे के तौर पर देखना चाहिए। इस तरह के बयान धार्मिक मुद्दे से ज्यादा राजनीतिक हैं। बड़ी विपक्षी पार्टियों के नेताओं के इस तरह के बयान आपको देखने को नहीं मिलेंगे। इस वक्त देश की राजनीति में जो भी नेता हिन्दू वोटों को अपने साथ रखना चाहता है, वो इस तरह के बयानों से बचेगा। क्या इस्लामिक देश बदले नहीं है? वे तेजी से बदले हैं और बदल रहे हैं। दूसरी तरफ वेटिकन सिर्फ टिकटों से 800 बिलियन डॉलर कमा लेता है।