आखिर कैसे आर्यवर्त का नाम पड़ा भारत !
जानना जरूरी है: आखिर कैसे आर्यवर्त का नाम पड़ा भारत, जानें संस्कृति के पन्नों से
ऋषि विश्वामित्र जैसे ही नदी से निकले, उनकी दृष्टि मेनका पर पड़ी। उसे देखते ही विश्वामित्र सम्मोहित हो गए। उन्होंने बहुत प्रयास किया, परंतु विश्वामित्र का मन मेनका के सौंदर्य-पाश में उलझता चला गया।
महर्षि विश्वामित्र दिव्य शक्तियां अर्जित करने के उद्देश्य से कठोर तपस्या कर रहे थे। उनके तप का प्रभाव धीरे-धीर देवलोक तक जा पहुंचा। देवराज इंद्र का सिंहासन डगमगाने लगा। यद्यपि विश्वामित्र के तप करने का उद्देश्य कुछ और था, तथापि इंद्र को यही लगा कि विश्वामित्र देवलोक का शासन प्राप्त करना चाहते हैं। अतः उनकी तपस्या को भंग करना अनिवार्य हो गया। इंद्र ने मेनका नाम की एक अत्यंत सुंदर अप्सरा को चुना और उसे विश्वामित्र की तपस्या भंग करने भेजा।
मेनका तपस्थली पर पहुंची। उस समय विश्वामित्र नदी में स्नान कर रहे थे। ऋषि जैसे ही नदी से बाहर निकले, उनकी दृष्टि कामुक एवं मनमोहक मेनका पर पड़ी। उसे देखते ही विश्वामित्र जैसे सम्मोहित हो गए। उन्होंने मेनका की ओर न देखने का बहुत प्रयास किया, परंतु विश्वामित्र का ऋषि-मन मेनका के सौंदर्य-पाश में उलझता चला गया। मेनका की मादक सुगंध ने ऋषि की बुद्धि को अस्थिर कर दिया था। कठोर तपश्चर्या से उत्पन्न उनके तेजस्वी आभा-मंडल की चमक भी मेनका के आकर्षण के सामने फीकी पड़ गई। सहसा मेनका आगे बढ़ी और उसने विश्वामित्र का हाथ पकड़ लिया। तपस्या भंग हो चुकी थी। परंतु कथा यहां पूर्ण नहीं हुई!
मेनका के आकर्षण में उलझने से विश्वामित्र की हानि हुई, तो मेनका ने भी इसका मूल्य चुकाया। मेनका को विश्वामित्र से सचमुच ही प्रेम हो गया। विश्वामित्र ने मेनका के सामने विवाह का प्रस्ताव तक रख दिया। विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के बाद मेनका को देवलोक लौट जाना चाहिए था, परंतु उसे डर था कि विश्वामित्र क्रोधित हो गए, तो उसे शाप दे देंगे। इसलिए उसने विश्वामित्र से विवाह के लिए हामी भर दी। ऋषि के कोप से बचने और उन्हें पुनः तपस्या से रोकने का यही एक मार्ग था। विश्वामित्र और मेनका ने विवाह कर लिया। अब ऋषि विश्वामित्र संन्यासी से गृहस्थ बन गए और मेनका अप्सरा से गृहिणी।
कुछ समय बाद मेनका गर्भवती हुई और उसने एक अत्यंत सुंदर कन्या को जन्म दिया। विश्वामित्र ने कन्या का नाम ‘शकुंतला’ रखा। इस बीच मेनका भूल ही गई कि वह एक अप्सरा है। परंतु देवराज इंद्र को यह बात याद थी। एक दिन इंद्र अवसर देखकर मेनका के पास आए और बोले, ‘मेनका! मैंने तुम्हें जिस काम के लिए भेजा था, वह कब का पूरा हो गया ! अब तुम्हें तुरंत स्वर्ग लौट आना चाहिए।’ अप्सरा मेनका अब गृहिणी बन चुकी थी। वह बोली, ‘देवराज, मेरा अपना परिवार है। मैं यदि पति और पुत्री को छोड़कर देवलोक लौट गई, तो उन दोनों का क्या होगा?’
यह सुनकर इंद्र को क्रोध आ गया। वह गरजे, ‘अनर्गल बातें मत करो, मेनका ! तुम भूल कैसे गई कि तुम अप्सरा हो और अप्सराओं के परिवार नहीं होते। तुम्हारा कार्य केवल देवताओं का मनोरंजन करना है! यदि तुम देवलोक नहीं लौटीं, तो मैं तुम्हें शाप देकर शिला में बदल दूंगा। किसी भी स्थिति में तुम परिवार नहीं बसा सकती।’
मेनका अपने परिवार को नहीं छोड़ना चाहती थी, लेकिन इंद्र ने उसके लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा था। वह जानती थी कि उसके जाने से विश्वामित्र और शकुंतला, दोनों दुखी होंगे। उसने विश्वामित्र को सारी बात कह दी। विश्वामित्र को दुख तो बहुत हुआ, किंतु उन्होंने मेनका को जाने से नहीं रोका। आखिरकार, मेनका को देवलोक लौटना ही पड़ा। मेनका के जाने के बाद विश्वामित्र ने फिर से तपस्या का संकल्प ले लिया। वह अपनी पुत्री शकुंतला को ऋषि कण्व के संरक्षण में छोड़कर तपस्या करने चले गए। कालांतर में, शकुंतला का सम्राट दुष्यंत से विवाह हुआ और उन्होंने एक यशस्वी बालक को जन्म दिया, जो बड़ा होकर राजा भरत के नाम से विख्यात हुआ। उसी के नाम से हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा।