‘समृद्ध भारत’ की पहेली .. गरीब और मध्य वर्ग, जो देश की आबादी का 93 फीसदी हिस्सा हैं,

पड़ताल: ‘समृद्ध भारत’ की पहेली, जिसमें अपनी खुशियां तलाश रहे हैं देशवासी
यह समृद्ध भारत की सरकार है, जिसने देश को सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के विचार से बाहर निकाल लिया है।  लेकिन गरीब और मध्य वर्ग, जो देश की आबादी का 93 फीसदी हिस्सा हैं, देख रहे हैं और इंतजार कर रहे हैं।

Dazzle Of Affluent India social and economic democracy poor-middle class hope for happiness
सांकेतिक तस्वीर 

मीडिया पूरे उत्साह के साथ ‘समृद्ध भारत’ का चहुंओर गुणगान कर रहा है। लेकिन, ध्यान देने की बात है कि ‘समृद्ध भारत’ का यह विचार सब पर लागू नहीं होता। इसे ऐसे समझें कि जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के लिए कोई अर्थ नहीं रखती, उसी तरह, समृद्ध भारत का विचार भी कुछ चुनिंदा लोगों तक सीमित है, जिनकी वार्षिक आय रुपये 8,40,000 के करीब है। दूसरे शब्दों में ‘समृद्ध भारत’ का विचार, अपने देश का एआई है। मीडिया यह साबित करने पर तुला है कि ‘एआई’ (समृद्ध भारत) चमत्कारिक ढंग से विकसित हो रहा है, जिससे उपभोग का स्तर भी बढ़ रहा है। यह भी कि एआई इस साल तक (समय सीमा अनिश्चित है, क्योंकि गोलपोस्ट लगातार बदल रहा है) भारत को 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बना देगी।

मैं एआई के लिए खुश हूं। लेकिन यहां एक संकट है। गोल्डमैन सैश की रिपोर्ट के अनुसार 2026 तक एआई का आकार दस करोड़ या भारत की आबादी के अनकरीब सात फीसद के बराबर होगा। लेकिन सवाल यह है कि गोल्डमैन सैश को भारत की 93 फीसदी आबादी के बजाय एआई की चिंता क्यों हैं। दरअसल, गोल्डमैन सैश अमीर लोगों का बैंक है। यह दरअसल देश के समृद्ध लोग (माननीय अपवादों को छोड़कर) हैं, जो बचत, खर्च, फिजूलखर्च, निवेश और पैसे की बर्बादी करते हैं। जब यह ‘एआई’ वर्ग खरीदता और उपभोग करता है, तब भ्रम पैदा होता है कि सभी भारतीय खरीद रहे हैं। एआई पूरे देश के लिए प्रॉक्सी बन गया है, जबकि देश की 93 फीसदी बकाया आबादी सामान्य आय के साथ जिंदगी की जद्दोजहद करती है, जिनमें से कुछ की स्थिति तो वाकई दयनीय भी होती है।

आधे ऊपर के और आधे नीचे वाले
जरा आय को दर्शाने वाले आंकड़ों पर नजर डालें-
समृद्ध भारत: रुपये 8,40,000 प्रति वर्ष
औसत आय: रुपये 3,87,000
प्रति व्यक्ति एनएनआई: रुपये 1,70,000

जाहिर है कि देश का एक छोटा-सा हिस्सा है समृद्ध भारत। प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय (एनएनआई) अर्थहीन है, क्योंकि एआई राष्ट्रीय औसत को ऊंचा कर देता है। औसत आय ज्यादा प्रासंगिक आंकड़ा है, जिसके अनुसार देश के आधे लोगों (लगभग 71 करोड़) की आय रुपये 3,87,000 प्रति वर्ष या इससे कम यानी रुपये 32 हजार प्रति माह या उससे कम है। क्या आपने सोचा है कि सर्वाधिक नीचे वाले दस या बीस फीसदी लोग महीने में कितना कमाते हैं? मेरा उदार अनुमान है कि सबसे नीचे के दस फीसदी लोग महीने में छह हजार और उससे ऊपर के 11 से 20 फीसदी लोग 12,000 रुपये तक कमाते होंगे। ये लोग क्या खाते होंगे, कैसे रहते होंगे और कैसी स्वास्थ्य सुविधाएं इन्हें मिलती होंगी, यह सोचकर ही चिंता होती है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के बहुआयामी निर्धनता सूचकांक के मुताबिक देश की 16 फीसदी आबादी यानी कुल 22.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। नीति आयोग के अनुसार यह आंकड़ा 16.8 करोड़ यानी 11.28 फीसदी है।

