हाथरस हादसा बस एक और तारीख ?
हाथरस हादसा बस दुर्घटनाओं की लंबी शृंखला में एक और तारीख, निजाम सुधारने को करने होंगे बड़े उपाय
हाथरस में हाल में ही हुई भगदड़ में करीब एक सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, सही तरीके से जान-माल की हानि का डाटा सामने नहीं आ पाया है. प्राथमिकी मुख्य सेवादार पर दर्ज की गई है, अफसोस की बात है कि इस तरह की कई घटनाएं एक विशाल शृंखला में मात्र एक कड़ी ही बन कर रह जाती है. साड़ी वितरण, प्रसाद वितरण के अलावा पूजा पांडालों में भी इस प्रकार की घटनाएं देखी जा चुकी हैं. भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है. अगर ऐसे में कही भी भीड़ इकट्ठा होगी तो ऐसे में इसी प्रकार की घटनाएं होने की आशंका बढ़ जाती है. देश में अलग-अलग मौकों और जगहों पर भीड़ इकट्ठा होती है. मंदिर, पूजा पांडाल, मस्जिद, गिरिजाघर में लोगों की भीड़ धार्मिक स्थिति और आस्था की वजह से होती है. पॉलिटिकल गतिविधियों और भाषण सुनने के लिए भी लोगों की भीड़ एकत्रित होती है.
इसके साथ ही खेल में भी लोगों की रुचि होती है जिस कारण स्टेडियम आदि जगहों पर भीड़ होती है. ऐसे ही धार्मिक गतिविधि के अंतर्गत हाथरस का भी एक मामला है जिसमें बिना किसी वजह के ही सैकड़ों लोगों ने जान गंवा दी. सवाल तो ये भी उठता है कि क्या ये अंतिम इस प्रकार की घटना है या फिर इसकी पुनरावृति आगे भी हो सकती है? इस तरह के आयोजन कार्य में स्वयंसेवक लगे होते हैं. उनको ये भी नहीं पता होता कि इस आयोजन में कितने लोग आने वाले हैं. भीड़ को मैनेज करने के लिए प्रोफेशनल तरीके से मैनेजमेंट करना चाहिए. पहले से ये अनुमान भी जरूर रखना चाहिए कि कितने लोग इस तरह के आयोजन में आ सकते हैं.
आयोजन में रखें प्रशिक्षित वॉलंटियर
आयोजन से पहले समिति को प्रशासन के साथ बैठकर ये चर्चा करनी चाहिए. साथ ही तैयारी के बारे में प्रशासन को जरूरत अवगत कराना चाहिए, इसके साथ ही ये भी बताना चाहिए कि अगर अधिक लोग अचानक से आ जाते हैं, तो उसके लिए क्या कुछ व्यवस्था उनके पास रहेगी और प्रशासन इसके लिए क्या उनको उपलब्ध करा रही है. प्रशासन को भी वॉलंटियर्स के भरोसे सभी को नहीं छोड़ना चाहिए. इस तरह के मामले में पहले की भी संस्तुतियों को भी देखा जाना चाहिए कि आखिरकार ऐसा मामला क्यों हुआ है? भीड़ को रोकने के लिए जो भी व्यवस्था है उसको भी देखा जाना चाहिए. हाथरस की घटना को लेकर ये कहा गया कि वॉलंटियर्स थे तो क्या पूर्व में उनको भीड़ को काबू करने और उनको रोकने जैसे आदि की ट्रेनिंग दी गई थी?
अगर लोग अधिक आते हैं तो किस प्रकार से उनको मैनेज करना है, किस प्रकार से ब्लॉक बनाकर कर एक सुव्यवस्थित तरीके से रखना है. हाथरस में ऐसा देखने को मिला कि वहां पर कोई भी ब्लाक की व्यवस्था नहीं की गई थी जिस कारण ऐसी घटनाएं हुई. अचानक से भीड़ में शामिल लोग बाबा के चरण छूने के लिए आगे बढ़ते हैं और ऐसी घटना हो जाती है. सभी अपने भगवान के साक्षात दर्शन करना चाहते हैं, उसमें कभी लोग गिर भी जाते हैं. ऐसा ही हादसा वहां पर हुआ है और ऐसी घटनाओं में अक्सर महिलाएं और बच्चे ज्यादातर में शिकार होते हैं. भीड़ को कंट्रोल करने वाले वॉलंटियर्स का प्रशिक्षण होनी चाहिए इसके साथ ही उनकी सिविल प्रशासन से एक बेहतर समन्वय भी बनाकर रखना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर प्रशासन भी मौके पर स्थिति को संभाल सके, वरना ऐसे हादसों को रोकने में हम सक्षम नहीं हो पाएंगे.
