भारत का समुद्री साम्राज्य … दुनियाभर का 80% व्यापार समंदर के रास्ते होता है !
भारत का समुद्री साम्राज्य: नीली अर्थव्यवस्था का बढ़ता हुआ बाजार, चुनौतियां से भरा एक क्षेत्र
भारत की ‘नीली अर्थव्यवस्था’ देश की तरक्की में अहम भूमिका निभाती है. इसमें जहाज चलाना, पर्यटन, मछली पालन, समुद्र के अंदर तेल और गैस की खोज जैसे कई काम शामिल हैं.
अभी दुनिया भर में समुद्री कारोबार (ocean economy) करीब 1.5 लाख करोड़ डॉलर सालाना का है, जो दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के बराबर है. खास बात ये है कि अनुमानों के मुताबिक 2030 तक ये आंकड़ा दोगुना होकर 3 लाख करोड़ डॉलर सालाना तक पहुंच जाएगा.
इतना ही नहीं, समुद्र में पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों की कुल कीमत 24 लाख करोड़ डॉलर आंकी गई है. ये आंकड़े बताते हैं कि ‘नीली क्रांति’ वाकई में आर्थिक विकास का एक सुनहरा मौका है. भारत को भी इस मौके का फायदा उठाना चाहिए और समुद्री संपदाओं का इस्तेमाल करके तरक्की की रफ्तार को और तेज बनाना चाहिए.
क्या है नीली अर्थव्यवस्था और क्यों जरूरी?
नीली अर्थव्यवस्था का मतलब है कि समुद्र के संसाधनों का सोच-समझकर इस्तेमाल करना. इसमें समुद्र की खोज करना, अर्थव्यवस्था को बढ़ाना, लोगों की रोजी-रोटी का ध्यान रखना और समुद्री रास्तों से सामान लाना-ले जाना शामिल है. इस दौरान ये भी जरूरी है कि समुद्र और उसके किनारों के पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे. मतलब है कि हम समुद्र का फायदा उठाएं, लेकिन उसका ख्याल भी रखें.
अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो मुश्किल ये है कि समंदर तो तीन-चौथाई धरती को ढके हुए हैं, 97% पानी समंदर में ही है और धरती पर रहने वाले जीवों का 99% ठिकाना भी यही है. अगर हमने समंदर को नुकसान पहुंचाया तो इसका सीधा असर हम पर ही पड़ेगा. इसलिए, नीली अर्थव्यवस्था को अपनाना बहुत जरूरी है.
हमारे लिए ये जानना भी जरूरी है कि दुनियाभर का 80% व्यापार समंदर के रास्ते होता है. पूरी दुनिया की 40% आबादी समंदर के किनारे रहती है और 3 अरब से भी ज्यादा लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए समंदर पर निर्भर हैं. मछली पकड़ने से लेकर जहाज चलाने तक, कई चीजें समंदर से जुड़ी हैं.
नीली क्रांति: भारत के विकास का नीला हीरा!
भारत का समुद्री किनारा 7500 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबा है, जो 9 राज्यों में फैला हुआ है. यहां 12 बड़े और 200 से भी ज्यादा छोटे बंदरगाह हैं. ये सारी चीजें मिलकर देश के 95% व्यापार को समंदर के रास्ते संभालती हैं. इससे अर्थव्यवस्था को सीधा फायदा होता है और अनुमान है कि भारत की कुल कमाई (GDP) का 4% हिस्सा सिर्फ समंदर से जुड़े कारोबारों से ही आता है.
आने वाले समय में समंदर से हवा और सूरज की मदद से भी बिजली बनाने की टेक्नोलॉजी का विकास हो सकता है. इससे भारत की बढ़ती हुई बिजली की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी. नीली अर्थव्यवस्था मछली पालन और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी इन दोनों क्षेत्रों को भी बढ़ावा देती है. इन क्षेत्रों को तरक्की देने से न सिर्फ देश में मछली और दूसरे समुद्री उत्पादों की कमी दूर होगी, बल्कि समंदर के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में भी मदद मिलेगी.
संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) ने दुनिया के विकास के लिए कुछ लक्ष्य तय किए हैं, जिन्हें सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDGs) कहा जाता है. नीली अर्थव्यवस्था इन सभी लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करती है, खासकर SDG 14 ‘जल के नीचे का जीवन’.
इस तरह ‘नीली क्रांति’ भारत के विकास का एक सुनहरा मौका है. इसका इस्तेमाल करके भारत न सिर्फ आर्थिक तरक्की कर सकता है बल्कि दुनिया के सामने एक जिम्मेदार समुद्री शक्ति के रूप में भी उभर सकता है.
गहरे समुद्र का खजाना: क्या है भारत का मिशन
भारत सरकार ने हाल ही ‘दीप ओशन मिशन’ की शुरुआत की है. इसे ‘नीली क्रांति’ कहा जा रहा है. ‘दीप ओशन’ समुद्र का वो हिस्सा है जहां अभी तक बहुत कम खोजबीन हुई है. माना जाता है कि वहां अथाह खजाना छिपा हुआ है. इस मिशन से न सिर्फ विज्ञान के क्षेत्र में बल्कि आर्थिक तौर पर भी भारत को काफी फायदा हो सकता है. अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और जापान जैसे देश पहले ही ऐसे ही गहरे समुद्र में जाने वाले मिशन को अंजाम दे चुके हैं. अब भारत भी इस रेस में शामिल होने जा रहा है.
