शस्त्रागार
भाजपा ने अपना पूरा शस्त्रागार खोल दिया है। असंवैधानिक चुनावी बॉन्ड के जरिये एकत्रित किया गया अकूत पैसा पहले ही उसके पास है। इन इलेक्ट्रॉनिक बॉन्ड की सच्चाई, जिसे मैंने वैध रिश्वतखोरी का नाम दिया था, अब सबके सामने आ चुकी है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां तलाशी/ गिरफ्तारी हुई, बॉन्ड खरीदे और दान किए गए, बॉन्ड भुनाए गए और या तो मामलों को रफा-दफा कर दिया गया या फिर लाइसेंस या कॉन्ट्रैक्ट के रूप में अनुचित फायदा पहुंचाया गया। तारीखें कहानी बयां करती हैं। बिंदुओं को जोड़ने पर पूरी रेखा साफ दिखने लगती है। अखबारों, टेलीविजन और बिल बोर्डों पर विज्ञापनों के जरिये युद्ध के लिए संसाधनों का विकास किया गया। भाजपा एक असमान मैदान पर खेल रही है। अब ऑपरेशन कमल की बारी है, जो भाजपा की खास कवायद है। दल-बदल को प्रोत्साहित करना और दलबदलुओं को टिकट देना इसके आधार हैं। मुझे बताया गया कि भाजपा चार सौ से ज्यादा उम्मीदवारों को नामांकित करेगी, जिसमें से पचास के करीब दलबदलू होंगे।
राज्य सरकारों को अस्थिर करने का खेल
गिरफ्तारी और नजरबंदी एक खतरनाक हथियार बन गया है। निशाने पर दो मुख्यमंत्री, एक उपमुख्यमंत्री, कई राज्य मंत्री, मुख्यमंत्री का परिवार और विपक्षी राजनीतिक दलों के बहुत से नेता हैं। वर्तमानमें संसद के दोनों सदनों में भाजपा के 383 सांसद, 1481 विधायक और 163 विधाने परिषद के सदस्य हैं। इनमें पूर्व गैर-भाजपाई नेता भी शामिल हैं, जो विशाल लॉन्ड्री मशीन में धुल कर बेदाग हो चुके हैं। मुझे नहीं पता कि इन 2027 व्यक्तियों में किसी के भी खिलाफ कोई जांच चल रही है या नहीं और यदि चल रही है, तो वह निश्चित ही अपवाद होने के साथ ही अच्छी तरह से संरक्षित रहस्य भी होगा। राज्य सरकारों के कामकाज को बाधित करने के लिए राज्यपालों का इस्तेमाल किया जा रहा है। तमिलनाडु के राज्यपाल ने राज्य सरकार द्वारा तैयार भाषण को विधानसभा में पढ़ने से इन्कार कर दिया। एक दूसरे अवसर पर वह विधानसभा की कार्यवाही से बहिर्गमन कर गए। राज्य सरकार की सलाह के बावजूद उन्होंने एक व्यक्ति को मंत्री पद की शपथ दिलाने से इन्कार कर दिया। केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों की मुख्यमंत्रियों के साथ नोंक-झोंक होती रहती है। तेलंगाना की राज्यपाल (पुदुचेरी की सह- उपराज्यपाल) व्यवहारिक रूप से महीनों तक तमिलनाडु में रहीं और ठीक उस दिन जब लोकसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा हुई, बगैर समय गंवाएं अपने पद से इस्तीफा देते हुए भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का इरादा दिखाया। राज्यपाल विधेयकों पर सहमति देने से इन्कार कर रहे हैं या अनिश्चित काल के लिए रोक रहे हैं। हालांकि भाजपा शासित राज्यों में ऐसे असांविधानिक कृत्य नहीं होते।
संविधान से धोखा
अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों को मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों के आदेशों का पालन न करने के आदेश दिए जाने से दिल्ली की सरकार को पंगु बना दिया गया। केरल और पश्चिम बंगाल जैसी राज्य सरकारों को किसी न किसी बहाने से धनराशि रोक दी गई है। किसी न किसी शर्त का उल्लंघन का हवाला देते हुए गैर-भाजपा शासित राज्यों की उधार लेने की सीमा में कटौती की गई है। अस्पष्ट आधारों पर तमिलनाडु को आपदा राहत सहायता देने से इन्कार कर दिया गया है। केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य के पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति में संघ लोक सेवा आयोग की भूमिका होनी चाहिए। राज्य द्वारा वित्त पोषित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति के राज्य सरकार के अधिकारों पर अंकुश लगाया गया है। नतीजा यह है कि केंद्र सरकार के प्रति निष्ठा रखने वाले सत्ता केंद्र राज्यों में उभरे हैं और राज्य सरकारों के अधिकारों को चुनौती दे रहे हैं। राज्यों की स्वायत्तता का लगातार क्षरण हो रहा है।
दरअसल आरएसएस-भाजपा एक एजेंडे से प्रेरित हैं। आरएसएस के नेताओं का मानना है कि उन्होंने एक लंबे समय तक इंतजार किया है और लोकसभा चुनाव में जीत उनके एजेंडे को पूरा करने के लिए लॉन्च पैड होनी चाहिए। एजेंडे में शामिल हैं- एक राष्ट्र एक चुनाव, समान नागरिक संहिता (यूसीसी), नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन, कृषि कानून और पूजा स्थल अधिनियम को निरस्त करना। भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में कुछ और खुलासे भी हो सकते हैं। लेकिन तय है कि यह अंतिम हमला होगा।