उबलने की राह पर धरती ?

उबलने की राह पर धरती…. आधी मानवता अभूतपूर्व तपन की चपेट में   ….
इस साल की सबसे प्रमुख घटनाओं  की फेरहिस्त बनायी जाए तो उसमें  सबसे प्रमुखता से वैश्विक स्तर पर बढ़ रही गर्मी का दायरा प्रमुख रूप से आयेगा. मार्च के बाद से ही वैश्विक स्तर पर गर्मी अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर चुकी थी, जो जून आते-आते विकराल हो चुकी है. विश्व का एक बड़ा भू-भाग जिसमें  उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया यहां तक यूरोप का एक बड़ा भू-भाग गर्मी के एक अभूतपूर्व दौर का सामना कर रहा है, जिसे स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन की निशानी के रूप में देखा जा रहा है. लम्बे समय से औसत से अधिक तापमान की स्थितियां  व्यापक स्तर पर सूखा और जंगल की आग के रूप में सामने आयी है, जिसमें  पिछले कुछ सालों  सूखे का सामना करता स्पेन और इस साल कैलिफोर्निया और भारत के हिमालयी जंगलों में लगी आग नजीर है. भीषण गर्मी का सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर लाजिम है, इस साल पिछले दिनों हज यात्रा पर गए हजारों मुस्लिम तीर्थयात्री भीषण गर्मी का शिकार हुए, जिसमें  कम से कम 98 भारतीय भी शामिल हैं. इतनी बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री का हज के दौरान गर्मी का शिकार हो जाना अपने तरह का पहला मामला है और यह  स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन की चेतावनी है.
गर्मी का बढ़ा समय 
सूर्य के उत्तरायण होने के बाद मार्च से उत्तरी गोलार्द्ध का तापमान तेजी से बढ़ता है और मई आते-आते गर्मी अपने चरम पर होती है. भारत में कामोबेश यही स्थिति रहती है, वही यूरोप में गर्मी का मौसम सबसे खुशनुमा रहता है और सर्दियों की शुरुआत तक यही मौसम बना रहता है. भारतीय उप महाद्वीप में मई में हवा और जमीन में नमी सबसे निचले स्तर तक पहुंच जाती है. तापमान 40°सेल्सियस के पार पहुंच जाता है और इस दौरान सिन्धु से लेकर गंगा घाटी तक पश्चिम से गर्म बेहद सूखी और गर्म हवा के प्रभाव में रहती है जिसे लू कहा जाता है. मार्च से मई तक भारतीय उपमहाद्वीप की प्राकृतिक रूप से तपन एक जरुरी मौसमी प्रक्रिया जो जून आते-आते मानसून के फुहार में बदल जाती है. भारत के परम्परागत ज्ञान परम्परा में सूर्य जब रोहिणी नक्षत्र में रहते है उसके पहले नौ दिन में भीषण गर्मी की कामना की जाती है जिसे नौतपा के नाम से मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इन नौ दिनों में जितनी धरती तपेगी अगले चार महीने उतनी ही अच्छी बारिश होगी. 
