बजट 2024: सहयोगी दलों का दबाव, आम लोगों का नहीं ध्यान…?

बजट 2024: सहयोगी दलों का दबाव, आम लोगों का नहीं ध्यान… इस बजट से निराशा की खास वजह

जिस तरह से आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए स्पेशल पैकेज का एलान किया गया, वो किसी सहयोगी दलों को लेकर झुकाव इस बार के बजट में साफ नजर आया, जो पिछली बार के बजट में नहीं दिखा था. इस मायने में भी इसे एनडीए का ही बजट कहा जाएगा. मध्यम वर्ग को आयकर को लेकर बजट से काफी उम्मीदें होती हैं कि आयकर में क्या कुछ होगा, क्योंकि आय होगी तभी हम कुछ खरीदने की स्थिति में होंगे.

आयकर में छूट की थी उम्मीद

पहले से उम्मीद की जा रही थी कि स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ाया जाएगा और वो बढ़कर 50 हजार से 75 हजार भी किया गया. बाकी स्लैब हलका सा बढ़ाया गया, जैसे- पहले 3 लाख तक कोई टैक्स नहीं होता था, अब भी वही है. पहले 3 से 6 लाख के बीच की आय पर 5 फीसदी टैक्स लगता था, उसे अब 3 से 7 लाख रुपये किया गया है.

पहले 6 से 9 लाख के बीच की आय पर 10 फीसदी टैक्स था, हालांकि उसमें टैक्स रिबेट अंडर सेक्शन 87 था, जिससे 7 लाख तक की आय करमुक्त हो जाती थी. लेकिन अब 7 से 10 लाख के बीच आय पर 10 फीसदी टैक्स कर दिया गया है.

पहले 9 से 12 लाख के बीच आय पर 15 फीसदी टैक्स लगता था, जिसे अब 10 से 12 लाख के बीच में 15 फीसदी टैक्स कर दिया गया. इससे ऊपर की आय पर कोई बदलाव नहीं किया गया है. यानी इस तरह से देखा जा सकता है कि मध्यम वर्ग को टैक्स डिडेक्शन बढ़ाकर उन्हें राहत देने की कोशिश की गई है.

मध्यम वर्ग को राहत

नए टैक्स रिजीम की तरफ लोगों को खींचने की भी कोशिश की गई है, क्योंकि कुछ लोग अभी भी पुराने टैक्स रिजीम को ही फॉलो कर रहे हैं.  ये भी उम्मीद है कि पुराना टैक्स स्ट्रक्चर खत्म ही हो जाएगा. ग्रोथ के लिए रोजगार और शिक्षा बहुत जरूरी है. इसलिए हमेशा शिक्षा और रोजगार पर हमेशा जीडीपी का 2.9 फीसदी हम खर्च करते हैं. अभी शिक्षा और रोजगार मिलाकर 1.48 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है. सबसे ज्यादा शिक्षा के ऊपर खर्च करना चाहिए. क्योंकि रोजगार बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी शिक्षा ही है.

यहां पर बात स्किल्ड रोजगार और स्किल्ड एजुकेशन की हो रही है. हमेशा ये बात की गई है कि AI नौकरियों की रिप्लेस कर रही है. इसलिए यहां पर स्किल्ड एजुकेशन की बात करेंगे तभी रोजगार हो सकता है. एमएसएमई में सबसे ज्यादा नौकरियों का सृजन होता है. कंस्ट्रक्शन के बाद एमएसएमई ही आता है. एमएसएमई में क्रेडिट देने के लिए काफी योजनाओं का भी एलान किया गया है.

लेकिन, एक सवाल उठ रहा है कि एमएसएमई में जो लोग काम कर रहे हैं उनको क्रेडिट देने के लिए जिन स्कीम्स का एलान किया गया है, क्या वे इतना सक्षम हैं कि लोन ले पाएँ और फिर उन्हें चुका पाएं. क्योंकि जब आप लोन लेंगे तो फिर उसे आपको चुकाना भी होगा.

स्कीम्स पर उठते सवाल

भारत को 2047 तक विकसित करने का लक्ष्य जो रखा गया है, उसको ध्यान में रखकर बहुत सारी योजनाओं का एलान किया गया है. लेकिन सवाल उठ रहा है कि आखिर इसका क्या असर होगा? जमीनी स्तर पर ये योजनाएं कितनी कारगर साबित होगी. ये एक बड़ा सवाल इसलिए हैं क्योंकि देश में रोजगार एक बड़ी चुनौती है.
हमारे यहां पर असंगठित क्षेत्र बहुत ज्यादा है, उदाहरण के तौर पर- एक दुकान पर एक लड़का रखा हुआ है. वो सामान देने जाता है. प्री वेंडर्स के लिए भी कुछ एलान किया गया है. लेकिन, इसे लागू कैसे किया जाएगा, ये अहम सवाल है.

बेहतर है कि हम शिक्षा के माध्य से रि-स्किलिंग करें. एमएसएमई के लिए क्रेडिट को लेकर बहुत सारी घोषणाएं कर दी गई हैं. पिछली बजट में भी उनके लिए ऐसी ही घोषणाएं हुई थी. लेकिन फिर वही सवाल है कि आपने क्रेडिट सीमा को बढ़ा दी लेकिन क्या आपने उतना काबिल बनाया कि वो पहले लोन ले और फिर उसे चुकाने की उसके पास क्षमता हो.

ऐसे में हकीकत ये है कि सरकार ग्राउंड रियलिटी से कोसो दूर है. ग्राउंड रियलिटी समझने की जरूरत है कि आखिर विकास के लिए क्या कुछ चाहिए.

साफतौर पर इस बजट पर असर ये दिखा है कि पहले बीजेपी सरकार का बजट होता था लेकिन इस बार ये एनडीए का बजट है. बिहार के लिए विशेष दर्जा देने की काफी मांग हो रही थी और आंध्र प्रदेश के लिए भी ऐसी ही मांग हो रही थी. ऐसे में जिस तरह का पैकेज इन दोनों ही राज्यों को इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए दिया गया है, ये अच्छी बात है, लेकिन बाकी और राज्यों में ऐसा कोई पैकेज नहीं दिया गया है. मणिपुर में क्या कोई पैकेज दिया गया है?

कैपिटल एक्सपेंडिचर सरकार की तरफ से किया जा रहा है. इसलिए एक और सवाल उठ रहा है कि जब हम चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था का ग्रोथ हो, ऐसे में जब आम आदमी खर्च करता है, उपभोग बढ़ता है तो उससे प्रोडक्शन बढ़ता है. फिर कंपनियां निवेश करती हैं और इससे प्राइवेट इनवेस्टमेंट बढ़ता है. एक कंपोनेंट होता है सरकारी खर्च, वो तो बढ़ रहा है लेकिन प्राइवेट इनवेस्टमेंट नहीं बढ़ रहा है.

इस बजट में वित्त मंत्री ने प्राइवेंट इनवेस्टमेंट बढ़ने का लिए कई योजनाओं का एलान किया है. अब ये आने वाले वक्त में पता चल पाएगा कि कितनी कारगर हो पाई है. इसलिए प्राइवेट इनवेस्टमेंट बढ़ाना बहुत जरूरी है और ये तभी होगी, जब उपभोग बढ़ेगा. लेकिन, इस बजट में उसको लेकर बहुत ज्यादा फोकस नहीं दिख रहा है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि …न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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