यूरिया का अत्यधिक इस्तेमाल पर मिट्टी पर कितना खतरनाक ?

कृषि..यूरिया का अत्यधिक इस्तेमाल पर मिट्टी पर कितना खतरनाक..पढि़ए पूरी खबर

-मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, एक एकड़ में दो की जगह पांच बोरी तक यूरिया डाल रहे किसान

छिंदवाड़ा. खेती में यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल से साल दर साल मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है। जमीन में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक की कमी वर्तमान में फसल उत्पादन प्रभावित होने के साथ मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर पडऩे की चेतावनी भी दे रही है। किसानों का असंतुलित खाद डालने का लोभ सब पर भारी है। ये तथ्य मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की एक रिपोर्ट में हुआ है।
इस पर कृषि वैज्ञानिकों और अधिकारियों ने चिंता जाहिर करते हुए किसानों को संयमित व्यवहार करने की सलाह दी है।
खरीफ सीजन अगले माह 15 जून को मानसूनी बारिश के साथ शुरू हो जाएगा। जिसमें छिंदवाड़ा और पांढुर्ना जिले के 2.98 लाख किसान 5 लाख हैक्टेयर के रकबे में फसल लगाएंगे। इस खेती के लिए 86 हजार मीट्रिेक टन खाद आ चुका है। किसानों सोसाइटी से इसका उठाव भी शुरू कर दिया है। ऐसे में किसानों को संयमित रूप से एक एकड़ में 2 से 3 बोरी यूरिया डालने की सलाह दी जा रही है। वजह साफ है कि मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की रिपोर्ट में यूरिया का अत्यधिक इस्तेमाल खतरनाक श्रेणी में पहुंच गया है।
असंतुलन से उत्पादन, लागत, मानव स्वास्थ्य प्रभावित
कृषि विभाग की मैदानी रिपोर्ट में ये तथ्य आया हैं कि जहां किसानों को मक्का समेत अन्य फसलों में एक एकड़ में दो बोरी यूरिया की जरूरत है, वे ज्यादा उत्पादन के लोभ में बेहिसाब 5-6 बोरी तक इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पौधे की ग्रोथ समय से ज्यादा होने पर फसल लेट रही है। फसल की लागत भी दुगनी हो रही है। ये उपज जब मानव आहार बनती है तो उनके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है।

खरीफ में मक्का, कपास और धान प्रमुख फसल

खरीफ सीजन में पांच लाख हैक्टेयर का रकबा है। इनमें मक्का 3.60 लाख, कपास 56 हजार, धान 32 हजार, अरहर 18 हजार, सोयाबीन 13 हजार, कोदो कुटकी 10 हजार और रामतिल का रकबा 3 हजार हैक्टेयर है। इसके अलावा दूसरी फसल भी होती है।

प्रयोगशाला रिपोर्ट में जिंक की सर्वाधिक कमी

मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की 31 मार्च की स्थिति में जारी रिपोर्ट के अनुसार छिंदवाड़ा और पांढुर्ना जिलों के किसानों से उनके खेतों की मिट्टी के 12300 नमूने लिए गए। इनमें सबसे ज्यादा जिंक तत्व की कमी पाई गई है। शेष तत्व आयरन, मैगनीज, कापर, सल्फर और बोरान की स्थिति संतोषजनक है। कृषि अधिकारियों के मुताबिक नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश की कमी भी बनी हुई है। जिसे किसान अनदेखा कर रहे हैं।

ये कर लें किसान तो दूर हो जाए संकट

रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि खेती में यूरिया के इस्तेमाल से केवल नाइट्रोजन और डीएपी से नाइट्रोजन, फास्फोरस की पूर्ति होती है। पोटाश, जिंक की कमी बनी रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि किसान एनपीके और जिंक का संतुलित इस्तेमाल कर लें तो मिट्टी की सेहत सुधर सकती है। फिलहाल कृषि विभाग ने अपने मैदानी कर्मचारियों को किसानों को समझाइश देने में लगाया है।
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इनका कहना है…

खरीफ सीजन की मक्का समेत अन्य फसलों में यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल से हो रहे मिट्टी में हो रहे नुकसान से किसानों को अवगत कराया जा रहा र्है। मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक की कमी सामने आई है। इससे जिले का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। फिलहाल किसानों को खाद में एनपीके व जिंक का संतुलित इस्तेमाल करने की सलाह दी जा रही है।
-जितेन्द्र कुमार सिंह, उपसंचालक कृषि।
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यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल से अनावश्यक वनास्पतिक वृद्धि होती है। मक्का और गेहूं में इसके दुरुपयोग से फसल गिरने की समस्या आ रही है। जमीन में छिडक़ाव से केवल 65 फीसदी लाभ है। इसकी तुलना में फोलियर स्प्रे से नैनो खाद से 95 फीसदी फायदे हो रहे हैं। किसान संघ खेती में मिश्रित खाद एनपीके समेत अन्य को बढ़ावा देने प्रयासरत है। खाद का संतुलित इस्तेमाल से ही मिट्टी की सेहत बरकरार रखी जा सकती है।
 जिलाध्यक्ष भारतीय किसान संघ।

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