इंदौर नगर निगम में 28 करोड़ का घोटाला !

इंदौर नगर निगम में 28 करोड़ का घोटाला:जमीन के अंदर हुए कामों के लगाए फर्जी बिल, ठेकेदारों के हवाले आईडी-पासवर्ड

निगम में लंबे समय से लीगेसी फंड से भुगतान की व्यवस्था है। 2018 से 2022 के बीच हुए कामों के लंबित भुगतान इसी फंड से किए गए हैं। करीब तीन महीने पहले तत्कालीन निगमायुक्त हर्षिका सिंह के सामने जब करोड़ों रुपए के भुगतान की फाइलें पहुंचीं तो उन्होंने भी इस पर आपत्ति ली थी। जनसुनवाई में भी कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि कुछ ठेकेदारों ने काम नहीं किया फिर भी उन्हें भुगतान किया जा रहा है। उनसे नाम मांगे तो इन पांचों फर्म के नाम सामने आए।

जांच शुरू हुई तो ड्रेनेज विभाग के कार्यपालन यंत्री की गाड़ी से फाइलें तक चोरी हो गई। ड्रेनेज विभाग और लेखा शाखा से बिलों का सत्यापन करवाया गया। मेजरमेंट बुक में ईई के साइन थे जबकि इसमें उनके साइन नहीं होते हैं। नोटशीट तक नहीं मिली।

बड़ा सवाल…इतनी फाइलें सीधे लेखा शाखा तक पहुंची कैसे?
बड़ा सवाल यह है कि ये सभी फाइलें सीधे लेखा शाखा तक कैसे पहुंची, जबकि भुगतान के लिए कोई भी बिल विभाग की ओर से भेजे जाते हैं। यह भी स्पष्ट नहीं हो सका कि ई-नगर पालिका पर आईडी और पासवर्ड का इस्तेमाल कर बिलों की जानकारी किसने अपलोड की? यह बिल अधिक राशि के थे, इसलिए गड़बड़ सामने आ गई। कार्यपालन यंत्री ने भी सुनील गुप्ता ने एफआईआर के आवेदन में लिखा है कि मैं जेल पेन का इस्तेमाल करता हूं, बॉल पेन का नहीं।

50 करोड़ का घपला, 28 करोड़ के बिल रोके

पांच साल पुरानी ड्रेनेज लाइन डालने के 20 कामों के लिए 28 करोड़ रु. के बिल लेखा शाखा तक पहुंचे थे। अभी 28 करोड़ के भुगतान को रोकने की बात आ रही है, लेकिन माना जा रहा है कि फर्जीवाड़ा 40 से 50 करोड़ तक हो सकता है। पुराने भुगतान की जांच की जाए तो बड़ी गड़बड़ी सामने आ सकती है।

ये हैं 5 फर्म

  • नींव कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मोहम्मद साजिद
  • ग्रीन कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मोहम्मद सिदिकी
  • किंग कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मो. जाकिर, 147 मदीना नगर
  • क्षितिज इंटरप्राइजेस प्रोप्रा. रेणु वडेरा, आशीष नगर
  • जाह्नवी इंटरप्राइजेस प्रोप्रा. राहुल वडेरा निवासी 12 आशीष नगर

कैसे किया फर्जीवाड़ा

पांचों ठेकेदारों ने 20 ड्रेनेज कार्यों के फर्जी दस्तावेज तैयार किए जो सीधे ऑडिट विभाग के पास पहुंचे। वहां से पास भी हो गए जबकि पांचों फर्म को वर्क ऑर्डर ही जारी नहीं हुए। इनसे जुड़े आवक और जावक क्रमांक भी फर्जी थे। जिन कार्यों के बिल प्रस्तुत हुए, उनका ठेका अन्य ठेकेदारों को मिला था। अनुबंध भी अन्य फर्मों के साथ हुए थे।

महापौर भार्गव ने प्रमुख सचिव को लिखा पत्र

महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर उच्च स्तरीय समिति से इसकी निष्पक्ष जांच करवाने के लिए लिखा है। उन्होंने कहा कि इसमें निकाय के संबंधित विभागों की संलिप्तता प्रतीत होती है। जिस भी जिम्मेदार की भूमिका सामने आएगी, उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई करेंगे।

सीधी बात – विभागीय जांच के बाद स्थिति स्पष्ट हाेगी

क्या पूर्व के भुगतान में भी ऐसे फर्जीवाड़े मिले हैं?
– इसकी आशंका तो है, हम विभागीय जांच भी करवा रहे हैं। इन फर्मों को कितने काम दिए गए हैं, उनका रिकॉर्ड भी मंगवाया है।

विभागीय लोगों की मिलीभगत के बिना यह कैसे संभव है?
– फाइलें लेखा शाखा तक सीधे नहीं जा सकती। ये सब कैसे हुआ इसकी जांच करवा रहे हैं।विभाग से कोई मिला है तो जल्द पता लग जाएगा।

डिटेल्स ई-नगर पालिका पर कैसे अपलोड हो गई?
– आईडी-पासवर्ड का इस्तेमाल हुआ है। पर कर्मचारियों का कहना है कि उनके सिस्टम से यह काम नहीं हुआ है। जांच के बाद स्थिति स्पष्ट होगी।

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