मतदान धीरे-धीरे समाप्ति की ओर, किसके दावों में कितना है दम !
लोकसभा चुनाव 2024: मतदान धीरे-धीरे समाप्ति की ओर, किसके दावों में कितना है दम
विपक्षी पार्टियां भाजपा के बारे में तो बता रही हैं कि उन्हें बहुमत से कम सीटें मिलेंगी, लेकिन उन्हें कितनी सीटें मिलेंगी, वे यह नहीं बता पा रहीं। चुनाव के दौरान पक्ष और विपक्ष द्वारा विजय एवं सीटों के आंकड़ों को लेकर अपने-अपने दावे करना अस्वाभाविक नहीं है। ऐसा ही इस चुनाव के दौरान भी हो रहा है। अब जबकि मतदान धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है, हमारे सामने अलग-अलग दावे आ गए हैं। मसलन, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ गठबंधन को 79 सीटें प्राप्त हो रही हैं। राहुल गांधी कह रहे हैं कि चार जून के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे और भाजपा की सीटें डेढ़ सौ तक सिमट जाएंगी। ममता बनर्जी ने भाजपा को 200 से 220 सीटों तक सिमटा दिया है। अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि भाजपा की सीटें उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, झारखंड सब जगह घट रही हैं। क्या वाकई अब तक के मतदान, माहौल, आदि को आधार बनाकर ऐसा निष्कर्ष निकाला जा सकता है?
आज ऐसा क्या हो गया है कि लोग भाजपा को छोड़कर उसकी जगह सपा और कांग्रेस के गठबंधन को वोट देंगे? इस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस प्रभावहीन पार्टी है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व, हिंदुत्व, कानून-व्यवस्था, विकास, समाज के निचले तबके तक कल्याण कार्यक्रमों का लाभ पहुंचाना आदि भाजपा की जीत के प्रमुख कारण रहे हैं, जो आज भी विद्यमान हैं। माफियाओं की मृत्यु पर सपा का जो रवैया रहा, उससे जनता के बड़े वर्ग को लगा कि योगी आदित्यनाथ ही अपराधियों, माफियाओं और गुंडों के विरुद्ध कार्रवाई कर सकते हैं, सपा या अन्य दल नहीं।
अगर इसी पहलू को राष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो प्रश्न यही उठेगा कि जिन कारणों और सामूहिक मनोविज्ञान के तहत लोगों ने 2014 में स्थापित राजनीतिक शक्तियों को उखाड़कर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को बहुमत दिया, क्या वे कारण खत्म हो गए? वर्ष 2014 में भाजपा को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जनता का नकारात्मक एवं सकारात्मक, दोनों प्रकार का मत मिला था। तत्कालीन केंद्रीय शासन और राज्यों की पार्टियों, नेताओं की राजनीति और सत्ता के विरुद्ध लोगों का विद्रोह था, तो मोदी एवं भाजपा को व्यापक समर्थन। यूपीए सरकार के निराशाजनक प्रदर्शनों आदि के साथ हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रीय चेतना तथा एक नेता के रूप में नरेंद्र मोदी का गुजरात में प्रदर्शन और उनका व्यक्तित्व लोगों के लिए आकर्षण का कारण बना। वर्ष 2019 में भाजपा को और ज्यादा सीटें मिलीं। अब भी ये सारे कारण खत्म नहीं हुए हैं। बेशक एक-दो राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर हो सकता है, किंतु कुछ राज्यों-पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना में उसका प्रदर्शन बेहतर होने की संभावनाएं हैं।
विपक्षी पार्टियां भाजपा के बारे में तो बता रही हैं कि उन्हें बहुमत से कम सीटें मिलेंगी, लेकिन उन्हें कितनी सीटें मिलेंगी, यह कोई नहीं बता रहा। सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को ही लीजिए। उसका वोट प्रतिशत और सीट अचानक किस आधार पर इतना बढ़ जाएगा कि वह भाजपा के निकट पहुंच जाएगी? दक्षिण के तीन राज्यों- केरल, तेलंगाना और कर्नाटक में उसे कितनी सीटें मिल सकती हैं, जिससे यह मान लिया जाए कि कांग्रेस 150 या उससे ज्यादा स्थान प्राप्त कर लेगी? कर्नाटक में भाजपा अब भी एक बड़ी शक्ति है। इसलिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पूरी तरह पराजित करना कांग्रेस के लिए संभव नहीं दिखता। दिल्ली में विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त प्रदर्शन करने के बावजूद आप लोकसभा चुनाव कभी भाजपा के आसपास नहीं पहुंच सकी। कांग्रेस और आप, दोनों के पिछले चुनाव के मत प्रतिशत मिला दिए जाएं, तब भी भाजपा को मिले 56.86 प्रतिशत से काफी कम है।
स्वाति मालीवाल के विरुद्ध मुख्यमंत्री आवास में हिंसा के बाद आप को चुनावी सफलता मिलने की कल्पना नहीं की जा सकती। बिहार में नीतीश कुमार की वापसी को भाजपा, उसके समर्थकों, कार्यकर्ताओं और राजग के मतदाताओं ने बहुत सकारात्मक रूप से नहीं लिया है। इसके बावजूद वे प्रतिशोध में आकर राजद, कांग्रेस व अन्य दलों के पक्ष में मतदान करेंगे, ऐसा नहीं लगता। कई राज्यों में मतदान प्रतिशत में गिरावट हुई है, लेकिन अभी तक चुनाव में ऐसी प्रवृत्तियां नहीं दिखी हैं, जिनके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाए कि आम आम जनता गुस्से में नरेंद्र मोदी, भाजपा और राजग के विरुद्ध तथा विपक्षी गठबंधन के पक्ष में एकमुश्त मतदान कर रही है।