क्या डायनासोर की तरह इंसान भी विलुप्त हो जाएंगे ?

पृथ्वी पर 5 बार आ चुकी तबाही:क्या डायनासोर की तरह इंसान भी विलुप्त हो जाएंगे; धरती की पूरी कहानी

‘बीते 50 सालों में इंसानों ने स्तनधारियों, पक्षियों, मछलियों और रेप्टाइल्स का 60% सफाया कर दिया है। पृथ्वी पर छठी मास एक्सटिंक्शन यानी सामूहिक विलुप्ति पहली बार किसी प्रजाति यानी होमो सेपियंस (मनुष्य) की वजह से होने जा रही है।’

दुनियाभर की लुप्तप्राय प्रजातियों की स्टडी करने वाले संगठन वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) ने अपनी रिपोर्ट में ये दावा किया है। पृथ्वी पर जीवन कई बार पनपा, फला-फूला और फिर किसी न किसी वजह से ज्यादातर प्रजातियां खत्म हो गईं।

आज यानी 22 अप्रैल को दुनियाभर में पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है। भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे एक ग्रह के तौर पर पृथ्वी कैसे बनी, उस पर जीवन कैसे पनपा और खत्म हुआ और क्या एक बार फिर पृथ्वी तबाही की तरफ बढ़ रही है…

4.6 अरब साल पहलेः सूर्य का जन्म हुआ और फिर अन्य ग्रह बने
ज्यादातर सोलर साइंटिस्ट की थ्योरीज के मुताबिक, 4.6 अरब साल पहले सौरमंडल गैस और धूल के घने बादलों से घिरा हुआ था। इसी दौरान हुए एक तारे के सुपरनोवा विस्फोट के शॉकवेव से यह बादल तेजी से घूमने लगा। इस घूमते बादल को सोलर नेब्युला कहा गया।

तेजी से घूमने के कारण धूल और गैस बादल के एक सेंटर पॉइंट पर इकट्टा हो गए। सेंटर पर अधिक दबाव होने से हाइड्रोजन एटम ने मिलकर हीलियम बनाना शुरू कर दिया, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा निकलने लगी। इसी ऊर्जा से आग के एक गोले यानी सूर्य का जन्म हुआ। सूर्य के बनने से बादल में मौजूद 99% पदार्थ खत्म हो गया।

हालांकि, इसके बाद भी गैस और धूल का बादल घूमता रहा और इससे पृथ्वी, बुध जैसे ग्रहों के बनने की प्रक्रिया शुरू हुई। शेष पदार्थ अलग-अलग इकट्ठा होते रहे और गोलाकार बन गए। इनसे ही सौरमंडल में मंगल, पृथ्वी जैसे अन्य ग्रह बने। गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सभी ग्रह सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाने लगे, जिसे अब सौरमंडल कहते हैं।

4.5 अरब साल पहलेः पृथ्वी से टकराया ग्रह और चंद्रमा बना
शुरुआती पृथ्वी में ज्वालामुखी की तरह लगातार विस्फोट हो रहे थे। इनमें से हाइड्रोजन सल्फाइड, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें निकल रही थीं। इन गैसों से ही पृथ्वी पर वायुमंडल बना।

इसी दौरान पृथ्वी से एक छोटा ग्रह टकराया। इस टक्कर से पृथ्वी के चारों ओर ग्रह के पदार्थ के टुकड़े फैल गए। इनसे मिलकर एक गोलाकार उपग्रह बना जिसे आज हम चंद्रमा के रूप में जानते हैं। चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है।

3.8 अरब साल पहले: पानी से हुई पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पहले पृथ्वी पर पानी सिर्फ गैस के रूप में मौजूद था, लेकिन करीब 3.8 अरब साल पहले पृथ्वी इतनी ठंडी हो गई कि जल वाष्प पानी में बदल गया। इससे बने धरती के सबसे पहले महासागर ने पृथ्वी को पूरी तरह से ढंक लिया। करीब 3.7 अरब साल पहले पानी में ही सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हुई। ये पृथ्वी पर जीवन का पहला रूप था।

