देश भर में UAPA के 9000 से अधिक मामले … वाक्-स्वातंत्र्य पर है खतरा ?

एक अरुंधति या शौकत की बात नहीं, देश भर में UAPA के 9000 से अधिक मामले, वाक्-स्वातंत्र्य पर है खतरा

दिल्ली के उपराज्यपाल ने 14 साल पुराने मामले में अरुंधति रॉय पर यूएपीए एक्ट के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति दे है. उनके साथ शेख शौकत हुसैन का भी नाम शामिल है. अरुंधति रॉय पर ये आरोप है कि 2010 में एक सभा- आजादी, द ओनली वे- के दौरान उन्होंने कश्मीर को भारत से अलग कर पाकिस्तान को दे देने की बात कही थी. उसके बाद भी उनका विरोध हुआ था. अब यूएपीए एक्ट के अंतर्गत मुकदमा चलाने के लिए कहा गया है. उप राज्यपाल का जैसे ही ये निर्णय आया तो इस मामले का विरोध होना शुरू हो गया. फैसले का विरोध करने वालों ने कहा कि व्यक्ति की अपनी अभिव्यक्ति भी हो सकती है. यूएपीए के तहत इन पर मुकदमा चलाना तो वाक्-स्वातंत्र्य पर हमले जैसा है. अब इसके पक्ष और विपक्ष में बहस शुरू हो गयी है. 

संविधान सबके लिए एक 

‘फ्रीडम आफ स्पीच’ संवैधानिक तौर पर सभी के लिए है. आपके बोलने और लिखने पर कोई कार्रवाई की जाती है तो वो अभिव्यक्ति के अंतर्गत ही आ जाता है. मीडिया से जुड़े लोगों को थोड़ी इसमें और आजादी हो जाती है. ये सब कुछ संविधान के धारा 19A के अंतर्गत ही आता है. यही धारा सभी आमजन के लिए भी होती है. किसी को इसमें कोई खास आजादी नहीं मिलती है. इसके साथ ही जो कुछ छूट मिली है, उसका दायरा 19 बी में पारिभाषित सीमाओं से तय होता है. अरुंंधति के मामले में दो बातें सोचने की हैं. पहला, तो 14 साल पुराने मामले को उठाकर फिर रिवाइव कराना और यूएपीए एक्ट को लेकर बात है. सरकार किसी की भी, यानी किसी भी पार्टी की रहे, ‘स्टेट’ अपने पास एक विशेष अधिकार हमेशा रखता है. ऐसे में पुराने मामले को निकालकर सामने लाया जाता है जिसके माध्यम से पोलराइज करने की कोशिश की जाती है. उसकी टाइमिंग और उसके पीछे उनका क्या मंशा है? ये तो अप्रूवल देने वाले को ही पता होता है. आम तौर पर उप राज्यपाल की ओर से मंजूरी आना काफी चौंकाता है, हालांकि, ऐसे मामले पहले भी काफी हुए हैं. कन्हैया कुमार का भी मामला काफी समय तक लंबित रहा उसके बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने अनुमति दी और उसके बाद केस चलाया गया. आखिरकार उप राज्यपाल ने इस केस को लेकर यूएपीए एक्ट के अंतर्गत केस चलाने का अनुमति दी है, इसकी टाइमिंग को लेकर भी रहस्य तो बना ही है.  

कश्मीर का वह अलग दौर 

2010 के समय की स्थिति काफी ही अलग थी. उस समय जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू था, उस समय अलगाववादी नेता यासीन मलिक बाहर थे. अलगाववादी पार्टियां भी उस समय काफी एक्टिव थीं. आज के समय में सरकार का खुद ही दावा है कि जम्मू कश्मीर में डेमोक्रेसी वापस आ चुकी है. इस बार के लोकसभा चुनाव में जमात-ए-इस्लामी के लोग तक कतार में खड़ा होकर वोटिंग की प्रक्रिया में भाग लिए. इसका असर भी देखने को व्यापक रूप से मिला, इसमें दो बड़े खानदानों को चुनाव में करारी हार मिली. महबूबा मुफ्ती और उमर अबदुल्ला को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. एक गजब की बात है कि जो बारामूला से चुनाव जीता है वो राशिद यूएपीए एक्ट के अंतर्गत जेल में बंद है. इस चुनाव में खासकर कश्मीर में दो बड़ी घटनाएं देखने को मिली हैं. एक तो सरकारी दावा है कि जम्मू कश्मीर में डेमोक्रेसी वापस आई है, दूसरी बात यह है कि लोकतांत्रिक चुनाव में जो व्यक्ति जीता है, वो अंदर बंद है. यह एक विडंबना है. इससे पता चलता है कि इस देश की जनता कैसे सोचती है और ‘स्टेट’ क्या सोचता है, उसको किस प्रकार से प्रस्तुत करता है. 

