ग्रामीण अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती ?
ग्रामीण अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती; चुनाव नतीजों में दिखा असर, क्या मोदी सरकार 3.0 लेगी फैसला?
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत हो चुकी है. चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने कई बार कहा था कि नई सरकार में वह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बड़े फैसले लेंगे.
लोकसभा चुनाव के प्रचार प्रसार के दौरान ही पीएम मोदी ने कई बार सार्वजनिक मंच पर कहा था उनका तीसरा कार्यकाल बड़े फैसलों वाला होगा. उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया था कि पिछले 10 साल का काम तो सिर्फ ट्रेलर है.
भारत में करीब छह दशक बाद ऐसा हुआ जब कोई नेता लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बना. नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के साथ उनके नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है.
18वीं लोकसभा के प्रचार के दौरान मादी सरकार ने ग्रमीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर भी काफी जोड़ दिया था. पिछले कुछ सालों में भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की आय काफी कम हुई है. नवंबर 2023 में आई आरबीआई की एक रिपोर्ट की मानें तो गांवों में मजदूरी इतनी कम है कि लोगों का पेट नहीं भरा जा सकता है. इसी तरह महंगाई के साथ ही बेरोजगारी का भी एक बड़ी चुनौती है. यूपी में इसका असर साफ देखा जा सकता है.
तमाम रिपोर्ट्स की मानें तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सरकार का ज्यादा फोकस नहीं रहा है. बीते 2-3 सालों में मनरेगा और सब्सिडी का दायरा भी घटा है.
लोकसभा चुनाव 2024 के नजरिए से देखें तो बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए ने ग्रामीण इलाकों के जुड़ीं 221 सीटें जीती हैं. वहीं साल 2019 में ये आंकड़ा 251 था जबकि इंडिया गठबंधन ने इस बार 157 सीटें जीती हैं.
ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि एनडीए सरकार को अपने तीसरे कार्यकाल में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए क्या कदम उठाना चाहिए…
सूत्रों से मिली जानकारी की मानें तो इस कार्यकाल में मोदी सरकर जनता के आय में स्थिरता की समस्या और ग्रामीण संकट को दूर करने के उद्देश्य से कई कदम उठा सकती है.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार वर्तमान में चल रही योजनाओं को मजबूत करेगी. मोदी सरकार इस बार विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र को टारगेट करते हुए नई योजनाएं ला सकती है. इसके अलावा राजकोषीय लागत (fiscal cost) को ध्यान में रखते हुए उपभोग मांग (consumption Demand) को बढ़ावा देने की योजना के हिस्से के रूप में मध्यम कर राहत (moderate tax relief) पर भी विचार किया जा रहा है.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के लिए इन क्षेत्रों पर करना होगा काम
शैक्षिक जागरूकता का अभाव: भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा सरकारी स्कूलों पर निर्भर है. ग्रामीण स्कूलों के छात्रों की डिजिटल लर्निंग, कंप्यूटर शिक्षा और गैर-शैक्षणिक पुस्तकों जैसे एडवांल लर्निग टूल तक पहुंच नहीं है. केंद्र सरकार को इस कार्यकाल में अगर अर्थव्यवस्ता को बढ़ावा देना है तो इन क्षेत्रों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने पर काम करना होगा.
इसके साथ ही, ग्रामीण परिवार अलग अलग कारणों से हमेशा आर्थिक बोझ में दबे रहते हैं. उनके लिये अपने बच्चों की शिक्षा दूसरी प्राथमिकता बन जाती है, ऐसे में यहां के लोगों को जागरूक करने के लिए भी योजनाएं चलाई जानी चाहिये. ताकि लोग अपने बच्चों को पढ़ा सकें.
प्रभावी प्रशासन का अभाव: हमारे देश में सफल ग्रामीण विकास की राह में सबसे बड़ी समस्या है प्रशासनिक प्रणाली में पारदर्शिता की कमी. इन क्षेत्रों में राजनीतिक जागरूकता की कमी के कारण भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है. विशेष प्रयोजन एजेंसियों और पंचायतों के बीच जवाबदेही की कमी भी इस समस्या में योगदान देती है.
ग्रामीण-शहरी जल विवाद: भारत में शहरों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवासियों की एक बड़ी तादाद ने शहरों में जल के प्रति व्यक्ति उपभोग में वृद्धि कर दी है. इसने शहरी क्षेत्रों में जल की कमी की पूर्ति के लिये ग्रामीण जल स्रोतों से जल के ट्रांसफर को गति दी है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जल की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पा रही है.
कॉफी उत्पादन में कमी को लेकर लाई जा सकती है योजनाएं
इस साल यानी 2024 में कॉफी उत्पादन और उपज पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना है. इसका सबसे बड़ा कारण मौसम परिवर्तन को बताया जा रहा है. अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) के स्थानीय भारत कार्यालय ने हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया कि मार्च-मई के दौरान कम प्री-मॉनसून बारिश से भारतीय कॉफी की पैदावार प्रभावित हुई. कॉफी का उत्पादन कम होने के कारण भारत में अक्टूबर महीने से शुरू हुई 2024-25 मार्केटिंग सीजन में भी काफी नुकसान हुआ है.