हादसों को भूलने की बीमारी
माना जा रहा है कि आयोजन की आज्ञा की शर्तों में पांच एंबुलेंस देने का दावा किया गया था, लेकिन एक भी एंबुलेंस नहीं दिया गया. भूलने की बीमारी प्रशासन से लेकर आम लोगों तक में व्याप्त है, और फिर से भगदड़ जैसी स्थिति सामने आ जाती है. इस प्रकार के आयोजन सरकार की बिना सूचना के संभव भी नहीं माने जाते हैं, लेकिन सरकार को और भी सभी चीजों को सुनिश्चित करना होगा. अभी तो भगदड़ में जिन लोगों की मौत हुई है पहले तो उनकी पहचान होनी चाहिए
उसके बाद उनको आर्थिक रूप से मुआवजे का प्रावधान होना चाहिए. इसमें आयोजकों की भी जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए. सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि एक तो भीड़ अनियंत्रित हो गई और दूसरा साजिश का भी कोई मामला हो सकता है. इस तरह के आयोजन से पहले सभी तरह की तैयारियां करनी काफी जरूरी है. इसी तरह का आयोजन पॉलिटिकल रैली में भी होता है, कहीं पर मेला, कहीं पर प्रदर्शनी, जगराता, भागवत, मिल्लत तो कहीं अन्य तरह के कार्यक्रम होते हैं ऐसे में तैयारी बहुत ही जरूरी है. जो ट्रेंड वॉलंटियर्स हो उन्हीं को इस प्रकार के आयोजन में कार्य पर लगाना चाहिए.
आपदा से बचाव के लिए नियम जरूरी
सरकार की ओर से आपदा प्रबंधन 2005 में एक्ट के अनुसार ही कई प्रावधान किए गए हैं. साल दर साल इसमें काफी बदलाव भी किए जाते हैं. जो जरूरी मानक होते हैं तो उनको जोड़ा जाता है. प्राकृतिक या मानवजनित आपदाओं में ये प्रावधान तय किए गए हैं कि राज्य सरकार भी अपने यहां के आपदाओं की पहचान करें और फिर पीड़ितों को मुआवजे का प्रावधान करें. हालांकि, मुआवजा देना अलग प्रकार की बात है. आपदाओं से जान बचाने की भी बात होनी चाहिए, उसी प्रकार से क्या हाथरस की आपदा से लोगों को बचाया जा सकता था ये भी प्रश्न उठते हैं? भविष्य में जीरो टोलरेंस की नीति पर काम करनी चाहिए ताकि आगे इस प्रकार की मौत होने से रोका जा सके.
कानून इतने सख्त होने चाहिए कि किसी प्रकार से उसका उल्लंघन ना हो सके. कानून को काफी कठोरता से लागू करना चाहिए, चाहे वह खेल, धार्मिक या फिर किसी आयोजन का मामला हो, सभी प्रकार के भीड़ वाले आयोजन में एक ही कानून को लागू होना चाहिए. जिन्होंने परिवार खोया है उनके लिए सिर्फ मुआवजा मिलने तक का ही बात नहीं होनी चाहिए बल्कि दस सालों तक वैसे परिवार का रिव्यू करना चाहिए कि उनकी स्थिति कैसी है. ऐसे मामलों में परिवार पूरी तरह से बिखर जाता है. इस तरह के घटनाओं से ध्यान रखते हुए सबक लिया जाए तो आगे आने वाली दुर्घटनाओं को भी रोका जा सकता है.
भीड़ वाले आयोजन में अगर लोग जाते हैं तो उनको ये पता होना चाहिए कि जब स्थिति बदलती है तो उनको क्या करना है. रजिस्ट्रेशन के समय में ही ये सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक और पॉलिटिकल दोनों तरह के मामलों में किस प्रकार से खुद को सुरक्षित रखना है अगर कुछ मामला अनहोनी का होता है तो कैसे खुद को बचाना चाहिए.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि …..न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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सत्संग में पुलिस…हॉस्पिटल में डॉक्टर नहीं, तय थीं 123 मौतें
6000 लोगों पर एक जवान, जिनका दम घुटा उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिली
हाथरस में सूरजपाल बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में 123 मौतें हो गईं, सूरजपाल बाबा फरार है, पुलिस उसके सेवादारों को अरेस्ट कर रही है। अब दो सवाल हैं।
1. क्या ये हादसा रोका जा सकता था?
