भारत में टैक्स को लेकर समय समय पर बदलते रहे हैं नियम !
टैक्स के बोझ में दबे आम आदमी को है इस बार राहत की उम्मीद
मोदी सरकार के पिछले 10 सालों के दौरान टैक्स स्ट्रक्चर को सुव्यवस्थित करने, अनुपालन बढ़ाने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने को लेकर कई नीतिगत बदलाव किए गए है.
लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद कई वरिष्ठ पत्रकारों और विश्लेषकों ने माना कि इस चुनाव परिणाम में आम आदमी का दर्द छलका है. मनमोहन सरकार के दौर में जब महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता ने बीजेपी सरकार से उम्मीदें लगाई तो उसमें पहली बड़ी उम्मीद थी टैक्स से राहत.
इसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली की अगुवाई में जीएसटी लागू हुआ, लेकिन इस पर अभी तक कई तरह के कन्फ्यूजन हैं. इस सरकार से नौकरीपेशा वाले मिडिल क्लास को भी अभी तक कुछ खास नहीं मिला है.
मोदी सरकार के 10 साल और टैक्स
मोदी सरकार के पिछले 10 सालों के शासन में टैक्स ढांचे को सुव्यवस्थित करने, अनुपालन बढ़ाने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने को लेकर कई नीतिगत बदलाव किए है. इन सुधारों का उद्देश्य टैक्स प्रणाली को सरल बनाना, टैक्स चोरी करने वालों पर अंकुश लगाना और टैक्स आधार को बढ़ाना था. यहां मोदी सरकार के कुछ प्रमुख टैक्स सुधारों का विवरण दिया गया है.
1. गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी): जीएसटी को साल 2017 के जुलाई महीने में लागू किया गया था. यह टैक्स सुधार के लिए सबसे बड़ा और प्रमुख कदम माना जाता है. GST ने अलग अलग राज्य और केंद्रीय टैक्सों को एक ही टैक्स में सम्मिलित कर दिया, जिससे पूरे देश में एक समान टैक्स प्रणाली लागू हुई. GST ने भारत के टैक्स संरचना को सरल बना दिया और व्यापारियों के लिए इसे समझना और लागू करना आसान हो गया.
GST के जरिए कैसे हुआ टैक्स सिस्टम आसान
जीएसटी ने इससे पहले देश में लगने वाले 17 लोकल टैक्स और 13 सरचार्ज को फाइव लेयर सिस्टम में व्यवस्थित किया, जिससे टैक्स सिस्टम आसान हो गया. इसके तहत रजिस्ट्रेशन के लिए कारोबार की सीमा गुड्स के लिए 40 लाख रुपये और सर्विसेज के लिए 20 लाख रुपये हो गई. वैट के तहत यह सीमा औसतन पांच लाख रुपये से ऊपर थी.
जीएसटी से मिले कई फायदे
सात साल पहले पेश किए गए जीएसटी ने टैक्स कंप्लाइंस को आसान बना दिया है और इससे टैक्स कलेक्शन बढ़ गया. जिससे राज्यों के राजस्व में बढ़ोतरी हुई. सरकारी आंकड़ों की मानें तो जीएसटी ने टैक्स उछाल को बढ़ाकर साल 2018-23 के दौरान 1.22 पर कर दिया है जो जीएसटी से पहले 0.72 पर था. मुआवजा खत्म होने के बावजूद राज्यों का टैक्स उछाल 1.15 पर बना हुआ है.
जीएसटी के बाद राज्यों का वास्तविक राजस्व 46.56 लाख करोड़ रुपये पर आ गया है वरना जीएसटी के बिना वित्त वर्ष 2018-19 से 2023-24 तक राज्यों का राजस्व 37.5 लाख करोड़ रुपये होता.
2. इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव
2020 में सरकार ने एक वैकल्पिक टैक्स प्रणाली की घोषणा की, जिसमें कम टैक्स दरों के साथ कोई छूट और कटौती नहीं थी. यह करदाताओं को अपने लिए उपयुक्त विकल्प चुनने का अवसर देता है. विभिन्न वित्तीय वर्षों में, इनकम टैक्स स्लैब और दरों में भी कुछ बदलाव किए गए.
3. डिजिटलाइजेशन और ई-फाइलिंग
पिछले 10 सालों में मोदी सरकार ने टैक्स रिटर्न फाइलिंग को ऑनलाइन और डिजिटल माध्यमों से आसान बनाया है. इन सालों में ई-फाइलिंग, ई-वे बिल, और अन्य डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ाया गया है. आज के समय में टैक्सपेयर्स को टैक्स से जुड़े कामकाज के लिए कम से कम फिजिकल उपस्थिति की आवश्यकता होती है, जिससे पारदर्शिता और सुविधा में वृद्धि हुई.