अगले साल भी कम उत्पादन का डर
यूएसडीए के एक पोस्ट में कहा गया है कि फसल के द्विवार्षिक उत्पादन चक्र के ‘ऑन-ईयर’ में प्रवेश करने के बाद भी भारत के अरेबिका असर क्षेत्र में 1 फीसदी की कमी होने की उम्मीद है. ऐसे में अगले साल देश में कॉफी के पैदावार में 3 प्रतिशत की कमी हो सकती है.
तीसरे कार्यकाल में केंद्र सरकार ऐसी योजनाएं लाने की तैयारी में है जिससे किसानों को हो रहे नुकसान के वक्त मदद मिल सके और वो आने वाले सालों में भी फसल की रोपाई करते रहे.
कम फसल पैदावार के कारण गांव से पलायन कर रहे हैं लोग
बिजनस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में मौसम परिवर्तन का असर किसी एक फसल पर नहीं बल्कि ज्यादातर फसलों पर हुआ है. ऐसे में ग्रामीण इलाकों में कम मानसून के कारण फसल उत्पादन में कमी को देखते लोग ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर रहे हैं.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के डेटा से पता चला है कि फरवरी 2024 तक पिछले साल की तुलना में खेती करने वाले किसानों की संख्या में कमी आई है, जिससे यह कहना गलत नहीं होगा कि ग्रामीण इलाकों के सुधार में अभी भी उम्मीद से ज्यादा समय लग सकता है.
हालांकि, कुछ फाइनैंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से ये भी कहा गया है कि सरकार किसी भी नए बड़े पैमाने के हैंडआउट की घोषणा करने से बच सकती है.
फाइनैनशियल एक्सप्रेस इसी रिपोर्ट में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े अर्थशास्त्री संदीप वेम्पति कहते हैं कि “ग्रामीण मांग में गिरावट मौसमी है और तनाव का कोई संकेत नहीं है. इसलिए फिलहाल सरकार ग्रामीण मांग को बढ़ावा देने के लिए किसी बड़े अतिरिक्त उपाय की घोषणा करने से बच सकते हैं.”
वहीं बेंगलुरु के बेस विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर एनआर भानुमूर्ति का कहना है कि नई सरकार का फोकस ग्रामीण रोजगार पर होना चाहिए. केंद्र सरकार को ग्रामीण संकट को दूर करने के लिए ग्रामीण उद्योगों और एमएसएमई में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे.
किसानों के वित्तीय सहायता को बढ़ाया जा सकता है
केंद्र सरकार अपने कार्यकाल में पीएम-किसान के तहत किसानों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता में 2000 रुपए की बढ़ोतरी की घोषणा कर सकती है. इससे देश में किसानों को मिलने वाली वार्षिक राशि बढ़कर 6,000 रुपए हो जाएगी.
केंद्र वर्तमान में इस योजना के तहत लगभग 60,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च करता है. अतिरिक्त 2,000-3,000 करोड़ रुपये बढ़ाने से 85 मिलियन लाभार्थियों का खर्च 17,000-25,000 करोड़ रुपये तक बढ़ सकता है.
हेल्थ सिस्टम पर खर्च
इकोनॉमिक लॉज़ प्रैक्टिस के पार्टनर राहुल चरखा ने कहा कि करदाता हर गुजरते दिन के साथ नए स्वास्थ्य मुद्दों से जूझ रहे हैं, सरकार को चिकित्सा संबंधी खर्चों पर बजट बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए.
चरखा ने कहा, “मेडिक्लेम, जीवन बीमा प्रीमियम और चिकित्सा व्यय के लिए 2.5 लाख रुपये की सीमा के साथ कुल कटौती प्रदान करना विवेकपूर्ण होगा.” वर्तमान में, आयकर अधिनियम की धारा 80डी के तहत 80,000 रुपये तक के चिकित्सा बीमा/खर्च पर कटौती की अनुमति है.
मौसम परिवर्तन कैसे डाल रहा है फसलों के उत्पाद पर असर
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट में इस सवाल के जवाब में कृषि और उपभोक्ता अर्थशास्त्र के प्रोफेसर मधु खन्ना कहती हैं, मौसम में हो रहे परिवर्तन के प्रभावों को मापने वाले ज्यादातर में हर साल हो रहे बदलावों को देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि हमने 60 सालों के आंकड़ों का इस्तेमाल कर यब पता लगाया कि मौसम में हो रहे बदलाव तीन प्रमुख फसलों – चावल, मक्का और गेहूं की पैदावार को किस तरह प्रभावित करता है.
दरअसल मौसम में बदलाव कुछ समय के लिए होता है, जैसे गर्म दिन के बाद अचानक गरज के साथ बारिश आ जाना. हालांकि, इस तरह की विविधताएं लंबे समय में अलग-अलग हो सकती हैं, जो जलवायु परिवर्तन की पहचान हैं.
खन्ना कहती हैं कि उन्होंने 60 सालों के मौसम में हुए बदलाव के आंकडे़ से यह पता लगाया कि गर्मी के मौसम में अचानक हो जाने वाली बारिश या बारिश के मौसम में देर से मॉनसून का आना फसल का उत्पादन कम होने की एक बड़ी वजह है.