2. क्या घायलों को बचाया जा सकता था?
पहला आसपास के थानों में कितना स्टाफ है, जो भीड़ को कंट्रोल कर सकता था। दूसरा आसपास के अस्पतालों में कितने इंतजाम हैं, जिससे घायलों की जान बचाई जा सकती थी।
इस पड़ताल में समझ आया कि न हादसा रोका जा सकता था और न घायलों को बचाया जा सकता था। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रशासन बढ़ती भीड़ के खतरे समझ नहीं पाया। न भीड़ को संभालने के लिए पुलिसवाले थे और न घायलों को बचाने के लिए अस्पतालों में डॉक्टर और ऑक्सीजन।
अब समझिए लापरवाही की शुरुआत कहां से हुई
15 दिन सत्संग की तैयारी चली, 500 बसें पहुंचीं, लेकिन प्रशासन बेखबर
15 दिन पहले से तय था कि सिकंदराराऊ के फुलरई गांव में सूरजपाल बाबा का सत्संग होना है। आसपास के लोग बताते हैं कि 27 जून से ही मध्यप्रदेश, राजस्थान और दूसरे राज्यों से करीब 500 बसें आ गई थीं। लोग टेंट लगाकर या बसों के नीचे सो रहे थे, लेकिन प्रशासन इसे अनदेखा करता रहा।
सत्संग कराने वाली कमेटी को प्रशासन ने 80 हजार लोगों की परमिशन दी थी। लोकल इंटेलिजेंस यूनिट ने जिला प्रशासन को अलर्ट किया कि सत्संग में अनुमान से ज्यादा भीड़ आ सकती है, लेकिन प्रशासन ने इस रिपोर्ट पर ध्यान ही नहीं दिया। 2 जुलाई को सत्संग में करीब ढाई लाख लोग पहुंच गए।
दूसरी लापरवाही: इतनी भीड़ को संभालने के लिए सिर्फ 40 पुलिसवाले
सत्संग में करीब ढाई लाख लोग थे। उन्हें संभालने के लिए सिर्फ 40 पुलिसवाले। यानी 6,250 लोगों पर सिर्फ एक पुलिसवाला। UP के चीफ सेक्रेटरी मनोज सिंह के मुताबिक, ऑर्गनाइजर को 80 हजार लोगों की अनुमति दी गई थी। अगर इतने ही लोग आते, तब भी एक पुलिसवाले पर 2 हजार लोगों को संभालने की जिम्मेदारी होती। पुलिस ने पूरी भीड़ बाबा के सेवादारों के जिम्मे छोड़ दी।
हाथरस की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, जिले में 11 थाने हैं। सत्संग वाली जगह सिकंदराराऊ थाने के तहत आती है। मौके पर इसी थाने की पुलिस मौजूद थी। यहां करीब 100 लोगों का स्टाफ है। बाकी थानों में एवरेज 80 से 110 पुलिसवाले हैं।
ढाई लाख लोगों को संभालने के लिए कितनी फोर्स की जरूरत होती है, ये सवाल हमने UP के पूर्व DGP विक्रम सिंह से पूछा। वे कहते हैं, ‘ढाई लाख बड़ी तादाद होती है। इतने लोग अचानक आसमान से नहीं आते। इतने लोग आने में 6 से 7 घंटे लगते हैं।’
‘ट्रैफिक जाम हुआ, पुलिस कंट्रोल रूम में इसकी शिकायत भी की गई। फिर भी पुलिस-प्रशासन ने कोई इंतजाम नहीं किया। सब सेवादारों के भरोसे छोड़ दिया। और वे सेवादार नहीं, बाउंसर हैं, उनके भरोसे ऐसे आयोजन नहीं हो सकते।’
‘प्रशासन ने बड़ी गलती ये की है कि लोकल इंटेलिजेंस यूनिट को नहीं लगाया। लोकल पुलिस पर छोड़ दिया कि देखो, कितनी भीड़ आ रही है। इतनी भीड़ के हिसाब से वहां एक कंपनी PAC यानी 200 लोग, 100 लोग सिविल पुलिस के, 100 महिला पुलिस, 100 होमगार्ड, ट्रैफिक पुलिस, फायर ब्रिगेड के 200 आदमी होने चाहिए थे।’
पूर्व DGP विक्रम सिंह के मुताबिक, इतनी ज्यादा भीड़ संभालने के लिए कम से कम 700 पुलिसवालों की जरूरत पड़ती। पूरे हाथरस जिले में कुल 1650 पुलिसवाले हैं। यानी सत्संग की भीड़ संभालने के लिए जिले के आधे पुलिसवालों को लगाना पड़ता।