4. विवाद से विश्वास योजना
विवाद से विश्वास योजना को केंद्र सरकार टैक्स से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए लाई थी, इस योजना के तहत करदाता अपने बकाया टैक्स का भुगतान कर विवादों को समाप्त कर सकते थे. इससे सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त हुआ और लंबित टैक्स मामलों का समाधान भी हुआ.
किसे मिला इस स्कीम का फायदा
जो मामले 31 जनवरी 2020 तक कमिश्नर (अपील), इनकम टैक्स अपीलीय ट्रिब्यूनल, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में लंबित थे, उन टैक्स के मामलों पर यह स्कीम लागू होती थी. बता दें जो भी लंबित केस हैं वह टैक्स, विवाद, पेनल्टी और ब्याज से जुड़े हुए होते थे.
5. बेनामी संपत्ति और काले धन पर अंकुश
बेनामी संपत्ति लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 में संशोधन कर इसे कड़ा किया गया. इतना ही नहीं नोटबंदी का फैसला भी काले धन को बाहर लाने और टैक्स आधार को बढ़ाने के उद्देश्य से ही लिया गया था.
6. कॉर्पोरेट टैक्स दरों में कमी
मोदी सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स दरों में काफी महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, इसका उद्देश्य देश में इंवेस्टमेंट को प्रोत्साहित करना, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना था.
साल 2019 के सितंबर महीने में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट टैक्स दरों में ऐतिहासिक कटौती की घोषणा की. इस घोषणा में पुरानी कंपनियों के लिए टैक्स 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया गया. वहीं नई विनिर्माण कंपनियों के लिए 25% से घटाकर 15% किया गया. यह छूट उन कंपनियों के लिए दी गई जो 1 अक्टूबर 2019 के बाद स्थापित हुई और 31 मार्च 2023 तक उत्पादन शुरू कर दी.
इसके अलावा मैट दर को भी 18.5% से घटाकर 15% किया गया, जिससे कंपनियों को और राहत मिली.
टैक्स पर मोदी सरकार की ओर से बड़े ऐलान
भारत में 23 जुलाई को एनडीए अपने तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करने जा रही है. मोदी सरकार ने 2014 से अब तक अलग अलग बजटों में कई महत्वपूर्ण टैक्स संबंधी घोषणाएं की हैं.
वित्तीय वर्ष 2014-15 में निर्मला सीतारमण ने व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा को 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख कर दिया था. वहीं वरिष्ठ नागरिकों के लिए छूट सीमा को 2.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख किया गया.
इसी बजट सत्र में धारा 80C के तहत निवेश की सीमा को 1 लाख से बढ़ाकर 1.5 लाख कर दिया गया था. इतना ही नहीं गृह ऋण पर ब्याज की छूट सीमा को 1.5 लाख से बढ़ाकर 2 लाख किया गया था.
2015-16 बजट
बजट सत्र 2015-16 में धारा 80D के तहत स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम की सीमा को 15,000 से बढ़ाकर 25,000 करने की घोषणा की गई थी. इसके साथ ही वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह सीमा बढ़ाकर 30,000 कर की गई.
इसी साल स्वर्ण मुद्रीकरण योजना चलाई गई. जिसके तहत लोग अपने सोने को बैंक में जमा कर ब्याज कमा सकते थे.
2016-17 बजट
इस साल के बजट सत्र में 40% तक की पीएफ निकासी को कर मुक्त किया गया. वहीं गृह ऋण के लिए धारा 24 के तहत 50,000 तक की अतिरिक्त छूट दी गई. इस साल विवाद निपटान योजना की शुरुआत की गई. ताकि छोटे कर विवादों का निपटारा किया जा सके.
2017-18 बजट
इस साल देश में जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स लागू किए गए, जिसने अलग अलग अप्रत्यक्ष करों को एकीकृत कर दिया गया . वहीं 2.5 लाख से 5 लाख तक की आय पर टैक्स दर को 10% से घटाकर 5% किया गया. इस बजट सत्र में एक नया सरचार्ज 50 लाख से 1 करोड़ रुपये तक की आय पर 10% और 1 करोड़ रुपये से अधिक आय पर 15% लगाया गया.
