7 रुपए किलो वाला आलू 17 का क्यों मिलता है … डीजल 1 रुपया महंगा होने से ये 21 तक कैसे पहुंच जाता है, समझें पूरा गणित

रूस और यूक्रेन की जंग से क्रूड ऑयल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर बने हुए हैं। कच्चे तेल की कीमतों का सीधा असर पेट्रोल-डीजल के महंगे-सस्ते होने पर पड़ता है। भारत में चुनावी माहौल की वजह से साढ़े चार महीने से पेट्रोल-डीजल की कीमतें नहीं बढी थीं।

अब तेल कंपनियों ने थोक में डीजल की खरीदी पर 28 रुपए प्रति लीटर तक की बढ़ोतरी की है। आम लोगों के लिए मंगलवार के बाद बुधवार को भी लगातार दूसरे डीजल और पेट्रोल में 80-80 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि तेल के दाम 20 रुपए तक बढ़ सकते हैं।

डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ने का असर रोजमर्रा की दूसरी चीजों के अलावा सीधे घर की रसोई पर पड़ता है। आलू ज्यादातर घरों में इस्तेमाल होने वाली सब्जी है। अगर डीजल-पेट्रोल के दाम बिल्कुल भी नहीं बढ़े तो भी आलू आपकी थाली में आने तक दोगुने से ज्यादा महंगा हो जाता है।

आगे बढ़ने से पहले अपनी राय हमें बताते जाइए…

खेत से थाली तक आते-आते आलू पर 10 रुपए हो जाते हैं खर्च
सुधीश मिश्रा फर्रुखाबाद जिले के सियानी गांव में पिछले 30 साल से आलू की खेती करते हैं। एक बीघा जमीन पर एक बार में करीब 2 से 2.5 क्विंटल आलू पैदा होता है। इस आलू को उगाने से लेकर उसे मंडी कर पहुंचने में करीब 8 हजार रुपए का खर्च आ जाता है। इसमें खेत तैयार करने, बीज बोने, ट्रैक्टर, पैकिंग और मंडी तक ट्रांसपोर्ट का खर्च शामिल है। इस तरह 1 किलो आलू उगाने पर किसान की लागत करीब 4 रुपए पड़ती है। इसे किसान इस समय 6 से 7 रुपए किलो के हिसाब से बेच रहे हैं।

डीजल में 1 रुपया बढ़ने से 4 लेवल पर बढ़ता है रेट

मान लीजिए, डीजल के दाम में 1 रुपया प्रति लीटर का इजाफा हुआ तो इससे आपके किचन में आने वाले आलू की कीमत तुरंत मोटे तौर पर चार लेवल पर बढ़ती है। पहली- खेत से छोटी मंडी तक जाने में और छोटी मंडी से बड़ी मंडी तक जाने में । दूसरा- कोल्ड स्टोरेज में आलू को रखने पर। तीसरा- आलू की बुवाई और खुदाई में लगने वाली कीमत पर। चौथा– सब्जियों की सफाई या धुलाई में।

आइए, समझते हैं कि 1 रुपया प्रति लीटर महंगा डीजल कैसे और कितना बदलता है आलू का रेट…

पहला- तेल के दाम बढ़ने पर बढ़ता है ट्रांसपोर्ट का खर्च
जयपुर के ट्रांसपोर्टर जीतेंद्र बताते हैं कि वह 50 क्विंटल आलू को फर्रुखाबाद मंडी से जयपुर मंडी तक ले जाने के लिए अभी 20 हजार रुपये का खर्च लेते हैं। इसमें रास्ते में पड़ने वाले टोल और डीजल दोनों का खर्चा शामिल होता है। इस हिसाब से एक किलोग्राम आलू के ट्रांसपोर्ट पर करीब 4 रुपये खर्चा आता है। इस बीच अगर मंडी में ट्रक उतारने की जगह नहीं मिली तो कुछ दिन इंतजार भी करना पड़ता है। जीतेंद्र बताते हैं कि अगर डीजल के रेट में एक रुपए भी बढ़ता है तो एक चक्कर में करीब 2000 रुपए किराया बढ़ जाता है।

