UPSC परीक्षा में डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट क्या-क्या राहत देता है ?
UPSC परीक्षा में डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट क्या-क्या राहत देता है, पूजा खेडकर मामले में कहां फंसा पेंच?
महाराष्ट्र कैडर की ट्रेनी IAS पूजा खेडकर को लेकर विवादबढ़ रहे हैं. अब चर्चा में है उनका विकलांगता प्रमाण पत्र. विकलांगता प्रमाण पत्र UPSC परीक्षा में क्या भूमिका निभाता है, किस तरह की दिक्कतों को विकलांगता के दायरे में रखा गया है और इस कोटे से परीक्षा देने वाले कैंडिडेट को क्या-क्या राहतें मिलती हैं?
महाराष्ट्र कैडर की ट्रेनी IAS पूजा खेडकर को लेकर विवाद बढ़ रहे हैं. अब चर्चा में है उनका विकलांगता प्रमाण पत्र (UPSC Disability Certificates). आए दिन इस पर नए खुलासे हो रहे हैं. कई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उन्होंने परीक्षा में PwBD (पर्सन विद बेंचमार्क डिसेबिलिटी) कैंडिडेट के तौर पर हिस्सा लिया था. उन्होंने दो तरह तरह के मेडिकल सर्टिफिकेट लगाए थे. पहला मानसिक विकलांगता और दूसरा शरीर में पर दिखने वाली दिक्कत से जुड़ा प्रमाण पत्र.
ऐसे में सवाल है कि विकलांगता प्रमाण पत्र UPSC परीक्षा में क्या भूमिका निभाता है और इस कोटे से परीक्षा देने वाले कैंडिडेट को क्या-क्या राहतें मिलती हैं?
UPSC में विकलांगता के मानक क्या हैं?
संघ लोक सेवा आयोग यानी UPSC की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, अगर कोई कैंडिडेट विकलांगता कोटे से आवेदन करतो चाहता है तो उसकी डिसएबिलिटी का पर्सेंटेज 40 फीसदी होना चाहिए. अगर कोई मेडिकल बोर्ड लिखकर देता है तो शुरुआती दौर में इसे मानते हुए संघ लोक सेवा आयोग कैंडिडेट को परीक्षा में शामिल होने की अनुमति देता है.
उम्मीदवार के सेलेक्शन के बाद यूपीएससी बोर्ड से मान्य मेडिकल बोर्ड कैंडिडेट की जांच कराता है. इस दौरान यह जांचा जाता है कि प्रमाण पत्र में विकलांगता का जो आंकड़ा है वो सही है या नहीं. जांच के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाता है. बोर्ड में तीन डॉक्टर होते हैं. इसमें एक डॉक्टर उस फील्ड का स्पेशलिस्ट होता है जिससे जुड़ी विकलांगता की जांच होती है.
पूजा खेडकर के मामले में क्यों जांच नहीं हो पाई, अब इसे समझ लेते हैं. पूजा खेडकर बोर्ड की मेडिकल जांच में शामिल नहीं हुईं. वो इसे टालती रहीं. कोरोना के कारण उन्होंने जांच की तारीख को आगे बढ़ाया. इस बीच उनकी ट्रेनी आईएएस के तौर पर जॉइनिंग हो गई.
कितनी तरह की दिक्कतों को विकलांगता के दायरे में रखा गया?
केंद्र सरकार ने 2016 में राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ एक्ट यानी RPWD Act पास किया था. इस एक्ट में विकलांगता से जुड़े आरक्षण का जिक्र किया गया. इसमें विकलांगता की पांच कैटेगरी तय की गई थीं. इसे बेंचमार्क डिसेबिलिटी कहा गया. पहली कैटेगरी थी, ऐसे कैंडिडेट जो दृष्टिहीन या दृष्टिबाधित हैं या जिन्हें कम दिखाई देता है. दूसरी, जो सुनने में अक्षम हों या ऊंचा सुनते हैं. तीसरी, जिनके शरीर में मांसपेशीय विकास ना हुआ हो. इसमें वो लोग शामिल किए गए जो चलने-फिरने में अक्षम है. चौथी में बौद्धिक विकलांगता, ऑटिज्म और मानसिक बीमारियां आती हैं. वहीं, पांचवी कैटेगरी में ऊपर बताए ऑप्शन में से एक से ज्यादा तरह की विकलांगता का होना.
विकलांगता सर्टिफिकेट से UPSC की परीक्षा में कितनी राहत मिलती है?
– सामान्य/ओबीसी/EWS श्रेणियों के PwBD उम्मीदवारों को परीक्षा देने के अधिकतम 9 मौके मिलते हैं. एससी/एसटी श्रेणियों के PwBD उम्मीदवार के लिए मौकों की संख्या तय ही नहीं की गई है. जितनी बार चाहें परीक्षा दे सकते हैं. इनके पास विकल्प है कि कॉम्पेंसेट्री टाइम चाहिए या नहीं. यह समय उन कैंडिडेट को मिलता है तो ब्लाइंडनेस, लोकोमोट्री डिसएबिलिटी या सेरेब्रल पॉल्सी से जूझ रहे हैं. इन्हें परीक्षा में कुल 40 मिनट अतिरिक्त मिलते हैं.
इन्हें एग्जाम सेंटर और पर्सनैलिटी टेस्ट में कई सुविधाएं दी जाती हैं. इन्हें वो सभी सुविधाएं मिलती हैं जो विकलांगता के कारण परीक्षा या टेस्ट को प्रभावित न होने दे. अगर कोई PwBD उम्मीदवार किसी विशेष आवश्यकता के लिए अनुरोध करता है और वो मांग वाजिब है तो सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. अगर सुनने की क्षमता कम है या नहीं है तो उससे जुड़े इंस्ट्रूमेंट दिए जाते हैं. उनसे प्रोजेक्टर पर सवाल पूछे जा सकते हैं. वो ओरली या लिखकर या टाइप करके अपना जवाब दे सकते हैं.
इसके अलावा उम्र के जो मानक तय किए गए हैं, उसमें 10 साल तक की छूट मिलती है. पदों में आरक्षण मिलता है. यानी पूरी भर्ती में कुछ PwBD उम्मीदवारों के लिए तय किए जाते हैं जो सिर्फ इन्हें ही मिलते हैं. इस तरह इन्हें पदों में आरक्षण मिलता है.