कानून का जमकर (दुः)उपयोग 

अब देखा जाए तो यूएपीए को ही इतना लोकतांत्रिक या हल्का बना दिया है कि रेवड़ियों की तरह बांट कर रखा है. अगर कोई कानून होता है तो उसकी एक मौलिकता होती है. किस कानून के बारे में अगर ख्याति है कि वह बहुत कठोर कानून है, तो उसका उपयोग कम होता है और बहुत ही जरूरी समय पर होता है ताकि उसकी विशिष्टता बनी रहे. फरवरी माह में नित्यानंद राय ने कहा था कि यूएपीए के मामले में करीब 9 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया है. करीब 6.5 हजार से अधिक लोगों पर चार्जशीट दायर हो चुके है. एनसीआरबी का डाटा कहता है कि कोरोना के बाद से 17 प्रतिशत यूएपीए के केस बढ़े हैं. 2022 में 24 प्रतिशत यूएपीए के मामले बढ़े हैं, राष्ट्रद्रोह या सेडिशन के मामले घटे हैं यानी सेडिशन के मामलों को भी यूएपीए में धकेल दिया गया. सबसे अधिक कहीं यूएपीए के तहत कार्रवाई की गई, तो वह जम्मू कश्मीर रहा. उसके बाद मणिपुर, असम और उत्तर प्रदेश रहा. अगर आंकड़ों को ही देखा जाए तो 9 हजार लोगों पर कार्रवाई की गई. 

इतने लोग देश के लिए खतरा! 

अगर यूएपीए काफी खतरनाक कानून था तो इसका इतना थोक मात्रा में क्यों उपयोग किया गया. अगर वास्तव में ऐसे लोग है जो राज्य और देश के लिए खतरा हो सकते हैं तो फिर सिर्फ अरुंधति राय की ही चर्चा क्यों हो रही है?  पिछले कुछ वर्षों में 16 पत्रकारों पर भी यूएपीए एक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है. 6.5 हजार लोग जिन पर चार्जशीट है यूएपीए में, क्या इस देश के लोग उन सभी के नाम जानते हैं? जम्मू कश्मीर में काफी लोग यूएपीए में गिरफ्तार किए गए, बाद में सबूत नहीं होने पर छोड़ दिए गए. इसकी कोई जानकारी लोगों को नहीं है. जिन लोगों पर यूएपीए लगा है उनको कोई खास लोग नहीं जानते. अरुंधति राय का मामला इसलिए चर्चा में है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनको लोग जानते हैं, एक अच्छी लेखिका हैं और वो पुरस्कृत हैं. सबसे बड़ी बात, वह उस तबके से आती हैं जो भाषा और वर्गीय तौर पर विशेषाधिकार प्राप्त है.

उनके तबके से ही दूसरे लोगों को देखा जाए तो गौतम नवलखा काफी समय तक जेल में रहे. उन पर भी यूएपीए लगा है, लेकिन पूरे देश में कोई भी चर्चा नहीं हुई. कानून सबको एक नजर से जरूर देखता है लेकिन जो प्रतिरोध का स्वर होता है, वह ज्यादातर विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के हक में होता है, जैसे झारखंड का एक पत्रकार रूपेश सिंह यूएपीए एक्ट में दूसरी बार जेल में बंद है. पेगासेस का जब मामला सुप्रीम कोर्ट में आया था उस समय उसने दावा किया था कि उसके फोन में भी पेगासस लगाया गया था. उसके बाद से वो लगातार जेल में बंद है. हर बार दूसरी जेल में शिफ्ट किया जाता है. देश को ये कहां पता है कि किसी पत्रकार पर भी यूएपीए लगा हुआ है. अगर कानून के बारे में बात करते हैं तो पूरे देश के हर एक छोटे बड़े दोनों की बात स्पष्ट रूप से करनी होगी. इसलिए अरुंधति राय का मामला एक आम मामला हो जाता है.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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UAPA: क्या है UAPA Act? जिसके नाम से खौफ खाते है लोग, जानिए सबकुछ

UAPA: आपआमतौर पर टीवी, सोशल मीडिया पर आए दिन सुनते होंगे की किसी के ऊपर UAPA लगा या फिर कोई देशद्रोही या आतंकवादी करार हो गया। आखिर ये UAPA है क्या?
भारत में ये कानून किसने लाया। आईए जानते है।

यूएपीए क़ानून दरअसल एक स्पेशल लॉ है जो विशेष परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है। भारत में वर्तमान में यूएपीए ऐक्ट एकमात्र ऐसा कानून है जो मुख्य रूप से गैकानूनी और आतकंवाद से जुड़ी गतिविधियों पर लागू होता है। ऐसे कई अपराध थे जिनका आईपीसी में जिक्र नहीं था, इसलिए 1967 में इसकी ज़रूरत महसूस की गई और ये कानून लाया गया। जैसे गैरकानूनी और आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियां, आतंकवादी गिरोह और आतंकवादी संगठन क्या हैं और कौन हैं, यूएपीए ऐक्ट इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। कश्मीर में आईपीसी की जगह पर रणबीर पीनल कोड लागू था लेकिन यूएपीए कानून पूरे भारत में लागू है।

यह कानून भारत सराकर की जांच एजेंसी एनआईए और पुलिस महानिदेशक के अंदर आता है। एनआईए के महानिदेशक को हर आतंकवादी संगठन, गतिविधि, गैर कानूनी तरीके से काम, किसी भी समुदाय में समाज में हिंसा या भड़काओ भाषण प्रतियोगिता आदि को रोकना होता है। एनआईए को ये अधिकार साल 2019 में अमेंडमेंट्स में किया गया था।

रिपोर्टस के मुताबिक, साल 2016 से 2020 के बीच कुल 24 हजार 134 लोगों को यूएपीए UAPA कानून के तहत गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ सुनवाई हुई, लेकिन इनमें से केवल 212 लोग ही दोषी साबित हो सके।

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