नाटो को बदलना होगा …. अमेरिका को राह का रोड़ा नहीं बनना चाहिए !

नाटो को बदलना होगा: यूरोपीय लोग अपनी रक्षा के लिए आगे आ रहे हैं, अमेरिका को राह का रोड़ा नहीं बनना चाहिए
वर्ष 1951 में नाटो के बारे में कहा गया था कि अगर दस वर्षों में राष्ट्रीय रक्षा उद्देश्यों के लिए यूरोप में तैनात सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस नहीं भेजा गया, तो यह पूरी परियोजना विफल हो जाएगी। लेकिन इसकी स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर भी यूरोप में लगभग 90 हजार अमेरिकी सैनिक तैनात हैं।
NATO must change Europeans stepping up to self defence US must not stand in the way
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन (फाइल) – फोटो : पीटीआई

वर्ष 1951 में उन्होंने नाटो के बारे में लिखा था, यदि दस वर्षों में राष्ट्रीय रक्षा उद्देश्यों के लिए यूरोप में तैनात सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस नहीं भेजा गया, तो यह पूरी परियोजना विफल हो जाएगी।’ लेकिन विगत नौ जुलाई को जब नाटो सहयोगी देशों के नेता उसकी 75वीं वर्षगांठ के लिए वाशिंगटन में सम्मिलित हुए, उस समय भी जर्मनी, इटली, ब्रिटेन और अन्य स्थानों पर लगभग 90 हजार अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, जो पांच लाख सैनिकों वाले नाटो के सैन्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नाटो में अमेरिका की व्यापक मौजूदगी सिर्फ सैनिकों की बड़ी संख्या के कारण नहीं है, बल्कि यूक्रेन सपोर्ट ट्रैकर डाटाबेस के मुताबिक, दुनिया भर के देशों द्वारा यूक्रेन को आवंटित 206 अरब डॉलर की सैन्य व असैन्य सहायता राशि में से 79 अरब डॉलर की सहायता अकेले अमेरिका ने दी है। कैटो इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, 1960 के बाद से मित्र देशों के सकल घरेलू उत्पाद में अमेरिका की हिस्सेदारी औसतन लगभग 36 प्रतिशत रही है, जबकि मित्र देशों के सैन्य खर्च में इसकी हिस्सेदारी 61 प्रतिशत से अधिक रही है।

लेकिन, अब यह स्पष्ट है कि यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा के लिए ज्यादा जिम्मेदारी उठानी होगी। ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी का अलगाववादी धड़ा इस बिंदु पर अमीर यूरोपीय देशों को आड़े हाथ लेते हैं कि ये देश सामाजिक सुरक्षा पर अमेरिका से भी ज्यादा खर्च करते हैं, लेकिन इनके पास अपनी सेना के लिए पैसे नहीं हैं। बल्कि, इसलिए भी कि अमेरिकी अधिकारी अब चीन द्वारा पेश की गई चुनौतियों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, जिसके लिए आने वाले वर्षों में अधिक संसाधनों की जरूरत होगी, खासकर चीन, रूस, उत्तर कोरिया और ईरान के बढ़ते सहयोग को देखते हुए। अमेरिका हर जगह एक साथ, अकेले सब कुछ नहीं कर सकता। नॉर्वे के विदेश मंत्री एस्पेन बार्थ ईडे ने बताया कि अमेरिकी चुनाव में चाहे जो भी जीते, यूरोपीय नेता समझते हैं कि उन्हें और अधिक योगदान देने की आवश्यकता है। वाशिंगटन की अपनी हालिया यात्रा के दौरान उन्होंने कहा कि रिपब्लिकन नेतृत्व ने बताया कि यूरोपीय लोगों को यूक्रेन में युद्ध के लिए बहुत अधिक जिम्मेदारी लेनी होगी, क्योंकि अमेरिका के पास ‘और भी बड़े काम हैं।’

इसकी शुरुआत हो चुकी है, लेकिन उतनी तेजी से नहीं, जितनी होनी चाहिए। नाटो शिखर सम्मेलन की निस्संदेह यह उपलब्धि रही कि 23 नाटो सदस्यों ने अपने जीडीपी का कम से कम दो फीसदी अपनी सेना पर खर्च करने पर कुछ हद तक सहमति जताई, जबकि एक दशक पहले तक मात्र तीन सदस्य ही इतना खर्च करते थे। लेकिन आश्चर्यजनक है कि नाटो के 32 सदस्यों में से एक तिहाई अब भी खर्च के उस लक्ष्य से पीछे हैं, जिस पर 2014 में सहमति बनी थी। अगर रूस ने पूर्ण पैमाने पर हमला किया और नाटो सदस्य और खर्च करने के लिए राजी नहीं हुए, तो यह कल्पना करना मुश्किल है कि क्या होगा।

इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल अफेअर्स के ताजा सर्वे के मुताबिक, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस एवं जर्मनी में अधिकांश लोगों का मानना है कि यूरोप को नाटो में बनाए रखने के लिए उन्हें अपनी रक्षा के लिए प्रमुख जिम्मेदारी निभानी चाहिए। अमेरिका पर यूरोप की निर्भरता महाद्वीप में बढ़ती बेचैनी को जन्म दे रही है। दरअसल, इसका एक कारण मानवीय स्वभाव है। अगर उनकी रक्षा के लिए हमेशा अमेरिका खर्च वहन करता है, तो सहयोगी क्यों निवेश करेंगे? लेकिन दूसरा कारण संरचनात्मक है। जब नाटो का गठन हुआ था, तो यूरोपीय सहयोगी विनाशकारी युद्ध से उबर ही रहे थे, जिससे वे एक दूसरे से संदेह करते थे और शत्रुतापूर्ण भी बन गए थे। ऐसे में कोई तो चाहिए था, जो उन सबको इकट्ठा करता। इस तरह, नाटो में अमेरिका की भूमिका अस्थायी सहायक से स्थायी रक्षक में बदल गई। लेकिन 1960 के दशक तक यह साफ हो गया कि अमेरिकी सेना जल्दी वापस नहीं जाएगी। एक बार जब वाशिंगटन को एहसास हो गया कि वह वहां से निकल नहीं सकता, तो उसने फैसले लेने शुरू कर दिए। पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के सुरक्षा सलाहकार मैकजॉर्ज बंडी ने 1962 में कहा, ‘हमें नेतृत्व की कीमत चुकानी होगी। इसके बदले हमें कुछ फायदे हो सकते हैं।’

इसका मतलब अमेरिकी फर्मों के लिए आकर्षक रक्षा अनुबंध थे, जो यूरोप में अपनी बड़ी उपस्थिति बनाए रखने के लिए शक्तिशाली वित्तीय प्रोत्साहन बन गए। अमेरिकी सैन्य उद्योग यूरोप की निर्भरता से लाभ कमाता है। वर्ष 2022-23 में यूरोपीय संघ के देशों द्वारा खरीदे गए सैन्य उपकरणों का लगभग 63 प्रतिशत अमेरिका से आया था। शीत युद्ध के अंत में यूरोपीय लोगों ने खुद को अमेरिकी सैन्य शक्ति से दूर करने की कोशिश की। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। नतीजतन आज यूरोप में नाटो के सदस्यों की रक्षा के लिए आवश्यक सैनिकों और उपकरणों को तैनात करने की क्षमता का अभाव है, खासकर जब बात वायु रक्षा, खुफिया और निगरानी जैसी विशेष इकाइयों की हो। सौभाग्य से कुछ यूरोपीय नेता इस मामले को उतनी ही तत्परता से ले रहे हैं, जितने की जरूरत है।

नाटो की खरीद योजना अमेरिकी हथियार निर्माताओं पर निर्भर है, जो यूरोपीय आयोग द्वारा मार्च में शुरू की गई नई यूरोपीय रक्षा औद्योगिक रणनीति के खिलाफ है। एक बार फिर, यूरोपीय देशों को एकजुट करने की जरूरत है। दोनों संस्थानों को एक मत होने की सख्त जरूरत है। अगर वे ऐसा करते हैं, तो यह यूरोप की अपनी रक्षा में मदद करने की क्षमता निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। अतीत में अमेरिकियों ने खतरा महसूस कर यूरोपीय रक्षा उद्योग के निर्माण के प्रयास को विफल कर दिया होगा। लेकिन आज अमेरिकी खुद अपने औद्योगिक रक्षा उत्पादन को बढ़ाने के लिए जूझ रहे हैं। जैसा कि जनरल आइजनहावर ने सपना देखा था, आज यूरोपीय लोग अपनी रक्षा के लिए आगे आ रहे हैं, तो अमेरिका को राह का रोड़ा नहीं बनना चाहिए।  

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