खुद को भगवान का अवतार कैसे बता सकता है कोई कथावाचक?
खुद को भगवान का अवतार कैसे बता सकता है कोई कथावाचक? सामने आईं अखाड़ों की प्रतिक्रियाएं
हाथरस में हुए बड़े हादसे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार से लेकर जांच करने वाली कमेटी आगे की कारवाई बढ़ा रही हैं। रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं। इस बीच हाथरस मामले में संत महात्माओं और अखाड़ों की भी प्रतिक्रिया आई है। निरंजनी अखाड़े के पठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी जी महाराज ने हाथरस के मामले में खुद को शिव का अवतार बताने वाले कथावाचक नारायण साकार को न सिर्फ निशाने पर लिया। बल्कि उन्होंने कहा कि सभी 13 अखाड़े सनातन के नाम पर लोगों को ठगने और सिर्फ धन उगाही करने के उद्देश्य से किए जाने वाले ऐसे आयोजनों पर विरोध में हैं और कड़ी कारवाई की मांग करते हैं। स्वामी कैलाशानंद ने अमर उजाला डिजिटल के आशीष तिवारी से कई मुद्दों पर विस्तार से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के अंश…
सवाल: देश के साधु संतों और महात्माओं समेत अखाड़े की ओर से इस तरीके के आयोजनों पर क्या राय है। खासतौर से उन आयोजनों में, जिसमें कई दफा जांच होने पर पता चलता है कि कथा वाचक तो अलग-अलग संगीन मामलों के आरोपी भी हैं या सजायाफ़्ता हैं।
जवाब: देखिए यह बहुत ही गंभीर स्थिति है। हमारे देश के साधु संत महात्माओं की ओर से सनातन परंपरा का निर्वहन करने और लोगों को उसके बारे में बताने के लिए बड़े आयोजन होते हैं। लेकिन इसकी आड़ में जो बहुरूपिए आ गए हैं, इससे बहुत ही खतरनाक स्थिति हो चुकी है। आप देखिए कोई खुद को किसी भगवान का अवतार बताता है, तो कोई फिल्में बनाता है। यह तो सनातन परंपरा का घनघोर अपमान है। जिसके नाम पर या बेहूदगी हो रही है। मैं तो मांग करता हूं कैसे पाखंडियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए।
सवाल: तो आप सभी संत महात्मा और अखाड़ा परिषद ने ऐसे गंभीर मुद्दों पर सरकार से बातचीत करने की योजना बनाई है। आप कह रहे हैं स्थिति गंभीर है। क्या करेंगे?
जवाब: देखिए, पहले तो सवाल यही है कि कैसे कोई बहरूपिया और स्वयंभू मठाधीश ठगने के लिए और धन एकत्रित कर हमारे समाज को गुमराह करने के लिए हमारे सनातन का दुरुपयोग कर रहा है। मैं तो मांग करता हूं बल्कि हमारे सभी 13 अखाड़े भी इस बात से सहमत होंगे कि जब ऐसी कथाएं या सत्संग हो रहे हों, तो कथावाचक की पूरी कुंडली खंगालने के बाद उसके आयोजन को शासन और प्रशासन अनुमति दे। यह बात सच है कि कई कथावाचक और सत्संग करने वाले दागदार होते हैं। जब कथा करने वालों की पूरी कुंडली खंगाल ली जाएगी, तो पता चल जाएगा कि क्या वास्तव में यह किसी साधु संत और सनातन परंपरा का ध्वजवाहक है भी या नहीं। और लोग भी अपने धर्म ग्रंथों को पढ़कर ऐसे बहरूपिया लोगों को पहचानें। हमारे ग्रंथों में तो वेशभूषा से साधु महात्मा की पहचान हो जाती है।