करीब 3.3 अरब साल पहले पृथ्वी एक जलीय दुनिया की तरह थी, लेकिन जैसे-जैसे महासागर से जमीन के टुकड़े उभरने लगे। वैज्ञानिकों की भाषा में उन्हें क्रेटन कहा गया। इसी दौरान पृथ्वी का पहला महाद्वीप ‘वालबारा’ बना। हालांकि, यह ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप से भी छोटा था।

2.4 अरब साल पहले: पूरी पृथ्वी बर्फ की तरह जम गई
सायनो नाम का बैक्टीरिया पृथ्वी का पहला प्रकाश संश्लेषक (फोटोसिंथेटिक) बना। इसके बाद धरती पर ऑक्सीजन उत्पादक मिले। अब ऑक्सीजन के साथ पृथ्वी पर कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर काफी कम हो गया। जिस कारण पृथ्वी पूरी तरह से जम गई।

जैसे-जैसे पृथ्वी का वातावरण बदल रहा था तो महाद्वीप में भी बदलाव हो रहे थे। महाद्वीप के टूटने और नए महाद्वीप के बनने की प्रक्रिया लंबे समय तक जारी रही।

44 करोड़ साल पहलेः समुद्र का तापमान बढ़ने से सभी जीवों का सर्वनाश हुआ
पृथ्वी में जीवन का स्वरूप बदला। इस समय को कैम्ब्रियन विस्तार कहा जाता है। इस दौरान के जानवरों के शरीर के अंग रीढ़ की तरह कठोर थे। इनमें एलियन जैसे दिखने वाले ट्राइलोबाइट्स भी थे। जीवन की विविधता बढ़ रही थी कि 44 करोड़ साल पहले अचानक ही पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन आया और समुद्र का तापमान बढ़ गया।

पृथ्वी पर पहली बार जीवों का सामूहिक विनाश यानी मास एक्सटिंक्शन देखा गया। इससे जीवन एक बार फिर से लुप्त हो गया। हालांकि, इनमें से ही बचे कई जीवन रूपों (लाइफ फॉर्म्स) ने पृथ्वी पर मौजूद ईको-सिस्टम की नींव रखी। लगभग 42 से 35 करोड़ साल पहले पृथ्वी की मिट्टी से पहले पेड़ निकले और जानवर भी पानी से जमीन पर पहुंचे।

25 करोड़ साल पहले: विशाल डायनासोर धरती पर राज करते थे
25 करोड़ साल पहले पैंजिया पृथ्वी का आखिरी विशाल महाद्वीप था। इसी दौरान पृथ्वी पर ग्रीनहाउस गैसों की भारी मात्रा और तापमान बढ़ने से सभी प्रजातियों का लगभग 90% सफाया हो गया। 24 से 23 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर डायनासोर दिखाई दिए, जिन्होंने अगले 15 करोड़ वर्षों तक धरती पर राज किया।

66 लाख साल पहले एक क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराया, उसी जगह जहां आज मेक्सिको है। इससे वायुमंडल में इतना बदलाव हुआ कि सूर्य की किरणें धरती तक नहीं पहुंच सकीं और जलवायु परिवर्तन से डायनासोर खत्म हो गए। इसके बाद पृथ्वी पर स्तनधारी जानवरों की संख्या बढ़ने लगी।

सहेलंथ्रोपस थे पृथ्वी पर सबसे पहले इंसान
60 लाख साल पहले दुनिया में ज्ञात मनुष्यों ने कदम रखा। इस प्रजाति को सहेलंथ्रोपस कहा जाता है। उस समय तक इंसान चार पैरों से चलते थे। 4 लाख साल पहले इंसानों ने सीधा चलना शुरू किया और करीब 10 लाख साल पहले उन्होंने चीजों को तोड़ने और काटने के लिए हथियार बनाए।

करीब 8 लाख साल पहले आग का आविष्कार हुआ। इसके बाद मनुष्य के दिमाग का विकास तेजी से होने लगा। इंसान एक साथ रहने लगे और बातचीत का तरीका भी निकाला। 40 से 15 हजार साल पहले होमो सेपियंस के अलावा सभी अन्य मानव प्रजातियां खत्म हो गईं।

