इस गांव को कहते हैं अफसरों की फैक्टरी ?

 यहां हर घर में आईएएस… आईपीएस, आईआरएस; इस गांव को कहते हैं अफसरों की फैक्टरी; पीएम ने किया था जिक्र
इस गांव में अफसरों की फैक्टरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 मई को जौनपुर में थे। यहां चुनावी सभा में उन्होंने मुख्यालय से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित माधोपट्टी गांव का जिक्र अपने भाषण में किया था। इस गांव को अफसर पैदा करने वाली फैक्टरी कहा जाता है। कहा भी क्यों न जाए, गांव में करीब 75 परिवार हैं। 
इनके बीच से 50 से अधिक आईएएस, आईपीएस और आईआरएस निकले और देश के अलग-अलग राज्यों में तैनात हैं। पिछले चुनाव में 878 यानी 65 फीसदी अफसरों ने यहां मतदान किया था जबकि बीते पंचायत चुनाव में यह आंकड़ा 78 फीसदी रहा।

गांव में मिले प्रणव सिंह एक कहावत कहते हैं कि अदब से यहां सचमुच विराजती हैं वीणा वादिनी यानी मां सरस्वती का वास इस गांव में है। इसी तरह पीसीएस, पीपीएस, इंजीनियर, कई एमबीबीएस, वैज्ञानिक भी हैं, जो अलग-अलग राज्यों में सेवाएं दे रहे हैं।

इतने अफसर हैं कि ग्रामीणों को ही उनकी संख्या नहीं पता रहती है। 16 मई को जौनपुर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी गांव का नाम लिया था और कहा था कि आपके पास तो सबसे अधिक आईएएस, आईपीएस देने वाला गांव है।
प्रधानमंत्री ने कहा था कि सबसे अधिक अफसर आपके यहां का गांव दे रहा है। इससे ग्रामीण उत्साहित हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने गांव का नाम लिया और उपलब्धि भी बताई। राजनीति से कोसों दूर गांव के लोग कहते हैं कि इसमें कोई दोरायनहीं है कि पिछले पांच वर्षों में बहुत विकास हुआ है। 

 

प्रणव सिंह कहते हैं कि पहले केंद्र और राज्य में अलग-अलग सरकारें होती थीं तो विकास रुकता था। अब दोनों जगह भाजपा की सरकार होने का लाभ मिला और खूब विकास हुआ। हालांकि यह भी कहते हैं कि अभी स्वास्थ्य और शिक्षा के के क्षेत्र में बहुत काम होना बाकी है।

वीरेंद्र सिंह, सुखदेव सिंह, प्रेमलाल सिंह, धीरीन सिंह, दुखहरन सिंह कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के अलावा हमें खुद भी अपने स्तर से काम करना होगा। हम ऐसा कर सके तो जौनपुर में कई माधोपट्टी गांव होंगे। इस जिले से कई अफसर निकलेंगे और निकलने ही चाहिए।

1952 में गांव से निकला पहला आईएएस
1952 में इस गांव से डॉ. इंदुप्रकाश पहले आईएएस बने और यूपीएससी में दूसरी रैंक हासिल की। 1964 में छत्रसाल सिंह ने आईएएस परीक्षा पास और तमिलनाडु के मुख्य सचिव बने। साल 1964 में ही अजय सिंह और 1968 में शशिकांत सिंह आईएएस बने।
1995 में विनय सिंह आईएएस बने और बिहार के मुख्य सचिव बने। 1980 में आशा सिंह, 1982 में ऊषा सिंह और 1983 में इंदु सिंह भी सिविल सर्विस में चुनी गईं। गांव की ही बुजुर्ग लालमनी कहती हैं कि इन सब के अफसर बनने के पीछे माताओं की भूमिका बहुत अहम है।

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