सवाल: आप तो सनातन के साथ-साथ सियासत को भी बखूबी समझते हैं। राम मंदिर के निर्माण और अयोध्या के आए परिणाम को आप किस तरह से देखते हैं।
जवाब: देखिए अयोध्या में चुनाव हारना दुखद है। क्या कारण रहे यह तो सियासी तौर पर राजनीतिक दलों को देखना है। लेकिन बतौर संत महात्मा होने के नाते में यह बात जरूर कह सकता हूं कि काशी से लेकर अयोध्या तक जिस तरीके से विकास का कार्य हुआ और हो रहा है। उससे आम जनमानस के साथ-साथ समूची दुनिया में हमारी अपनी गौरवशाली परंपराओं का ध्वज ऊपर उठ रहा है।
सवाल: फिर भी अयोध्या में बने राम मंदिर के आधार पर समूचे देश में एक सियासी माहौल तो बना ही था। उस माहौल में भाजपा के अयोध्या हारने का कोई कारण आपकी समझ में आता हो तो बताइए।
जवाब: मुझे लगता है कि जो वहां के स्थानीय लोग रहे होंगे, निश्चित रूप से उनकी कुछ अपनी जरुरतें होंगी, जो पूरी नहीं हुई होंगी। बाकी तो राजनीतिक दलों का कार्य है हार के कारणों का मंथन करना। लेकिन इतना जरूर मैं उम्मीद कर सकता हूं कि आने वाले दिनों में अयोध्या में परिणाम सकारात्मक होंगे।
सवाल: हाल के दिनों में दक्षिण भारत के मंदिर और मठों को लेकर चर्चाएं हुईं। क्या वहां के मंदिरों और मठों का जीर्णोद्धार आप संत महात्माओं की ओर से भी किया जा रहा है?
जवाब: अभी तक मैं इस मुद्दे पर पूरी तरह से खामोश था। या यूं कह लें कि मैं खामोशी से काम कर रहा था। मैं पहली बार पब्लिकली इस बात को कह रहा हूं कि हां दक्षिण भारत के मंदिर और मठों के हमने जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया है। खासतौर से केरल में हमारे कई मठ और मंदिर ऐसे हैं, जिनके जीर्णोधार की बहुत आवश्यकता है।
सवाल: आपने केरल में अब तक कितने मंदिरों और मठों का जीर्णोद्धार कराया है। और क्या कोई चुनौती भी वहां पर रही है।
जवाब: केरल के कोवलम इलाके में स्थित करुणापल्ली गांव के दक्षिण काली मंदिर का इसी 28 मार्च को दक्षिण काली मंदिर का शुभारंभ हुआ। मैं पिछले 8 वर्षों से इस मठ के जीर्णोद्धार में लगा हुआ था। बड़ी चुनौती यही थी कि यह मठ जिस गांव में था वहां और आस पास करीब बीस हजार की आबादी तकरीबन तीन दशक पहले हिंदू से ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुकी थी। लेकिन सभी लोगों को हमने बीते 8 वर्षों में माता का भक्त बना कर उनको वापस जोड़ा है। अभी केरल में ही पांच और मठ हैं। जिनका जीर्णोधार किया जाना है। वह भी हो जाएगा।
सवाल: ऐसे मामलों में केरल सरकार की तरफ से कुछ चुनौतियां की बात सामने आई थी। क्या यह सच है?
सवाल: हां, केरल सरकार की ओर से कछ चुनौतियां तो आई थीं। लेकिन मैं केरल में किसी जाति-धर्म के द्वेष भाव के साथ नहीं गया था। वहां के मठों और मंदिरों के ट्रस्टियों ने मुझे अपना मानकर दक्षिण में बुलाया। हमने तो अभी हाल में ही केरल में बीते 20 से 25 वर्षों का सबसे बड़ा हवन यज्ञ कराया। सभी लोग उसमें शामिल हुए। अभी वहां के कई मंदिरों का और मठों का जीर्णोद्धार बाक़ी है। और वह सब किया जाना है।