डीजल में 1 रुपए रेट बढ़ने से 475 किमी की दूरी में 1 किलो आलू का खर्च हो गया 4.40 रुपए। जयपुर में रीटेल में सब्जी बेचने वाले अशोक बताते हैं कि वह जयपुर की मुहाना मंडी से 10 किलोमीटर दूर अपनी दुकान पर सब्जी लाने के लिए उन्हें 50 किलोग्राम की बोरी का 25 रुपया देना पड़ता है। यानी एक किलोग्राम का करीब 50 पैसा किराया जाता है। जब डीजल का दाम बढ़ता है तो उन्हें एक चक्कर का 30 रुपया किराया देना पड़ता है। जिस हिसाब से 1 किलो आलू का मार्केट तक किराया हुआ 60 पैसे।

दूसरा- कोल्ड स्टोरेज का बढ़ जाता है किराया
फर्रुखाबाद के अंदाज कोल्ड स्टोरेज संचालक मनोज चतुर्वेदी बताते हैं कि जैस-जैसे डीजल का दाम बढ़ता है स्टोरेज का किराया भी बढ़ता है। क्योंकि कोल्ड स्टोरेज में 24 घंटे बिजली सप्लाई चालू रखनी होती है। कई जगहों पर बिजली जाती रहती है। ऐसे में जनरेटर चलाकर बिजली सप्लाई चालू रखनी पड़ती है। डीजल के रेट बढ़ने पर एक पैकेट आलू को स्टोर करने के किराए में 5 से 10 रुपये बढ़ाए जाते हैं। यानी एक पैकेट को स्टोर करने का रेट हुए 135 रुपए।

आलू को स्टोर करने में 2.5 रुपए तो प्याज को स्टोर करने में 5 रुपए किलो का खर्च

एग्रीकल्चर कंपनी एएस एग्री एंड एक्वा एलएलपी मुंबई के नॉर्थ रीजन के अध्यक्ष व कृषि में शोधकर्ता डॉ जीत सिंह यादव बताते हैं कि कोल्ड स्टोरेज में अलग-अलग सब्जियों को 1 से 12 महीने तक के लिए रखा जाता है। फल और सब्जियों की परफेक्ट स्टोरेज के लिए उन्हें – 40 डिग्री से लेकर 10 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखना होता है। सोनीपत में कोल्ड स्टोरेज संचालक अजीत डांग बताते हैं कि आलू फरवरी और मार्च के महीने में कोल्ड स्टोर में आते हैं और इनको अक्टूबर तक 1 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर स्टोर पर रखना होता है। एक सीजन तक 50 किलोग्राम आलू को स्टोर करने के लिए 130 रुपए का खर्च आता है। प्याज मई महीने के अंत तक आता है और यह भी सितंबर या अक्टूबर तक जीरो डिग्री सेल्सियस में स्टोर रहता है। एक सीजन तक 100 किलो प्याज को स्टोर करने में 50 रुपए का खर्च आता है। बाकी सब्जियों के अलग-अलग बॉक्स बनाकर स्टोर किया जाता है। इसके लिए 3 से 4 रुपए प्रति किलोग्राम का खर्च आता है।

ये तो हुई बात उस आलू की जो मंडी में है। डीजल के रेट बढ़ने से आलू को उगाने में लगने वाली लागत में भी अंतर आता है। आइए, समझते हैं कैसे.

तीसरी- डीजल के रेट बढ़ने से खेत में ही सब्जी हो जाती है महंगी
हमने इस बारे में दूसरे किसान से बात की। इस बार हमारे किसान थे दिल्ली के तिग्गीपुर गांव में आलू उगाने वाले पप्पन। वह बताते हैं कि डीजल महंगा होने से खेत की जुताई और खुदाई महंगी हो जाती है। एक एकड़‌ के खेत में एक बार जुताई में 600 रुपए का खर्च आता है। पूरी जुताई में करीब 2500 रुपए खर्च होते हैं। डीजल की कीमत 1 रुपया बढ़ने पर एक बार की जुताई में 50 से 100 रुपए और पूरी जुताई में 400 रुपए तक बढ़ जाते हैं। इसके बाद आलू की खुदाई में एक एकड़ के खेत में कंबाइन हार्वेस्टर मशीन चलाने के लिए भी 1500 रुपए देने पड़ते हैं। डीजल का रेट बढ़ता है तो हार्वेस्टर मशीन के किराए में 500 रुपए तक बढ़ जाते हैं। यानी पहले सब्जी उगाने में अगर उनकी लागत 3 से 4 रुपए पड़ रही थी तो वह बढ़कर 5 से 6 रुपए हो जाती है।

