अयोध्या आखिर कैसे हार गई भाजपा ?

अयोध्या आखिर कैसे हार गई भाजपा

जिस मुद्दे पर देशभर में चुनाव लड़ा, वहां की नब्ज नहीं पकड़ पाई; चूक या कुछ और वजह

यूपी की सबसे हॉट सीट बन गई है फैजाबाद। यहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के भव्य आयोजन के बाद किसी को कल्पना भी नहीं थी कि भाजपा यहां से हार सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी के बाद सबसे ज्यादा फोकस इसी सीट पर था। चुनाव की घोषणा के बाद मोदी ने यहां रोड शो किया। सीएम योगी ने भी 3 जनसभाएं कीं। सारी ताकत लगाने के बाद भी सपा के अवधेश प्रसाद ने 54567 वोटों से भाजपा के लल्लू सिंह को हरा दिया।

भाजपा की इस हार ने यूपी में 1993 में हुए विधानसभा चुनाव की याद दिला दी। उस समय विधानसभा चुनाव में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा के काशीराम एक साथ आए थे। कुछ वैसी ही स्थिति इस बार भी देखी गई। यूपी के सियासी मैदान में अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ आए और भाजपा को पिछले एक दशक में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

ऐसे में कई सवाल उठ रहे हैं। पहला- आखिर अयोध्या में भाजपा की क्या कमियां रहीं? दूसरा- अखिलेश यादव ने क्या स्ट्रैटजी बनाई, जिससे भाजपा कैंडिडेट को लोगों ने नकार दिया। तीसरा- क्या विकास के मुद्दे पर जातीय समीकरण भारी पड़ा। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

पहली तस्वीर चुनाव जीते सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद की और दूसरी भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह के घर फैले सन्नाटे की है।
1- भाजपा में टूट, बसपा की तरफ शिफ्ट हुए वोट
भाजपा ने अयोध्या में 2 बार से जीत रहे लल्लू सिंह को प्रत्याशी बनाया। लेकिन, राम मंदिर की आंधी में कार्यकर्ताओं का फीडबैक नहीं लिया। यही वजह रही, भाजपा से सच्चिदानंद पांडेय जैसे युवा नेता टूट गए। चुनाव की घोषणा के 6 दिन पहले 12 मार्च को सच्चिदानंद ने बसपा जॉइन कर ली। इसके बाद उन्हें यहां से टिकट दे दिया गया। चुनावी मैदान में उतरे सच्चिदानंद को 40 हजार से ज्यादा वोट मिले।

2- राम मंदिर को ज्यादा तवज्जो दी, लोकल मुद्दे भूले

A- जमीन अधिग्रहण से लोगों में गुस्सा: अयोध्या में राम मंदिर के बाद सबसे ज्यादा चर्चित मुद्दा जमीन अधिग्रहण का रहा। यहां नए घाट से राम मंदिर तक सड़क को चौड़ा किया गया। सड़क के दोनों तरफ के घर और दुकानों को तोड़ा गया। कई लोगों की जमीन का अधिग्रहण हुआ। जो लोग सदियों से यहां बसे थे, उनका आशियाना टूट गया। जानकार मानते हैं, अयोध्या के विकास के लिए जिस तरह से जमीनों का अधिग्रहण किया गया, उसे लेकर जनता में नाराजगी रही।

B- दो बार सांसद रहे, काम नहीं कराए: लल्लू सिंह 2014 और 2019 में सांसद रहे। लेकिन, न तो जनता के बीच पहुंचे और न ही विकास के काम में रुचि दिखाई। वह सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रहे थे। इसके अलावा महंगाई और बेरोजगार का मुद्दा भी काम करता दिखा।

3. लल्लू सिंह का बयान बना बड़ा मुद्दा
लल्लू सिंह का एक बयान सोशल मीडिया पर खूब चर्चित रहा। इसमें उन्होंने कहा था- भाजपा को 400 सीट इसलिए चाहिए, क्योंकि संविधान बदलना है। इस बयान को अखिलेश और राहुल गांधी ने इस तरह से सबके सामने रखा कि अगर भाजपा 400 पार जाती है, तो वह संविधान बदल सकती है। हालांकि, बाद में मोदी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए कहा- अगर बाबा साहेब अंबेडकर स्वयं उतर आएं, तो भी संविधान नहीं बदला जा सकता। लेकिन इस बयान से डैमेज कंट्रोल हो नहीं पाया।

