राम मंदिर: भारतीय सभ्यता के नायक…
राम मंदिर: भारतीय सभ्यता के नायक…रामचरितमानस का अनुपम उपहार
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना 16वीं शताब्दी में की थी। माना जाता है कि उन्होंने 1574 और 1576 के बीच इस कृति का सृजन किया। हालांकि विभिन्न ऐतिहासिक विवरणों के हिसाब से इसका सटीक समय थोड़ा भिन्न हो सकता है, पर सनातन मान्यताओं को अविरल रूप से सींचती रामचरितमानस एक कालजयी और श्रद्धेय कृति बनी हुई है और निस्संदेह विश्व में सर्वाधिक पढ़ी और गाई जाने वाली महाकाव्यात्मक रचना भी।
जब भारतीय शासकों, जाटों और राजपूतों ने मुगल साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के लिए संघर्ष किया, तब सृजन तपस्या में लीन तुलसी एक अदृश्य नायक के रूप में उभर रहे थे। उनके महाकाव्य रामचरितमानस ने पूरे उपमहाद्वीप में हिंदुओं को एकजुट करने वाली शक्ति प्रदान की। पुरुषोत्तम राम को अपने महाकाव्य के केंद्रीय व्यक्ति और नायक के रूप में प्रस्तुत कर तुलसीदास ने हिंदू समाज को एक उभयनिष्ठ गुरुत्वाधार दिया, जिससे हिंदू समुदाय को मुगलों के दमनकारी शासन के विरुद्ध एकजुट होने की प्रेरणा मिली।
इस तरह से तुलसी के सृजन का प्रभाव साहित्य के क्षेत्र से परे चला गया। भगवान राम पर केंद्रित अपनी कथा के साथ रामचरितमानस एक शाश्वत महाकाव्य बन गया, जिसने पीढ़ी दर पीढ़ी सभी को प्रभावित किया। इसकी चौपाइयां लाखों हिंदू घरों में गूंजती हैं और जो हमें प्रेरणा और नैतिक मार्गदर्शन के स्रोत और सनातन सभ्यता के स्थायी मूल्यों का स्मरण कराती हैं।
तुलसीदास के प्रभाव की परिणति राम की पूजा के समकालीन पुनरुत्थान और अयोध्या में भव्य राम मंदिर की स्थापना में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। इस सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान के पुण्य बीज रामचरितमानस में हैं। तुलसी ने राम के प्रति अटूट श्रद्धा की नींव रखी। भारत में विगत 500 वर्षों से दबे स्वरों में और 30-40 वर्षों से सक्रिय रामजन्मभूमि आंदोलन और अब अयोध्या में भव्य मंदिर तथा रामलला की प्राण प्रतिष्ठा रामचरितमानस के अमिट आलोक का ही प्रतिफल है। सनातन के प्रति अटूट प्रतिबद्धता और मुगल अपसंस्कृति के प्रति अवज्ञा को देखते हुए गोस्वामी तुलसीदास को सच्चे अर्थों में ‘राष्ट्र जनक’ कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। रामचरितमानस के माध्यम से उन्होंने जो सांस्कृतिक कायाकल्प किया, वह उन्हें सनातन धर्म के इतिहास और विदेशी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष में एक महान व्यक्ति बनाता है। मुगल शासन की नीतियों से जो राष्ट्र अंधकार में चला गया था, तुलसी का रामचरितमानस उसे रोशनी दिखाता है, और रामचरितमानस के राम उसी भारत राष्ट्र के पुनरुत्थान के नायक हैं।
तुलसीदास की विरासत, जिसने सनातन इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा, एक अदम्य शक्ति के रूप में हमारे समाज में, हमारी लोक परंपरा में और हमारी ध्यान-धारणा में कायम है। यह वही विरासत है, जिसके नायक राम हैं और जिसने भारत में मुगल शासन का न केवल अंत किया, वरन उसे विलुप्त भी कर दिया। तुलसीदास का जीवन और उनकी अनमोल काव्य कृति भारतीय प्रासंगिकता को एक ऐसा आयाम दे गए, जिससे राष्ट्र की अस्मिता सदैव अक्षुण्ण बनी रहेगी।
अब जब इसरो द्वारा लांच किया गया ‘आदित्य एल-1’ सूर्य की भीतरी कक्षा में पहुंचकर सूर्य का रहस्योद्घाटन कर रहा है, तब हमें भारत की अद्वितीय ब्रह्मांड संबंधी उपलब्धियों को तुलसी के रामचरितमानस से भी जोड़कर देखना चाहिए। तुलसीदास पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का रूपक और काव्यात्मक वर्णन करते हैं। रामचरितमानस के ‘बालकांड’ में तुलसी हनुमान की भगवान राम के प्रति भक्ति और समर्पण की तुलना सूर्य के बीच की विशाल दूरी से करते हैं।
‘सुंदरकांड’ से उद्धृत श्लोक के अनुसार, हनुमान सीता की खोज में लंका पहुंचने के लिए समुद्र के ऊपर से विशाल छलांग लगाते हैं। तुलसीदास इस अवसर का उपयोग हनुमान की भक्ति की असाधारण प्रकृति को व्यक्त करने के लिए करते हैं : जब लगि आवत तब लगहु उठहि। कराहु परस्पर प्रमाण भला बुरा न कोय। सखा सुता केहि नवा सपदि गायवु। केसरी आजा सुलक्खि सरिरा न सोई।। यानी जब तक भगवान राम का अवतार पृथ्वी पर रहेगा, हनुमान बिना किसी बाधा या कठिनाई के, पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी की तरह, अंतर को पाटते रहेंगे। यह अद्भुत अभिव्यक्ति है, जिसके जरिये तुलसीदास भगवान राम के प्रति हनुमान की भक्ति और सेवा की असीम प्रकृति पर जोर देने की बात कहते हैं।
ध्यान रखना चाहिए कि सामाजिक-सांस्कृतिक पुनरुत्थान की प्रक्रियाएं धीमी होती हैं, ठीक प्रकृति के विकास की तरह, लेकिन उनमें कलात्मक ऊर्जाओं का पुंज हो, तो कभी न कभी वे सार्थक हो ही जाती हैं। राम की पुरुषोत्तमता के ऊर्जा पुंज से आलोकित अपने समकालीन समाज को रामचरितमानस का अनुपम उपहार देकर तुलसीदास भारतवर्ष के भविष्य की भी रचना कर गए हैं।