2018-19 बजट
इस साल 3% शिक्षा सेस को 4% “स्वास्थ्य और शिक्षा सेस” में बदल दिया गया. वहीं 40,000 की मानक कटौती की घोषणा की गई, जिससे वेतनभोगी करदाताओं को काफी राहत मिली. इसके अलावा इस बजट सत्र में वरिष्ठ नागरिकों के लिए ब्याज आय की छूट सीमा को 10,000 से बढ़ाकर 50,000 कर दिया गया था.
2019-20 बजट
इस साल धारा 87A के तहत 5 लाख तक की आय पर पूर्ण कर छूट की घोषणा की गई. वहीं स्टार्टअप्स के लिए कर लाभ की घोषणा की गई, जिससे उन्हें तीन साल तक 100 प्रतिशत कर छूट प्राप्त हुई.
इस बजट सत्र में 250 करोड़ रुपये तक के वार्षिक टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत किया गया.
2020-21 बजट
इस साल एक वैकल्पिक नई टैक्स व्यवस्था की घोषणा की गई, जिसके तहत कम टैक्स दरें तो थे लेकिन कोई छूट और कटौती नहीं थी. 2.5 लाख तक की आय पर 0%, 2.5-5 लाख पर 5%, 5-7.5 लाख पर 10%, 7.5-10 लाख पर 15%, 10-12.5 लाख पर 20%, 12.5-15 लाख पर 25%, और 15 लाख से ऊपर की आय पर 30% टैक्स दर.
2021-22 बजट
इस बजट सत्र में वरिष्ठ नागरिकों के लिए यानी 75 साल से ज्यादा उम्र के आयु के वरिष्ठ नागरिकों को, जो केवल पेंशन और ब्याज आय प्राप्त करते हैं, को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने से छूट दी गई.
वहीं छोटे और मझौले उद्यम को राहत देने के लिए विभिन्न घोषणाएं की गईं.
2022-23 बजट
इस बजट सत्र में वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (क्रिप्टोकरेंसी और अन्य) पर 30 प्रतिशत कर की घोषणा की गई. डिजिटल एसेट्स के ट्रांसफर पर 1% TDS की घोषणा की गई. वहीं लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर सरचार्ज की दर को 15% तक सीमित किया गया.
बजट 2024 में क्या है उम्मीद
इस बार बजट में देश के लोगों को उम्मीदें है कि सरकार मिडिल क्लास के लिए कुछ ऐलान कर सकती है. भारत के सैलरी क्लास लोगों को भी इस बार के बजट से काफी उम्मीदें हैं, क्योंकि लंबे समय से आम जनता को टैक्स के मोर्चे पर कोई राहत नहीं मिली है.
सरकार अगर मिडल क्लास के लोगों पर टैक्स बोझ कम करती है तो आम आदमी का खर्च कम हो सकता है और उसकी बचत बढ़ सकती है. जिन लोगों की सालाना कमाई 15 लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें टैक्स में छूट मिल सकती है. ये बदलाव शायद नए टैक्स सिस्टम में किए जा सकते हैं. इस सिस्टम में 15 लाख रुपये तक की कमाई पर 5 से 20% टैक्स लगता है. जबकि 15 लाख से ज्यादा इनकम पर 30% टैक्स देना पड़ता है. हालांकि ये अभी सिर्फ उम्मीदें हैं.
सरकार 10 लाख रुपये सालाना कमाने वालों के लिए भी कुछ टैक्स रेट कम करने पर विचार कर सकती है. साथ ही, पुरानी टैक्स व्यवस्था में सबसे ज्यादा 30% टैक्स लगने वाली कमाई की सीमा को भी बढ़ाने का फैसला कर सकती है. क्योंकि जब किसी व्यक्ति की कमाई 3 लाख रुपये से बढ़कर 15 लाख रुपये हो जाती है तो उस पर लगने वाला टैक्स छह गुना ज्यादा हो जाता है, जो कि बहुत ज्यादा है.
इसके अलावा, जिस एक चीज पर सबकी नजर टिकी है वह है स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट बढ़ाने की मांग. अभी जो नियम है उसके अनुसार नौकरीपेशा लोगों के लिए 50,000 रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलता है, जिसे इस बजट में बढ़ाकर 1 लाख रुपये किया जा सकता है. यह कदम नौकरीपेशा वर्ग को सीधा लाभ देगा.
देश की आम जनता को होम लोन पर भी इस बजट से काफी उम्मीदें हैं. दरअसल उम्मीद की जा रही है कि इस बजट में होम लोन लेने वालों को इनकम टैक्स एक्ट के तहत ज्यादा राहत दी जाएगी. यह उन लोगों के लिए बड़ी राहत होगी जो आने वाले समय में घर खरीदने की योजना बना रहे हैं.