लोकल इंटेलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट थी। बसों में भरकर लोग आ रहे थे। भीड़ बढ़ रही थी। इसके बावजूद दूसरे जिलों से पुलिस, RAF या PAC नहीं मंगाई गई। कार्यक्रम की परमिशन भी रद्द नहीं की गई। ऐसा क्यों हुआ, इसका जवाब अब तक न DM आशीष कुमार ने दिया है और न SP निपुण अग्रवाल ने।
तीसरी लापरवाही: मौके पर एंबुलेंस नहीं, हॉस्पिटल पहुंचे तो न डॉक्टर, न ऑक्सीजन
सत्संग वाली जगह पर प्रशासन ने दो एंबुलेंस भेजी थीं। भगदड़ मची तो तुरंत आसपास के जिलों से 32 एंबुलेंस बुलाई गईं। इनमें हाथरस से 11, मथुरा से 10, अलीगढ़ से 5 और फर्रुखाबाद से एक एंबुलेंस बुलाई। 5 एंबुलेंस आसपास के जिलों के हाईवे से आईं। इनसे घायलों को पास के सिकंदराराऊ CHC के अलावा हाथरस, एटा, कासगंज और अलीगढ़ के अस्पतालों में भेजा गया।
सत्संग वाली जगह से सिकंदराराऊ CHC सिर्फ 8 किमी दूर है। घायल यहां पहुंचे, तो लाइट नहीं थी। ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं था। और तो और सिर्फ एक डॉक्टर मौजूद थे।
पूरे हाथरस जिले में डॉक्टरों के कुल 102 पद हैं, लेकिन पोस्टेड सिर्फ 45 हैं। ये भी शिफ्ट में काम करते हैं। भगदड़ में 123 मौतें हुई हैं और 150 से ज्यादा लोग घायल हैं। अगर जिले के सारे डॉक्टर भी इतने लोगों के इलाज में लगते, तब भी एक डॉक्टर को 6 मरीजों को देखना पड़ता।
हाथरस जिले के लिए 5 साल पहले मेडिकल कॉलेज बनाने की घोषणा हुई थी। अब तक इसके लिए जमीन तक अलॉट नहीं हुई है। मेडिकल कॉलेज के लिए बजट अप्रूव है, लेकिन ये कबसे बनना शुरू होगा, इसी का अता-पता नहीं है।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि मरने वाले 123 लोगों में से 74 की मौत दम घुटने की वजह हुई। ऐसे मरीजों को सबसे पहले ऑक्सीजन की जरूरत होती है, लेकिन वही नहीं थी। 31 महिलाओं की डेडबॉडी ऐसी थीं, जिनकी पसलियां टूटकर दिल और फेफड़े में घुस गईं थीं।
15 लोगों के सिर और गर्दन की हड्डी टूटने से मौत हुई है। ऐसे लोगों को ऑक्सीजन के साथ ICU में एडमिट करना जरूरी होता, लेकिन उन्हें इलाज ही नहीं मिला। यानी जो लोग हॉस्पिटल पहुंच भी गए, उन्हें बचाने के लिए कोई इंतजाम नहीं था।
मरने वालों में करीब 113 महिलाएं, 7 बच्चे और 3 पुरुष हैं। ज्यादातर महिलाओं की उम्र 40 से 50 साल थी। डॉक्टर्स के मुताबिक, महिलाएं भगदड़ मचने के बाद गिरीं, फिर इतनी ताकत नहीं जुटा सकीं कि भीड़ के साथ दोबारा खड़ी हो पातीं। भीड़ उनके ऊपर से गुजरती चली गई। यही वजह है कि ज्यादातर महिलाओं के शरीर में हड्डियां टूटी मिली हैं।
सभी डेडबॉडी हाथरस के अलावा अलीगढ़, आगरा और एटा भेजी गई थीं। 24 घंटे में 120 लोगों के पोस्टमॉर्टम हुए। एक की शिनाख्त नहीं हुई है, इसलिए उसका पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ। 2 शव उनके परिवार वाले बिना पोस्टमॉर्टम कराए ले गए।
अब तक मामले में हुई कार्रवाई
सूरजपाल बाबा के 6 सेवादार अरेस्ट, इनमें 2 महिलाएं
