रातोंरात CBI प्रमुख को छुट्टी पर भेजा ?

रातोंरात CBI प्रमुख को छुट्टी पर भेजा
जांच एजेंसी का दफ्तर सील किया; विपक्ष बोला- राफेल जांच से डरी सरकार
पिछले साल CBI के डायमंड जुबली समारोह में स्पीच देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी…

तभी एंट्री हुई एम नागेश्वर राव की, जिन्हें चंद मिनटों पहले CBI का अंतरिम डायरेक्टर बनाया गया था। उन्होंने दोनों दफ्तरों की चाबी ली और एक-एक दराज की तलाशी शुरू की। अलसुबह तक चले इस ऑपरेशन के बाद पूरी बिल्डिंग सील कर दी गई।

दरअसल, 11वीं मंजिल पर तब के CBI डायरेक्टर आलोक वर्मा का दफ्तर था और 10वींं मंजिल पर स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना बैठते थे। इस सबके बीच दो सरकारी कर्मचारी आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के आवास पर पहुंचे और दोनों को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने का फरमान थमा दिया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि CBI चीफ आलोक वर्मा राफेल मामले की जांच करने वाले थे।

रातोंरात CBI चीफ को छुट्टी पर भेजने की इनसाइड स्टोरी…

23-24 अक्टूबर की आधी रात को दिल्ली में लोधी रोड स्थित CBI हेडक्वार्टर को चारों तरफ से दिल्ली पुलिस ने घेर रखा था।
23-24 अक्टूबर की आधी रात को दिल्ली में लोधी रोड स्थित CBI हेडक्वार्टर को चारों तरफ से दिल्ली पुलिस ने घेर रखा था।

2019 लोकसभा चुनाव में 6 महीने से भी कम वक्त बचा था। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी थी। यानी माहौल पूरी तरह चुनावी था। दूसरी तरफ राफेल में कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा उफान पर था। राहुल गांधी हर मंच से प्रधानमंत्री मोदी को घेरने में जुटे थे।

4 अक्टूबर 2018 को वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा और विनिवेश मंत्री रहे अरुण शौरी ने सीनियर लॉयर प्रशांत भूषण के साथ दिल्ली में CBI चीफ से मुलाकात की। तीनों ने आलोक वर्मा को दस्तावेजों की एक मोटी फाइल सौंपते हुए कहा- ‘राफेल खरीद में घोटाला हुआ है। इसकी जांच होनी चाहिए।’

यह मुलाकात पूरी भी नहीं हुई थी कि मीडिया में शोर मच गया- मोदी सरकार CBI चीफ से नाराज है। आखिर उन्होंने सरकार के धुर विरोधियों को मिलने का समय कैसे दिया?

सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा। तीनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके केंद्र सरकार पर राफेल डील में गड़बड़ी का आरोप लगाया था।
सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा। तीनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके केंद्र सरकार पर राफेल डील में गड़बड़ी का आरोप लगाया था।

इस मुलाकात के 11 दिन बाद यानी 15 अक्टूबर को CBI ने अपने ही डिप्टी डायरेक्टर राकेश अस्थाना और DSP देवेंद्र कुमार के खिलाफ एंटी करप्शन एक्ट में FIR दर्ज की। अस्थाना की गिनती सरकार के करीबी अफसरों में होती थी। अस्थाना ने ही चारा घोटाले की जांच की थी।

राकेश अस्थाना और देवेंद्र कुमार पर हैदराबाद के मीट कारोबारी मोइन कुरैशी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के बदले तीन करोड़ रुपए रिश्वत लेने का आरोप था।

दरअसल मोइन कुरैशी पर मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला के जरिए लेन-देन का केस चल रहा था। CBI की FIR में तब भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के स्पेशल डायरेक्टर और बाद में रॉ चीफ बने सामंत गोयल का भी नाम था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 6 दिन बाद यानी 21 अक्टूबर को तब के रॉ चीफ अनिल धस्माना ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। उन्होंने PM से कहा कि जिस तरह से आलोक वर्मा ने FIR में सामंत गोयल का नाम शामिल किया है, उससे रॉ की छवि खराब हो रही है।

अगले दिन यानी 22 अक्टूबर को CBI ने अपने DSP देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार कर लिया। अब राकेश अस्थाना को गिरफ्तारी का डर सताने लगा। बचने के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई।

