अंगों के कारोबार की काली दुनिया..?

अंगों के कारोबार की काली दुनिया…
दुरुपयोग पर नकेल और तस्करी रोकने के लिए ईमानदारी और प्रतिबद्धता बेहद जरूरी
चिकित्सा पर्यटन एवं अंग प्रत्यारोपण का दूसरा पहलू अंग व्यापार का समृद्ध कारोबार है, जिसे रोकने के लिए मौजूदा कानून को मजबूती से लागू करना होगा और चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों को भी ईमानदारी एवं प्रतिबद्धता दिखानी होगी।

Human Organ Transplant Medical Professional Doctors Smuggling and ways to mitigate Challenges
अंग प्रत्यारोपण  …..
मानव ऊतक प्रत्यारोपण का इतिहास कम से कम 140 वर्ष या संभवतः इससे भी पुराना है। दुनिया का पहला सफल मानव अंग (किडनी) प्रत्यारोपण 70 साल पहले हुआ था। तब से मानव यकृत, हृदय, फेफड़े, अग्न्याशय और आंत का सफल प्रत्यारोपण किया गया है। किडनी प्रत्यारोपण सहित इन छह को जीवन रक्षक माना जाता है। आज चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के कारण एक व्यक्ति से करीब 37 अंगों और ऊतकों को निकालकर दूसरे मनुष्य में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। 
भारत में पहला सफल मानव किडनी प्रत्यारोपण दिसंबर, 1971 में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में किया गया था। सबसे पहले किडनी का ही प्रत्यारोपण हुआ था और आज भी सबसे ज्यादा इसी का प्रत्यारोपण होता है। इसके बाद यकृत और हृदय का स्थान है। हालांकि, जरूरत से काफी कम अंग प्रत्यारोपण होते हैं। अंग प्रत्यारोपण चिकित्सा क्षेत्र की उन्नति का प्रमाण है। दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में भारत में अंग प्रत्यारोपण विदेशियों के लिए अपेक्षाकृत सस्ता है। दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और अफ्रीका के कई देश प्रत्यारोपण सुविधा विकसित करने में सक्षम नहीं हैं।

इसलिए भारत में इलाज कराने के साथ अंग प्रत्यारोपण के लिए बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। चिकित्सा पर्यटन एवं अंग प्रत्यारोपण का दूसरा पहलू अंग व्यापार का समृद्ध कारोबार है। एक ओर जहां जीवन बचाने के लिए परोपकारी अंग दाताओं के सामने आने की खबरें आती हैं, वहीं दूसरी ओर गरीब लोगों से अंग खरीदने की बातें भी सामने आती हैं। अभी हाल ही में पुलिस ने गुरुग्राम में एक गिरोह का भंडाफोड़ किया, जिसमें बांग्लादेश के लोगों को कथित तौर पर अवैध किडनी प्रत्यारोपण के लिए गिरफ्तार किया गया, जो जयपुर के एक अस्पताल में करवाया गया था।

मानव अंगों की खरीद-बिक्री एक पुरानी और वैश्विक परिघटना है। 1970 के दशक से ही इस पर अंकुश लगाने की जरूरत सभी देशों में महसूस की जा रही है। 1980 और 1990 के दशक के मध्य में ज्यादातर देशों ने अंग प्रत्यारोपण के लिए कानूनी ढांचा तैयार कर लिया। भारत सहित ज्यादातर देशों में इसे गैर-कानूनी बनाया गया है। पैसे लेकर अंगदान करने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गैर-कानूनी माने जाने के बावजूद अवैध अंग व्यापार जारी है। नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया और भारत सहित दक्षिण एशिया के कई देशों में अवैध किडनी बिक्री का लंबा इतिहास है। पीड़ितों को अक्सर विदेश में उच्च वेतन के वादे कर काम का लालच दिया जाता है, जिसके बाद वे खुद को कर्ज में फंसा पाते और अंग बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। 