चौथा- सब्जी की धुलाई भी बढ़ाती है भाव
दिल्ली की गाजीपुर मंडी के सचिव प्रशांत तंवर बताते हैं कि सबसे पहले करीबी मंडी में सब्जियां आती हैं। यहां से कुछ सब्जियां बड़ी मंडियों में पहुंचती हैं। डीजल के दाम बढ़ने से मंडी में सब्जियों को साफ करने का खर्च भी बढ़ जाता है। जमीन के नीचे उगने वाली धुलाई का सीधा कनेक्शन डीजल से चलने वाली मोटर से है। दिल्ली के पल्ला गांव में मूली की खेती करने वाले राहुल तंवर बताते हैं कि वह बिना धुली मूली 2 रुपए प्रति किलो के भाव से बिकती है, लेकिन इसे साफ कराना पड़े तो 3.5 रुपए प्रति किलोग्राम का रेट लगता है। डीजल का दाम बढ़ने पर मोटर का खर्च बढ़ जाता है। सब्जी की धुलाई के खर्च में करीब 1 से 1.5 रुपया बढ़ जाता है। यह हर हर सब्जी के हिसाब से अलग रेट होते हैं। कुछ सब्जियां ज्यादा देर धोने पर साफ होती हैं तो किसी में कम समय के लिए ही मोटर चलानी पड़ती है।

एक रुपया डीजल बढ़ने पर 1 किलो आलू में करीब 3.50 रुपए बढ़ेंगे। इसे ऐसे समझिए-

  • आलू को खेत से मंडी तक आने में 50 पैसे खर्च बढ़ जाता है। इसी तरह एक से दूसरी मंडी और मंडी से बाजार तक जाने पर भी ट्रांसपोर्ट का चार्ज बढ़ा।
  • कोल्ड स्टोर में 25 पैसे प्रति किलो सब्जी रखना महंगा हो जाता है।
  • 2 रुपए सब्जी उगाने में बढ़े
  • 1.5 रुपए धुलाई में बढ़े

यानी 17 रुपए किलो मिल रहा आलू आपको 20-21 रुपए किलो मिलेगा।

पिछले साल से कम कीमत में बिक रहा आलू

फर्रुखाबाद के किसान सुधीर मिश्रा बताते हैं पिछले साल उन्होंने 50 किलो आलू की बोरी 400 से 500 रुपए तक में बेची थी, जो इस साल मुश्किल से 300 से 350 रुपए में बिक रहा है। यानी पिछले साल जो आलू 8-10 रुपए किलो का खरीदा गया था, वो इस बार 6-8 रुपए किलो खरीदा जा रहा है। अक्टूबर 2020 में जब देशभर में कोरोना के कारण मंडियां प्रभावित हुई थीं, तब व्यापारियों ने कोल्ड स्टोर के आलू को 1500 रुपए प्रति कुंतल भी बेचा था। फर्रुखाबाद मंडी के आढ़ती राजू कुरावली बताते हैं कि अभी मंडी में आलू का रेट 600 से लेकर 1000 रुपए प्रति कुंतल है। इनमें तरह-तरह के आकार और क्वालिटी के आलू शामिल हैं। राजू बताते हैं कि फर्रुखाबाद में होने वाला आलू छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की मंडियों तक जाता है। जयपुर मंडी में इस सीजन में 10 से 12 रुपये प्रति किलो के भाव पर थोक में आलू खरीदा जा रहा है।

एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी आजादपुर, पूरे उत्तर भारत में जाती हैं सब्जियां

दिल्ली स्थित आजादपुर मंडी सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि एशिया की सबसे बड़ी सब्जी-फल मंडी है। आजादपुर मंडी के चेयरमैन आदिल खान ने बताया कि आजादपुर सब्जी मंडी में एक दिन में 50 हजार से 1 लाख किसान और खरीदार आते हैं। यहां साढ़े तीन हजार से ज्यादा आढ़ती हैं जो सब्जी और फल खरीदते-बेचते हैं। रोज यहां किसानों के 4 से 5 हजार ट्रकों में फल-सब्जियां आती हैं। इस समय टमाटर हिमाचल और यूपी के वाराणसी, बाराबंकी, सीतापुर, उन्नाव, कानपुर, फैजाबाद से आ रहा है। वहीं, प्याज नासिक, राजस्थान, हरियाणा, इंदौर और पंजाब से आ रहा है। आलू चंबल, यूपी और हरियाणा से आ रहा है। आजादपुर मंडी से सब्जियां उत्तर भारत के अलग-अलग इलाकों में जाती हैं।

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