अध्यक्ष की उम्मीदवारी गई, सीएम पद पर भी सस्पेंस …!

राजस्थान में सियासी संकट से गहलोत को फायदा हुआ या नुकसान?

ये तय हो गया है कि सीएम गहलोत अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे. वह सीएम बने रहेंगे या नहीं, इसका फैसला आलाकमान लेगा. राजस्थान में जो भी घटनाक्रम बीते दिनों हुआ उससे सीएम गहलोत फायदा हुआ या नुकसान, आइए जानते हैं.

सीएम गहलोत ने कहा कि मैंने सोनिया गांधी से बैठकर बातचीत की, जिस प्रकार से पिछले 50 सालों में कांग्रेस में इंदिरा गांधी के वक्त से राजीव गांधी और उनके बाद सोनिया गांधी के संग एक वफादार सिपाही के रूप में मैंने काम किया है. सोनिया गांधी के आशीर्वाद से मुझे सबकुछ मिला, मंत्री रहा मुख्यमंत्री बना, जो घटना हुई, उसने हिला कर रख दिया है और मुझे दुख है. देश में संदेश गया कि मैं सीएम बने रहना चाहता हूं. मुख्यमंत्री ने आगे कहा, मैंने सोनिया गांधी से माफी मांगी है, एक फैसला करते वक्त एक लाइन का प्रस्ताव पारित होता है. मैं उस प्रस्ताव को पारित नहीं कर पाया है, मुझे दुख रहेगा.

गहलोत को फायदा हुआ या नुकसान? 

अब ये तय हो गया है कि सीएम गहलोत अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे. वह सीएम बने रहेंगे या नहीं, इसका फैसला भी आलाकमान लेगा. राजस्थान में जो भी घटनाक्रम बीते दिनों हुआ उससे ये तो साफ हो गया कि सीएम गहलोत को इससे फायदा हुआ.

राजस्थान में अपने विधायकों द्वारा ताकत दिखाने के बाद गहलोत दिल्ली में थे. इस सप्ताह की शुरुआत में, उनके वफादारों ने राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष को यह कहते हुए सशर्त इस्तीफा दे दिया था कि वे सचिन पायलट को गहलोत के उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे. अप्रत्याशित गतिरोध ने कांग्रेस को बड़ी शर्मिंदगी का कारण बना दिया था और गांधी परिवार को गहलोत के वफादारों के साथ युद्ध के रास्ते पर खड़ा कर दिया था.

कांग्रेस के अध्यक्ष के लिए राजनीतिक गलियारे में अशोक गहलोत को गांधी परिवार की पहली पसंद बताया गया. लेकिन सभी ने एक बुनियादी गलती की. वे गहलोत से पूछना भूल गए कि क्या वह चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं.  गहलोत हमेशा राजस्थान में रहने और राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में बने रहने में रुचि रखते थे. और गहलोत जो चाहते थे उसे बनाए रखने में कामयाब रहे और कुछ ऐसा त्याग दिया, जिसके लिए वह कभी उत्सुक नहीं थे.

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