मीट कारोबारी मोइन कुरैशी केस में गिरफ्तारी के बाद DSP देवेंद्र कुमार को 7 दिनों की CBI हिरासत में भेज दिया गया था।
मीट कारोबारी मोइन कुरैशी केस में गिरफ्तारी के बाद DSP देवेंद्र कुमार को 7 दिनों की CBI हिरासत में भेज दिया गया था।

22 अक्टूबर को ही CBI चीफ को PMO से बुलावा आया। थोड़ी देर बाद आलोक वर्मा, प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे। दोनों में क्या बात हुई, यह ना तो कभी आलोक वर्मा ने बताया और ना ही सरकार ने कोई बयान जारी किया, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि प्रधानमंत्री, आलोक वर्मा के फैसले से नाराज थे। उन्होंने सीधे कोई निर्देश देने के बजाय वर्मा से कहा कि आप NSA अजित डोभाल से मिलिए।

डोभाल ने आलोक वर्मा से कहा कि अस्थाना तक तो ठीक था, लेकिन इस केस में रॉ को घसीटकर आपने ठीक नहीं किया। इसके बाद CBI चीफ को आभास हो गया कि उन पर कार्रवाई होगी।

22 अक्टूबर 2018 को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा- PM मोदी के सबसे दुलारे अधिकारी अब घूस लेते पकड़ गए हैं। प्रधानमंत्री ने CBI को बदले की राजनीति का हथियार बना लिया है।
22 अक्टूबर 2018 को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा- PM मोदी के सबसे दुलारे अधिकारी अब घूस लेते पकड़ गए हैं। प्रधानमंत्री ने CBI को बदले की राजनीति का हथियार बना लिया है।

अगले दिन यानी 23 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने CVC यानी सेंट्रल विजिलेंस कमीशन को एक्टिव कर दिया। ये वही संस्था है, जो केंद्रीय एजेंसियों की मॉनिटरिंग करती है। शाम 6 बजे CVC की बैठक हुई। इसमें CBI चीफ आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना, दोनों को छुट्टी पर भेजने की सिफारिश करने का फैसला लिया गया।

रात करीब 11 बजे आलोक वर्मा तक संदेश भेज दिया गया कि उन्हें छुट्टी पर भेजा जा रहा है, लेकिन वे तैयार नहीं हुए।

CVC यानी सेंट्रल विजिलेंस कमीशन की मीटिंग में आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने की सिफारिश करने का फैसला लिया गया।
CVC यानी सेंट्रल विजिलेंस कमीशन की मीटिंग में आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने की सिफारिश करने का फैसला लिया गया।

23-24 अक्टूबर की रात करीब 12:30 बजे CVC की सिफारिश लेकर एक सरकारी कर्मचारी PMO पहुंचा। फौरन ही सरकार ने लीव ऑर्डर तैयार किया और देर रात 2.30 बजे आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के सरकारी आवास पर भेज दिया।

उधर दिल्ली पुलिस का एक बड़ा दस्ता CBI दफ्तर के लिए मार्च कर चुका था। रातों-रात CBI दफ्तर पुलिस छावनी में बदल गया। इस पूरे ऑपरेशन को लीड कर रहे थे NSA अजित डोभाल। प्लानिंग ऐसी की गई थी कि कानों-कान किसी को खबर नहीं लगे। आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को भी इस ऑपरेशन की भनक नहीं थी।

अजित डोभाल, PMO के अधिकारियों के साथ मीटिंग करते हुए।
अजित डोभाल, PMO के अधिकारियों के साथ मीटिंग करते हुए।

रात एक बजे अजित डोभाल ने PMO के कुछ बड़े अधिकारियों को CBI ऑफिस बुलाया। इन अफसरों के सामने ही CBI की कमान जॉइंट डायरेक्टर एम नागेश्वर राव को सौंपने का फैसला लिया गया। राव को फौरन ही लोधी रोड स्थित CBI दफ्तर पहुंचने का फरमान भेज दिया गया।

रात 1.45 बजे दिल्ली पुलिस के कमांडो से घिरे नागेश्वर राव CBI दफ्तर पहुंचे। उन्होंने वहां मौजूद अधिकारियों से चाबी ली और सीधे 10वीं मंजिल पर पहुंच गए। यह राकेश अस्थाना का दफ्तर था। उसे सील कर दिया गया।

इसके बाद वे 11वीं मंजिल पर आलोक वर्मा के ऑफिस पहुंचे और करीब 2 बजे अंतरिम डायरेक्टर के रूप में CBI की कमान ले ली।

1986 बैच के IPS रहे एम नागेश्वर राव 4 फरवरी 2019 तक CBI के अंतरिम चीफ रहे।
1986 बैच के IPS रहे एम नागेश्वर राव 4 फरवरी 2019 तक CBI के अंतरिम चीफ रहे।

नागेश्वर राव की पहली कार्रवाई शुरू हुई 14 अधिकारियों के ट्रांसफर के साथ। इनमें से 11 अधिकारी ऐसे थे जो अस्थाना केस की जांच कर रहे थे। इसके बाद शुरू हुआ सर्च ऑपरेशन। दोनों दफ्तरों में एक-एक फाइल की तलाशी ली गई। ऑपरेशन तीन से चार घंटे तक चला। इसके बाद पूरे CBI हेडक्वार्टर को सील कर दिया गया।

सुबह जब आलोक वर्मा को केंद्र के एक्शन के बारे में पता चला, तो वे फौरन CBI दफ्तर पहुंचे, लेकिन उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया। इसके बाद वर्मा सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। कोर्ट उनकी याचिका सुनने को तैयार हो गया और तारीख मुकर्रर हुई 26 अक्टूबर 2018 ।

अचानक छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले से नाराज आलोक वर्मा 24 अक्टूबर की सुबह CBI दफ्तर पहुंचे, लेकिन उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया।
अचानक छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले से नाराज आलोक वर्मा 24 अक्टूबर की सुबह CBI दफ्तर पहुंचे, लेकिन उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया।

आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से आलोक वर्मा को हटाया गया, वो तरीका सही नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि वर्मा को छुट्टी पर भेजने से पहले सलेक्शन कमेटी से सलाह क्यों नहीं ली गई?

दरअसल सलेक्शन कमेटी ही CBI चीफ को चुनने या हटाने का फैसला करती है। इसमें प्रधानमंत्री के अलावा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और लोकसभा में विपक्ष के नेता होते हैं।

8 जनवरी 2019 को कोर्ट ने सरकार के फैसले को रद्द करते हुए आलोक वर्मा को फिर से CBI डायरेक्टर बना दिया। अगले दिन यानी 9 जनवरी को 77 दिनों की छुट्टी के बाद आलोक वर्मा वापस CBI दफ्तर लौटे। उन्होंने सबसे पहले नागेश्वर राव के लिए गए फैसले को रद्द किया। इसके बाद 5 अधिकारियों का ट्रांसफर किया।

दूसरी तरफ इसी दिन सलेक्शन कमेटी की बैठक हुई। इसमें प्रधानमंत्री मोदी, CJI की तरफ से जस्टिस एके सीकरी और विपक्ष के नेता के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हुए।

कमेटी ने 2:1 के फैसले से वर्मा को CBI से हटाकर फायर सर्विसेज का डायरेक्टर जनरल (DG) और एम नागेश्वर राव को वापस अंतरिम CBI चीफ बना दिया। कमेटी में PM मोदी और जस्टिस एके सीकरी ने आलोक वर्मा को हटाने के पक्ष में स्टैंड लिया।

सिलेक्शन कमीशन की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और जस्टिस एके सीकरी ने आलोक वर्मा को CBI चीफ की पोस्ट से हटाने के पक्ष में अपना स्टैंड लिया।
सिलेक्शन कमीशन की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और जस्टिस एके सीकरी ने आलोक वर्मा को CBI चीफ की पोस्ट से हटाने के पक्ष में अपना स्टैंड लिया।

हालांकि, वर्मा ने फायर सर्विसेज जॉइन नहीं की और रिटायरमेंट ले लिया। वर्मा को ऐसे समय हटाया गया जब उनके रिटायरमेंट में महज 21 दिन बचे थे। वे 31 जनवरी 2019 को रिटायर होने वाले थे।

खड़गे ने इस फैसले पर आपत्ति जाहिर करते हुए लिखा- ‘CVC रिपोर्ट मुझे दी जाए। 77 दिनों का जो नुकसान वर्मा को हुआ है, उसका भुगतान किया जाए। उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए सलेक्शन कमेटी के पास बुलाया जाए। साथ ही 23 अक्टूबर की रात जिस तरह से CBI दफ्तर को टेकओवर किया गया, उसकी भी जांच होनी चाहिए।’

हालांकि, खड़गे की मांग पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।

एम नागेश्वर राव 4 फरवरी 2019 तक CBI के अंतरिम चीफ रहे। इसके बाद ऋषि कुमार शुक्ला को CBI चीफ बनाया गया। एक साल बाद यानी फरवरी 2020 में राकेश अस्थाना को CBI से क्लीन चिट मिल गई। अगले साल उन्हें प्रमोट करते हुए दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बना दिया गया।

2021 में द वायर ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि आलोक वर्मा की जासूसी की जा रही थी। पेगासस की लिस्ट में उनका भी नाम था।

आखिर रातों-रात प्रधानमंत्री मोदी ने CBI चीफ को छुट्टी पर क्यों भेजा… 4 बड़ी वजह

1. CBI चीफ राफेल मामले की जांच करने वाले थे- विपक्ष का आरोप
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर लॉयर प्रशांत भूषण ने भास्कर को बताया- ‘मैंने, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा ने राफेल मामले में कम्प्लेंट की थी। वो कम्प्लेंट CBI डायरेक्टर के टेबल पर थी। उन्होंने जल्द जांच करने की बात भी कही थी। सरकार को डर था कि अगर राफेल की जांच हुई, तो वो फंस जाएगी, क्योंकि ये तो बोफोर्स से भी बड़ा घोटाला था। सरकार ने कोई इन्वेस्टिगेशन नहीं होने दिया, वरना सब कुछ पता चल जाता।’

तब कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा- ‘CBI डायरेक्टर को प्रधानमंत्री ने रात 2 बजे हटाया। यह भारतीय संविधान का अपमान है। सवाल उठता है कि आखिर रात के 2 बजे यह काम क्यों किया गया? इसके पीछे मेन रीजन है कि CBI राफेल डील में प्रधानमंत्री की भूमिका को लेकर जांच करने जा रही थी।’

2. कोयला आवंटन में हुई गड़बड़ी में प्रधानमंत्री के सचिव का नाम- एक पत्रकार का दावा
CBI, कोयला आवंटन में हुई गड़बड़ी को लेकर पश्चिम बंगाल कैडर के IAS ऑफिसर भास्कर खुल्बे पर लगे आरोपों की जांच कर रही थी। कोयला आवंटन के वक्त खुल्बे पश्चिम बंगाल सरकार के इंडस्ट्री एडवाइजर थे।

जब CBI चीफ को हटाया गया, तब खुल्बे प्रधानमंत्री के सचिव थे। सीनियर जर्नलिस्ट रोहिणी सिंह ने द वायर पर लिखे अपने एक आर्टिकल में दावा किया कि राकेश अस्थाना, खुल्बे को बचाने की कोशिश कर रहे थे।

3. CBI की साख दांव पर लगी थी
पॉलिटिकल एनालिस्ट रशीद किदवई बताते हैं, ‘CBI के दो अधिकारी आपस में लड़ रहे थे। एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे थे। सरकार को लगा कि जल्द इस विवाद को नहीं निपटाया, तो जांच एजेंसी की साख पर सवाल होंगे। सरकार लोकसभा चुनाव से पहले CBI में कोई लूप होल नहीं छोड़ना चाहती थी। इसलिए दोनों को हटा दिया।’

4. सरकार नहीं चाहती थी CBI vs CBI हो
केंद्रीय मंत्री रहे अरुण जेटली ने 24 अक्टूबर 2018 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में CBI चीफ को छुट्टी पर भेजने की वजह बताई। उन्होंने कहा- ‘एक विचित्र और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा हुई है। CBI के दो बड़े अधिकारी डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर के आरोप एक-दूसरे पर हैं। इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, तभी CBI की इंस्टीट्यूशनल इंटिग्रिटी बनी रहेगी।’

मोइन कुरैशी केस और रॉ चीफ का नाम आना… आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के विवाद की पूरी कहानी
आलोक वर्मा और अस्थाना के विवाद की शुरुआत केंद्र सरकार के 2016 के एक फैसले से हुई। 2 दिसंबर 2016 की बात है। CBI के स्पेशल डायरेक्टर आरके दत्ता का ट्रांसफर कर दिया गया। उन्हें गृह-मंत्रालय में स्पेशल सेक्रेटरी बनाया गया, हालांकि उन्होंने जॉइन नहीं किया।

