24 के रण में क्यों मझधार में फंसी बीजेपी की नैय्या?

24 के रण में क्यों मझधार में फंसी बीजेपी की नैय्या? RSS ने गिना दीं हार की वजहें
RSS on Lok Sabha Elections Result 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के शुरू होने से पहले बीजेपी ने 400 पार का नारा दिया था, लेकिन 4 जून को आए नतीजों ने हर किसी को चौंका दिया. अब इन नतीजों पर RSS ने बात की है.

RSS on Lok Sabha Elections Result 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आ गए हैं और देश में एक बार फिर पीएम मोदी के नेतृत्व में NDA की सरकार भी बन गई हैं. इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र में बीजेपी कार्यकर्ताओं और RSS के मुद्दे पर बात की गई है. इसमे कहा गया है कि बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनावों में मदद के लिए आरएसएस से संपर्क नहीं किया.

आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में संगठन के सदस्य रतन शारदा के लेख में चुनाव नतीजों को बीजेपी नेताओं के लिए अति आत्मविश्वासी बताया गया है. कहा गया, ”2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वासी बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए एक वास्तविकता के रूप में सामने आए. उन्हें एहसास नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 पार का आह्वान उनके लिए एक लक्ष्य और विपक्ष को चुनौती देने जैसा था.”

लोकसभा चुनाव के नतीजों को लेकर बीजेपी पर किया कटाक्ष

लेख में कहा गया कि कोई भी लक्ष्य मैदान पर कड़ी मेहनत से हासिल होता है. न कि सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से होता है. चूंकि वे अपने बुलबुले में खुश थे. नरेंद्र मोदी के नाम की चमक का आनंद ले रहे थे, इसलिए वे सड़कों पर आवाज नहीं सुन रहे थे. ये चुनावों के परिणाम कई लोगों के लिए सबक है. 2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम इस बात का संकेत है कि बीजेपी को अपनी राह में सुधार करने की जरूरत है. कई कारणों से नतीजे उसके पक्ष में नहीं गए.

बीजेपी और संघ के संबंधों पर डाला प्रकाश

आरएसएस के सदस्य रतन शारदा ने लेख में बीजेपी और संघ के संबंधों पर भी बात की. उन्होंने कहा कि मैं इस आरोप का जवाब देना चाहता हूं कि इस चुनाव में आरएसएस ने बीजेपी के लिए काम नहीं किया. मैं साफ-साफ कह दूं कि आरएसएस बीजेपी की कोई फील्ड फोर्स नहीं है. वास्तव में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के पास अपने कार्यकर्ता हैं. मतदाताओं तक पहुंचना, पार्टी का एजेंडा समझाना, साहित्य और वोटर कार्ड बांटना आदि जैसे नियमित चुनावी काम उसी की जिम्मेदारी है. आरएसएस लोगों को उन मुद्दों के बारे में जागरूक करता रहा है, जो उन्हें और देश को प्रभावित करते हैं.

‘RSS ने नहीं की बीजेपी की मदद’

उन्होंने आगे कहा कि 1973-1977 के दौर को छोड़कर आरएसएस ने सीधे राजनीति में हिस्सा नहीं लिया. वह एक असाधारण दौर था और उस चुनाव में लोकतंत्र की बहाली के लिए कड़ी मेहनत की गई थी. 2014 में RSS ने 100 प्रतिशत मतदान का आह्वान किया था. इस अभियान में मतदान प्रतिशत में सराहनीय वृद्धि हुई और सत्ता में बदलाव हुआ. इस बार भी यह निर्णय लिया गया कि आरएसएस कार्यकर्ता 10-15 लोगों की छोटी-छोटी स्थानीय, मोहल्ला, भवन, कार्यालय स्तर की बैठकें आयोजित करेंगे और लोगों से मतदान करने का अनुरोध करेंगे. इसमें राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवादी ताकतों को समर्थन के मुद्दों पर भी चर्चा की गई. अकेले दिल्ली में ही 1,20,000 ऐसी बैठकें हुई हैं. 

सांसदों और मंत्रियों की आलोचना की

लेख में बीजेपी सांसदों और मंत्रियों की भी आलोचना की गई. शारदा ने कहा, “बीजेपी या आरएसएस के किसी भी कार्यकर्ता और आम नागरिक की सबसे बड़ी शिकायत स्थानीय सांसद या विधायक से मिलना मुश्किल या असंभव होना है. मंत्रियों की तो बात ही छोड़िए. उनकी समस्याओं के प्रति असंवेदनशीलता एक और आयाम है. बीजेपी के चुने हुए सांसद और मंत्री हमेशा व्यस्त क्यों रहते हैं. वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में कभी दिखाई क्यों नहीं देते. संदेशों का जवाब देना इतना मुश्किल क्यों है. 

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