भारतीय न्याय संहिता है जनता के हक में !

आज का दिन कानूनी लिहाज से ऐतिहासिक, भारतीय न्याय संहिता है जनता के हक में

1जुलाई 2024 को अब एक ऐतिहासिक दिन के रुप में याद किया जाएगा क्योंकि लगभग 160 साल पुराने IPC को बदल कर भारतीय न्याय संहिता लागू कर दी गई है. इसके तहत पहला केस दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने रेहड़ी वाले पर दर्ज भी हो चुका है. भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई से देश भर में लागू हो गए हैं. ये पहले क्या थे और अब इसमें आगे क्या-क्या बदलाव होंगे, इसकी बात करें तो जो तीन न्यायिक व्यवस्थाएं भारत में बदल रही हैं, उसमें से पहला है इंडियन पीनल कोड. इस कोड को 1860 में अंग्रेजों द्वारा भारतीय लोगों को पीनलाइज्ड करने के लिए यानी दण्ड देने के लिये लाया गया था. वो इंडियन पीनल कोड को इस लिए लाए थे क्योंकि अंग्रेज भारत पर राज करना चाहते थे, और किसी भी राज करने वाले बाहरी ताकत राज करने के लिए दण्ड के प्रावधान को लाकर उसका इस्तेमाल करते है. दुर्भाग्य वश स्वतंत्रता के लगभग 75 वर्ष बाद भी हम उसी कानून को ढो रहे थे.

अंग्रेजों के जमाने के कानून बदले

हमारी संसद ने इस कानून को बदला है और कहा है कि हम दण्ड विधान से नहीं, न्याय विधान से चलेंगे. यह राष्ट्र चाणक्य का है न कि अंग्रेजों का है और इसमें भारतीयकरण किया गया है, इसमें हमारे देश का नाम भारत भी है और इंडिया भी है. इसके नाम में भी बदलाव किया गया है और इसके सेक्शन में भी बदलाव किया गया है, जैसे की साइबर क्राइम और इंटरनेट पर होने वाले क्राइम पर भी भारतीय न्याय संहिता में ध्यान दिया गया है. दूसरी ओर देखा जाए तो हमारे देश में लगभग 5 करोड़ केस पेंडिंग पड़े हुए है यानी अगर हर मामले में दो ही लोग पार्टी हैं तो लगभग 10 करोड़ लोग हो जाएंगे और अगर एक परिवार में 5 लोगों को मान कर चले तो लगभग 50 करोड़ लोग डायरेक्ट लिटिगेशन यानी मुकदमेबाजी  से जुड़े हुए हैं. अगर 140 करोड़ जनता में प्रत्यक्षतः 50 करोड़ लोग मुकदमों में संलग्न हैं, तो ये देश के लिए अच्छी बात नहीं है.

इसी वजह से CRPC को बदला गया है और देश में नया कानून लाया गया है. CRPC को बदलने की इसलिये जरूरत पड़ी क्योंकि जब पहले के समय में अंग्रेज आये अपने कानून लाए, जब उस समय कोर्ट से नोटिस जाता था तब कोर्ट नोटिस को लिखता था, उसके बाद उसकी प्रतिलिपि लेके डाकिया निकलता था और जहां उसको प्रतिलिपि पहुंचानी होती थी वहां साईकल से जाता था और कभी-कभी नाव से भी. इस तरह  कोर्ट के नोटिस को गांव पहुंचते-पहुंचते लगभग 15 दिन का समय लग जाता था. उस व्यक्ति को उस नोटिस का वापस जवाब देने में भी लगभग 15 दिन का समय लग जाता था. इस प्रक्रिया में लगने वाले समय को बचाने के लिये बदलाव जरूरी था.