तापमान और जलवायु परिवर्तन  
पिछले कुछ सालों  तक सब कुछ थोड़ी बहुत ऊपर नीचे के साथ सब कुछ सामान्य ही चल रहा था पर पिछले दो दशकों में तापमान और जलवायु से जुड़ी घटनाओं में धीरे-धीरे बदलाव आना शुरू हुआ, जिसे पहले तो हम नज़रअंदाज करते रहे और आर्थिक विकास की सर्वमान्य प्रकल्प पर  बढ़ते रहे. अनियंत्रित शहरीकरण,औद्योगिकीकरण, जल, जंगल, जमीन  का दोहन, आदि निर्बाध रूप से चलता रहा, फिर प्रकृति के बदलाव की धीमी गति जो अमीर देशों  के पिछले दो सौ सालों  के कृत्य का नतीजा था, अचानक से मौसमी चरम की घटनाओं, जंगल की आग, बाढ़ और सुखाड़, मरुस्थलीकरण, समुद्र स्तर में बढ़ोतरी समेत अनेक स्थानीय बदलावों के रूप में दिखने लगी. पृथ्वी के गर्म होने का सिलसिला तो नयी सदी में जैसे गति ही पकड़ चुका है. अब तक के दस सबसे गर्म साल में 2014 के बाद का हर साल शामिल है. अब तक कहने का अर्थ है साल 1850 से जब से पृथ्वी के औसत तापमान का रिकॉर्ड रखा जाने लगा है, तब से औसत सालाना तापमान के मुकाबले. बीता साल 2023 अब तक का सबसे गर्म साल रहा जिसका औसत तापमान पूर्व औद्योगिक काल (साल 1850-1900 के औसत सालाना तापमान) के मुकाबले 1.48°सेल्सियस ज्यादा था जो पिछले सबसे गर्म साल 2016 से 0.17°सेल्सियस की ऊपरी छलांग थी. 
हीट वेव और हीट डॉम  
मौजूदा गर्मी का मौसम अब तक का सबसे भयावह गर्मी ले कर आया है.  इस गर्मी की चपेट में सिर्फ परंपरागत देश जिसमें भारतीय उपमहादेश, अफ्रीका, मध्य पूर्व के ही देश नहीं है बल्कि इसकी धमक कनाडा, यूरोप के सुदूर  उत्तर तक जा पहुंची है. मौजूदा लम्बे समय तक गर्म वातावरण को लू की परंपरागत शब्दावली से बताना कठिन पड़  रहा है क्योंकि ना सिर्फ मैदानी इलाके, बल्कि पहाड़, समुद्र तट यहां तक बीच समुद्र भी लू जैसी स्थितियों  का सामना कर रहा है.  व्यापक रूप से हीट वेव और हीट डॉम जैसी शब्दावलियां चलन में आयी है ताकि मौजूदा लम्बे समय तक चरम गर्मी की स्थिति को व्यक्त किया जा सके. हीट वेव अत्यधिक गर्म मौसम की अवधि है जो आमतौर पर दो या उससे अधिक दिनों तक रहती है. जब तापमान किसी दिए गए क्षेत्र के ऐतिहासिक औसत से अधिक हो जाता है तो उसे हीट वेव या लू कहते हैं. भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, जब मैदानी इलाकों का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस पहाड़ी क्षेत्रों  का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस और तटीय क्षेत्रों में तापमान 37 डिग्री सेल्सियस  या उससे अधिक दिनों तक बना रहे तो उसे हीट वेव मानते हैं.
भारत में दिन का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच  गया, वहीं  न्यूनतम औसत तापमान भी घटा नहीं यानी रात का तापमान भी अधिकतम ही बना रहा और हीट वेव की स्थितियां हफ्तों तक बनी रही. भारत की राजधानी दिल्ली में एक महीने से भी ज्यादा समय से तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बना हुआ है. पंखे, कूलर और एसी के लगातार इस्तेमाल से भारत में घरेलू बिजली खपत का एक नया कीर्तिमान बना वहीं राजधानी दिल्ली पानी की व्यापक स्तर कमी के कारण अब तक सुर्खियां बटोर रहा है. असामान्य रूप से तापमान न सिर्फ धरती बल्कि समुद्र में भी बन रहे हैं, खासकर अल नीनो प्रभाव के चलते हिन्द और प्रशांत क्षेत्र बड़े पैमाने पर समुदी हीट वेव की स्थितियां बनी जिसकी परिणति विनाशकारी चक्रवात के रूप में हुई. मध्य-पूर्व में इस साल गर्मी अपने सबसे रौद्र रूप में है. 