भुला दिए गए गरीब
हम भारत में सात करोड़ लोगों की समृद्धि का जश्न मना रहे हैं, वहीं उनसे तीन गुना से भी ज्यादा भारतीयों की दयनीय स्थिति को हमें याद करना चाहिए। गरीबों की शिनाख्त करना कठिन नहीं है, जैसे:

  • मनरेगा में रजिस्टर्ड 15.4 करोड़ सक्रिय कामगार, जिन्हें साल में 100 दिन काम देने का वादा किया गया, लेकिन पिछले पांच साल से उन्हें औसतन 49-51 दिनों का ही काम मिल पा रहा है।
  • मुफ्त एलपीजी कनेक्शन्स के लाभार्थी, लेकिन जो साल में औसतन 3.7 सिलिंडर का ही खर्च वहन कर पाते हैं।
  • 10.47 करोड़ किसानों में से (हालांकि 15 नवंबर, 2023 तक यह आंकड़ा घटकर 8.12 करोड़ रह गया) वे किसान, जिनके पास एक-दो एकड़ जमीन है, या जो इतनी जमीन पर खेती करते हैं, जिन्हें किसान सम्मान के तहत सालाना 6,000 रुपये मिलते हैं।
  • ज्यादातर दैनिक मजदूर, जो कृषि मजदूर के तौर पर काम करते हैं।
  • सड़कों पर के लोग, जो फुटपाथों या पुलों के नीचे रहते और सोते हैं।
  • वृद्धा पेंशन पाने वाले ज्यादातर अकेली महिलाएं।
  • सीवर, नाले और सार्वजनिक शौचालय साफ करने वाले, पशुओं की खाल उतारने वाले और चप्पल-जूते बनाने या इनकी मरम्मत करने वाले लोग।

मध्यवर्ती आय से नीचे कमाने वाले 21 से 50 फीसदी लोग सबसे नीचे के 20 प्रतिशत लोगों से थोड़ी बेहतर स्थिति में हैं। वे भूखे नहीं रहते, उनके सिर पर छत भी है, लेकिन वे अनिश्चय के बीच जीवन बिताते हैं। ज्यादातर निजी नौकरियों में न तो रोजगार सुरक्षा है, न ही सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते हैं। उदाहरण के लिए, सरकार के ई-श्रम पोर्टल में रजिस्टर्ड 2.8 करोड़ घरेलू कामगार (वास्तविक संख्या इससे अधिक ही होगी) न्यूनतम मजदूरी से कम में काम करते हैं। सरकारी नौकरियों और सार्वजनिक उपक्रमों में काम करने वाले लोगों को छोड़कर बाकी तमाम रोजगार में लोग नौकरी जाने के डर में जीते हैं। वर्ष 2023 में अकेले टेक कंपनियों ने उच्च शिक्षित 2,60,000 कर्मचारियों की छंटनी की, तो 100 स्टार्ट अप्स ने 24,000 नौकरियां लीं।

चमक-दमक से भ्रमित
पांच सितारा होटल, रिजॉर्ट्स, चमचमाते मॉल्स, लक्जरी ब्रांड्स के स्टोर्स, मल्टीप्लेक्स सिनेमा,  निजी जेट, डेस्टिनेशन वेडिंग्स, लैंबोर्गिनी कारें आदि एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के संरक्षक हैं। एआई ऐसा उच्च जीवन स्तर बनाए रखने में इसलिए भी सक्षम है, क्योंकि वह देश की 60 फीसदी संपत्ति का मालिक है और राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत कमाती है। एआई की चमक-दमक ने भाजपा को इतना भ्रमित कर दिया है कि उसे हाशिये पर रह रहे 20 फीसदी लोगों की परवाह नहीं है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि उसे आरएसएस का मजबूत समर्थन है;  धनाढ्य कॉरपोरेट्स और इलेक्टोरल बांड्स से उसका खजाना भरा पड़ा है; और वह जानती है कि धर्म और उग्र राष्ट्रवाद का ताकतवर मिश्रण कैसे तैयार किया जाता है। यह सरकार सचमुच समृद्ध भारत की सरकार है। भारत को सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के विचार से खींचकर बाहर निकाल लिया गया है। विपक्षी पार्टियां और मीडिया भले ही चौकस न हों, लेकिन गरीब और मध्य वर्ग-जो देश की आबादी का 93 फीसदी हिस्सा हैं-देख रहे हैं और इंतजार कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *