ममता और माया का भतीजों से हो रहा मोहभंग?
सियासत के बीच बिगड़ते रिश्ते! ममता और माया का भतीजों से हो रहा मोहभंग?
ममता बनर्जी ने अपने सियासी वारिस के तौर पर भतीजे अभिषेक बनर्जी को 2014 के चुनाव में सियासत में लाने का काम किया था, जबकि मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को 2019 के चुनाव में सियासी तौर पर लॉन्च किया था, लेकिन इन रिश्तों पर सियासत भारी पड़ती दिख रही है. इनके बीच मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं.
मायावती का आकाश से मोहभंग
बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार के बेटे आकाश आनंद को दिसंबर 2023 में पार्टी की नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाने के साथ अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़ कर पार्टी की निगाह में कमजोर राज्यों में आकाश आनंद काम करेंगे. इस तरह से आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी मायावती ने सौंपी थी, जिसके बाद उन्होंने ताबड़तोड़ रैलियां शुरू कर दी और आक्रमक प्रचार शुरू कर दिया था. इस दौरान सीतापुर में आकाश आनंद पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में एफआईआर दर्ज हो गई. माना जाता है कि मायावती ने इसके चलते चुनाव के बीच आकाश आनंद को हटा दिया है और उत्तराधिकारी बनाने का फैसला भी वापस ले लिया.
बसपा प्रमुख मायावती के फैसला लिए जाने के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या उनका अपने भतीजे आकाश आनंद से मोहभंग हो गया है. हालांकि, मायावती ने अपने भाई और भतीजे को सियासत में लेकर आई तो उन पर परिवारवाद के आरोप लगे थे. इसकी वजह यह थी कि दलित समुदाय में सियासी चेतना जगाने के लिए कांशीराम ने बसपा का गठन किया था तो मायावती ने बसपा को सत्ता की बुलंदी तक पहुंचाने का काम किया. कांशीराम ने अपने परिवार से किसी लाने के बजाय मायावती को आगे बढ़ाने का काम किया था. वहीं, मायावती ने अपने भतीजे को पार्टी की कमान सौंपा, जिसके बाद से सवाल खड़े हो रहे थे.
दरअसल, बसपा और मायावती के जो राजनीति की कार्यशैली रही है, उससे अलग सियासी राह पर आकाश आनंद चल रहे थे. आकाश आनंद रैली में जिस तेवर और शैली में संबोधित करते नजर आ रहे थे, वो बसपा की राजनीति से मेल नहीं खाता है. इतना ही नहीं आकाश आनंद बसपा को एक नया रूप देना चाहते थे और वक्त के साथ पार्टी को लेकर जाना चाहते थे. ये बात बसपा में दूसरे नंबर के नेताओं को सूट नहीं कर रही थी. आकाश आनंद जिस तरह बीजेपी और मोदी-योगी सरकार पर सीधे हमले शुरू कर दिए थे, उससे मायावती असहज महसूस करने लगी थी. मायावती को आकाश से ऐसी सियासी उम्मीद नहीं थी कि वो इस तेवर में नजर आएंगे, जो पार्टी लाइन से मेल नहीं खाएगी.
माना जा रहा है कि मायावती अपने भतीजे आकाश आनंद को लेकर ओवर प्रॉटेक्टिव हैं. मायावती नहीं चाहतीं कि आकाश फिलहाल किसी मुश्किल में फंसे. इसीलिए उन्होंने एक्शन लेकर डैमेज कन्ट्रोल करने की कोशिश की है. हालांकि, मायावती नहीं चाहती है कि आकाश आनंद का राजनीतिक करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाए. ऐसे में मायावती ने एक संदेश देने की कोशिश की है ताकि संभल कर चले और कीचड़ उछालकर सियासत नहीं ती जाती है. उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि आकाश आनंद अगर भविष्य में मेच्योर होते हैं तो उन्हे बागडोर सौंपी जा सकती है. एक तरह आकाश आनंद के लिए अभी सियासी दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं. ऐसे समय में जब बसपा का जनाधार कम होता दिख रहा है तो वो बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपना कर अपनी पार्टी को संकट में नहीं डालनी चाहतीं. मामला ठंडा होने पर मायावती आकाश आनंद को दोबारा से उनकी कुर्सी सौंप सकती है.
साल 2011 में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही अभिषेक बनर्जी का भी बंगाल की राजनीति में उत्थान हुआ. साल 2011 में अभिषेक बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और साल 2014 में वह पहली बार डायमंड हार्बर लोकसभा केंद्र से सांसद बने और इसके साथ ही उनकी ताकत बढ़ी. अभिषेक बनर्जी की ताकत बढ़ने से शुभेंदु अधिकारी सहित कई नेता नाराज भी हुए और उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन जैसे-जैसे बंगाल की सियासत में उनकी पकड़ बढ़ने लगी. ममता बनर्जी से उनके मतभेद भी सामने आने लगे. साल 2016 में ममता बनर्जी ने जब दूसरी बार राज्य की सत्ता की कमान संभाली थीं, तो अभिषेक बनर्जी उनके शपथ समारोह में शामिल नहीं हुए. इस कारण ममता बनर्जी द्वारा मंत्रियों के चयन को लेकर मतभेद बताया गया था, लेकिन बाद में ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से मतभेद से इनकार किया. इस बीच, अटकलें लगीं कि उन्हें मंत्रिमंडल के मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, लेकिन बाद में अभिषेक बनर्जी खुलकर सामने आए और कहा कि वह संगठन के लिए काम करेंगे.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को बड़ा झटका लगा. राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 18 पर जीत हासिल की और टीएमसी सांसदों की संख्या घटकर 22 रह गई. लोकसभा चुनाव में टीएमसी की पराजय के बाद बंगाल की राजनीति में चुनावी रणनीतिकार के रूप में पीके की एंट्री हुई और ऐसा माना जाता है कि अभिषेक बनर्जी ने ही ममता बनर्जी की पीके की मदद लेने के लिए मनाया था और साल 2021 में ममता बनर्जी की तीसरी बार बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में वापसी हुई और 2021 में ममता बनर्जी ने अभिषेक को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव घोषित कर दिया और अभिषेक बनर्जी को अन्य राज्यों में पार्टी के विस्तार की जिम्मेदारी दी गई.