पहली स्ट्रैटजी: शहर से ज्यादा ग्रामीण इलाकों पर फोकस
अखिलेश यादव और स्थानीय सपा के संगठन ने अयोध्या में सबसे ज्यादा फोकस ग्रामीण क्षेत्र पर रखा। खुद अखिलेश ने यहां पर दो चुनावी जनसभाएं कीं, एक मिल्कीपुर और दूसरी बीकापुर में। ये दोनों तहसीलें ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।

अखिलेश यादव ने यहां राम मंदिर पर तो कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन ग्रामीणों को शहर में हो रही परेशानियों से जरूर वाकिफ करवाया। जमीन अधिग्रहण, मुआवजे का मुद्दा, युवाओं को नौकरी जैसी भावनात्मक लगाव से लोगों को जोड़ा। लोकल यूनिट का यही फीडबैक भी था कि पूरे अयोध्या के रूरल एरिया में भाजपा नेताओं के खिलाफ नाराजगी है। इसे अखिलेश ने कैश कराने की पूरी कोशिश की।

दूसरी स्ट्रैटजी: जातीय समीकरणों में उलझ गए BJP प्रत्याशी
अयोध्या लोकसभा क्षेत्र में ओबीसी 22%, दलित 21%, मुस्लिम 19%, ठाकुर 6%, ब्राह्मण 18% और वैश्य 10% के करीब है। अखिलेश यादव ने अपने PDA फॉर्मूले को अपना कर दलित, मुस्लिम और ओबीसी कॉम्बिनेशन को मजबूत किया। यहां जातीय समीकरणों को देखें तो 2014 में लल्लू सिंह ने मित्रसेन यादव को मोदी लहर में दो लाख 82 हजार मतों से हराया था। तब बसपा प्रत्याशी को एक लाख 41 हजार और कांग्रेस के निर्मल खत्री को एक लाख 29 हजार वोट मिले थे। पिछले चुनाव में जब सपा और बसपा साथ आई तो यह अंतर घट गया था। इस बार दलित, ओबीसी और मुस्लिम वोट सपा की तरफ चला गया।

तीसरी स्ट्रैटजी : मुस्लिम को एकजुट किया गया
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा गठबंधन सफल नहीं रहा था, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में काम कर गया। मुस्लिम वोट एकजुट होकर इंडी गठबंधन के पक्ष में गया। वहीं, जिस हिंदू वोट के सहारे भाजपा को जीत मिल रही थी, इंडी गठबंधन उसे बांटने में कामयाब रही। बसपा का दलित वोट, ओबीसी और ब्राह्मण और ठाकुर वोटों की नाराजगी भी एक वजह रही, जिससे भाजपा को बड़ा झटका लगा।

विकास पर भारी पड़ गया जातीय समीकरण

  
68 साल पुरानी सीट, 7 बार कांग्रेस… 4 बार भाजपा का कब्जा
फैजाबाद सीट पर पहली बार 1957 में लोकसभा चुनाव हुआ था। तब से अब तक यहां 7 बार कांग्रेस और 4 बार भाजपा ने जीत हासिल की है। इसके अलावा सपा, बसपा और भारतीय लोक दल भी यहां से जीत हासिल कर चुकी है। हालांकि बीते दस साल यानी कि दो बार से फैजाबाद सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार था।

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यूपी: अयोध्या में BJP के हारने की 8 बड़ी वजहें क्या हैं?

राम मंदिर निर्माण का भी नहीं मिला फायदा

अयोध्या में सपा ने जीत का परचम लहराया है और बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। राम मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के इतने बड़े आयोजन के बावजूद बीजेपी यहां से जीत नहीं सकी है।

अयोध्या में सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद जीते, बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह हारे
अयोध्या: लोकसभा चुनावों के नतीजे घोषित हो चुके हैं। यूपी में बीजेपी को करारा झटका लगा है। यहां की 80 सीटों में सपा को 37, बीजेपी को 33, कांग्रेस को 6, आरएलडी को 2, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) को एक और अपना दल (सोनेलाल) को एक सीट मिली है। 

अयोध्या में समाजवादी पार्टी जीती
यूपी में सबसे ज्यादा चौंकाने वाले आंकड़े अयोध्या से सामने आए हैं। अयोध्या में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद 54,567 वोटों से जीते हैं। उन्हें कुल 5,54,289 वोट मिले। वहीं बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह को 4,99,722 वोट मिले। तीसरे नंबर पर बसपा के सच्चिदानंद पांडे रहे, उन्हें 46,407  वोट मिले। 