अंग तस्करी के मुद्दे से निपटने और अंगों के उचित आवंटन को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने मानव अंगों और ऊतकों का प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 बनाया। यह कानून चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए मानव अंगों और ऊतकों को हटाने, भंडारण और प्रत्यारोपण को नियंत्रित करता है और उनके व्यावसायिक लेन-देन पर भी रोक लगाता है। इस अधिनियम की धारा 19 के अनुसार, वाणिज्यिक लेन-देन में शामिल कोई भी व्यक्ति यदि-अंगों के लिए पैसे देने या पैसे के लिए अंगों की आपूर्ति करने की पेशकश करता है, इसके लिए पहल/बातचीत/विज्ञापन करता है, अंगों की आपूर्ति करने वाले व्यक्ति की तलाश करता, और झूठे दस्तावेज तैयार करने में सहयोग करता है, तो उसे 10 साल तक की जेल और एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

हालांकि, इसमें चुनौतियां हैं। जब अंगदाता और प्राप्तकर्ता की जोड़ी देशों की सीमा पार करती है, तो सबसे बड़ी चुनौती उनके बीच संबंध स्थापित करने और भुगतान तथा स्वैच्छिक दान में अंतर करने में आती है। दूतावासों से अपेक्षा की जाती है कि वे जबर्दस्ती और भुगतान से इन्कार का प्रमाणपत्र जारी करें, लेकिन अनुभव बताते हैं कि वे हमेशा उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करते। भारत में इसकी जांच की अगली जिम्मेदारी अस्पतालों की विशेष समितियों पर होती हैं, जिनके पास इस प्रकार के संदेहास्पद प्रत्यारोपण को रद्द करने का अधिकार है।

जब भारत में किडनी की मांग बढ़ती है, तो गरीब व्यक्ति या पड़ोसी देश तस्करों के लिए शिकारगाह बन जाता है। अंग तस्करी की अंतरराष्ट्रीय प्रकृति अभियोजन को चुनौतीपूर्ण बनाती है, अपर्याप्त कानून प्रवर्तन के कारण कानूनी दान और अवैध बिक्री के बीच बारीक अंतर को स्पष्ट करना और भी जटिल हो जाता है।

दूसरी चुनौती राष्ट्रीय स्तर पर है। इससे संबंधित कानून को पूरे भारत में समान रूप से लागू नहीं किया गया है, क्योंकि स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है। इससे देश में अवैध अंग व्यापार के लिए गुंजाइश पैदा होती है। पूरे भारत में एक समान कानून की आवश्यकता है, जिसे संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 249 और 252 को लागू करके किया जा सकता है। तो क्या किया जाना चाहिए? अधिकांश विदेशी मरीजों की भर्ती एजेंटों के माध्यम से होती है, जो यात्रा और कागजी कार्रवाई पूरा करते हैं। संबंधित देशों के कानूनों से सामंजस्य बनाने की पहल होनी चाहिए, ताकि एक देश के अपराधी पर दूसरे देश में मुकदमा चलाया जा सके। अपराध जांच में सहायता की एक प्रणाली स्थापित करके अवैध अंग व्यापार से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है। दूसरा, अंग तस्करी में शामिल मिलीभगत को पकड़ने के लिए चिकित्सा गतिविधियों में पारदर्शिता बढ़ाने की जरूरत है। तीसरा, मृत्यु के बाद अंगदान प्रत्यारोपण का भविष्य है।

भारत में छह में से केवल एक अंगदान मृत दाताओं से होता है। इसके बारे में जन जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत में अंग व्यापार और अंगों का अंतर-देशीय व्यापार एक उभरती हुई चुनौती है। यदि इससे प्रभावी ढंग से नहीं निपटा गया, तो चिकित्सा पर्यटन और स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की छवि खराब हो सकती है। मौजूदा कानून को मजबूती से लागू करने के लिए पड़ोसी देशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों से बेहतर सहयोग की आवश्यकता है। चिकित्सा पेशे से जुड़े लोग और डॉक्टरों को भी इस तरह के अवैध कारोबार को रोकने के लिए ईमानदारी और प्रतिबद्धता दिखानी होगी। अंग और ऊतक प्रत्यारोपण एक नेक कार्य है और सबको इसका दुरुपयोग रोकने के लिए सहयोग करना चाहिए।

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