तेजी और तत्परता बढ़ेगी

21 वीं सदी के हिसाब से भारत जैसे टेक्नोलाजी के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है. सभी इनफॉरमेशन जीमेल के माध्यम से लोगों तक पहुंच जाता है, उसी तरह कोर्ट के समन और पुलिस के समन को भी फोन पर भेजा जाएगा. इस प्रक्रिया से  5 करोड़ जो केस पेंडिग है उसको कम किया जायेगा.  तीसरे कानून में एविडेंस एक्ट को चेंज किया किया गया है, जिस प्रकार दिल्ली में आरुषि हत्याकांड हो गया उस चर्चित मामले में किसी को नहीं पता क्या हुआ था. क्योंकि जो वहां पहली बार वहां जांच पड़ताल करने गए उन्होंने वहां वीडियोग्राफी ही नहीं की . इसके बाद हर जांच में वीडियोग्राफी को  जरूरी किया गया. इसके आलावा तमाम टेक्नोलाजी से जुड़ी चीजों को इसमें जोड़ा जा रहा है जो पुलिस विभाग की जांच में मदद करें. अब सवाल ये उठता है कि 1 जुलाई से पहले के मामले का क्या होगा तो पूराने मुकदमे 
पूराने ही तरीके से चलेंगे और नए मुकदमे नए तरीके से चलेंगे. जहां तक इंडियन पीनल कोड की बात है जिसका नाम बदल कर  भारतीय न्याय संहिता रखा गया है और दूसरा जो है CRPC  जिसको बदल कर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता रखा गया है और तीसरा  इंडियन एविडेंस एक्ट जिसको बदल कर अब कर दिया गया है  भारतीय साक्ष्य अधिनियम. देखना होगा कि इसका उपयोग कैसे होगा और लोग कैसे आगे बढ़ेंगे. सरकार ने पहले से ही 5 लाख स्टेकहोल्डर को इसकी ट्रेनिंग दे दी है. इसमें पुलिस वाले भी संलग्न हैं और बहुत बड़ी जिम्मेदारी सरकार की है कि बाकी लोगों को भी बताये इन कानून के बारे में और लोगों को इस बारे में जागरूक करें.

करना होगा जागरूक

ये भी केंद्र सरकार और प्रदेश के सरकार और वकील सभी की जिम्मेदारी है लोगों को इस कानून से अवगत कराना. जहां तक विपक्ष के इस आरोप का सवाल है कि सरकार ने इन कानूनों को तब पारित किया, जब 146 सांसद  जब उस समय ऐसा हो सकता है तो वे 147 सांसद अपनी गलतियों की वजह से बरखास्त हुए थे. इस तरीके की मांग करना ही गलत है, तो कानूनों की वापसी हो, ऐसा होने की उम्मीद बहुत कम है. जब विपक्ष की सरकार आये तो पूरा कानून बदलने का तो नहीं पर एक दो प्रोवीजन बदल सकते है.  जैसे कि हम इंडिया को भारत से निकाल सकते है पर भारत को इंडिया से निकालना मुश्किल है, समझने की बात है आप किसी भी राष्ट्र के लिये वहां के कल्चर द्वारा दिये गए नाम को आप नहीं बदल सकते वैसे ही भारत नाम हमारे उपनिषद से आया है और इसको बदलना मुश्किल होगा, ना सिर्फ यही बल्कि भारतीय न्याय संहिता को बदल पाना मुश्किल है. इस संहिता में कहीं से भी फोन के जरिए पुलिस कंप्लेन कर सकते है  और इसमें साइबर सुरक्षा को लेकर जो केस होने चाहिए इस संहिता में दिया गया है इसकी अच्छे चीजों को देखते हुए इसको हटा पाना मुश्किल होगा. इस संहिता को आज के समय को ध्यान में रखते हुए बनाया है. भारतीय न्याय संहिता के कुछ अपराधों में समाजिक सेवा का दण्ड है और अपराधों के करीब 19 से 20 सेक्शन को हटा दिया गया है. पहले जब साइबर क्राइम होते थे तो पुलिस वालों को भी दिक्कत होती थी कि इसको किस सेक्शन में रखा जाये या इसका एविडेंस  कैसे रखा जाए. भारतीय न्याय संहिता के आने से भारतीय कानून में काफी सुधार होगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि … न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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