लेकिन गोवा और उत्तर पूर्वी भारत के राज्यों में हुए चुनाव में टीएमसी को करारी हार का सामना पड़ा और उसके बाद ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के बीच मतभेद खुलकर सामने आये. साल 2022 में ममता बनर्जी ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद सहित सभी पदों को खत्म कर दिया और 20 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्य समिति की घोषणा की. हालांकि अभिषेक उस कमेटी के सदस्य थे. इस समय भी ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के बीच तनाव खुलकर सामने आये थे, लेकिन बाद में फिर से अभिषेक बनर्जी को राष्ट्रीय महासचिव दोबारा नियुक्त कर दिया गया.
नए-पुराने में विवाद पर घमासान
इस बीच, तृणमूल कांग्रेस में युवा और अनुभवी नेताओं के बीच विवाद पैदा हुआ. अभिषेक बनर्जी को युवा पीढ़ी का नेतृत्व करने वाला और ममता बनर्जी को पुराने नेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया. अभिषेक बनर्जी ने अपने संसदीय क्षेत्र डायमंड हार्बर को विकास के मामले में मॉडल बताया और नए तृणमूल कांग्रेस की बात कही जाने लगी. नए और पुराने नेताओं के बीच विवाद फिर से उछला. 2023 में टीएमसी ने कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में भव्य सभा का आयोजन किया था. उस मेगा-पार्टी बैठक में अभिषेक बनर्जी वर्चुअली शामिल हुए, क्योंकि उनकी आंखों में संक्रमण हो गया था. हालांकि यह बहुत आम बात है कि टीएमसी के पोस्टरों में ममता और अभिषेक दोनों के चेहरे संयुक्त रूप से दर्शाए जाते हैं. यहां तक कि पार्टी की सबसे छोटी सभा में भी दोनों की तस्वीरें रहती थीं, लेकिन नेताजी इंडोर की एक भव्य पार्टी बैठक में अभिषेक का पोस्टर गायब था. इससे एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया, क्योंकि पूर्व टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने मीडिया में खुलकर बात की. कुणाल घोष ने कहा, ‘अभिषेक शारीरिक रूप से मौजूद नहीं थे, ऐसे में अभिषेक का पोस्टर होना चाहिए था.’
नए और पुराने के बीच विवाद इस लोकसभा चुनाव के पहले भी काफी तूल पकड़ा. पार्टी का महासचिव होने के बावजूद अभिषेक बनर्जी ने अपने को केवल अपने लोकसभा केंद्र डायमंड हार्बर तक ही सीमित रखा था. वह अपने संसदीय क्षेत्र से बाहर पार्टी के किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे थे. ऐसा कहा गया कि अभिषेक बनर्जी ममता बनर्जी द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन से सहमत नहीं थे. उनका कहना था कि पार्टी में युवा नेताओं को तरजीह दी जाए. पार्टी के युवा नेताओं को मौका दिया, लेकिन ममता बनर्जी इसके लिए राजी नहीं थीं और इसे लेकर कुणाल घोष और कोलकाता उत्तर के लोकसभा सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय के बीच जुबानी जंग भी हुई.
मतभेद, पर व्यक्तिगत नहीं: अभिषेक
ममता बनर्जी के काफी करीबी माने जाने वाले सुब्रत बख्शी भी खुल कर इस जंग में शामिल हुए थे. बाद में अभिषेक बनर्जी ने इंटरव्यू में खुद स्वीकार किया कि उनका ममता बनर्जी के साथ कई मुद्दों पर सहमति नहीं है, लेकिन इसके साथ ही कहा था कि उनकी और पार्टी की नेता ममता बनर्जी ही हैं. अभिषेक बनर्जी ने कहा था, ”ममता बनर्जी के साथ मेरे रचनात्मक और व्यवस्थित मतभेद हो सकते हैं, लेकिन वह कभी भी व्यक्तिगत नहीं होता है.” ममता बनर्जी के साथ सार्वजनिक रूप से कई मुद्दों पर असहमति की बात स्वीकार करने के बाद अब लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी के साथ-साथ प्रचार कर रहे हैं, लेकिन इस बीच एक बड़ा डेवल्पमेंट कुणाल घोष को हुआ है, कुणाल घोष अभिषेक बनर्जी के काफी करीबी माने जाते हैं. उन्हें पार्टी के महासचिव पद से हटा दिया गया है, हालांकि फिलहाल पार्टी चुनाव प्रचार में जुटी है और ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी भी लगातार चुनाव प्रचार कर रहे हैं, लेकिन इतना साफ है कि कुणाल घोष की महासचिव पद से विदाई लोकसभा चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद कुछ न कुछ गुल खिलाएगी.