10 हजार साल पहले कृषि की शुरुआत, अब 8 अरब से ज्यादा इंसान
करीब 10 हजार साल पहले धरती पर कृषि की शुरुआत हुई। वहीं करीब 250 साल पहले औद्योगिक क्रांति हुई थी। इसके बाद इंसान टेक्नोलॉजी, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से गुजरे। शहरीकरण हुआ तो भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य प्रदूषण छोड़ने की शुरुआत हुई।

आबादी लगातार बढ़ती ही चली गई। 1804 तक जनसंख्या एक अरब और 1927 तक दो अरब तक पहुंच गई। 1960 के दशक से वैश्विक जनसंख्या तेजी से बढ़ती गई और अब यह आठ अरब से ज्यादा लोगों तक पहुंच गई है।

जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर मानव अस्तित्व और जीवन के कई अन्य रूपों के लिए एक नया खतरा है। दुनिया भर में तापमान और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और जैव विविधता घट रही है। अगर हालात नहीं बदले तो हम एक और सामूहिक विलुप्ति की घटना के कगार पर पहुंच सकते हैं।

पृथ्वी का भविष्य: क्या इंसानों की वजह से होगा छठा सामूहिक विनाश
क्लाइमेट साइंटिस्ट के मुताबिक, हम एंथ्रोपोसीन में हैं यानी ऐसी स्थिति जिसमें मानव गतिविधियों का पृथ्वी के धरातल और पर्यावरण पर स्पष्ट और बड़ा प्रभावी असर दिखने लगे। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि हम छठे सामूहिक विलुप्ति के दौर के बीच में हैं। छठा सामूहिक विलुप्ति पूरी तरह से मानव गतिविधियों के कारण होगा। इसमें भूमि, जल, ऊर्जा और अन्य संसाधनों का अंधाधुंध प्रयोग व जलवायु परिवर्तन होगा।

वर्तमान में 40% जमीन को खाद्य उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। दुनिया में 90% वनों की कटाई और 70% पीने के पानी का इस्तेमाल कृषि में किया जा रहा है। इससे उन स्थानों पर रहने वाली प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा आ गया है। यह हमारे ईकोसिस्टम के लिए सबसे बड़ा मानव-जनित खतरा है।

अनसस्टनेबल खाद्य उत्पादन और खपत से ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन बढ़ रहा है। इससे वायुमंडल के तापमान में रिकॉर्ड वृद्धि हो रही है। हमारे ईकोसिस्टम में प्रजातियां एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। इन्हीं से जल, हवा और जमीन स्वच्छ रहती है। वर्तमान में प्रजातियों के विलुप्त होने की दर प्राकृतिक विलुप्त दर से 1,000 से 10,000 गुना अधिक है।

PNAS मैगजीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, पशु प्रजातियों के समूह सामान्यतः प्राकृतिक दर से 35% गुना अधिक दर से लुप्त हो रहे हैं। इसमें कहा गया है कि 1500 और 2022 के बीच वर्टिब्रेट जानवरों की 73 प्रजातियां विलुप्त हो गईं।

दो साल पहले ही सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट (CSE) ने अपनी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत अपने जैव विविधता प्रचुर (बायो डायवर्सिटी हॉट-स्पॉट) क्षेत्रों का 90% खो चुका है और इन क्षेत्रों में 25 प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं।

बायो डायवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1996 से 2008 के बीच पूरी दुनिया में पक्षियों और स्तनधारियों की प्रजातियों में हुई 60% कमी 7 देशों में केंद्रित रही, जिनमें भारत भी शामिल है। पिछले 50 साल में धरती पर जंतुओं की दो-तिहाई आबादी मानव गतिविधियों के कारण कम हो चुकी है। इन्हीं कारणों से ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी जल्द ही अपनी छठी मास एक्सटिंक्शन यानी सामूहिक विलुप्ति देखगी।

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