ट्रैफिक संभालने से ज्यादा जुर्माने में क्यों रुचि रखती है पुलिस?
ट्रैफिक संभालने से ज्यादा जुर्माने में क्यों रुचि रखती है पुलिस?
पुरानी खबर ये है कि बेंगलुरु से मैसूर के बीच 142 किमी की दूरी में 119 किमी का हिस्सा 10 लेन एलीवेटेड एक्सप्रेसवे है, जो 1 अगस्त 2023 से चालू हो गया। और नई खबर ये है कि महज एक महीने (जून 2024) में ट्रैफिक पुलिस ने इस हिस्से में वाहन चालकों पर 1,61,491 केस दर्ज किए और 9 करोड़ रु. जुर्माना वसूला।
इनमें 1.3 लाख केस आगे की सीट पर बैठे यात्री या ड्राइवर के सीट बेल्ट नहीं पहनने के थे, 7,671 ओवर स्पीडिंग के, 12,609 लेन तोड़ने के, 1830 केस ड्राइविंग के दौरान मोबाइल इस्तेमाल के थे। दिलचस्प बात है कि एक्सप्रेसवे दो पहिया-तीन पहिया, ट्रैक्टर व मल्टी एक्सेल हाइड्रोलिक ट्रेलर वाहनों के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन वे लोग एक्सप्रेस के किसी भी तरफ बनी टू-लेन सर्विस रोड का इस्तेमाल कर सकते हैं।
आपको क्या लगता है कि सर्विस लेन पर गाड़ी चलाने वालों को एक्सप्रेसवे का लुत्फ उठाने का लालच नहीं आता होगा? ऐसा होता है। यही कारण है कि पुलिस ने ऐसे उल्लंघन के 9,079 केस दर्ज किए, ऊपर से वे लोग हेलमेट नहीं पहने थे, जबकि 1082 मामले बाइक पर ट्रिपलिंग के थे!
नियम तोड़ने के सारे मामले हाईवे पर 12 अलग-अलग जगहों पर लगे 40 ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन (एएनपीआर) कैमरे से दर्ज हुए। एएनपीआर कैमरों पर मामले दर्ज होने के बाद उसे एग्जिट पॉइंट या फिर दो टोल प्लाजा पर खड़े अधिकारियों को भेज दिया गया, जिनके पास दर्जनों टेबलेट्स थे, जिन पर उल्लंघकर्ताओं को उनकी तस्वीरें दिखा सकें। हालांकि, उनका मुख्य उद्देश्य दुर्घटनाओं और मौतों को रोकना है, लेकिन वे जुर्माना वसूलने में व्यस्त रहते हैं।
इससे मुझे अपनी दो महीने पुरानी एक यात्रा याद आ गई। तब मैं मैसाचुसेट्स के लॉवेल से 476 मील (766 किमी) दूर न्यूयॉर्क के एकदम छोर पर बने नियाग्रा फॉल्स गया था। वहां मुझे अलग-अलग स्टेट के अलग-अलग स्पीड लिमिट बोर्ड पर नजर रखनी पड़ी थी- ये 55 मील (88 किमी) से 65 मील (104 किमी) तक थी।
ग्रामीण सड़कों पर स्पीड लिमिट 35 मील (56 किमी) थी। और मेरा यकीन मानें ट्राफिक पुलिस एक्सप्रेसवे की तुलना में ग्रामीण सड़कों पर ज्यादा सख्त थी। वहां हाईवे पर तो स्पीड में 8 मील (13 किमी) की छूट मिल जाती है, लेकिन गांवों की सड़कों पर एक मील की छूट भी बर्दाश्त नहीं करते।
हाईवे पर जब मेरी कार 110-112 किमी की गति (छूट समेत) छू गई, तब एक पुलिस वाले ने हमें ओवरटेक किया और रोककर कहा कि अगर अब गति सीमा याद नहीं रखी, तो मैं जल्द ही 104 की सीमा पार कर सकता हूं और जुर्माना भरना पड़ सकता है।
वहां एक बार गति सीमा तोड़ने या एक बार जुर्माना भरने पर, ड्राइविंग लाइसेंस पर तीन पॉइंट्स चढ़ जाते हैं और अगर दो साल में 12 पॉइंट हो गए तो लाइसेंस कैंसल हो जाता है। उस अधिकारी के लिए वसूली प्राथमिकता नहीं थी बल्कि ये सराहना जरूरी थी कि उसके अधिकार क्षेत्र में केवल कुछ लोगों ने गति का उल्लंघन किया।
भारत की तरह, वहां भी जुर्माना चुकाकर लोग ओवरस्पीडिंग से बाज नहीं आते, बल्कि जो चीज उन्हें नियम मानने मजबूर करती है, वह उनका लाइसेंस निरस्त होना और उसे दोबारा हासिल करने की जद्दोजहद से बचना है। यदि ट्रैफिक पुलिस सिर्फ जुर्माने पर फोकस करती है और लाइसेंस कैंसल करने जैसी कठोर सजा पर ध्यान नहीं देती है, तो इससे समाज में ट्रैफिक अपराध कम नहीं होते हैं। पुणे का पोर्श केस और मुंबई का बीएमडब्ल्यू केस एक उदाहरण है।
अगर हम नियम तोड़ना बंद नहीं करते और कितना भी जुर्माना भरने तैयार रहते हैं तो पुलिस वालों से भी उम्मीद करना छोड़ दें कि वे जुर्माना वसूलने के बजाय ट्राफिक संभालें।