वाइकिंग लड़ाके और टैक्स का चाबुक.. ?
टाइम मशीन: वाइकिंग लड़ाके और टैक्स का चाबुक… किंग अथेराल्ड ने आने वाली सरकारों को खजाना भरने की बड़ी सीख दी
वाइकिंग लड़ाके हमले और लूट बंद करने के लिए अथेराल्ड से फिरौती मांगने लगे हैं। मजबूर राजा को यह समझौता करना पड़ा है। अथेराल्ड बुरी तरह परेशान है। खजाना खाली है, फिरौती कहां से दी जाए? किंग अथेराल्ड ने टैक्स लगाने की व्यवस्था का एलान कर दिया है। उन्हें क्या पता कि वह आने वाली सरकारों को क्या सिखा रहे हैं?
विलियम पिट ने 1802 में इनकम टैक्स को हटा लिया। एक साल बाद नेपोलियन फिर चढ़ आया, तो प्रधानमंत्री हेनरी एडिंगटन इसे फिर वापस ले आए। किंग-क्वीन की कई पीढ़ियों को वक्त निगल गया। बड़ी-बड़ी जंगें करोड़ों लोगों की जान लेकर इतिहास बन गईं, मगर इनकम टैक्स आया, तो फिर वापस नहीं गया।
बजट की गंध हवा में है। आमतौर पर बजट बसंती होता है, मगर इस बार का बजट मानसूनी है। बजट है, तो एक ही चर्चा है टैक्स की…उम्मीदों के कबूतर उड़ाने वाले कह रहे हैं कि इस जानलेवा महंगाई में नौकरीपेशा वर्ग के लिए रियायत का मरहम आ सकता है। मगर सत्ता के दरवाजों में कान लगाने पर यह सुनाई देता है कि सरकार जीएसटी को सख्त कर सकती है। कई उत्पादों पर रियायती दर से लगने वाला टैक्स खत्म हो सकता है।
टैक्स से हिकारत तारीखी है। प्लेटो, सिसरो और मार्क अंटनी में एक दिलचस्प समानता थी कि तीनों ही टैक्स से बुरी तरह चिढ़ते थे। प्लेटो कहता था कि ईमानदार ज्यादा टैक्स चुकाता है और बेईमान कम। टैक्स की यह व्याख्या अजर-अमर हो गई। सिसरो बोला कि टैक्स ही सत्ता की ताकत है, तो मार्क अंटनी ने कहा कि टैक्स अगर सभ्य होने की फीस है, तो मुझे रिफंड चाहिए, मैं जंगली ही भला। टैक्स की दुनिया है ही इतनी अभिशप्त। टैक्स व्यवस्था की बोहनी ही खराब थी। खपत, संपत्ति और आय पर तरह-तरह के टैक्स की शुरुआत युद्धों और लूट की छाया में हुई थी, इसलिए चाहे भारत हो या यूरोप, सरकारों का यह चाबुक खाल ही उतार देता है।
आइए, टाइम मशीन को उड़ान के लिए रनवे पर पहुंचने का इशारा हो गया है। संभालिए अपनी सीट और बांधिए कुर्सी की पेटी। हम यहां से सीधे नौवीं सदी के यूरोप की तरफ जा रहे हैं। उस यूरोप में घूमते हुए आप खुद को बचाइएगा, क्योंकि आपका सामना दुनिया के सबसे निर्मम लड़ाकों से हो सकता है, जिन्हें वाइकिंग कहा जाता था। यह नौवीं सदी का ब्रिटेन है। दूर से ही देखिए यहां की कत्ल-ओ-गारत। ब्रिटेन वाइकिंग के हमलों से तार-तार हो रहा है। स्कैंडिनेविया के ये लड़ाके यूरोप को रौंद रहे हैं। निर्ममता में इनका कोई सानी नहीं है। ब्रिटेन वाले आपको बताएंगे कि वाइकिंग हमले और लूट के बाद वापस उत्तर में चले जाते हैं और कुछ समय बाद फिर लौटते हैं। वाइकिंग लड़ाके पश्चिम एशिया, रूस, उत्तरी अफ्रीका और कनाडा तक मार करते हैं। इनकी बर्बरता की दंतकथाएं सुनकर आप कांप उठेंगे। शुक्र है, आप ब्रिटेन के सुरक्षित इलाके में हैं।
टाइम मशीन आपको नौवीं सदी के उस मौके पर ले आई है, जब किंग अल्फ्रेड ऑफ वेसेक्स राजपाट संभाल रहे हैं। आगे इनकी गिनती ब्रिटेन के महान शासकों में होगी। वाइकिंग हमलों और लूटपाट से ध्वस्त ब्रिटेन को खड़ा करना अल्फ्रेड की जिम्मेदारी है। सत्ता संभालते ही उन्होंने एंग्लो सैक्सन राज्य को उत्तरी लड़ाकों के मुकाबले में उतारा है। नतीजतन वाइकिंग का आतंक कुछ कम होने लगा है। दसवीं सदी की तरफ बढ़ते हुए आप देख पा रहे हैं कि वक्त इतना रहमदिल साबित नहीं हुआ। किंग अल्फ्रेड फानी दुनिया से कूच कर गए। यह 978 का साल है। अल्फ्रेड के बेटे अथेराल्ड सत्ता में हैं। आने वाला वक्त उन्हें किंग अथेराल्ड द अनरेडी के नाम से जानेगा। आइए, भागकर टाइम मशीन में बैठिए। यूरोप पर वाइकिंग के भयानक हमले का दूसरा सबसे भयानक दौर शुरू हो गया है। बहुत खून-खच्चर मचा है। ग्रेट हीदन आर्मी ने ब्रिटेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है। किंग अथेराल्ड के पास वाइकिंग की ताकत का कोई जवाब नहीं है। वाइकिंग लड़ाके हमले और लूट बंद करने के लिए फिरौती मांगने लगे हैं। मजबूर राजा को यह समझौता करना पड़ा है।
वाइकिंग को पहली फिरौती 991 में गई। लड़ाकों को 10,000 रोमन पौंड के चांदी के सिक्के दिए गए, जिनका वजन करीब 3,300 किलोग्राम था। अब तो वाइकिंग बार-बार फिरौती वसूलने लगे। अब हम देखेंगे वह दौर, जिसके लिए जोखिम उठाकर हम 21वीं सदी से वाइकिंग की दुनिया में आए हैं। अथेराल्ड बुरी तरह परेशान है। खजाना खाली है, फिरौती कहां से दी जाए?