राम मंदिर निर्माण का नहीं मिला फायदा 
बीजेपी ने राम मंदिर के मुद्दे पर देशभर में माहौल बनाया था और उसे उम्मीद थी कि इसका फायदा उसे यूपी के लोकसभा चुनावों में मिलेगा। लेकिन बीजेपी की ये रणनीति न सिर्फ यूपी में धराशायी हो गई बल्कि अयोध्या में भी उसे बिल्कुल विपरीत नतीजे मिले।

जनता के बीच भी ये चर्चा जोरों पर है कि जिस अयोध्या में बीजेपी ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का इतना बड़ा आयोजन किया और इस इवेंट को दुनियाभर में हाईलाइट किया, वहां से वह हार गई। 

अयोध्या में पीएम मोदी खुद गए, सीएम योगी ने भी कई दौरे किए, देशभर की हस्तियों को यहां बुलाया गया, फिर भी बीजेपी यहां से जीत हासिल नहीं कर सकी।

अयोध्या में क्यों हारी BJP? 
जातिगत समीकरण: अयोध्या में पासी बिरादरी बड़ी संख्या में है। ऐसे में सपा ने पासी चेहरे अवधेश प्रसाद को अयोध्या में अपना उम्मीदवार बनाया। यूपी की सियासत में अवधेश प्रसाद दलितों का एक बड़ा चेहरा हैं और उनकी छवि एक जमीनी नेता की है। सपा को अयोध्या में दलितों का खूब वोट मिला।

अवधेश की लोकप्रियता: सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद की अयोध्या की जनता पर अच्छी पकड़ है। इस बात का अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि वह 9 बार के विधायक हैं और मंत्री भी रहे हैं। वह समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 
संविधान पर बयान पड़ा भारी: अयोध्या से बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह का संविधान को लेकर दिया गया उनका बयान भारी पड़ गया। लल्लू सिंह वही नेता हैं, जिन्होंने कहा था कि मोदी सरकार को 400 सीट इसलिए चाहिए क्योंकि संविधान बदलना है। उनके इस बयान का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा।

लल्लू सिंह से नाराजगी: लल्लू सिंह अयोध्या से 2 बार से सांसद हैं। बीजेपी ने उन्हें तीसरी बार उम्मीदवार बनाया। जबकि जनता के बीच लल्लू को लेकर काफी नाराजगी दिखी क्योंकि अयोध्या के आस-पास के इलाकों में विकास के कार्य नहीं हुए। राम मंदिर पर फोकस्ड होने की वजह से जनता के मुद्दे पीछे छूटते गए। जिसका असर ये हुआ कि लल्लू को कम वोट पड़े।
राम मंदिर निर्माण के लिए घर और दुकान तोड़े गए: अयोध्या में 14 किलोमीटर लंबा रामपथ बनाया गया। इसके अलावा भक्ति पथ और रामजन्मभूमि पथ भी बना। ऐसे में इसकी जद में आने वाले घर और दुकानें टूटीं लेकिन मुआवजा सभी को नहीं मिल सका। उदाहरण के तौर पर अगर किसी शख्स की 200 साल पुरानी कोई दुकान थी लेकिन उसके पास कागज नहीं थे तो उसकी दुकान तो तोड़ी गई लेकिन मुआवजा नहीं दिया गया। मुआवजा केवल उन्हें मिला, जिसके पास कागज थे। ऐसे में लोगों के बीच नाराजगी थी। जिसे उन्होंने वोट न देकर जाहिर किया।

आरक्षण पर मैसेज पड़ा भारी: अयोध्या में बीजेपी को अपने नेताओं की बयानबाजी और प्रोपेगंडा भी भारी पड़ा। जनता के बीच ये मैसेज गया कि बीजेपी आरक्षण को खत्म कर देगी। संविधान को बदल देगी। ऐसे में वोटरों का एक बड़ा तबका सपा की ओर चला गया।

युवाओं में गुस्सा: बीजेपी को लेकर युवा वर्ग में एक गुस्सा दिखाई दिया। युवा अग्निवीर स्कीम को लेकर सरकार से सहमत नहीं दिखे। वहीं बेरोजगारी और पेपर लीक भी युवाओं के गुस्से की अहम वजह रही। इस वजह से युवाओं का वोट भी अयोध्या में बीजेपी के खिलाफ गया। 

कांग्रेस के लिए दलितों में सॉफ्ट कॉर्नर: जहां अयोध्या के दलितों में बीजेपी को लेकर नाराजगी थी, वहीं कांग्रेस के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर भी था। जिसका असर चुनावों में देखने को मिला। 
 

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