हाथरस में हुई भगदड़ के तीसरे दिन पुलिस ने गुरुवार को 6 लोगों को गिरफ्तार किया है। अलीगढ़ रेंज के आईजी शलभ माथुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि गिरफ्तार आरोपी आयोजन समिति के मेंबर हैं। इनमें 2 महिलाएं भी हैं।
इन आरोपियों में मैनपुरी का राम लड़ैते यादव, शिकोहाबाद का उपेंद्र यादव, हाथरस का मेड सिंह, मंजू यादव, मुकेश कुमार और मंजू देवी शामिल हैं। इनकी देखरेख में ही सत्संग चल रहा था।
सत्संग के ऑर्गेनाइजर पर 1 लाख का इनाम
पुलिस ने सत्संग के मुख्य आयोजक देव प्रकाश मधुकर पर एक लाख रुपए का इनाम घोषित किया है। मामले में दर्ज FIR में सिर्फ देव प्रकाश मधुकर का नाम है, बाकी आरोपी अज्ञात हैं।
सूरजपाल बाबा का मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर हाथरस के मोहल्ला दमदमपुरा की न्यू कॉलोनी में रहता है। वो पंचायती राज विभाग में इंजीनियर है। घटना के बाद से देव प्रकाश मधुकर परिवार के साथ फरार है।
सूरजपाल के वकील बोले- बाबा UP में ही हैं, कभी नहीं भागे
उधर, पुलिस अब तक नारायण साकार हरि उर्फ सूरजपाल तक नहीं पहुंच सकी है। पुलिस ने मैनपुरी, ग्वालियर, कानपुर और हाथरस समेत 8 ठिकानों पर छापा मारा है। एटा, हाथरस और मैनपुरी से 30 से ज्यादा लोग हिरासत में लिए गए हैं।
सूरजपाल बाबा के वकील एपी सिंह गुरुवार को घायलों से मिलने अलीगढ़ पहुंचे। उन्होंने कहा कि बाबा के पास कोई आश्रम नहीं है। वे पेंशन से गुजारा करते हैं। जांच टीम बाबा को बुलाएगी, तो वे आएंगे।
एपी सिंह ने दावा किया कि बाबा को साजिश कर फंसाया जा रहा है। उनके सत्संग में ऐसी भीड़ कई बार आई है, लेकिन इस बार कुछ लोगों ने भीड़ में कुछ किया है। इस वजह से लोग गिरते चले गए। उन्होंने कहा कि बाबा की भक्ति में मारे गए लोगों के परिवारों और हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों को बाबा की तरफ से मदद मिलेगी।
पढ़िए एपी सिंह से पूरी बातचीत
सवाल: 80 हजार लोगों की परमिशन थी, इतने ज्यादा लोग कैसे आ आए?
जवाब: फरवरी से जून तक आचार संहिता लगी थी। इस वजह से सत्संग नहीं हुआ था, इसलिए ज्यादा लोग आ गए।
सवाल: लोगों की तादाद बढ़ी, तो क्यों नहीं स्टेज से ऐलान किया गया कि लोग लौट जाएं?
जवाब: सत्संग की परमिशन 3 घंटे की मिली थी। भीड़ देखकर ही जल्दी समापन हुआ।
सवाल: कमेटी के लोग भीड़ मैनेज क्यों नहीं कर पाए, क्या ये कमेटी का फेलियर रहा?
जवाब: नहीं, ये उनका फेलियर नहीं था। कुछ असामाजिक तत्व आए और उन्होंने सब खराब किया।
सवाल: बाबा पर लगे आरोपों पर आपका क्या कहना है?
जवाब: सब झूठ और साजिश है। FIR हुई जरूर होंगी, लेकिन उनमें फाइनल रिपोर्ट लगना अभी बाकी है।
हादसे की जांच के लिए ज्यूडिशियल कमीशन बना
योगी सरकार ने हादसे की जांच के लिए ज्यूडिशियल कमीशन बनाया है। इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बृजेश कुमार श्रीवास्तव लीड करेंगे। रिटायर्ड IAS हेमंत राव और रिटायर्ड DG भवेश कुमार सिंह आयोग के मेंबर हैं। ये टीम 2 महीने में जांच पूरी कर रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। भविष्य में ऐसी घटना न हो, इसके लिए सुझाव भी देगी।