संविधान पर निष्ठा और बीजेपी की मंशा ?

 संविधान पर निष्ठा और बीजेपी की मंशा, जानिए क्यों बार-बार उठता है सवाल?
लोकसभा चुनाव के लिए तारीख का ऐलान कभी हो सकता है. प्रधानमंत्री मोदी समेत बीजेपी के तमाम नेता हर एक जनसभा में ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा लगा रहे हैं. आखिर क्या है 400 सीटें जीतने की पीछे की मंशा?

कर्नाटक से बीजेपी सांसद अनंत कुमार हेगड़े अपने विवादित बयानों की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने ‘संविधान में बदलाव’ की बात को दोहराया है. हेगड़े ने कहा है कि संविधान बदलने के लिए 400 सीटें जीतना जरूरी है.

अनंत हेगड़े के बयान के बाद से कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष बीजेपी पर हमलावर है. आरोप लगाया जा रहा है कि संविधान को ‘फिर से लिखना और नष्ट करना’ बीजेपी और आरएसएस का एजेंडा है. भारी बवाल के बाद बीजेपी ने इस बयान को अनंत हेगड़े का ‘निजी विचार’ बताया है और उनसे स्पष्टीकरण भी मांगा है.

आखिर क्या है अनंत हेगड़े के बयान के मायने, हेगड़े ने पहले कब-कब संविधान बदलने की बात कही, क्या बीजेपी के दूसरे नेताओं ने भी कभी ऐसी बात कही है और राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार मौजूदा संविधान से बीजेपी को कहां-कहां मतभेद है…. ये सबकुछ इस स्पेशल स्टोरी में समझिए.

पहले पढ़िए अनंत हेगड़े पूरा बयान
अनंत हेगड़े कर्नाटक से छह बार लोकसभा सदस्य रहे हैं. सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में उन्हें संविधान पर बात करते सुना जा सकता है. 10 मार्च 2024 रविवार को अनंत हेगड़े ने कहा, हमारा नारा है अबकी बार 400 पार.

लोकसभा में हमारे पास दो-तिहाई बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत नहीं है. संविधान में बदलाव के लिए लोकसभा-राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत के साथ ही दो-तिहाई राज्यों में भी जीत हासिल करना जरूरी है. 

अनंत हेगड़े ने आगे कहा, ‘प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने के लिए बीजेपी संविधान में बदलाव होगा. कांग्रेस ने संविधान में अनावश्यक चीजों को जोड़ा है. खास तौर से ऐसे कानून बनाए जिनका उद्देश्य हिंदू समाज को दबाना था.

संविधान को मूल रूप से विकृत कर दिया गया है. अगर हमें संविधान में ये सबकुछ बदलना है, तो दो-तिहाई राज्यों में बहुमत चाहिए. वर्तमान में बहुमत के साथ ये संभव नहीं है.’ हाल ही में कर्नाटक के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं थी, जबकि बीजेपी के खाते में सिर्फ एक सीट गई थी.

संविधान पर निष्ठा और बीजेपी की मंशा, जानिए क्यों बार-बार उठता है सवाल?

सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) का उदाहरण देते हुए अनंत हेगड़े ने कहा कि जैसे लोकसभा और राज्यसभा से नागरिकता कानून पारित हो गया. लेकिन कई राज्य सरकारों ने इस कानून को मंजूरी नहीं दी और इसलिए इसे लागू नहीं किया जा सका. अब केंद्र सरकार कानून में एक संशोधन के जरिए सीएए लागू करने की योजना बना रही है.

क्या हेगड़े ने पहले भी संविधान बदलने की बात कही?
ये पहली बार नहीं है जब अनंत हेगड़े ने संविधान ने बदलने की जरूरत को समझाया. 2019 लोकसभा चुनाव और कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले दिसंबर 2017 में भी अनंत हेगड़े ने ऐसा ही बयान दिया था.

कर्नाटक के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, ‘संविधान को कभी-कभी बदलने की जरूरत होती है और हम इसीलिए आए हैं. जो लोग खुद को धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील बताते हैं, उन्हें अपनी जड़े और पूर्वजों की कोई जानकारी नहीं है.”

बाद में अनंत हेगड़े को अपने बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी थी. लोकसभा में हेगड़े ने कहा था कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, लेकिन अगर उनके बयान से किसी को ठेस पहुंची है तो वह माफी मांगते हैं. उनके माफी मांगने से पहले राहल गांधी और समूचे विपक्ष ने संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन किया था.