किंग अथेराल्ड ने टैक्स लगाने की व्यवस्था का एलान कर दिया है। उन्हें क्या पता कि वह आने वाली सरकारों को क्या सिखा रहे हैं। वाइकिंग को फिरौती की रकम के लिए डेनगेल्ड का नाम का टैक्स लगा है। जमींदार इसे चुका रहे हैं। हेरगेल्ड नाम एक और टैक्स लगा है, जो वाइकिंग से मुकाबले के लिए नौसेना के काम आएगा। आगे हाउस ऑफ वेसेक्स के आखिरी सम्राट एडवर्ड द कन्फेसर ने 1056 में हेरगेल्ड को खत्म कर दिया, अलबत्ता डेनगेल्ड या जमीन वाले टैक्स की वसूली जारी रही।
11वीं सदी में वाइकिंग का दबदबा टूटने लगा, मगर डेनगेल्ड जारी रहा। अब हम 1066 में हैं, जहां किंग विलियम एक अनोखा काम करने जा रहे हैं, जिसके बाद टैक्स सत्ता की जरूरत बन जाएंगे। विलियम ने विश्व के इतिहास की पहली आर्थिक जनगणना शुरू करा दी है। उनके कारिंदे पूरे मुल्क में घूम-घूमकर जमीन-जायदाद और संपत्तियों का सर्वे कर रहे हैं। यह सर्वे टैक्स लगाने के मकसद से हो रहा है। विलियम की यह व्यवस्था अगले बीस साल तक जारी रहेगी, जिसमें ब्रिटेन के हर घर में जानवरों तक की गिनती होगी। आइए, अब एक किताब देखिए, जिसका नाम है डूम्सडे बुक।
दरअसल इसी किताब में विलियम की आर्थिक जनगणना को संजोया गया है। डूम्सडे बुक यानी दुनिया के खात्मे की किताब। इस सर्वे को यह अभागा नाम यों ही मिला है। इस दौर में जजमेंट डे की तरह डूम्सडे शब्द का इस्तेमाल किसी मामले पर आखिरी फैसले के लिए होता है। इसलिए इस किताब में जो दर्ज है, वह पत्थर की लकीर है। इस रोचक किताब के पन्ने पलटते हुए आपको हैरत होगी। डूम्सडे बुक बताती है कि कैसे अलग-अलग तरह की जमीनों को वर्गीकृत कर उन पर टैक्स लगाया जाता था। यह औद्योगिक क्रांति से पूर्व ब्रिटेन का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसके साथ संपत्तियों पर टैक्स लगना शुरू हुआ, जो फिर नहीं लौटा।
टाइम मशीन की रफ्तार बढ़ाते हुए हम 18वीं सदी में पहुंच रहे हैं। अब हम मिलेंगे एक और विलियम से, जिनके राज में हम इनकम टैक्स का जन्म देखेंगे, जिससे पूरी दुनिया चिढ़ती है। इनकम टैक्स पुराने मिस्र और रोम में लगता था, मगर आज के इनकम टैक्स जैसा नहीं था। यह संपत्ति, खर्च, कमाई आदि पर मिला-जुला टैक्स होता था। आधुनिक इनकम टैक्स भी एक बड़े युद्ध की छाया से निकला है। यह 1799 का ब्रिटेन है। नेपोलियन के साथ युद्ध में बर्तानवी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर हैं विलियम पिट द यंगर। युद्ध के खर्च के लिए प्रधानमंत्री ने पहली बार इनकम टैक्स का एलान कर दिया है। टैक्स की न्यूनतम दर दो पेंस है, जो 60 पाउंड की इनकम पर लगाया है। इनकम बढ़ने के साथ टैक्स बढ़ता जाता है। प्रधानमंत्री को एक करोड़ पाउंड चाहिए सेना के लिए। विलियम पिट इसे अस्थायी कहकर लाए हैं। 1802 में उन्होंने इसे हटा लिया। एक साल बाद नेपोलियन फिर चढ़ आया, तो प्रधानमंत्री हेनरी एडिंगटन फिर इनकम टैक्स ले आए। नेपोलियन गुजर गए। किंग-क्वीन की कई पीढ़ियों को वक्त निगल गया।
बड़ी-बड़ी जंगें करोड़ों लोगों की जान लेकर इतिहास बन गईं, मगर इनकम टैक्स आया, तो वापस नहीं गया। मगर हमें तो वापस चलना है न। जुलाई खत्म होते-होते इनकम टैक्स रिटर्न भी तो भरना है। टाइम मशीन दिल्ली में उतर रही है। यहां सालाना बजट का मौसम है, आप बस यह दुआ कीजिए कि बजट में नए टैक्स न लगाए जाएं। फिर जल्द मिलेंगे अगले सफर पर…।