JDU में आए वो 5 ब्यूरोक्रेट्स, जो राजनीति में फ्लॉप हो गए ?

नीतीश कुमार के साथ सियासी पिच पर उतरे 5 ब्यूरोक्रेट्स, कोई हवा हो गया तो कोई बाबा बन गया
पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा ने बिहार में जेडीयू का दामन थाम लिया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जेडीयू में आने वाले ब्यूरोक्रेट्स का क्या होता है? अब तक नीतीश कुमार के साथ 5 ब्यूरोक्रेट्स आ चुके हैं, उनमें से कुछ हवा हो गए तो कुछ बाबा. पूरी कहानी पढ़िए…
नीतीश कुमार के साथ सियासी पिच पर उतरे 5 ब्यूरोक्रेट्स, कोई हवा हो गया तो कोई बाबा बन गया

JDU में आए वो 5 ब्यूरोक्रेट्स, जो राजनीति में फ्लॉप हो गए

पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा ने नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड का दामन थाम लिया है. वर्मा को लेकर कई तरह की सियासी अटकलें हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर जेडीयू में शामिल होने वाले अधिकारियों का क्या होता है? नीतीश कुमार की पार्टी में पिछले 14 साल में 5 बड़े ब्यूरोक्रेट्स शामिल हुए, लेकिन किसी को भी पूर्ण रूप से राजनीतिक मुकाम हासिल नहीं हो पाया.

इस स्टोरी में इन्हीं ब्यूरोक्रेट्स की कहानी को विस्तार से पढ़ते हैं.

साल 2020 में वीआरएस लेकर तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने जनता दल यूनाइटेड का दामन थामा था. पांडेय के बिहार में बक्सर सीट से चुनाव लड़ने की उस वक्त चर्चा थी. हालांकि, आखिर वक्त में नीतीश कुमार ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया.

गुप्तेश्वर इसके बाद राज्यसभा जाना चाहते थे, लेकिन जेडीयू के भीतर उनकी दाल यहां भी नहीं गली. आखिर में गुप्तेश्वर ने राजनीति को ही अलविदा कह दिया. गुप्तेश्वर इसके बाद भागवत कथा कहने में जुट गए. वर्तमान में पांडेय कथावाचक हैं और उनके गाए गीत खूब वायरल होते हैं.

1987 बैच के आईपीएस अफसर गुप्तेश्वर बिहार के बक्सर के रहने वाले हैं. बिहार में तैनाती के दौरान उन्होंने अपनी कार्यशैली से काफी सुर्खियां बटोरी थी.

जेडीयू से कुछ नहीं मिलने के सवाल पर एक बार उन्होंने कहा था- मैं राजनीति को समझ नहीं पाया खासकर नीतीश कुमार को.

आरसीपी सिंह- गांव में काट रहे हैं दिन

यूपी काडर के आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह ने साल 2010 में जेडीयू का दामन थामा था. जेडीयू में शामिल होने के बाद नालंदा के रामचंद्र प्रसाद सिंह की गिनती नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के रूप में होने लगी थी.

नीतीश की वजह से सिंह पहले राज्यसभा गए फिर उन्हें आधिकारिक तौर पर जेडीयू में नंबर-2 का पद दिया गया. साल 2019 के चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने आरसीपी को जेडीयू की कमान दे दी. वे करीब एक साल तक जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे.

2020 विधानसभा चुनाव के बाद वे केंद्र में मंत्री बने, लेकिन इसके बाद ही उनकी उलटी गिनती शुरू हो गई. 2022 में जेडीयू ने उनसे किनारा कर लिया. आधिकारिक तौर पर पार्टी ने आरसीपी सिंह पर नीतीश से गद्दारी का आरोप लगाया.

जेडीयू से आउट होने के बाद आरसीपी बीजेपी में शामिल हुए, लेकिन नीतीश के फिर से पलटी मारते ही उनका राजनीतिक करियर परवान नहीं चढ़ पाया. वर्तमान में वे अपने गांव नालंदा के मुस्तफापुर में रहते हैं.

पवन वर्मा- कभी हनुमान थे, अब नाम भी नहीं

1976 बैच के आईएफएस अधिकारी पवन कुमार वर्मा भी जेडीयू में रह चुके हैं. साल 2014 में उन्होंने नीतीश कुमार का दामन थामा था. बिहार की सियासत में वर्मा को उस वक्त नीतीश कुमार का हनुमान भी कहा जाता था.

जेडीयू में आते ही नीतीश ने वर्मा को राज्यसभा के लिए भेज दिया. 2016 तक वे इस पद पर रहे. 2016 के बाद वर्मा को जेडीयू संगठन में भेज दिया गया. साल 2020 में वर्मा ने नीतीश का साथ छोड़ दिया.

कुछ दिन के लिए वर्मा ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल में भी गए, लेकिन वहां भी उनका मन नहीं लगा. वर्तमान में वर्मा किताब लेखन के साथ-साथ लेक्चर में हिस्सा लेते हैं.

ललन जी- टिकट तक नहीं मिला, अब नेपथ्य में

साल 2019 में कटिहार के रहने वाले रिटायर्ड आईएएस ललन जी ने जेडीयू का दामन थामा था. 2000 बैच के आईएएस अधिकरी ललन को भी नीतीश का करीबी माना जाता था. जेडीयू में ललन जी के जाने के बाद यह कहा जा रहा था कि उन्हें कोई बड़ा पद मिल सकता है.

ललन के कटिहार से चुनाव लड़ने की चर्चा भी थी. क्योंकि वे यहां के 2 बार डीएम रह चुके थे.हालांकि, 2020 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें टिकट नहीं दिया गया. 2020 चुनाव के बाद ललन जी अखबार के पन्नों से ही गायब हो गए.

वर्तमान में ललन जी के बारे में कोई खोज-खबर नहीं है. न ही उनकी खबरें मीडिया में दिखाई जाती है. हाल में ललन जी के प्रशांत किशोर के साथ भी जुड़ने की खबर आई थी.

केपी रमैया- चुनाव हारे तो साइड लाइन हुए

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले आईएएस अधिकारी केपी रमैया को नीतीश कुमार ने अपने साथ जोड़ा था. रमैया 1986 बैच के बिहार काडर के आईएएस अधिकारी थे. राजनीति में आने से पहले रमैया बिहार के अनुसूचित जाति और जनजाति विभाग के प्रधान सचिव थे.

2014 में रमैया को सासाराम सीट से कांग्रेस के मीरा कुमार के खिलाफ उम्मीदवार बनाया गया. हालांकि, यह चुनाव बीजेपी के छेदी पासवान जीत गए. रमैया इसके बाद साइड लाइन होते चले गए.

साल 2017 में जब बिहार में सृजन घोटाला सामने आया, तब इसमें रमैया को ही किंगपिन बनाया गया. उनके खिलाफ गिरफ्तारी का भी वारंट निकला था, लेकिन बाद में उन्हें कोर्ट से राहत मिल गई. वर्तमान में रमैया इसी मामले में कोर्ट की तारीख ढो रहे हैं.

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