बीजेपी के किस-किस नेता ने संविधान बदलने की बात कही?
अनंत हेगड़े के संविधान बदलने वाले बयान पर भले ही बीजेपी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजा है. लेकिन अनंत हेगड़े अकेले नहीं हैं ये बात कहने वाले. इससे पहले बीजेपी और आरएसएस से जुड़े तमाम नेता संविधान में बदलाव की बात कह चुके हैं.

साल 2023 में प्रधानमंत्री की इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल के चेयरमैन बिबेक देबरॉय का अखबार में लेख पब्लिश हुआ था. इस लेख का टाइटल था- ‘देयर इज केस फॉर वी द पीपल टु एंब्रेस अ न्यू कॉन्स्टिट्यूशन’. इस लेख की आखिरी लाइन थी- हम लोगों को एक नया संविधान बनाना होगा. 

बिबेक देबरॉय ने अपने लेख में कहा था,  ‘हमने 1950 में संविधान अपनाया था, वह अब वैसा ही नहीं है. इसमें संशोधन तो किए गए, लेकिन ये संशोधन भी हमेशा अच्छे काम के लिए ही नहीं हुए. 1973 से हमें बताया जाता रहा है कि संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर नहीं बदला जा सकता. जहां तक मेरी समझ है 1973 का जजमेंट संविधान के संशोधन पर लागू होता है, न कि नए संविधान पर. हमारे संविधान में काफी कुछ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 पर आधारित है. हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि साल 2047 में भारत को किस तरह के संविधान की जरूरत है.’

यहां तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी भारतीय संविधान में बदलाव की बात कही है. हैदराबाद के एक कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख ने कहा था- संविधान के बहुत सारे हिस्से विदेशी सोच पर आधारित हैं और इसे बदले जाने की आवश्यकता है. आजादी के 70 साल बाद इस पर गौर किया जाना चाहिए.
 
यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस और बीजेपी के राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई भी संविधान के मूल ढांचे पर सवाल उठा चुके हैं. सदन में दिल्ली सर्विस बिल पर बहस के दौरान रंजन गोगोई ने कहा था- हो सकता है कि कानून मेरी पसंद का न हो लेकिन इससे ये मनमाना नहीं हो जाता. क्या इससे संविधान की मूल विशेषताओं का उल्लंघन हो रहा है?

गोगोई ने आगे कहा था, संविधान के मूल ढांचे पर मुझे कुछ कहना है. पूर्व सॉलिसीटर जनरल अंध्यअरिजुना ने केशवानंद भारती केस पर एक किताब लिखी थी. ये किताब पढ़ने के बाद मुझे लगा कि संविधान के मूल ढांचे पर बहस हो सकती है. ये बहस का मुद्दा है और इसका कानूनी आधार है.

तब रंजन गोगोई के बयान पर काफी विवाद हुआ था. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि ये संविधान को खत्म करने के लिए बीजेपी की चाल है और वह एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश के जरिए ऐसा कर रही है. 

अनंत हेगड़े के बयान के मायने
बीजेपी सांसद अनंत हेगड़े के बयान के मायने समझने के लिए एबीपी न्यूज ने राजनीतिक विश्लेषक अशोक वानखेड़े से बात की. अशोक वानखेड़े का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी जिस संस्था से बाहर निकली है वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संविधान को मानता ही नहीं था. उनका एजेंडा साफ है.

‘संघसेवकों की कई किताबों में भी उन्होंने ये जिक्र किया है. लेकिन समय के साथ-साथ उन्हें संविधान को मानना पड़ गया. क्योंकि 65 साल तक देश में संघ के विपरीत विचारधारा कांग्रेस की सरकारें थी.  जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनीं तो उस सरकार को भी पूरी तरह से संघ की सरकार नहीं माना गया था. लेकिन 2014 में एक कट्टर हिंदुत्व की सरकार बनी.’

राजनीतिक विश्लेषक अशोक वानखेड़े ने आगे कहा, अनंत हेगड़े से पहले प्रधानमंत्री के वित्तीय सलाहकार ने एक बार कहा था कि अब संविधान पुराना हो गया है, इस संविधान के कोई मायने नहीं है, संविधान बदलना पड़ेगा.. तो ये बातें बीच-बीच में बीजेपी टेस्ट करने के लिए करती है. अगर रिएक्शन सही आता है तो बाकी नेता भी समर्थन करते हैं, रिएक्शन निगेटिव आया तो मानने से इनकार कर देते हैं.