अच्छी बात ये है कि हिन्द महासागर में भारत के पास पहले से ही दो गहरे समुद्र की खोज के लाइसेंस हैं और उसने इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) से दो और लाइसेंस के लिए आवेदन किया है. भारत सरकार ने समुद्र की गहराईयों की खोज के लिए 8,000 करोड़ रुपये की लागत से योजना शुरू की है.
ISA और इसका मकसद
इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसे 1982 के संयुक्त राष्ट्र संघ के समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) और 1994 के इसी सम्मेलन के भाग 11 के कार्यान्वयन से संबंधित समझौते (1994 Agreement) के तहत बनाया गया था. इस संस्था का मुख्य काम ये है कि जो देश UNCLOS का हिस्सा हैं, वो मिलकर गहरे समुद्र में खनिजों की खोज को सही तरीके से अंजाम दें. साथ ही ये भी सुनिश्चित करें कि इससे पूरे मानव समुदाय को फायदा हो.
UNCLOS का हिस्सा बनने वाला हर देश अपने आप ISA का सदस्य भी बन जाता है. 18 मई 2023 तक ISA के कुल 169 सदस्य हैं जिनमें 168 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं. अंतराष्ट्रीय सीबेड अथॉरिटी की जिम्मेदारी है कि वो ये सुनिश्चित करे कि गहरे समुद्र में पाए जाने वाले मिनरल, मानव जाति की साझी संपत्ति के तौर पर इस्तेमाल किए जाएं. गौर करने वाली बात ये है कि गहरे समुद्र का इलाका पूरे दुनिया के महासागरों का करीब 54% हिस्सा है.
गहरे समुद्र की खोज जरूरत है या रेस?
गहरे समुद्र की खोज सिर्फ जरूरी संसाधन निकालने के लिए नहीं की जा रही है बल्कि ये एक तरह से देशों के बीच की छिपी हुई रेस भी है. चीन के पास पहले से ही चार लाइसेंस हैं और वो भी इसी तरह की खोज बहुत तेजी से कर रहा है. इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी ने अब तक 31 खोज लाइसेंस जारी किए हैं, जिनमें से 30 अभी भी एक्टिव हैं.
भारत के लिए भी ये कदम उठाना जरूरी है. भारत का विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone – EEZ) 22 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा में फैला हुआ है. ऐसे में अपनी इस संपत्ति की खोज करना तो बनता ही है. हालांकि, ये काम बहुत सावधानी से करना होगा क्योंकि समुद्र का इकोसिस्टम बेहद नाजुक है और इसके बारे में अभी बहुत कम जानकारी है. साथ ही, जिन समुदायों की रोजी-रोटी समुद्र से चलती है उन पर भी इसका असर पड़ सकता है.
नीली अर्थव्यवस्था की राह में रोड़े
नीली अर्थव्यवस्था भले ही भारत के विकास के लिए बहुत फायदेमंद है, लेकिन इसके रास्ते में कुछ चुनौतियां भी हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है. भारत के कई समंदर किनारे इलाकों में बंदरगाह, हवाई अड्डे और दूसरी जरूरी चीजों की कमी है. इससे इन इलाकों में कारोबारों को बढ़ाना और नए बिजनेस खोलना मुश्किल हो जाता है.
भारत के समंदर किनारे के इलाकों में ज्यादा मछली पकड़ना एक बड़ी समस्या है. इससे पानी में मछलियों की संख्या लगातार कम हो रही है. इसका असर न सिर्फ मछली पालन करने वाले लोगों पर पड़ेगा, बल्कि पूरी नीली अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा सकता है. वहीं तेल रिसाव, प्लास्टिक कचरा और फैक्ट्रियों का गंदा पानी मिलकर समंदर को प्रदूषित कर रहे हैं. इससे समंदर का वातावरण खराब हो रहा है, जो वहां रहने वाले जीवों और नीली अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है.
समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है. इंडियन ओशन डाइपोल (एक मौसमी घटना) में बदलाव हो रहे हैं. ये जलवायु परिवर्तन के कुछ ऐसे असर हैं, जो समंदर किनारे रहने वाले लोगों के लिए खतरा बन सकते हैं और नीली अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.
वहीं भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य (Palk Bay) में समुद्री सीमा को लेकर कोई साफ सहमति नहीं है. इस वजह से दोनों देशों के मछुआरों के बीच अक्सर तनाव और झगड़े हो जाते हैं. इस समस्या को सुलझाने के लिए भारत और श्रीलंका दोनों देशों ने मिल बैठकर पाक जलडमरूमध्य में मछली पकड़ने के नियमों को तय करने और समुद्री सीमा को स्पष्ट करने की कोशिश की है. लेकिन अभी तक कोई ठोस हल नहीं निकल पाया है.