वैश्विक स्तर पर गर्मी
पिछले एक हफ्ते  में वैश्विक स्तर पर गर्मी अपने  चरम पर है, पर ये अल नीनो प्रभाव के ख़त्म होने के बाद भी तापमान चरम पर बना  हुआ है. पिछले जून से लगातार पिछले बारह महीने अब तक के सबसे गर्म महीने रहे हैं, जिसमें अलनीनो का भी योगदान माना गया, पर अल नीनो प्रभाव के ख़त्म हो जाने के बाद भी गर्म महीनों का सिलसिला आगे भी जारी रहने का अंदेशा है. क्लाइमेट सेंट्रल के मुताबिक मौजूदा गर्मी के दौर में विश्व की लगभग आधी जनसंख्या ने अभूतपूर्व गर्मी का सामना किया, जिसमें  अफ्रीका, मध्यपूर्व, दक्षिण यूरोप, भारतीय उपमहाद्वीप, और दक्षिण पूरब एशिया का पूरा क्षेत्र शामिल है. एनओए के रिकार्ड के मुताबिक, केवल पिछले एक हफ्ते में 1400 से अधिक जगहों पर तापमान के नए रिकार्ड बने हैं. पांचो महादेश में कुछ हफ्तों  में व्यापक और भीषण गर्मी की धमक इस बात का इशारा है कि मानव जनित कारणों से स्थानीय और वैश्विक स्तर का औसत तापमान इतना बढ़ चुका है कि पहले जिन प्राकृतिक संकट की कल्पना तक नहीं कर पाते थे, वैसी घटनायें अब सामान्य होती जा रही है. 
तापमान के कारण गयी जान  
अब तक जलवायु परिवर्तन का शिकार मुख्य रूप से ट्रोपिक यानी  वैश्विक दक्षिण के गरीब और विकासशील देश होते आये हैं, पर पिछले कुछ सालों में जलवायु संकट अमीर देशों  को लपेट में ले रहा है. यूरोप के देश विश्व भर के सैलानियों का आकर्षण है, वहां गर्मियों में हीट वेव, जंगल की आग और सर्दियों में बर्फ के बदले धरती दिखनी शुरू हो गयी है. अब स्पष्ट रूप में जलवायु परिवर्तन से लोग सीधे-सीधे मर रहे हैं. इस बार गर्मी ने विश्व के एक बड़े धार्मिक आयोजन हज यात्रा को भी प्रभावित किया, जिसमें अपुष्ट खबरों के मुताबिक हज़ार से ज्यादा लोग गर्मी और हीट स्ट्रोक के कारण मारे गए. हज यात्रा के केंद्र मक्का शहर का तापमान असामान्य रूप से 52 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, जबकि इस समय औसत तापमान 44 डिग्री सेल्सियस ही होता है 52 डिग्री सेल्सियस और उग्र गर्मी के कारण हज यात्री बड़ी संख्या में मृत हुए हैं.
अभी तक मरने वालों की आधिकारिक संख्या सामने नहीं आयी है. इस बार की गर्मी ने ना सिर्फ आर्थिक प्रकल्प पर बुरा प्रभाव डाला है बल्कि मानव आयाम के हर पहलू को नुकसान पहुंचाया है जिसमें  धर्म भी शामिल है, पर क्या हम फिर भी चेत पाएंगे?  क्या इस्लाम के मानने वाले हज यात्रा पर आयी जलवायु की विपदा से जलवायु संकट से बचाव के नैतिक सूत्रधार बनेंगे? क्या मध्य पूर्व के तेल उत्पादक देश कोई संकल्प लेंगे?  खाये पिये अघाये अमेरिका कनाडा यूरोप के लोग अपनी उर्जा आधारित दिनचर्या पर पछतावा करेंगे, जिनके घर तक भी जलवायु संकट पहुंचने लगा है? क्या धरतीवासी एक साथ ‘एक धरती एक परिवार और एक भविष्य की अवधारणा पर काम कर पायेंगे? इन्हीं  सवालों  में धरती पर मानवता का भविष्य टिका है.  
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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