वानखेड़े के मुताबिक- ‘सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि आप समय-समय पर संविधान में संशोधन कर सकते हैं लेकिन उसका बेसिक ढांचा नहीं बदला जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के खिलाफ रंजन गोगोई रिटायर होने के बाद जब राज्यसभा चले गए तब उन्होंने कहा कि बेसिक ढांचा जैसी कोई चीज नहीं होती. मतलब कहीं से कहीं से संविधान बदलने की बात आती रहती है.’

संविधान बदला तो क्या बदल जाएगा?
इस सवाल का जवाब देते हुए अशोक वानखेड़े कहते हैं कि लोगों के मन में ऐसे कई संदेह हैं. जैसे संविधान बदलेगा तो क्या आरक्षण खत्म होगा. संविधान बदला तो क्या चुनाव नीतियां बदल जाएंगी. क्या हम चाइना और रशिया के मॉडल पर चले जाएंगे. क्या फिर सरकार का कार्यकाल 5 साल से बढ़कर 10 साल हो जाएगा या क्या ऐसा कुछ सिस्टम लाया जाएगा जिससे बीजेपी के अलावा कोई दल ही नहीं रहेगा. इस पर फिलहाल अभी कहा नहीं जा सकता है.

क्या मौजूदा संविधान हिंदुओं को दबाता है?
बीजेपी सांसद अनंत हेगड़े ने अपने बयान में ये भी कहा है कि ऐसे कानून बनाए जिनका उद्देश्य हिंदू समाज को दबाना था. इस पर अशोक वानखेड़े कहते हैं कि ये संविधान बाबा साहेब अंबेडकर की अध्यक्षता में बना है. भारत का संविधान दुनिया के सबसे अच्छे संविधान में आता है.

‘दुनिया के टॉप संविधानों की स्टडी करके ये बनाया गया था. ये 1935 का ब्रिटिश पार्लियामेंट का कोई एक्ट नहीं है. फिर समय के साथ बदलाव भी हुए हैं. दुनिया के कई देशों में महिलाओं को वोटिंग का अधिकार नहीं था, लेकिन हमारे संविधान में दिया गया था. संविधान में ऐसा कोई कानून नहीं है जिसमें हिंदुओं का दबाने का प्रावधान किया गया हो.’

संविधान से बीजेपी को कहां-कहां मतभेद है?
इस पर राजनीतिक विश्लेषक अशोक वानखेड़े ने कहा, बीजेपी भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहती है. सेक्युलर शब्द से उन्हें एलर्जी है. भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना ही उनका प्रमुख एजेंडा है. अगर प्रस्तावना से सेक्युलर शब्द हटा दिया तो पूरा संविधान ही बदल जाएगा. संविधान का मूल ढांचा ही खत्म हो जाएगा. अल्पसंख्यक और पिछड़ों के सभी अधिकार छिन जाएंगे. हम मानते हैं कि समय-समय संविधान में संशोधन होना चाहिए, लेकिन उसका आधार नहीं बदला जाना चाहिए. 

क्या है सेक्युलर शब्द का मतलब
‘सेक्युलर’ शब्द लैटिन शब्द ‘सेकुलम’ से आया है, जिसका अर्थ है ‘दुनियावी’. सेक्युलरिज्म एक ऐसी विचारधारा है जो धर्म और राज्य को अलग रखती है. सेक्युलर राज्य में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं, चाहे उनकी धार्मिक मान्यताएं कुछ भी हों. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. भारतीय संविधान में सभी देशवासियों को धर्मनिरपेक्षता का अधिकार प्रदान किया गया है. इसका मतलब है कि भारत में किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं है और सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार किया जाता है.

संविधान की प्रस्तावना में कब जोड़ा गया ‘सेक्युलर’ शब्द
भारतीय संविधान बनने के समय 1948 में संविधान सभा में इस बात पर काफी बहस हो रही थी कि संविधान कैसा हो. उसी दौरान प्रोफेसर केटी शाह ने सुझाव दिया कि ‘धर्मनिरपेक्ष, संघीय, समाजवादी’ शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि, बहस के बाद ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को प्रस्तावना में शामिल नहीं किया गया. हालांकि बाकी सदस्य भी धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर सहमत थे.

फिर करीब 30 साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने संविधान के 42वें संशोधन के दौरान ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को संविधान में जोड़ दिया. ये थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन असल में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, जिन्हें हम धर्मनिरपेक्षता का बड़ा हिमायती मानते हैं, संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल करने का विरोध कर रहे थे. उसी समय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष बीआर आंबेडकर भी इस शब्द को शामिल करने के पक्ष में नहीं थे.

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