दत्ता का तबादला ऐसे वक्त हुआ, जब CBI डायरेक्टर अनिल सिन्हा दो दिन बाद रिटायर होने वाले थे। तबादला नहीं होता तो सीनियॉरिटी के हिसाब से दत्ता CBI चीफ बनते।

अनिल सिन्हा के रिटायरमेंट के बाद राकेश अस्थाना को CBI का अंतरिम डायरेक्टर बनाया गया। तब अस्थाना CBI के एडिशनल डायरेक्टर थे। सीनियर लॉयर प्रशांत भूषण ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। जिसके बाद सरकार ने अस्थाना को हटा दिया और फरवरी 2017 में आलोक वर्मा CBI चीफ बने।

प्रधानमंत्री मोदी के साथ तब के CBI डायरेक्टर अनिल सिन्हा और केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह। अनिल सिन्हा 1979 बैच के IPS अधिकारी हैं। उन्हें दिसंबर 2014 में CBI चीफ बनाया गया था।
प्रधानमंत्री मोदी के साथ तब के CBI डायरेक्टर अनिल सिन्हा और केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह। अनिल सिन्हा 1979 बैच के IPS अधिकारी हैं। उन्हें दिसंबर 2014 में CBI चीफ बनाया गया था।

अक्टूबर 2017… केंद्र सरकार ने एक बार फिर से राकेश अस्थाना को प्रमोट करते हुए CBI में स्पेशल डायरेक्टर बनाया। आलोक वर्मा इस फैसले पर नाराज हो गए। उन्होंने CVC को लिखा- ‘राकेश अस्थाना पर गुजरात की बायोटेक कंपनी से घूस लेने के आरोप हैं। जांच पूरी होने से पहले उन्हें प्रमोट नहीं करना चाहिए।’ हालांकि सरकार ने वर्मा के विरोध को दरकिनार करते हुए अस्थाना को पद पर कायम रखा।

फरवरी 2018 में अस्थाना ने CBI चीफ आलोक वर्मा से हैदराबाद के मीट कारोबारी मोइन कुरैशी को गिरफ्तार करने की अनुमति मांगी, लेकिन वर्मा ने उनकी मांग खारिज कर दी।

अगस्त 2018 में अस्थाना ने कैबिनेट सेक्रेटरी को लेटर लिखा। उन्होंने आरोप लगाया कि CBI चीफ ने मोइन कुरैशी केस को दबाने के लिए हैदराबाद के एक बिजनेसमैन सतीश सना से 2 करोड़ रुपए लिए हैं। इसके बाद कैबिनेट सेक्रेटरी ने CVC से मामला दर्ज करने के लिए कहा।

मीट कारोबारी मोइन कुरैशी (बीच में)। मोइन ने 1993 में उत्तर प्रदेश के रामपुर में स्लॉटर हाउस की शुरुआत की थी। 2010 तक मोइन का कारोबार भारत के साथ-साथ दूसरे देशों में भी फैल गया।
मीट कारोबारी मोइन कुरैशी (बीच में)। मोइन ने 1993 में उत्तर प्रदेश के रामपुर में स्लॉटर हाउस की शुरुआत की थी। 2010 तक मोइन का कारोबार भारत के साथ-साथ दूसरे देशों में भी फैल गया।

सितंबर 2018 में CBI ने एक SIT बनाई। अस्थाना इस टीम को लीड कर रहे थे। SIT की जांच में सतीश ने कबूल किया कि उसने वर्मा को 2 करोड़ रुपए दिए हैं।

अब वर्मा की बारी थी। उन्होंने CBI की एक दूसरी टीम बनाई और सतीश सना से पूछताछ की। इस बार सतीश ने अस्थाना को 3 करोड़ रुपए रिश्वत देने की बात कही। इसके बाद CBI ने FIR दर्ज किया और राकेश अस्थाना को मुख्य आरोपी बनाया।

इस केस में तब रॉ के स्पेशल डायरेक्टर रहे सामंत गोयल का भी नाम शामिल था। हालांकि, उन पर कोई चार्ज नहीं था। बस यहीं से आलोक वर्मा केंद्र के निशाने पर आ गए।

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